दिल्ली हिंसा के दोषी जो भी होंगे वे पकड़ में जरूर आएँगे
डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया
यह सही है कि
सरकार के विरुद्ध धरना प्रदर्शन किसी भी संगठन का लोकतांत्रिक अधिकार है और यह
वैधानिक है लेकिन क्या इस बात से इनकार किया जा सकता है कि प्रदर्शन एक सीमा तक
ऐसा हो कि उससे दूसरों के अधिकारों का हनन ना हो और अगर हो भी तो उसकी कोई
समय सीमा भी तो हो। 85 से अधिक दिनों से शाहीन बाग के धरने पर बैठे लोग आम जनजीवन के मौलिक
अधिकारों का हनन कर रहे हैं लेकिन प्रदर्शनकारियों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा।
निर्दोष नागरिकों को उनके मौलिक अधिकारों
से वंचित किया जा रहा है और वह भी भ्रम फैलाकर कि सीएए का कानून देश के अल्पसंख्यकों की नागरिकता छीन
लेगा। दसियों दफा जब मोदी और अमितशाह सहित सरकार के मंत्रियों ने स्पष्ट कर दिया कि
यह क़ानून किसी की नागरिकता छीनने वाला नहीं बल्कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान
के प्रताड़ित लोगों को नागरिकता देने वाला है तो भी विरोध प्रदर्शन जारी रखना
षड्यंत्रपूर्ण नहीं तो क्या है। जिस कांग्रेस पार्टी ने इसे पुरजोर समर्थन किया उसी के राज्यसभा सांसद कपिल
सिब्बल को राज्यसभा में कहना ही पड़ा कि यह क़ानून किसी की नागरिकता नहीं छीनेगा ।
यह एक स्थापित
तथ्य है कि देश का मुस्लिम तबका हद से ज्यादा उग्र और असहिष्णु है। बात बात पर पाकिस्तान
जिंदाबाद, छीन के लेंगे आजादी, जिन्ना वाली आजादी, भारत तेरे टुकड़े होंगे- इंशाअल्लाह
इंशाअल्लाह, तेरा मेरा रिश्ता क्या - ला इलाहा इल्लल्लाह जैसे नारे इस बात की
पुष्टि करते हैं कि संविधान कि रक्षा के
नाम पर मजहबी कार्ड खेला गया। दिल्ली की हिंसा इस बात का प्रमाण हैं कि
इस धरने में दिखावा शांति पूर्ण था लेकिन उसमें अंदर ही अन्दर आग सुलगाई जा रही थी जिसकी परिणिति 24 फरवरी को दोपहर 12 बजे से 25 फरवरी रात 11 बजे तक चली दिल्ली हिंसा
के रूप में हुई, जिसमें 52 लोगों की मौत हुई, 526लोग घायल हुए ,371 दुकानें जलाई गईं और 142 घरों में आग लगा दी गई।
भारत एक
पंथनिरपेक्ष देश है और उसमें सभी नागरिकों को अपने अपने धर्म को मानने की न केवल
स्वतंत्रता है बल्कि उनका यह मौलिक अधिकार है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं माना जाना
चाहिए कि आप अपने इस अधिकार का उपयोग करते हुए देश की अस्मिता, एकता और
अखंडता को ताक पर रख दें। शाहीन बाग का प्रदर्शन सोची-समझी रणनीति के तहत महिलाओं
को आगे रखकर किया गया जिसको न केवल
मुस्लिम नेताओं , मुल्ला-मौलवियों ने बल्कि मोदी विरोधी दलों ने पुरजोर समर्थन
दिया। कहा गया कि यह आन्दोलन महिलाओं ने स्वत: स्फूर्त होकर किया लेकिन इसके पीछे की
रणनीति यही थी कि सरकार महिलाओं के विरुद्ध कोई कठोर कदम नहीं उठा पाएगी और अगर वह
कोई कठोर कदम उठाएगी तो उसे कठघरे में खड़ा करने में बड़ी आसानी होगी.
