शनिवार, 18 जनवरी 2020

विपक्ष ने जो रास्ता चुना है वह आत्मघाती है


                                विपक्ष ने जो रास्ता चुना है वह आत्मघाती है

                                 डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया
                अब यह किसी से छिपा नहीं है कि विपक्ष के सबसे बड़े राजनीतिक दुश्मन केवल और केवल मोदी और अमित शाह हैं. यह भी एक सच्चाई है कि विपक्ष हताश है और इस हताशा में वह ऐसे निर्णय और कदम उठा रहा है जिससे उसका भला कम और नुकसान अधिक हो रहा है. पिछले साल दिसंबर में जब संसद के दोनों सदनों में नागरिक संशोधन बिल पास होकर कानून बना तब किसी ने नहीं सोचा था कि देश को आगजनी और हिंसा में झोंक दिया जाएगा. असल में इसके पीछे सबसे बड़ा कारण विपक्ष की हताशा ही है.
     सच्चाई तो यह है कि 2014 में देश में जो सबसे बड़ा राजनीतिक उलटफेर हुआ और जिसने मोदी को देश की बागडोर सौंप दी तब विपक्ष मन मसोसकर रह गया था. उसे लगा था कि यह बड़ा बदलाव 5 सालों के उसके बनवास के लिए है और मोदी जैसा एक क्षेत्रीय नेता देश को चला पाने में अक्षम सिद्ध होगा और वह  स्वत: ही 2019 में अपदस्थ हो जाएगा. लेकिन मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने ना केवल वापसी की बल्कि ऐसा जनादेश प्राप्त किया कि विपक्ष के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई. यही नहीं मई 2019 से जनवरी 2020 तक आते-आते मोदी-2 सरकार ने देश हित में जो ताबड़तोड़ फैसले किए उनसे न केवल विपक्ष बल्कि आम जनता की आंखें भी फटी की फटी रह गईं. तीन तलाक, कश्मीर से धारा 370 और 35 का हटना और राम मंदिर का मुद्दा सुलझना आदि ने विपक्ष को हतप्रभ कर दिया. आज विपक्ष के सामने अपने अस्तित्व का संकट खड़ा है. इन तीन महत्वपूर्ण निर्णय के खिलाफ विपक्ष कोई बड़ा आंदोलन खड़ा करने में असमर्थ था क्योंकि ये ऐसे निर्णय थे जिनके पीछे जनकल्याण और देशहित की भावना थी. यदि इनका विरोध किया जाता तो यह स्पष्ट होता कि विपक्ष जनहित और देशहित के विरुद्ध कार्य कर रहा है. ऐसी स्थिति में नागरिक संशोधन अधिनियम में छिद्रान्वेष्ण को आंदोलन का आधार बनाना यह स्पष्ट करता है कि कांग्रेस, लेफ्ट और बाकी मोदी विरोधी विपक्षी दलों को मुस्लिम समुदाय के कंधों पर बंदूक चलाने के अलावा सरकार के विरोध का कोई और कारण नजर नहीं आया.
