शनिवार, 23 मई 2020

आंख मूंदकर समुदाय विशेष का समर्थन ही डुबाएगा विपक्ष को


        आंख मूंदकर समुदाय विशेष का समर्थन ही डुबाएगा विपक्ष को

                    डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया
     कोई माने या ना माने लेकिन यह अक्षरश: सत्य है कि देश का समूचा विपक्ष अपने कृत्यों से ही हाशिए पर जाता जा रहा है भारत की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस का हाल भी किसी से छिपा नहीं है कांग्रेस का ऐसा पराभव विगत कुछ सालों में इस तरह से होना रेखांकित करता है कि उनकी रीति और नीति आम लोगों के सापेक्ष नहीं रही 2014 में बुरी तरह हार के बाद यदि कांग्रेस चाहती और जनता के प्रति संवेदनशील होती तो 2019 में थोड़ा अच्छा कर सकती थी किंतु ऐसा नहीं हुआ उसके पीछे उनके शीर्ष नेताओं की अहमन्यता और हिंदू विरोधी मानसिकता तथा मुस्लिम तुष्टिकरण एक महत्वपूर्ण कारक है वहीं दूसरी ओर वंश वादी राजनीति के चलते युवा और योग्य तथा कर्मठ कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और नेताओं को पार्टी में पर्याप्त सम्मान नहीं मिलना भी इसका एक कारण है
    कहने को कहा जा सकता है कि 2014 और 2019 में लोकसभा में करारी पराजय के बाद भी पार्टी ने पंजाब, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश और झारखंड राज्यों में बेहतर प्रदर्शन किया और सरकारें बनाईं किंतु किसी बड़ी पार्टी का यह प्रदर्शन उसकी साख बचाने में तो अहम है किंतु प्रतिष्ठा के अनुरूप नहीं फिर पंजाब की बात करें तो वहां कैप्टन अमरिंदर सिंह की वजह से, यदि छत्तीसगढ़ की बात करें तो वहां भूपेश बघेल की वजह से, यदि झारखंड की बात करें तो सोरेन पिता-पुत्र की वजह से और मध्य प्रदेश की बात करें तो भाजपा के अहम की वजह से इन राज्यों में सरकारें बनी इन सभी राज्यों में कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व केवल एक पोस्टर से ज्यादा कुछ नहीं था
  कोरोना काल के प्रारंभ होने के साथ ही कांग्रेस ने अपनी रणनीति में बदलाव करने की कोशिश की है एक तरफ तो वह कोरोना संक्रमण रोकने के लिए सुझाव दे रही है तो दूसरी ओर सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की आलोचना कर रही है जहां एक तरफ वह प्रवासी मजदूरों के पलायन पर सरकार को घेर रही है तो दूसरी तरफ राहुल गांधी की छवि निखारने के लिए सोशल मीडिया का अधिकाधिक उपयोग करते हुए राजनीति कर रही है भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती है कि यहां हर एक व्यक्ति को चाहे वह किसी भी जाति धर्म या मजहब का हो, अमीर या गरीब हो सभी को समान अवसर देती है लेकिन लगातार फ्लॉप होने के कारण राहुल गांधी एक परिपक्व नेता की छवि बनाने में अभी तक तो नाकाम रहे हैं कांग्रेस की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि वह कई ज्वलंत मुद्दों पर मौन रहकर राजनीती करती है जिस पर जनता स्पष्ट अभिमत चाहती है कांग्रेस के विरुद्ध अगर कोई बात सबसे ज्यादा जाती है तो वह है उसकी मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति अगर यह कहा जाए कि मुस्लिम लीग, कम्युनिस्ट, एआईएमआईएम, सपा और