आंख मूंदकर
समुदाय विशेष का समर्थन ही डुबाएगा विपक्ष को
डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया
कोई माने या ना माने लेकिन यह
अक्षरश: सत्य है कि देश का समूचा विपक्ष अपने कृत्यों से ही हाशिए पर जाता जा रहा
है। भारत की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी राजनीतिक
पार्टी कांग्रेस का हाल भी किसी से छिपा नहीं है। कांग्रेस का
ऐसा पराभव विगत कुछ सालों में इस तरह से होना रेखांकित करता है कि उनकी रीति और
नीति आम लोगों के सापेक्ष नहीं रही। 2014
में बुरी तरह
हार के बाद यदि कांग्रेस चाहती और जनता के प्रति संवेदनशील होती तो 2019
में थोड़ा अच्छा
कर सकती थी किंतु ऐसा नहीं हुआ उसके पीछे उनके शीर्ष नेताओं की अहमन्यता और हिंदू
विरोधी मानसिकता तथा मुस्लिम तुष्टिकरण एक महत्वपूर्ण कारक है। वहीं दूसरी ओर वंश वादी राजनीति के चलते
युवा और योग्य तथा कर्मठ कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और नेताओं को पार्टी में पर्याप्त
सम्मान नहीं मिलना भी इसका एक कारण है।
कहने को कहा जा सकता है कि 2014
और 2019
में लोकसभा में
करारी पराजय के बाद भी पार्टी ने पंजाब, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश और
झारखंड राज्यों में बेहतर प्रदर्शन किया और सरकारें बनाईं किंतु किसी बड़ी पार्टी
का यह प्रदर्शन उसकी साख बचाने में तो अहम है किंतु प्रतिष्ठा के अनुरूप नहीं। फिर पंजाब की बात करें तो वहां कैप्टन
अमरिंदर सिंह की वजह से, यदि छत्तीसगढ़ की बात करें तो वहां भूपेश बघेल की वजह से,
यदि झारखंड की बात करें तो सोरेन पिता-पुत्र की वजह से और मध्य प्रदेश की बात करें
तो भाजपा के अहम की वजह से इन राज्यों में सरकारें बनी। इन सभी राज्यों
में कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व केवल एक पोस्टर से ज्यादा कुछ नहीं था।
कोरोना काल के प्रारंभ होने के साथ
ही कांग्रेस ने अपनी रणनीति में बदलाव करने की कोशिश की है। एक तरफ तो वह कोरोना संक्रमण रोकने के लिए
सुझाव दे रही है तो दूसरी ओर सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की आलोचना कर रही है। जहां एक तरफ वह प्रवासी मजदूरों के पलायन पर
सरकार को घेर रही है तो दूसरी तरफ राहुल गांधी की छवि निखारने के लिए सोशल मीडिया
का अधिकाधिक उपयोग करते हुए राजनीति कर रही है। भारतीय
लोकतंत्र की खूबसूरती है कि यहां हर एक व्यक्ति को चाहे वह किसी भी जाति धर्म या
मजहब का हो, अमीर या गरीब हो सभी को समान अवसर देती है लेकिन लगातार फ्लॉप होने के
कारण राहुल गांधी एक परिपक्व नेता की छवि बनाने में अभी तक तो नाकाम रहे हैं। कांग्रेस की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि वह
कई ज्वलंत मुद्दों पर मौन रहकर राजनीती करती है जिस पर जनता स्पष्ट अभिमत चाहती है। कांग्रेस के विरुद्ध अगर कोई बात सबसे ज्यादा
जाती है तो वह है उसकी मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति। अगर यह कहा जाए
कि मुस्लिम लीग, कम्युनिस्ट, एआईएमआईएम, सपा और बसपा के जैसी कोई प्रो मुस्लिम
