शुक्रवार, 8 मार्च 2019

राष्ट्रहित से बड़ी कोई विचारधारा नहीं होती


                        राष्ट्रहित से बड़ी कोई विचारधारा नहीं होती

             डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया
        बालाकोट आतंकी हमले के बाद देश में लगातार आम जनता में रोष है उस रोष का शमन कुछ हद तक 26 फरवरी को पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक से हुआ. लेकिन इतने भर से देश की जनता इसलिए संतुष्ट नहीं है कि पाकिस्तान को इससे बहुत बड़ी ना तो हानि हुई और ना कोई सबक मिला. पाकिस्तान एक ऐसा मुल्क है जहां आतंकियों का दबदबा वहां की सरकार आईएसआई और सेना पर भी लगता है. यदि ऐसा नहीं होता तो कम से कम यह तो कहा ही जा सकता है कि वहां अब तक आतंकवाद दम तोड़ चुका होता. वास्तव में आतंक का प्रश्रय दाता पाकिस्तान और आतंकी संगठन एक दूसरे के पूरक हैं. अन्यथा कोई कारण नहीं था कि लादेन, हाफिज सईद, सलाउद्दीन, मसूद अजहर और दाऊद जैसे लोग वहां पनाह पाते या फल फूल रहे होते. सच्चाई तो यह है कि पाकिस्तान को चलाने वालों में वहां की सेना, आईएसआई और आतंकियों का गठजोड़ है. जहां तक सरकार का प्रश्न है तो पाकिस्तान में हमेशा सेना का पपेट ही कुर्सी पर बैठता है. इस स्थिति में तब तक बदलाव नहीं हो सकता जब तक कि यह गठजोड़ न टूटे. इसे तोड़ना अमेरिका या विश्व के अन्य शक्तिशाली देशों के बस की बात भी नहीं लगती. इस गठजोड़ की इतिश्री केवल तब ही संभव है जबकि पाकिस्तान पूरी तरह से नेस्तनाबूद ना हो जाए. लेकिन आज के विश्व में किसी देश के अस्तित्व को पूरी तरह से नष्ट करना भी संभव नहीं है. भारत ने पाकिस्तान से तीन युद्ध लड़ कर बड़े-बड़े झटके दिए लेकिन क्या हुआ सब जानते हैं. पाकिस्तान सिकुड़ गया किंतु उसका पोषित आतंकवाद पसर गया. यह सब इसलिए सच है कि पाकिस्तान खुद नहीं चाहता कि आतंकवाद खत्म हो अन्यथा कोई कारण नहीं था कि संयुक्त राष्ट्र जब हाफिज सईद से पूछताछ करना चाह रहा था तब पाकिस्तान द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ की टीम का वीजा का अनुरोध ठुकराया जाता. यह टीम हाफिज सईद की उस दायर याचिका के सिलसिले में पूछताछ करना चाहती थी जिसमें हाफिज ने संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रतिबंध सूची से अपना नाम हटाने की गुजारिश की थी.
   मान लिया जाए कि आतंकवाद को समूल नष्ट करने के लिए युद्ध जरूरी नहीं है लेकिन यह भी सही है कि युद्ध के बिना आतंकवाद की विभीषिका की तीव्रता को कम भी नहीं किया जा सकता. आज पाकिस्तान के विरुद्ध भारत में जितना सकारात्मक माहौल है ऐसा पहले के दस  सालों में कभी नहीं देखा गया. बालाकोट हमले के बाद लगातार देश के चारो छोरों से आवाज  उठने लगी कि पाकिस्तान के विरुद्ध एक और कड़ा प्रहार किया जाए जो उसके अस्तित्व को खत्म भले ही ना कर पाए परंतु इतना तो कर ही दे कि वह आतंकवाद को नष्ट करने के लिए जरूरी कदम उठाए. यहां यह मानने में कोई संदेह नहीं कि पिछले डेढ़ दशक में पहली बार देश के प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग थलग कर बहुत बड़ी उपलब्धि अर्जित की है. आज विश्व का ऐसा कोई देश नहीं जिसने पाकिस्तान को गरियाया नहीं है. आज वह दाने-दाने को मजबूर है. वह विश्व के कई देशों के सामने मदद के लिए गिड़गिड़ा रहा है किंतु उसकी विश्वसनीयता पूरी तरह से खत्म हो गई है. किंतु इस सब के बावजूद भी पाकिस्तान अपनी हेकड़ी से बाज नहीं आ रहा तो उसका कारण यही है कि भारत में बैठे कुछ मोदी विरोधी तत्व उसको परोक्ष रूप से ऑक्सीजन देने का काम कर रहे हैं.