    भारतीय राजनीति में छात्र आंदोलन बहुत से बदलावों का आधार रहे हैं. फलत: विपक्ष ने जेएनयू, एएमयू और जामियामिलिया मुस्लिम यूनिवर्सिटी  से सीएए एनपीआर और एनआरसी का जो कृत्रिम भय पैदा किया वह पिछले एक माह से आगजनी और हिंसा और धरना प्रदर्शन का कारण बना जिसमें वामपंथी छात्रों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया. लेकिन अब ऐसे आंदोलनों का जनमानस पर विपरीत प्रभाव हो रहा है. विश्विद्यालय के ये छात्र जब ‘जिन्ना वाली आजादी’ मांगते हैं तो राष्ट्रवाद और मजबूत हो रहा है. देश के मानस में मोदी के प्रति और मजबूती के भाव पैदा हुए हैं. यह पूरी तरह स्पष्ट है कि सीएए देश के किसी भी नागरिक के अधिकारों का हनन नहीं करता. किंतु मोदी विरोधियों ने इसका हौवा खड़ा कर देश के मुस्लिम समुदाय को ढाल बनाकर सरकार के विरुद्ध ताना-बाना खड़ा कर दिया. लेकिन मोदी सरकार पिछले 1 माह से चल रहे इस आंदोलन के खिलाफ दीवार बनकर खड़ी है जो स्पष्ट करता है कि सरकार मजबूती के साथ अपने निर्णय पर अडिग है.                            आज की स्थिति में मोदी विरोधी विपक्ष ने ही पूरे देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कर दिया है. एक तरफ देश का मुस्लिम समुदाय विपक्ष के पीछे खड़ा है तो दूसरी तरफ मोदी समर्थक हिंदू वर्ग है. यह स्थिति मोदी के लिए ज्यादा फायदेमंद ही कही जाएगी. जो काम निर्णायक तौर पर भाजपा, आरएसएस और हिंदूवादी संगठन 70 सालों में नहीं कर सके वह काम मोदी विरोधियों ने पिछले एक माह में करके दिखा दिया. वस्तुतः मोदी विरोधी आज ऐसे दोराहे पर खड़े हैं जहां से उन्हें समझ नहीं आ रहा कि कहां जाना है.
    विपक्ष के पास ऐसा नहीं था कि मुद्दे नहीं थे जिन पर मोदी को घेरा जा सकता था. लेकिन उन ज्वलंत मुद्दों को तिलांजलि देकर उसने जो रास्ता चुना वह आत्मघाती ही कहा जाएगा. वस्तुतः यह बात विपक्ष आज तक नहीं समझ सका कि मोदी और अमित शाह वाली भाजपा ने जो निर्णय किए हैं वे दल हित में किए गए निर्णय नहीं हैं, वे ऐसे निर्णय हैं जिनकी देश को साठ सालों से प्रतीक्षा थी. ये निर्णय ऐसे हैं जिनसे विपक्ष को किसी भी तरह का लाभ हो ही नहीं सकता. ये निर्णय विगत 6 महीनों की कालावधि में लिए जाना मोदी की मजबूती को ठोस आधार देने वाले हैं. आगे के साढ़े चार  सालों में मोदी निश्चित ही कुछ और कड़े फैसले जैसे जनसंख्या नियंत्रण, समान नागरिक संहिता और पाक अधिकृत कश्मीर में सैन्य कार्रवाई आदि लेंगे तब विपक्ष के पास जनसमर्थन के लाले पड़ जाना तय हैं.
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शुक्रवार, 3 जनवरी 2020

क्या दुश्मन देश के ‘आतंकियों’ को नागरिकता चाहता है विपक्ष


      क्या दुश्मन देश के ‘आतंकियों’ को नागरिकता चाहता है विपक्ष
                       डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया  
         बीते साल दिसंबर के आखिरी पखवाड़े में देश भर में जो हिंसा, आगजनी लूटपाट और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का काम हुआ वह आज भी जारी है. देश के सरकार विरोधी रवैये का इसे निकृष्टतम और घृणित काम ही कहा जाएगा. नागरिकता संशोधन अधिनियम(सीएए) के विरोध के नाम पर ऐसा नंगा नाच देख कर देश के इन तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादियों पर शर्म आती है. जिस कानून का संबंध केवल मुस्लिम देशों के गैरमुस्लिम प्रताड़ितों को नागरिकता देने से है तथा जिसका संबंध भारत के नागरिकों पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं डालता उसे भ्रम का वातावरण बना कर पूरे देश को हिंसा और अराजकता में घसीटने का अपराध किया जा रहा है. जिस कानून बनाने के पीछे सरकार की मंशा पाकिस्तान अफगानिस्तान और बांग्लादेश में प्रताड़ित हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, ईसाईयों, पारसियों और जैन धर्मावलंबियों जो भारत की शरण में आए दलितों और शोषितों को संबल देना है  उसे सरकार विरोधियों ने धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ करार देकर विवाद खड़ा किया है. सीएए कानून संसद के दोनों सदनों से गंभीर बहस के बाद अस्तित्व में आया है इससे कोई भी विरोधी दल इंकार नहीं कर सकता लेकिन क्योंकि इस कानून में शरणार्थियों को नागरिकता देने में मुसलमानों का जिक्र नहीं है इसलिए इसे पूरे विपक्ष ने एक मुद्दा बनाकर देश को अराजकता में झोंक दिया.