पार्टी देश में है तो वह कांग्रेस ही है। कश्मीर में
इतने बड़े परिवर्तन हुए धारा 370 और 35ए हटाई गई, उसे केंद्र शासित प्रदेश बनाया, इन
सब मुद्दों पर देश की अधिकांश जनता एक राय थी किंतु कांग्रेस इसके विरोध में खड़ी
रही। जहां एक ओर कांग्रेस जेएनयू में टुकड़े गैंग
के साथ खड़ी दिखाई देती है तो वहीं सीएए के मुद्दे पर वह शाहीन बाग के साथ खड़ी
रही। दिल्ली हिंसा पर भी कांग्रेसी मुस्लिम
तुष्टीकरण के चलते सरकार के विरुद्ध खड़ी रही। तीन तलाक के
मुद्दे पर वह मुस्लिमों की आधी आबादी के विरुद्ध खड़ी रही। राम मंदिर के
मुद्दे पर तो कांग्रेस ने अकल्पनीय स्टैंड लिया था। राम के
अस्तित्व को नकारते हुए और रामसेतु को काल्पनिक सिद्ध करने के लिए कांग्रेस के
वकीलों की फौज हिन्दुओं की आस्था के विरुद्ध कोर्ट में खड़ी रही।
कोरोना काल विपक्षी राजनीतिक दलों को
एक अवसर प्रतीत हो रहा है। वास्तव में देश
के एक कोने से दूसरे कोने तक प्रवासी मजदूरों की उपस्थिति और लॉक डाउन के कारण
उनके सामने मुंह बाए खड़ी समस्याओं ने जो विषम स्थितियां पैदा की हैं उनमें देश का
विपक्ष अपनी संभावनाएं तलाश रहा है। प्रवासी
मजदूरों के अपने घरों की ओर लौटने की मजबूरी को कांग्रेस द्वारा राजनीतिक हथियार
के रूप में प्रयोग किया जा रहा है। देशभर में
प्रवासी मजदूरों का पलायन न केवल सरकार के लिए बल्कि स्वयं मजदूरों के लिए कठिन
समस्या के रूप में उपस्थित हुआ है। प्रवासी
मजदूरों का अपने कार्यस्थल से सैकड़ों किलोमीटर का पैदल पलायन जहां एक और वर्तमान
सरकार के लिए चिंता का सबब बना वहीं दूसरी ओर कांग्रेस और विपक्षी दलों के लिए
अपनी उपस्थिति सुनिश्चित करने का जरिया बना। इस स्थिति का
कांग्रेस द्वारा लाभ उठाने की जी तोड़ कोशिश की जा रही है। जहां एक ओर
राहुल गांधी बार-बार सरकार से गुहार कर रहे हैं कि आज गरीबों को समस्याएं उनके लिए
पैकेज से नहीं हल होंगी बल्कि 5 करोड़ गरीबों के लिए पैसा दिया जाना चाहिए। राहुल गांधी हर एक गरीब के लिए तत्काल 7500
रु. देने की मांग कर
रहे हैं। इसके पीछे कांग्रेस का मंतव्य केवल यही है
कि गरीबों के प्रति राहुल गांधी की संवेदनशीलता और प्रतिबद्धता प्रकट हो सके
अन्यथा कौन नहीं जानता कि पहले लॉक डाउन काल में ही सरकार ने 1.7
लाख करोड़ का
प्रावधान कर करोड़ों रुपए विभिन्न योजनाओं के माध्यम से गरीबों को उनके जनधन
अकाउंट में जमा कराए हैं।
राहुल गांधी की इमेज बनाने के लिए
कांग्रेस बहुत जतन कर रही है। कांग्रेस
उपाध्यक्ष पद छोड़ने के बाद जो राहुल गांधी अपनी गलतियों पर सहमे रहकर और अधिकांश
चुनावों में कांग्रेस की हार के कारण बैकफुट पर थे उन्हें फ्रंटफुट पर लाने के लिए
आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी से
इंटरव्यू कराए गए। राजनीति में बढ़त पाने का यह सिद्धांत बड़ा
विचित्र प्रतीत होता है। प्राय: किसी
राजनीतिक दल के बड़े नेता का इंटरव्यू बड़े पत्रकारों द्वारा लिया जाता है। लेकिन अपनी अहमियत दो अर्थशास्त्रियों से
जोड़ने के लिए राहुल गांधी ने इंटरव्यू लेने की नीति पर काम किया। जिन लोगों ने इन इंटरव्यूज को देखा है वे
