डॉ. हरिकृष्ण
बड़ोदिया
पूरा विपक्ष आज सदमे में है. चिंतन मनन का दौर जारी है, आखिर क्यों विपक्ष की
इतनी शर्मनाक हार हुई और क्यों मोदी और भाजपा को इतना प्रचंड बहुमत मिला. सच्चाई
तो यह है कि अमित शाह और मोदी की जोड़ी ने विपक्ष के मस्तिष्क को मनोवैज्ञानिक तौर
पर कुंद कर दिया. विपक्ष जिस पटरी पर चल रहा था भाजपा के लिए वह लाभदायक था.
खासतौर से कांग्रेस जिस प्रचार को अपना तुरुप का इक्का मान रही थी वह पिट गया. आज
जनता ना केवल समझदार है बल्कि वह बहकावे और झूठे प्रचार पर चुप रहकर अपनी
प्रतिक्रिया वोटों के माध्यम से व्यक्त करती है. उसका विवेक इतना परिपक्व हो गया
है कि वह अपने निर्णयों को वास्तविकता के धरातल पर कसने का माद्दा रखती है. जनता
में इतना विवेक विकसित हो गया है कि वह यह जानती है कि किसके वायदे केवल वायदे
रहेंगे और कौन अपने वादों पर खरा उतरेगा. कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी इन चुनावों
में यह रही कि वह जनता में मोदी के कामों से खुशी की बहती धारा को समझ ही नहीं पाई.
वह उन पुराने घिसे पिटे मुद्दों को प्रचारित करती रही जो मुद्दे थे ही नहीं.
कांग्रेस के पास ऐसे चुनाव इतिहास थे जिन पर उसकी सरकारों का पतन हुआ या ऐसे
मुद्दे थे जिन पर उसे हानि उठानी पड़ी थी. वह समझ रही थी कि जिस प्रकार 2014
में मोदी ने
यूपीए-2
के घोटालों,
महंगाई, गरीबी, काला धन जैसे मुद्दों पर प्रहार कर कांग्रेस को मात दी थी उसी
प्रकार 2019
में वह राफेल
में घोटाले को मुद्दा बनाकर चुनाव जीत लेगी. जिस प्रकार भाजपा ने वादे किए थे वैसे
ही लोकलुभावन वायदे (72000) करके वह मोदी को
पटखनी दे देंगे. लेकिन यह नहीं हो सका. कारण साफ है कि 2014
में कांग्रेस की
10
सालों की सरकार
में जनकल्याण के ऐसे कोई उल्लेखनीय काम नहीं हुए थे जैसे एनडीए के 5
साल के शासनकाल
में हुए. जनता बातों में विश्वास नहीं करती बल्कि ठोस कामों में विश्वास करती है.
कांग्रेस को लगता था कि प्रधानमंत्री मोदी और एनडीए सरकार को राफेल में भ्रष्टाचार
पर घेर कर वह जनता के वोट हासिल कर लेगी या पूरा विपक्ष अनर्गल आरोप लगाकर मोदी की
जीत को सीमित कर देगा तो यह स्पष्ट हो गया कि उनकी यह गलत धारणा थी. कांग्रेस 3
राज्यों में
सरकार बनाकर इतनी उत्साहित थी कि उसे लगता था कि वह लोकसभा में मोदी को हराकर
सरकार बना सकती है. उसका ऐसा सोच कि मोदी को हर मोर्चे पर असफल और राफेल में
भ्रष्टाचार पर प्रचार कर लोकसभा जीत जाएगी गलत साबित हुआ. कारण स्पष्ट है कि इस
चुनाव में यह मुद्दा था ही नहीं. विपक्ष ने दीवार पर लिखी इबारत को पढ़ा ही नहीं
जिसमें पूरे देश में मोदी के दलितों, पिछड़ों, गरीब और कमजोर वर्गों, अल्पसंख्यकों
को बिना भेदभाव के कुछ ना कुछ जनकल्याण के कामों का लाभ मिला था. कांग्रेस का यह