     सीएए के नाम पर पूरे देश में भ्रम फैलाया गया कि यह कानून मुस्लिम विरोधी है जबकि यह कानून स्पष्ट करता है कि तीन  देशों के प्रताड़ित गैर मुसलमान लोगों को भारत की नागरिकता का प्रावधान इसलिए किया गया क्योंकि यह तीनों देश इस्लामिक है और यहां मुसलमानों के बीच गैर मुस्लिम भारतीयों के साथ अन्याय, शोषण, बलात्कार, हत्या और प्रताड़ना होती है और इन प्रताड़ितों के लिए दुनिया का कोई अन्य देश शरण नहीं देता. तब भारत ही केवल ऐसा देश है जो उनकी सुरक्षा कर सकता है. इतनी स्पष्टता के बावजूद भी तथाकथित धर्मनिरपेक्षता वादी सरकार विरोधी राजनीतिक दलों, मुस्लिम संगठनों के मौलवियों, भारत तेरे टुकड़े होंगे कहने वाली गेंग  और अराजकता में विश्वास करने वाले असामाजिक तत्वों ने देश को हिंसा की आग में झुलसा दिया.
   प्रचारित यह किया जा रहा है कि यह कानून संविधान के विरुद्ध है जबकि प्रसिद्ध  कानूनविद वकील श्री हरीश साल्वे ने कहा है कि यह कानून भारतीय संविधान की किसी भी धारा का उल्लंघन नहीं करता. अब यह किसी से छिपा नहीं है कि सारे मोदी विरोधी राजनीतिक दल इसे पुरजोर समर्थन कर हवा दे रहे हैं. इन्हें लग रहा है कि मोदी सरकार द्वारा तीन तलाक पर कानून, कश्मीर से धारा 370 और 35 को हटाने जैसे बड़े निर्णय देश की जनता को कठोर निर्णय करने वाली सरकार के रूप में मोदी को प्रसिद्धि दिला रहे हैं. यही नहीं मोदी के इस कार्यकाल में 70 सालों से लंबित राम मंदिर मामला सुलझना भी मोदी सरकार के पक्ष में जाने के कारण सत्ता विरोधी दल हाशिए पर जाते दिख रहे हैं. यही कारण है कि सीएए के नाम पर मुसलमानों को भड़काने का गुरुतर दायित्व ये सत्ता विरोधी अपने कंधों पर ढोने के लिए सहर्ष तैयार हो गए. विभिन्न प्रदेशों को आग और हिंसा की चपेट में लाकर यदि विरोधी दल यह सोच रहे हैं कि वे मोदी की लोकप्रियता और उनके राजनीतिक कद को छोटा कर देंगे तो वे बड़ी गलतफहमी पाल बैठे हैं. वस्तुतः मोदी विरोधी दल और नेता जिन लोगों के कंधे पर बंदूक रखकर चला रहे हैं उनके पैरों के नीचे की जमीन एकदम खोखली है. विरोधी दल आरोप लगा रहे हैं कि मोदी सरकार धार्मिक ध्रुवीकरण कर रही है. लेकिन अगर गहराई से विचार किया जाए तो धार्मिक ध्रुवीकरण का काम तो हाल के दिनों में विरोधी दलों ने ही किया है. देश को हिंदू मुसलमान में बाँटकर विरोधी दलों ने मोदी सरकार की मदद ही की है. आज की स्थिति में देखा जाए तो सारे विरोधी दल उन मुस्लिमों के लिए लड़ रहे हैं जो धर्म आधारित तीन  देशों के मुस्लिम नागरिक हैं या मुस्लिम घुसपैठिए हैं. बार-बार संविधान की दुहाई देकर यह कहना कि मोदी सरकार ने मुसलमानों को इस कानून में शामिल ना कर देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप का अतिक्रमण किया है पूरी तरह से बकवास है क्योंकि इस कानून का स्पष्ट मानना है कि इन तीनों देशों में मुसलमान प्रताड़ित नहीं होते बल्कि अल्पसंख्यक नागरिक ही प्रताड़ित होते हैं तब विदेशी मुसलमानों को नागरिकता दिए जाने का सवाल कहां खड़ा होता है. यही नहीं देश के नागरिकों के मन में यह विश्वास भी दृढ़ता से घर कर रहा है कि विरोधी दल प्रायः पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का परोक्ष रूप से समर्थन करते हैं. पाक प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ मोदी सरकार ने जितने भी दृढ़ कदम उठाए उन सबके लिए विरोधी दलों ने प्रमाण मांगे. सर्जिकल स्ट्राइक हो या कश्मीर में पत्थरबाजों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई या ऑपरेशन ऑल आउट उन सब का विरोध आडम्बरों के साथ किसी ना किसी रूप में मोदी विरोधी राजनीतिक दलों ने किया जिससे भारत के बहुसंख्यकों, के मन में इन राजनीतिक दलों के प्रति नाराजगी ही ज्यादा दिखी इसीलिए लोग सवाल उठा रहे हैं कि भारत के विरोधी दल कहीं गैर हिंदुओं को नागरिकता देने का समर्थन कर पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के कट्टरपंथी आतंकियों को तो देश में नहीं बसाना चाहते. अपने वोट बैंक की खातिर विरोधी राजनीतिक दल  बंगलादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्या मुसलमानों का समर्थन कर देश के एक बड़े वर्ग का बचा खुचा समर्थन भी खोते जा रहे हैं. यह स्पष्ट है कि मोदी सरकार जिस दृढ़ता से अपने निर्णय लागू कर रही है वह लोगों को पसंद आ रहा है. हालांकि विगत समय में भाजपा को पांच राज्यों में सत्ता से हाथ धोना पड़ा है लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं लगाया जा सकता कि मोदी सरकार के राष्ट्र हित में उठाए गए कदमों के विरुद्ध लोगों ने जनादेश दिया है. विरोधी दलों को समझना होगा कि केंद्रीय राजनीति और प्रादेशिक राजनीति दोनों में बड़ा अंतर है. प्रादेशिक स्तर पर क्षेत्रीय दलों की उपस्थिति और स्थानीय मुद्दे सरकारों के गठन में महत्वपूर्ण होते हैं जबकि राष्ट्रीय राजनीति के मुद्दे पर्याप्त भिन्न होते हैं इसलिए विरोधी दल यदि यह सोचते हैं कि प्रदेशों में जोड़-तोड़ से सत्ता में आने से वे केंद्रीय सत्ता में बड़ा उलटफेर कर सकेंगे दिवास्वप्न ही कहा जाएगा. आश्चर्य तो इस बात का है कि इन प्रदर्शनों और हंगामे के बाद विपक्षी दल चाहते हैं कि सरकार अपना फैसला बदल दे लेकिन वह यह नहीं देख पा रहे कि आज पूरे देश में सीएए के समर्थन में लोग घरों से निकलने लगे हैं और ऐसे में निश्चित ही सरकार इस कदम से पीछे नहीं हटेगी.