निसंदेह धरने के इन 85 दिनों में प्रदर्शन के दौरान अधिक से भड़काऊ बयान
भी दिए गए। किसी ने प्रधानमंत्री मोदी को जालिम बताया तो किसी ने देश के टुकड़े
करने के लिए मुसलमानों को कमर कसने के लिए भड़काया, किसी ने सड़कों पर उतरने का आह्वान किया तो किसी ने कहा जो कायर होते हैं वे
घर पर बैठे रहते हैं । कुल मिलाकर बाहर से शांत दिखाई देने वाला
यह धरना प्रदर्शन बहुत कटुता और असहिष्णुता से भरा हुआ है। यह इससे स्पष्ट हो जाता
है कि बंगलुरु के फ्रीडम पार्क में एआईएमआईएम की सीएए के विरोध में असदुद्दीन ओवैसी की जनसभा में
ओवैसी की तकरीर के तुरंत बाद एक बालिका अमूल्या लियोना ने पाकिस्तान जिंदाबाद
के नारे लगाए। कोई माने या ना माने लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि एक
नाबालिग बालिका बिना किसी की हरी झंडी के ऐसा कर सकती है। अमूल्या ने एक टीवी इंटरव्यू में खुद स्वीकार किया
कि भारत विरोधी कार्यों के लिए एक पूरी की पूरी लॉबी सक्रिय है और जो भी कुछ गलत किया जाता है
उसके पीछे पूरा का पूरा संगठन सक्रिय होता है। भले ही असदुद्दीन ओवैसी ने मंच से
लड़की के कृत्य की मजम्मत की हो लेकिन यह तो तय है कि सब में उनकी मौन स्वीकृति जरूर रही होगी, क्योंकि भड़काऊ बयान और कंट्रोवर्सी
स्थापित करने में उनसे बड़ा मुस्लिम नेता कोई नहीं है। एआईएमआईएम के जितने भी नेता
और प्रवक्ता हैं वह सब आज देश की एकता और अखंडता को तार-तार करने में कोई कसर नहीं
छोड़ रहे।
इसी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और मुंबई के
भायखला के पूर्व विधायक वारिस पठान ने कर्नाटक के गुलबर्गा में सीएए के विरोध में
आयोजित एक जनसभा में कहा ‘अब हमें इकट्ठा होकर चलना पड़ेगा, आजादी लेनी
पड़ेगी, और जो चीज मांगने से नहीं मिलती उसे छीनना पड़ता है, अब वक्त आ
गया है। कहा जा रहा है कि शाहीन बाग में मां बहनों को भेज दिया, अरे भाई अभी
तो सिर्फ शेरनीयां बाहर निकली हैं और तुम्हारे पसीने छूट गए और समझ लो हम
लोग साथ में आ गए तो क्या होगा। हम 15
करोड हैं लेकिन याद रखना 100 (करोड़) पर भारी हैं।‘
खुद असदुद्दीन ओवैसी के भाई अकबरुद्दीन भी घृणा
फैलाने वालों में अब्बलों में अव्वल हैं। एक जनसभा में उन्होंने मुस्लिम युवकों को
भड़काते हुए कहा था कि ‘मुस्लिम युवकों को शेर बनना होगा जिससे कोई चायवाला उनके सामने
आकर खड़ा ना हो पाए’। 2013 में अपने एक बयान में अकबरुद्दीन ने भड़काऊ बयान देते हुए कहा
था कि ‘हम पच्चीस
करोड़ हैं और तुम 100 करोड़, 15 मिनट पुलिस हटाओ, देख लेंगे किसमें कितना दम है।’ हैदराबाद की
एक जनसभा में इन्हीं ओवैसी ने सीएए का विरोध करते हुए मुस्लिमों को भड़काने
के लिए कहा कि ‘किसी को डरने की जरूरत नहीं। (पता नहीं कौन डरा रहा है खुद ही डरो तो
इसका इलाज मोदी के पास तो क्या हकीम लुकमान के पास भी नहीं।) ‘जो लोग पूछ रहे हैं कि मुसलमान के पास क्या
है, मैं उनसे
कहना चाहता हूं कि तू मेरे कागज देखना चाहता है, मैंने 800 साल तक इस मुल्क में हुक्मरानी और जांबाजी की है, यह मुल्क
मेरा था, मेरा है और मेरा रहेगा। मेरे अब्बा और दादा
ने इस मुल्क को चारमीनार दिया, कुतुबमीनार दिया, जामा मस्जिद दिया, हिंदुस्तान का पीएम जिस लाल किले पर झंडा
फहराता है उसे भी हमारे पुरखों ने दिया।
इसी तरह कुछ
समय पहले इन्होंने कहा था ‘यह देश प्रधानमंत्री मोदी के बाप का नहीं
है, आज देश के
सेकुलर लोग कहां हैं, अखलाक को मारा गया, जुनैद को मारा गया, क्या मुसलमान होना गुनाह है। अरे विश्व
हिंदू परिषद और आरएसएस वालों प्रधानमंत्री मोदी सुन लो, हिंदुस्तान तुम्हारे बाप का नहीं’। कुल मिलाकर
मुसलमानों को भड़काने का निरंतर प्रयत्न किया जाता रहा।