बसपा के जैसी कोई प्रो मुस्लिम पार्टी देश में है तो वह कांग्रेस ही है कश्मीर में इतने बड़े परिवर्तन हुए धारा 370 और 35 हटाई गई, उसे केंद्र शासित प्रदेश बनाया, इन सब मुद्दों पर देश की अधिकांश जनता एक राय थी किंतु कांग्रेस इसके विरोध में खड़ी रही जहां एक ओर कांग्रेस जेएनयू में टुकड़े गैंग के साथ खड़ी दिखाई देती है तो वहीं सीएए के मुद्दे पर वह शाहीन बाग के साथ खड़ी रही दिल्ली हिंसा पर भी कांग्रेसी मुस्लिम तुष्टीकरण के चलते सरकार के विरुद्ध खड़ी रही तीन तलाक के मुद्दे पर वह मुस्लिमों की आधी आबादी के विरुद्ध खड़ी रही राम मंदिर के मुद्दे पर तो कांग्रेस ने अकल्पनीय स्टैंड लिया था राम के अस्तित्व को नकारते हुए और रामसेतु को काल्पनिक सिद्ध करने के लिए कांग्रेस के वकीलों की फौज हिन्दुओं की आस्था के विरुद्ध कोर्ट में खड़ी रही
  कोरोना काल विपक्षी राजनीतिक दलों को एक अवसर प्रतीत हो रहा है वास्तव में देश के एक कोने से दूसरे कोने तक प्रवासी मजदूरों की उपस्थिति और लॉक डाउन के कारण उनके सामने मुंह बाए खड़ी समस्याओं ने जो विषम स्थितियां पैदा की हैं उनमें देश का विपक्ष अपनी संभावनाएं तलाश रहा है प्रवासी मजदूरों के अपने घरों की ओर लौटने की मजबूरी को कांग्रेस द्वारा राजनीतिक हथियार के रूप में प्रयोग किया जा रहा है देशभर में प्रवासी मजदूरों का पलायन न केवल सरकार के लिए बल्कि स्वयं मजदूरों के लिए कठिन समस्या के रूप में उपस्थित हुआ है प्रवासी मजदूरों का अपने कार्यस्थल से सैकड़ों किलोमीटर का पैदल पलायन जहां एक और वर्तमान सरकार के लिए चिंता का सबब बना वहीं दूसरी ओर कांग्रेस और विपक्षी दलों के लिए अपनी उपस्थिति सुनिश्चित करने का जरिया बना इस स्थिति का कांग्रेस द्वारा लाभ उठाने की जी तोड़ कोशिश की जा रही है जहां एक ओर राहुल गांधी बार-बार सरकार से गुहार कर रहे हैं कि आज गरीबों को समस्याएं उनके लिए पैकेज से नहीं हल होंगी बल्कि 5 करोड़  गरीबों के लिए पैसा दिया जाना चाहिए राहुल गांधी हर एक गरीब के लिए तत्काल 7500 रु. देने की मांग कर रहे हैं इसके पीछे कांग्रेस का मंतव्य केवल यही है कि गरीबों के प्रति राहुल गांधी की संवेदनशीलता और प्रतिबद्धता प्रकट हो सके अन्यथा कौन नहीं जानता कि पहले लॉक डाउन काल में ही सरकार ने 1.7 लाख करोड़ का प्रावधान कर करोड़ों रुपए विभिन्न योजनाओं के माध्यम से गरीबों को उनके जनधन अकाउंट में जमा कराए हैं
   राहुल गांधी की इमेज बनाने के लिए कांग्रेस बहुत जतन कर रही है कांग्रेस उपाध्यक्ष पद छोड़ने के बाद जो राहुल गांधी अपनी गलतियों पर सहमे रहकर और अधिकांश चुनावों में कांग्रेस की हार के कारण बैकफुट पर थे उन्हें फ्रंटफुट पर लाने के लिए आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी से इंटरव्यू कराए गए राजनीति में बढ़त पाने का यह सिद्धांत बड़ा विचित्र प्रतीत होता है प्राय: किसी राजनीतिक दल के बड़े नेता का इंटरव्यू बड़े पत्रकारों द्वारा लिया जाता है लेकिन अपनी अहमियत दो अर्थशास्त्रियों से जोड़ने के लिए राहुल गांधी ने इंटरव्यू लेने की नीति पर काम किया जिन लोगों ने इन इंटरव्यूज को देखा है वे समझ सकते हैं कि राहुल ने इन