भरोसा कि 3 राज्यों में जीत हासिल कर सरकार बना लेने की
वजह से जनमत मोदी के विरोध में हो गया है पूरी तरह से गलत एसेसमेंट था. जनता बहुत
चुप होकर उन सब स्थितियों का जायजा ले रही थी कि कौन उसकी समस्याओं को ज्यादा त्वरित
गति और गंभीरता से हल करेगा. जिन तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान
में कांग्रेस ने 2018 में जीत हासिल की उन राज्यों में
कांग्रेस का सफाया इस बात की ओर संकेत करता है कि इन राज्यों की जनता भाजपा के
शासन और उसकी डिलीवरी से नाराज नहीं थी. बल्कि वह इस बात से नाराज थी कि अगड़ी
जातियों के एट्रोसिटी एक्ट के माध्यम से अधिकार सीमित किए जा रहे हैं. एससी एसटी
एक्ट के माध्यम से उन्हें तंग किया जा सकता है. तब कांग्रेस के प्रचार ने किसानों
पर होने वाले तथाकथित जुल्मों को मुद्दा बनाकर ग्रामीण क्षेत्र में भाजपा के
विरुद्ध माहौल बनाने में कामयाबी पाई थी. कांग्रेस ने कर्ज माफी के वादे कर जनता
को अपने पाले में लाने में सफलता पाई थी. कांग्रेस सरकारें बनने का एक बड़ा कारण
यह भी था कि वे मतदाता जो भाजपा के प्रतिबद्ध मतदाता रहे आए हैं उन्होंने भाजपा को
सबक सिखाने के लिए तब नोटा में वोट किया था जिसका परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस ने
भाजपा पर बढ़त बना ली थी. इन चुनावों में कांग्रेस यह नहीं समझ पाई कि 3
राज्यों में
उसकी जीत उसकी नीतियों और वायदों की जीत नहीं थी बल्कि लोगों की भाजपा से अस्थाई
नाराजी थी. जो वोटर भाजपा से छिटक गए थे वह लोकसभा में पुनः उसके साथ आ गए.
दूसरी ओर भाजपा ने इन लोकसभा चुनावों
को मोदी विरुद्ध समूचे विपक्ष की ओर केंद्रित कर दिया उसका कारण भी विपक्ष का मोदी
हटाओ का नारा था. लोगों को लगा कि विपक्ष और खासतौर से कांग्रेस के पास जनता को देने
के लिए कुछ नहीं है वह केवल मोदी को हटाकर सत्ता प्राप्त करना चाहती है. वहीं
चुनाव के आगाज के थोड़े पहले अब होगा न्याय के जुमले पर भी आम जनता विश्वास नहीं
कर सकी. कहते हैं भूतकाल की काली छाया वर्तमान और भविष्य पर कभी खत्म नहीं होती. 10
सालों के
कांग्रेस के लचर शासन की काली छाया कांग्रेस पर इतनी गहरी थी कि उसने जनता में
कांग्रेस के प्रति अविश्वास बनाए रखा. फलत: अब होगा न्याय भी कारगर नहीं हो सका.
चुनाव नतीजे इस बात की ओर स्पष्ट
संकेत करते हैं कि मोदी 2014 के चुनावों से अधिक शक्तिशाली बन कर दोबारा
सत्ता में आए हैं. जहां एक और प्रत्याशियों की जीत हार का अंतर लाखों में रहा वहीं
पिछले चुनाव की तुलना में भाजपा ने 282 के मुकाबले इस बार 303
सीटें जीती. भाजपा को यह जनादेश मोदी में
जनता के विश्वास को प्रकट करता है. जनता ने दिल खोलकर मोदी के 5
सालों के कामकाज
पर न केवल मोहर लगाई बल्कि अगले 5 साल के लिए प्रचंड जनादेश देकर अपने भविष्य
के सुरक्षित होने की प्रत्याशा प्रकट की.