जिस सीएए और एनपीआर की
शुरुआत यूपीए के शासनकाल में हुई वह आज मोदी विरोधियों की आंखों की किरकिरी बना
हुआ है। जितने भी मुस्लिम धर्मगुरु, मौलवी और इमाम हैं उन्होंने अपनी अपनी तरह से अपने अपने क्षेत्रों में
भड़काऊ बयान देकर देश की फिजा को बिगाड़ने का काम किया। कहा जा रहा है हम कागज नहीं बताएंगे
लेकिन आश्चर्य तो इस बात का है कि अभी एनआरसी आया नहीं और डर का आलम यह है कि चोर
की दाढ़ी में तिनका। क्या मुस्लिम धर्म गुरुओं का यह कर्तव्य नहीं बनता कि अपनी
कौम को समझाएं कि जिन परिवारों की पीढ़ियां यहां गुजर गईं उनकी नागरिकता कैसे और क्यों कर छिन जाएगी। और
दूसरी तरफ आप डर रहे हैं! अव्वल तो एनआरसी की कोई सूरत अभी है नहीं और हो भी तो क्या आप
अपने हिंदुस्तानी होने का कोई प्रमाण भी नहीं दे सकते। अपनी कौम को बरगलाने का काम
करना कहां तक उचित है। एक तरफ तुम कहते हो हिंदुस्तान किसी के बाप का नहीं और
दूसरी तरफ अपने बाप के बारे में भी नहीं बताना चाहते।
आज के हालातों
में सीएए, एनपीआर और एनआरसी विरोधी इस बात को समझने को तैयार नहीं हैं कि यह कानून किसी की नागरिकता छीनने
के लिए नहीं बना। बार-बार प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री
अमित शाह और विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद और सरकार के अन्य प्रवक्ताओं ने बताया है कि सीएए का संबंध किसी की नागरिकता नहीं छीनेगा किंतु
जानबूझकर इसे तूल देते हुए देश में अराजकता की स्थिति पैदा करना विरोधियों के लिए
उचित नहीं कहा जा सकता।
धरना प्रदर्शन की हठधर्मिता पर विचार रखते हुए
केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने नई दिल्ली के विज्ञान भवन में छात्र परिषद
को संबोधित करते हुए सही ही कहा था कि ‘सड़कों पर
बैठे हैं, अपने विचार थोपने के लिए आम जनजीवन को बाधित कर रहे हैं जो कि
आतंकवाद का एक रूप है। उग्रता केवल हिंसा के रूप में सामने नहीं आती यह कई रूपों
में सामने आती है। अगर आप मेरी बात नहीं सुनेंगे तो मैं आम जनजीवन को प्रभावित कर दूंगा। असहमति लोकतंत्र का सार है, इससे कोई परेशानी नहीं लेकिन 5 लोग विज्ञान भवन के
बाहर बैठ जाएं और कहें हमें यहां से तब तक ना हटाया जाए जब तक छात्र संसद एक
प्रस्ताव स्वीकार नहीं कर लेती जिसे हम स्वीकार नहीं कर लेते, यह आतंकवाद का एक रूप है। निसंदेह यह बयान
मुस्लिम तबके को अच्छा नहीं लगा होगा लेकिन सच्चाई तो यही है की शाहीन बाग का
धरना प्रदर्शन किसी आतंकवाद से कम
नहीं रहा।
दिल्ली हिंसा के बाद मुस्लिम नेताओं और विपक्ष ने भाजपा के नेताओं पर भड़काऊ
ब्यान देने का राग अलापना शुरू कर दिया है। वे कपिल मिश्रा , अनुराग ठाकुर और परवेश
वर्मा को इसके लिए दोषी ठहराकर अपने पक्ष के लोगों को पाक साफ़ बताने की जी तोड़
कोशिश कर रहे हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि अनुराग ठाकुर और परवेश वर्मा के बयान चुनावी रेलियों
में वोट पाने के लिए दिए गए बयान थे जबकि कपिल मिश्रा का बयान हिंसा भड़काने के लिए
नहीं बल्कि शाहीन बाग़ की तरह चांद बाग़ और जाफराबाद में शाहीन बाग़ की तर्ज पर खड़े
हो रहे धरने प्रदर्शन को रोकने के लिए थे। जिसका उद्देश्य आम जनजीवन को परेशानियों
से बचाना था। विपक्ष और मुस्लिम नेता और प्रवक्ता इन नेताओं को तो कठघरे में खड़ा करते हैं
किन्तु आप विधायक शोएब इकबाल, आप पार्षद ताहिर हुसैन, पिस्तौल लहराने वाले शाहरुख़,
आप विधायक अमानतुल्लाह और आईबी अधिकारी अंकित शर्मा के हत्यारे सलमान का नाम आते
ही मुंह में दही जम जाता है। लेकिन दोषी जो भी हों वे पकड़ में जरूर आएँगे इसमें कोई शक किसी को नहीं होना
चाहिए।