बड़े अर्थशास्त्रियों से अपनी बात और कांग्रेस की नीतियों पर मुहर लगवाने का प्रयत्न ही किया वे बार-बार इसी बात पर फोकस करते रहे कि दोनों अर्थशास्त्री वह कहें जो कांग्रेस कहलवाना चाहती है इस इंटरव्यू में रघुराम राजन ने यह सुझाव दिया कि गरीबों की मदद के लिए 65 हजार करोड़ रुपयों की जरूरत है और यह रकम भारत के लिए बड़ी नहीं है गौर करने वाली बात यही है कि राहुल गांधी भी 65हजार करोड़ के प्रावधान का राग अलापते नजर आते हैं  दूसरा इंटरव्यू उन्होंने नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले भारतीय मूल के डॉ. अभिजीत बनर्जी से किया जिसमें उन्होंने अपनी ‘अब होगा न्याय’ वाली योजना पर बनर्जी की स्वीकृति की मोहर लगवाने का प्रयत्न किया वस्तुतः जिस ‘अब होगा न्याय’ वाली योजना में 2019 के चुनावों में राहुल गांधी प्रत्येक गरीब को 6000रु. प्रतिमाह देने की बात कर रहे थे वह अभिजीत बनर्जी की ही योजना थी फर्क इतना था की अभिजीत बनर्जी गरीबों को हर महीने 2500 से 3000 रु.देने की बात कर रहे थे किंतु आम चुनावों में अधिक सफलता अर्जित करने के लिए कांग्रेस ने यह राशि बढ़ाकर 6000रु. प्रतिमाह अर्थात 72 हजार रु. साल  की घोषणा की थी हालांकि इस पर भारत की जनता ने विश्वास नहीं किया था और कांग्रेस की करारी हार हुई थी  इस इंटरव्यू के बाद यह पढ़ने को मिला था कि अभिजीत बनर्जी इस बात से नाराज थे कि इंटरव्यू उनके सम्मान के अनुरूप नहीं हुआ बहुत गहराई से चिंतन करें तो हर व्यक्ति यह जानता है कि भारत की समूची जनता कश्मीर के बारे में बहुत संवेदनशील है वह वर्तमान सरकार के हर उस कार्य का समर्थन करती है जो समूचे कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग के सिद्धांत को मान्यता देते हैं यही नहीं भारत की जनता उन कश्मीरी नेताओं, अलगाववादियों, आतंकियों और कश्मीर की अलग पहचान बनाए रखने के समर्थक लोगों की विरोधी है और वह उन लोगों को भी पसंद नहीं करती जो इन लोगों का समर्थन करते हैं या इन्हें मौन रहकर अपनी स्वीकृति देते हैं कांग्रेस और कई विपक्षी दल और उनके नेताओं को जो मोदी विरोध के कारण कश्मीर की बेहतरी के लिए उठाए गए कदमों की आलोचना करते हैं को देश की जनता पसंद नहीं करती  यही नहीं उन कश्मीरियों का जो पाकिस्तान का समर्थन करते हैं, जो देश को बदनाम करने का काम करते हैं, भारत की जनता उन लोगों को भी पसंद नहीं करती देश की जनता उन लोगों को भी पसंद नहीं करती जो कश्मीर की गलत छवि अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं हाल ही में राहुल गांधी ने  पुलित्जर पुरस्कार पाने वाले तीन फोटो जर्नलिस्ट कश्मीरियों की भूरी भूरी प्रशंसा की जिसे देश की जनता ने पसंद नहीं किया निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि यदि विपक्ष को आने वाले चुनावों में कुछ अच्छा करना है तो उसे जनता की नब्ज को पढ़ने की जरूरत होगी यह संभव नहीं है कि आप आंख मूंदकर समुदाय विशेष का समर्थन करते रहें और जनता आपकी झोली वोटों से भरदे


बुधवार, 6 मई 2020

पाक पर निर्णायक कार्रवाई करने में देरी क्यों ?


               पाक पर निर्णायक कार्रवाई करने में देरी क्यों ?