इस चुनाव का एक बड़ा मुद्दा
राष्ट्रवाद भी रहा. वस्तुतः इन चुनावों से यह बात पूरी तरह से स्पष्ट हो गई कि आम
नागरिक राष्ट्रवाद के मुद्दे पर एकमत है जो दल देश की अस्मिता के लिए कठोर निर्णय
करने में सक्षम है वह दल जनता की आंखों का तारा है.
उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में जहां
बसपा और सपा जैसी क्षेत्रीय पार्टियों का वर्चस्व था इनका गठजोड़ भी काम नहीं आया.
फूलपुर और गोरखपुर उपचुनाव में जीत ने इनमें नई ऊर्जा का संचार किया था लेकिन यह
इन चुनावों में धराशाई हो गया. राजनीतिक पंडितों का यह गणित कि इनके गठजोड़ से
भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा गलत साबित हुआ. दोनों दलों को 80
में से मात्र 15
सीटों पर जीत
हासिल हुई जो यह स्पष्ट करता है कि उत्तर प्रदेश की जनता ने जाति और धर्म से ऊपर
उठकर लोकतंत्र को मजबूत किया. भाजपा और एनडीए को 62 सीटें मिल ना हैरान करने वाला जरूर है किंतु
यह प्रकट करता है कि लोगों का मोदी में गहरा विश्वास है, मोदी को गरीबों, किसानों
और अल्पसंख्यकों का भरपूर समर्थन मिला. बिहार और उत्तर प्रदेश में मुस्लिम बहुल
इलाकों में 20 से अधिक सीटों पर एनडीए की जीत ने यह स्पष्ट
कर दिया कि अब मुस्लिम मतदाता विपक्ष की तुष्टीकरण की राजनीति को समझ गया है. अब वह
अपने कल्याण के बारे में सोचने लगा है.
सबसे बड़ी बात उत्तर प्रदेश की यदि कोई है तो वह राहुल गांधी की पराजय है. इस
पराजय से यह स्पष्ट हो गया कि यदि कोई प्रतिनिधि अपने क्षेत्र में कल्याण कार्यों
की अनदेखी करता है तो उसकी परंपरागत सीट भी आगे आने वाले समय में सुरक्षित नहीं
रहेगी. सच्चाई तो यह है कि कांग्रेस का प्रदर्शन एक विश्वसनीय पार्टी के अनुरूप
नहीं रहा. पिछली लोकसभा के मुकाबले उसे इस बार 8 सीटें ज्यादा भले ही मिली हों लेकिन यह सीटें
उसे गैर हिंदी राज्यों केरल, तमिलनाडु और पंजाब में ही मिली. यह सफलता भी राहुल
गांधी की लोकप्रियता के कारण नहीं बल्कि दूसरों की लोकप्रियता के कारण प्राप्त हुई.
केरल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी से जनता का मोहभंग, तमिलनाडु में डीएमके
से गठजोड़ और पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की लोकप्रियता के कारण तीनों राज्यों
में कांग्रेस को 31 सीटें मिलीं जो इस बात को प्रकट करता है कि
कांग्रेस अब
बहुत पिछड़ चुकी है. जबकि भाजपा और एनडीए को जो सफलता मिली वह उसकी आम आदमी की
आकांक्षाओं की पूर्ति के कारण मिली. अब कांग्रेस को 2024
को दृष्टि में
रखकर रणनीति तैयार करना पड़ेगी. उसे आम जनता की परेशानियों को समझना होगा. उसे
सरकार के उचित कामों की सराहना करनी होगी और सरकार के कामों से अलग हटकर वह जनता
की भलाई के लिए और क्या कुछ कर सकती है उसका रोड मैप तैयार करना होगा. अनावश्यक विरोध
पर अंकुश लगाना होगा तभी वह कुछ सम्मान पा सकती है. इन चुनाव परिणामों से
कांग्रेस ही नहीं पूरे विपक्ष को यह समझ आ गया होगा कि आधारहीन आरोप और खोखले
वादों से अब नहीं चुनाव नहीं जीते जा सकते.
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