चीन पचा नहीं पाया सीमा पर हमारे
इंफ्रास्ट्रक्चर विकास को
डॉ. हरिकृष्ण
बड़ोदिया
ऐसे समय में जब दुनिया कोरोना से
लड़ रही है तब विस्तारवादी चीन को जहां कोरोना की लड़ाई में दुनिया के देशों को
मदद करनी चाहिए थी वहां चीन ने भारत के खिलाफ सीमा पर उत्पात मचा रखा है। वस्तुतः चीन आज विश्व समुदाय के सामने
दुनिया भर में कोरोना महामारी के प्रसार का आरोपी है जिससे ध्यान हटाने के लिए
उसने भारत के खिलाफ युद्ध जैसे हालात पैदा कर दिए हैं। बीते सोमवार को लद्दाख सीमा पर वास्तविक
नियंत्रण रेखा के गलवान घाटी में धोखे से भारतीय सेना के जवानों पर चीनी सेना ने
हमला किया जिसमें भारत के एक सैन्य अधिकारी समेत 20 जवान शहीद हुए। वस्तुतः चीनी सैनिकों ने गलवान घाटी के एक संकरे
रास्ते में निगरानी चौकी बनाई थी जिसका भारतीय सैनिकों ने विरोध किया था। इस चौकी का विरोध शहीद कमांडिंग अफसर कर्नल
बी संतोष बाबू के नेतृत्व में भारतीय सैनिकों ने इसलिए किया था क्योंकि यह भारतीय
सीमा में बनाई गई थी। भारतीय सैनिकों
ने जब उस चौकी को हटाने का प्रयास किया तो दोनों सेनाओं के बीच ऐसी खूनी झड़प हुई
जैसी पिछले 50 सालों में कभी नहीं हुई थी। यह सही है कि भारतीय सेना के 20
जांबाज सिपाही
शहीद हुए लेकिन इन जवानों ने चीनी सेना के पांच अफसरों और लगभग 35 से अधिक सैनिकों को मौत के घाट उतारा है,
जिसकी पुष्टि कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसीज ने की है। यह संघर्ष 1967 में नाथूला में
हुई झड़प के बाद भारतीय और चीनी सेना के बीच सबसे बड़ा और खूनी टकराव है। चीन की हिमाकत बीते 7
दशकों से जारी
है वस्तुतः उसके भारत के खिलाफ हौंसले 1962 से ही बुलंद है जब उसने भारत पर हमला कर हमें
बहुत बड़ी हानि पहुंचाई थी। यही नहीं उसने
भारत के आधिपत्य वाले अक्साई चीन को भी अपने कब्जे में ले लिया था।
आज का भारत 1962
वाला भारत नहीं
है यह चीन अच्छी तरह जानता है। आज भारत सामरिक
दृष्टि से अत्यंत मजबूत राष्ट्र है और वह इन समस्याओं का समाधान युद्ध के मैदान
में भी कर सकता है लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के शब्दों में ‘भारत शांति चाहता है’। चीन ने जो कायराना हरकत की है उस पर
प्रधानमंत्री ने कड़ा संदेश दिया है, उन्होंने कहा कि ‘हमारे लिए देश की एकता और
संप्रभुता सबसे महत्वपूर्ण है’। यही नहीं
बुधवार को देश के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी चीन के विदेश मंत्री वांग यी को
चेताया की गलवान जैसी घटनाओं से द्विपक्षीय संबंधों पर असर गिरेगा इसलिए उसे
सुधारात्मक कदम उठाना चाहिए’। असल में चीन
गलवान घाटी पर अवैध रूप से कब्जा करना चाहता है जिस पर विदेश मंत्री ने कड़ी
आपत्ति करते हुए कहा कि चीन का इस तरह अतिरंजित दावा करना आपसी समझ के विरुद्ध है। वहीं भारत के प्रधानमंत्री ने भी बुधवार को
मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक में कहा कि हमें हमारे सैनिकों पर गर्व है कि ‘हमारे
सैनिकों ने (चीनी सैनिकों को) मारते मारते शहादत दी। उन्होंने देश को आश्वासन भी दिया कि ‘चाहे
हालात कुछ भी हों भारत पूरी दृढ़ता से देश की एक-एक इंच जमीन और देश के स्वाभिमान
की रक्षा करेगा’।
मौजूदा विवाद की जड़ में चीन को भारत के
वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास हो रहे भारतीय सड़क निर्माण, हवाई पट्टी और
इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के कार्यों से सबसे ज्यादा पीड़ा हो रही है। असल में भारत भविष्य की आवश्यकताओं को देखते
हुए लगातार निर्माण कार्य कर रहा है जो चीन पचा नहीं पा रहा है। वस्तुतः भारत ने जितनी परियोजनाएं यहां चालू
की हैं उनमें से अधिकांश पूरी हो गई हैं जो चीन को पीड़ादायी है। लेकिन जब भारत को चीन के आधिपत्य वाले
क्षेत्र में उसके निर्माण कार्यों पर कोई आपत्ति नहीं तो चीन को भारतीय क्षेत्र
में भारत के निर्माण कार्यों पर आपत्ति क्यों होना चाहिए। पूर्व मेजर जनरल अशोक मेहता ने वास्तविक