 एयर स्ट्राइक के बाद भारत में जहां सभी दलों का सरकार के साथ समन्वय और सहयोग होना था वहां आज पाकिस्तान को देश के मोदी विरोधियों का लाभ मिल रहा है. कांग्रेस सहित बड़ी संख्या में मोदी विरोधी दल (21 पार्टियों की मीटिंग) आज उस एयर स्ट्राइक के सबूत मांग रहे हैं जिस की तारीफ और समर्थन विश्व के कई देश कर रहे हैं.
 मान लिया जाए कि विपक्ष को हर बात जानने का हक है लेकिन राष्ट्र की विश्वसनीयता और अस्मिता को धता बताने का हक उसे किसने दिया. क्या विपक्ष इसलिए होता है कि वह दुश्मन देश के हित चिंतन में अपनी उर्जा खपाए, क्या विपक्ष का यह दायित्व नहीं है कि देश और देश की सेना ने दुश्मन देश के विरुद्ध जो कदम उठाए हैं उनका समर्थन करे. लेकिन विपक्ष देश की अस्मिता और गौरव को पलीता लगाने और अपने राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए प्रपंच रच कर देश की अवाम की नजरों में स्वयं गिरने का काम कर रहा है.
 एयर स्ट्राइक के बाद जब देश की जनता से सेना और सरकार को इस कदम का समर्थन और प्रशंसा मिलने लगी तो विपक्ष की सांसें फूलने लगी. उसे लगने लगा कि लोकसभा चुनावों के पहले उपजे इस राष्ट्रवाद का सीधा सीधा लाभ चुनावों में मोदी को मिलने से नहीं रोका जा सकता. ऑल पार्टी मीटिंग के बाद जैसा लग रहा था कि समूचा विपक्ष पाकिस्तान के विरुद्ध सरकार के साथ खड़ा है, एयर स्ट्राइक के एक सप्ताह बाद ही यह भ्रम टूट गया. कभी भाजपा के सिपहसालार रहे अब कांग्रेस में मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू एयर स्ट्राइक पर भारतीय सेना के पराक्रम पर यह कहकर सवाल उठाते हैं कि सेना ने बालाकोट में आतंकवादियों को नहीं पेड़ों को नष्ट किया. और यह भी कि आतंकवाद का कोई देश नहीं होता, तो दुख होता है. ऐसी हिमाकत करने वालों को क्या कहा जाए. वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने आश्चर्यजनक टिप्पणी की जिसमें उन्होंने पुलवामा हमले को ‘एक दुर्घटना’ निरूपित कर दिया.  कपिल सिब्बल, चिदम्बरम, मनीष तिवारी, मायावती, ममता, फारुक, उमर और महबूबा मुफ्ती जैसे कई नेताओं ने सबूत मांगे जिसका पाकिस्तान ने पुलवामा को अपने पक्ष में करने का भरपूर प्रयत्न किया. पाकिस्तानी चेनलों पर इन नेताओं के बयान फोटो सहित प्रसारित किए जा रहे हैं.
     भारत को छोड़कर विश्व का ऐसा कोई राष्ट्र नहीं जहां सरकार का विपक्ष स्वयं के देश का  मजाक उड़ाने में सक्रिय हो लेकिन भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विपक्ष के विरोध करने के अधिकार के नाम पर हास्यास्पद जग हंसाई की जा रही है. इसमें कोई शक नहीं कि सत्तारूढ़ दल भी एयर स्ट्राइक की कार्यवाही का लोकसभा चुनावों में लाभ उठाना चाह रहा है  किंतु यह भी उतना ही सच है कि यह स्थितियां पुलवामा हमले के  कारण पैदा हुईं. यदि यह हमला इस समय नहीं होता तो इसका कोई इंपैक्ट लोकसभा चुनाव पर नहीं होता. आज मोदी की लोकप्रियता की स्थिति को देखकर समूचा विपक्ष और पाकिस्तान पुलवामा हमले की टाइमिंग पर मन ही मन दुखी हो रहे होंगे. यह पीड़ा भी विपक्ष द्वारा छुपाए नहीं छुप रही. यही कारण है कि कांग्रेस के बड़े नेता बी के हरिप्रसाद ने तो पुलवामा हमले को मोदी और इमरान की मैच फिक्सिंग निरूपित कर दिया. ऐसी सोच और मानसिकता से कोई भी सहमत नहीं हो सकता. जिस देश पर इतना बड़ा आतंकी हमला हुआ हो जिसमें तेंतालीस जवानों  की शहादत हुई हो उसे  देश के मोदी विरोधी नेता मोदी की दुश्मन देश के प्रधानमंत्री इमरान से मैच फिक्सिंग निरूपित करें, दुर्भाग्यपूर्ण ही कहां जाएगा. सबसे बड़ा दुखद पहलू देश का यही है कि हमारे यहां दल हित  चिंतन देशहित चिंतन से बड़ा हो गया है. कोई भी यह समझने को तैयार नहीं कि राष्ट्र और राष्ट्रहित से बड़ी ना तो कोई विचारधारा होती है और ना कोई दल.
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