समझ सकते हैं कि राहुल ने इन बड़े अर्थशास्त्रियों से अपनी बात और कांग्रेस की
नीतियों पर मुहर लगवाने का प्रयत्न ही किया। वे बार-बार इसी
बात पर फोकस करते रहे कि दोनों अर्थशास्त्री वह कहें जो कांग्रेस कहलवाना चाहती है। इस इंटरव्यू में रघुराम राजन ने यह सुझाव दिया
कि गरीबों की मदद के लिए 65 हजार करोड़ रुपयों की जरूरत है और यह रकम भारत
के लिए बड़ी नहीं है। गौर करने वाली बात यही है कि राहुल गांधी भी
65हजार करोड़ के
प्रावधान का राग अलापते नजर आते हैं।
दूसरा इंटरव्यू
उन्होंने नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले भारतीय मूल के डॉ. अभिजीत बनर्जी से
किया जिसमें उन्होंने अपनी ‘अब होगा न्याय’ वाली योजना पर बनर्जी की स्वीकृति की
मोहर लगवाने का प्रयत्न किया। वस्तुतः जिस ‘अब
होगा न्याय’ वाली योजना में 2019 के चुनावों में राहुल गांधी प्रत्येक गरीब को
6000रु. प्रतिमाह देने
की बात कर रहे थे वह अभिजीत बनर्जी की ही योजना थी। फर्क इतना था
की अभिजीत बनर्जी गरीबों को हर महीने 2500 से 3000 रु.देने की बात कर रहे थे किंतु आम चुनावों
में अधिक सफलता अर्जित करने के लिए कांग्रेस ने यह राशि बढ़ाकर 6000रु. प्रतिमाह
अर्थात 72 हजार रु. साल की घोषणा की थी। हालांकि इस पर भारत की जनता ने विश्वास नहीं
किया था और कांग्रेस की करारी हार हुई थी।
इस इंटरव्यू के
बाद यह पढ़ने को मिला था कि अभिजीत बनर्जी इस बात से नाराज थे कि इंटरव्यू उनके
सम्मान के अनुरूप नहीं हुआ। बहुत गहराई से
चिंतन करें तो हर व्यक्ति यह जानता है कि भारत की समूची जनता कश्मीर के बारे में
बहुत संवेदनशील है। वह वर्तमान सरकार के हर उस कार्य का समर्थन
करती है जो समूचे कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग के सिद्धांत को मान्यता देते हैं। यही नहीं भारत की जनता उन कश्मीरी नेताओं,
अलगाववादियों, आतंकियों और कश्मीर की अलग पहचान बनाए रखने के समर्थक लोगों की
विरोधी है और वह उन लोगों को भी पसंद नहीं करती जो इन लोगों का समर्थन करते हैं या
इन्हें मौन रहकर अपनी स्वीकृति देते हैं। कांग्रेस और कई
विपक्षी दल और उनके नेताओं को जो मोदी विरोध के कारण कश्मीर की बेहतरी के लिए उठाए
गए कदमों की आलोचना करते हैं को देश की जनता पसंद नहीं करती। यही
नहीं उन कश्मीरियों का जो पाकिस्तान का समर्थन करते हैं, जो देश को बदनाम करने का
काम करते हैं, भारत की जनता उन लोगों को भी पसंद नहीं करती। देश की जनता उन लोगों को भी पसंद नहीं करती जो
कश्मीर की गलत छवि अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं। हाल ही में राहुल गांधी ने पुलित्जर पुरस्कार पाने वाले तीन फोटो
जर्नलिस्ट कश्मीरियों की भूरी भूरी प्रशंसा की जिसे देश की जनता ने पसंद नहीं किया। निष्कर्ष रूप
में कहा जा सकता है कि यदि विपक्ष को आने वाले चुनावों में कुछ अच्छा करना है तो
उसे जनता की नब्ज को पढ़ने की जरूरत होगी। यह संभव नहीं
है कि आप आंख मूंदकर समुदाय विशेष का समर्थन करते रहें और जनता आपकी झोली वोटों से
भरदे।