                                    डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया 
      इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि जब दुनिया के अधिकांश देश कोरोना महामारी से लड़ रहे हैं तब पाकिस्तान भारत में आतंकी गतिविधियों को जारी कर लगातार नियंत्रण रेखा का उल्लंघन करते हुए आतंकियों की घुसपैठ करा रहा है । ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान कोरोना महामारी से नहीं जूझ रहा है उसके अधिकांश क्षेत्र जिनमें पंजाब, सिंध, खैबर पख्तूनख्वा, बलूचिस्तान, गिलगित, बालटिस्तान, इस्लामाबाद और पाक अधिकृत कश्मीर में स्थिति बहुत विकट है। यही नहीं कंगाली की हालत यह है कि पाकिस्तान में कोरोना से लड़ रहे डॉक्टरों के पास प्राथमिक संसाधन भी नहीं है किंतु इस सबके बावजूद पाकिस्तान भारत में आतंकी गतिविधियां नियमित रूप से जारी किए हुए है।
    इस मई के महीने में 2 तारीख को जम्मू कश्मीर के हंदवाड़ा में आतंकियों ने एक घर में लोगों को बंधक बना लिया था उनको छुड़ाने के लिए सेना ने एनकाउंटर किया । इस एनकाउंटर में यद्यपि रहवासियों को बचा लिया गया किंतु सेना के एक कर्नल, एक मेजर, दो आर्मी जवान तथा एक जेके पुलिस के जवान शहीद हो गए । हालांकि इस मुठभेड़ में दो आतंकी भी ढेर किए गए । वहीं 4 मई को पाक आतंकियों ने जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा में सीआरपीएफ की पेट्रोलिंग टीम  पर हमला किया। 24 घंटे में आतंकियों ने इस दूसरी वारदात को अंजाम दिया था । इस हमले में भी सीआरपीएफ के 3 जवान शहीद हो गए । इस घटना में दो आतंकवादियों को मौत के घाट उतारा गया ।
   अगर हम पिछले साल 2019 की बात करें तो अप्रैल महीने में जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा के केरन सेक्टर में आतंकी घुसपैठ में सेना के एनकाउंटर में हमारे 5 जवान शहीद हुए थे । इस मुठभेड़ में पांच आतंकियों को मौत के घाट उतारा गया था । इसी प्रकार नवंबर 2019 में कुपुवाड़ा के पंजगाम में पाकिस्तानी आतंकियों ने सेना के कैंप पर हमला किया था जिसमें सेना ने 3 आतंकवादियों को मार गिराया था । इसमें सेना के 2 जवान शहीद हुए थे । 1 मार्च 2019 में भी कुपुवाड़ा के हंदवाड़ा में दो आतंकियों को मौत के घाट उतारा गया था लेकिन सेना के 4 जवान शहीद हुए थे ।
    अगर हम थोड़ा और पीछे जाएं तो पाकिस्तान की आतंकी वारदात का सबसे बड़ा आतंकी हमला 18 सितंबर 2016 को जम्मू कश्मीर के उड़ी सेक्टर में एलओसी के पास स्थित भारतीय सेना के स्थानीय मुख्यालय पर हुआ था । इस हमले में भारतीय सेना के 19 जवान शहीद हो गए थे और कई घायल हुए थे । सैन्य बलों की जवाबी कार्रवाई में चार आतंकी मारे गए थे । यह हमला भारतीय सेना पर सबसे बड़ा हमला था । यह हमला इसलिए बहुत गंभीर था क्योंकि आतंकियों ने सेना मुख्यालय पर सुबह 5:30 बजे सोते हुए निहत्थे सैनिकों पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर अंजाम दिया था । इस हमले में जैश-ए-मोहम्मद का हाथ था । इस हमले से सरकार सहित पूरा देश सन्न हो गया था । ऐसा हमला पहले कभी नहीं हुआ था । देश के हर कोने से सरकार के प्रति इतना रोष भर गया था कि बदला लेने की आवाजें उठने लगी थी । इस आतंकी हमले में आतंकियों ने 3 मिनट में 17 हैंड ग्रेनेड फेंके थे । लगातार 6 घंटे की मुठभेड़ के बाद सेना ने सभी 4 आतंकियों को मौत के घाट उतारा था ।
   इस हमले ने पाक को सबक सिखाने के सरकार के इरादे को मजबूती प्रदान की थी । प्रधानमंत्री मोदी ही नहीं बल्कि तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने ना केवल पाकिस्तान को चेतावनी दी बल्कि स्पष्ट कर दिया था कि इस कायराना हरकत का जवाब दिया जाएगा और सेना ने वह काम कर दिया जो 28- 29 दिसंबर 2016 से पहले कभी नहीं हुआ था । 29 दिसम्बर की इस सर्जिकल स्ट्राइक में भारतीय सेना के जांबाज सैनिक पाक अधिकृत कश्मीर में 3 किलोमीटर अंदर घुसकर पाक आतंकी कैंपों को नेस्तनाबूत कर सुरक्षित अपने ठिकाने पर वापस आए थे । यह सेना की बहुत बड़ी पहली सर्जिकल स्ट्राइक थी ।