नियंत्रण रेखा पर बढ़ती कथित चीनी गतिविधियों का कारण पुल और हवाई पट्टीओं का
निर्माण होना बताया था जिसकी वजह से भारतीय गश्तें बढ़ चुकी हैं। यही नहीं चीन भारत से इसलिए भी चिढ़ा हुआ है कि उसने कश्मीर से धारा 370
खत्म कर लद्दाख
को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया है। वस्तुतः चीन इसे अपने लिए एक खतरे के रूप में देखता है। भारत ने मेजर जनरल स्तर की वार्ता में
स्पष्ट कर दिया है कि भारत किसी भी दशा में ना तो निर्माण कार्य बंद करेगा और ना
अपनी जमीन पर चीन को कब्जा करने देगा। भारत के वर्तमान नेतृत्व का मानना है कि अक्साई चीन पर चीन ने अवैध कब्जा कर
रखा है। यही नहीं भारत
पीओके (जिस पर पाकिस्तान ने अवैध कब्जा कर रखा है) को वापस प्राप्त करने के लिए
प्रयत्नशील है और चीन भारत के इन संकल्पों के कारण परेशानी महसूस करता है। चीन जानता है कि अगर भारत पीओके वापस ले लेता
है तो पाकिस्तान में चीन के द्वारा बन रहे कॉरिडोर पर विपरीत असर गिरेगा।
ऐसे समय जब देश को एकजुट होकर
विदेशी ताकतों से लोहा लेना चाहिए तब देश का विपक्ष राजनीति करने पर उतारू है। खासतौर से देश की सबसे पुरानी पार्टी
कांग्रेस भारत चीन विवाद को ढाल बनाकर प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साध रही है। हांलाकि हाल के दिनों में यह पहला मौका नहीं
है जब वह प्रधानमंत्री को निशाना बना रही है। पहले उसने कोरोना महामारी के भारत में
प्रसार पर, फिर प्रवासी मजदूरों के पलायन पर और अब चीन भारत की रक्तरंजित झड़प पर
निशाना साध कर अपने लिए जगह बनाने की कोशिश की है। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी क्या यह नहीं
जानते कि देश का प्रधानमंत्री केवल किसी दल की सरकार का प्रमुख नहीं होता बल्कि
देश के हर एक नागरिक, हर एक राजनीतिक दल और हर विरोधी का प्रधानमंत्री होता है। और जब देश किसी दुश्मन देश का सामना कर रहा
हो तब देश के किसी भी व्यक्ति को प्रधानमंत्री को नीचा दिखाने का प्रयत्न करना
स्वयं के देश का अपमान करना होता है। राहुल गांधी अपने बयान में कहते हैं ‘प्रधानमंत्री जी आप चुप क्यों हैं, आप
कहां छुप गए हैं, आप बाहर आइए, क्या यह विपक्षी दल के सांसद का गैर जिम्मेदाराना
तथा देश के प्रधानमंत्री का अपमान नहीं है। राहुल द्वारा किया गया यह अपमान उन्हें खुद
के लिए भारी पड़ जाना है यह सभी जानते हैं। एक और बयान में राहुल ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शहीद
सैनिकों पर सवाल पूछा कि ‘चीन ने हिंदुस्तान के शस्त्रहीन सैनिकों की हत्या करके
बहुत बड़ा अपराध किया है। मैं पूछना चाहता
हूं कि इन वीरों को बिना हथियार खतरे की ओर किसने भेजा और क्यों भेजा, कौन
जिम्मेदार है? जिस पर भाजपा प्रवक्ता ने राहुल गांधी को जवाब देते हुए कहा कि
राहुल गांधी को पढ़ना लिखना चाहिए। वस्तुतः 1996
में कांग्रेस की
दया पर प्रधानमंत्री बने देवगौड़ा के नेतृत्व में एक संधि हुई थी जिसके अनुसार
वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों के सैनिक 2 किलोमीटर सीमा तक किसी भी तरह का हथियार नहीं
रखेंगे और यदि रखेंगे भी तो उनके मुंह धरती की तरफ होंगे तथा दोनों तरफ के सैनिक
उनका उपयोग नहीं करेंगे। गुरुवार को
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने स्पष्ट कर दिया कि भारतीय
सैनिकों के पास हथियार थे उन्हें निहत्था नहीं भेजा गया था।
आज जब देश दुश्मन धोखेबाज देश चीन
और चिरस्थाई दुश्मन पाकिस्तान से मोर्चा लेकर बढ़त बना रहा है तब देश के विपक्ष को
अपने ही देश का अपमान नहीं करना चाहिए। यह समय एकजुटता दिखाने का है ना कि अपने दल की राजनीति चमकाने के लिए देश को नीचा
दिखाने का। अपने सैनिकों
की शहादत का बदला लेने के लिए सरकार ने सेना के तीनों अंगों को खुली छूट देकर यह
स्पष्ट कर दिया है कि भारत किसी भी स्थिति में झुकेगा नहीं और ना ही वास्तविक
नियंत्रण रेखा पर कोई समझौता ही करेगा।
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