    दूसरा बड़ा हमला पुलवामा में 14 फरवरी 2019 को हुआ था जिसमें सेना के 40 जवान शहीद हुए । इस हमले के जवाब में भारत ने नियंत्रण रेखा के पार जाकर आतंकी ठिकानों पर हवाई हमला कर सर्जिकल स्ट्राइक की थी । 26 फरवरी 2019 को भारत ने 40 जवानों की शहीदी का बदला बालाकोट में एयर स्ट्राइक कर लिया था इसमें पाकिस्तान के लगभग ढाई सौ आतंकियों को मौत के घाट उतारा गया था ।
   पाकिस्तान की जिहादी मानसिकता और आतंकी गतिविधियां कोरोना जैसी भयावह महामारी को दरकिनार कर भी जारी हैं । जब से कश्मीर से धारा 370 और 35 हटाई गई है तब से पाकिस्तान ज्यादा बौखला गया है । उसकी बौखलाहट हाल के दिनों में जम्मू कश्मीर में हुए आतंकी हमलों में देखी जा सकती है । पाकिस्तान एक ऐसा मुल्क है जो भीख मांग कर भी आतंकवाद का पोषण करता रहेगा । वह भारत का चिर परिचित और स्थाई दुश्मन है । इस दुश्मनी का एक ही इलाज है कि बलूचिस्तान को आजाद कराया जाए और पाक अधिकृत कश्मीर को वापस लिया जाए । इसके लिए पाकिस्तान की सेना की कमर तोड़ी जाना आवश्यक है ।
   यह सही है कि आज के जम्मू कश्मीर में पाकिस्तान का प्रभाव कम हुआ है । यही कारण है कि वह ज्यादा से ज्यादा आतंकी गतिविधियों को बढ़ाना चाहता है । इसमें कोई शक नहीं कि जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों ने पाकिस्तानी घुसपैठ और आतंकवाद के विरुद्ध कठोर  जवाबी कार्यवाही कर पाकिस्तान को कड़ा संदेश दे दिया है कि उसे बख्शा नहीं जाएगा किंतु यह इसका हल नहीं है । पाकिस्तान आतंकी गतिविधियां करता रहे और भारत उसके विरुद्ध जबाबी कार्रवाई  करता रहे यह हमारी सेना के लिए उचित नहीं कहा जा सकता । वैसे भारतीय सेनाकी जांबाजी किसी से छिपी नहीं है । इस महीने के शुरूआत तक सेना ने पाकिस्तान के 74 आतंकवादियों को मौत के घाट उतारा जबकि सेना के 22 सैनिक शहीद हुए और 9 आम नागरिकों की जानें गई । वर्ष 2019 में भारतीय सेना के 26 जवान शहीद हुए थे और 14 नागरिक मारे गए थे वहीँ 54 आतंकियों को सेना ने मौत के घाट उतारा था ।
   इसमें कोई शक नहीं कि आज भारत के पास मोदी जैसा ग्लोबल छवि का नेता है किंतु पाकिस्तान के खिलाफ अब तक ऐसी कोई निर्णायक कार्यवाही नहीं हो सकी कि जम्मू कश्मीर पाकिस्तानी आतंकवाद से मुक्त हो पाता । लगातार आतंकी गतिविधियां हो रही हैं और हम इनकी कड़े शब्दों में निंदा करके और कठोर कार्यवाही की धमकी देकर पाकिस्तान को सबक नहीं सिखा सकते । हमारी कार्रवाइयों में निरंतरता की कमी के कारण हर बार पाकिस्तान को संभलने का मौका मिल जाता है और वह फिर हमले करता है । दो सर्जिकल स्ट्राइकों के बाद भी यदि हमले हो रहे हैं तो हमें यह समझ लेना चाहिए कि पाकिस्तान का सुधरना नामुमकिन है । उसे  किसी बड़ी कार्रवाई के बिना नहीं सुधारा जा सकता । भारत के थल सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने पिछले दिनों कहा कि ‘पाकिस्तान अभी भारत में आतंकवादियों को धकेलने के अपने अदूरदर्शी और तुच्छ एजेंडे पर काम कर रहा है । जब तक पड़ोसी देश आतंकवाद की अपनी नीति नहीं छोड़ता हम उचित और सटीक जवाब देते रहेंगे’ । सवाल तो इसी बात का है कि क्या भारत केवल उचित और सटीक जवाब ही देता रहेगा या कुछ ऐसा बड़ा करेगा जिससे पाकिस्तान को सबक सिखाया जाए । अब तो हमारे पास चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के रूप में जनरल बिपिन रावत भी हैं । क्या उम्मीद की जाए कि आने वाले थोड़े समय में ही पाकिस्तान रहम की भीख मांगेगा।
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