रविवार, 7 जून 2020

मोदी 2.0 : साहस के दम पर वांछित लक्ष्य पाने का पहला साल


                मोदी 2.0 : साहस के दम पर वांछित लक्ष्य पाने का पहला साल

                                            डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया 
           परिस्थितियों और परिणामों का गहरा रिश्ता होता है। जब परिस्थितियां बदलती हैं तो परिणाम भी बदलते हैं। प्रत्येक व्यवस्था में नए बदलाव लाने के लिए नए विचार और नए प्रयोग करने होते हैं। यथास्थितिवाद बदलाव का सबसे बड़ा दुश्मन होता है। जब हम किसी देश की व्यवस्थाओं में बदलाव चाहते हैं तो उसके लिए हमें मानसिक रूप से तैयार होना पड़ता है। व्यवस्थाओं में बदलाव के लिए समर्पण की जरूरत होती है। एक नए नेतृत्व की जरूरत होती है। एक नई विचारधारा की जरूरत होती है। यूपीए शासन के दौरान देश यथास्थितिवाद से गुजर रहा था, ऐसे में देश की व्यवस्थाओं में बदलाव लाने के लिए देश की समझदार जनता ने 2014 में एक नया प्रयोग किया। देश की प्रगति और विकास तथा सकारात्मक परिवर्तनों के लिए उसने कांग्रेस की धुर विरोधी दक्षिणपंथी विचारधारा की पार्टी भाजपा और उसके सहयोगी दलों को नए भारत के निर्माण और व्यवस्थाओं में परिवर्तन हेतु मोदी के नेतृत्व को चुना। इस बदलाव ने देश में कई ऐसे परिवर्तन किए जिनकी प्रतीक्षा बीते 65 वर्षों से की जा रही थी। 2014 से 2019 तक के 5 साल में हुए बदलावों की साक्षी न केवल देश की जनता है बल्कि विश्व समुदाय ने भी देखा कि कैसे मोदी ने अपने प्रथम कार्यकाल में आम आदमी के चेहरे पर मुस्कान लाने का काम किया। मोदी के प्रथम कार्यकाल में बदलाव की ऐसी बयार चली कि बेघरों को घर, ग्रामीण महिलाओं को उज्जवला के तहत गैस कनेक्शन, शौचालय निर्माण, जनधन खातों की शुरुआत, स्वच्छता मिशन, मेक इन इंडिया, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, हर गांव को बिजली, अटल पेंशन योजना, 330रु. सालाना प्रीमियम पर प्रधानमंत्री बीमा योजना,12 रु.वार्षिक की दर पर जीवन ज्योति बीमा योजना, कैशलेस ट्रांजैक्शन, महिला सशक्तिकरण तथा हर किसान को सालाना 6000रु  की आर्थिक सहायता जैसी कई योजनाओं ने देश के हर तबके को प्रभावित किया। यही नहीं दशकों से जिस दुश्मन देश पाकिस्तान ने देश के हर कोने में आतंक का नंगा नाच किया उस पाकिस्तान की आतंकी गतिविधियों पर ऐसी नकेल कसी कि कश्मीर को छोड़कर शेष भारत में आतंक का पूरी तरह सफाया हो गया। मोदी के अब तक के 6 साल के कार्यकाल में कश्मीर के अलावा कहीं कोई आतंकी घटना नहीं घटी। जबकि 2004 से 2014 तक यूपीए के कार्यकाल में देश का ऐसा कोई बड़ा शहर नहीं था जहां आतंकियों ने बम ना फोड़े हों। यही नहीं देश की आर्मी और एयर फोर्स ने पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक कर आतंक के आकाओं में दहशत पैदा कर देश को सुरक्षित किया। यह सब काम मोदी कार्यकाल के प्रथम 5 सालों में हुए। इन कामों का परिणाम यह हुआ कि 2019 में देश की जनता ने मोदी को ऐसा जनादेश दिया कि वह इतिहास में दर्ज हो गया। एनडीए को 352 सीटें मिलीं जिनमें अकेले भाजपा को 303 सीटों का बहुमत मिला।                          30 मई 2020 को मोदी 2.0 कार्यकाल का 1 वर्ष पूरा हुआ है। यह 1 साल मोदी और भाजपा के संकल्पों की पूर्ति का कार्यकाल कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। इस 1 वर्ष में भाजपा ने अपने मेनिफेस्टो में उल्लेखित संकल्पों को पूरा करने में कोई कोताही नहीं बरती। मोदी 2.0 में ऐसे कानून बने जिनका सीधा संबंध प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भारत की मुस्लिम आबादी को प्रभावित करती है। जिन पर पहले की सरकारें मौन रहना बेहतर समझती रहीं। इन कानूनों के बनाने में जिस साहस का परिचय मोदी ने दिया वैसा अब तक के इतिहास में कोई नहीं कर पाया।  मोदी के दूसरे कार्यकाल में सबसे महत्वपूर्ण कानून यदि कोई बना तो वह मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से मुक्ति का बना। मुस्लिम समाज में इस कुप्रथा का अंत इस कानून के आने से पहले तक इसलिए नहीं हो सका था कि पहले के सत्ताधारी दलों को मुस्लिम पुरुषों की आधी आबादी के नाराज होने का डर सताता था। कौन नहीं जानता कि शाहबानो प्रकरण में राजीव गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को बदलने के लिए संविधान में संशोधन कर शरीयत को प्राथमिकता दी थी।
     तीन तलाक मामले में मोदी सरकार की प्रमुख दलील यह थी कि दुनिया भर में 20 से ज्यादा ऐसे इस्लामिक देश हैं जहां तीन तलाक को असंवैधानिक और गैर इस्लामिक ठहराया जा चुका है। यही नहीं पाकिस्तान ने भी अपने देश में 1956 में तीन तलाक को बैन कर दिया था। तब भारत में मुस्लिम महिलाओं के साथ यह अन्याय क्यों जारी रहना चाहिए था। मोदी ने मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करते हुए इंसटेंट तीन तलाक की प्रथा को संवैधानिक तौर पर आपराधिक कृत्य बना दिया। इससे देश भर की मुस्लिम महिलाएं अपने भविष्य के प्रति सुरक्षित हुईं।
    जनसंघ से लेकर वर्तमान भाजपा तक कश्मीर मुद्दा भाजपा का मुख्य मुद्दा  रहा है। आजादी के बाद से आज तक भाजपा संविधान की धारा 370 और 35 को हटाने की मुहिम चलाती रही थी। धारा 370 और 35a जो जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता था उसे समाप्त करने से बड़ा कोई साहसिक निर्णय नहीं हो सकता था। जब जब भी भाजपा ने कश्मीर से इन धाराओं को हटाने की बात की तब तब कांग्रेस सहित कश्मीरी सियासतदां, कश्मीरी अलगाववादी,  पाकिस्तान और भारत का मुस्लिम तबका इसके विरोध में खड़ा रहा। 8 अप्रैल 2019 को पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की महबूबा मुफ्ती ने धारा 370 और 35 हटाने के मुद्दे पर जहरीला बयान देते हुए धमकी दी कि “पहले से ही जम्मू कश्मीर बारूद के ढेर पर बैठा है यदि ऐसा होता है तो न केवल कश्मीर बल्कि पूरा देश जल उठेगा इसलिए मैं बीजेपी से अपील करती हूं कि वह आग से खेलना बंद करें”। उमर अब्दुल्ला ने कहा- “धारा 370 हटाई तो कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं रहेगा”। अलगाववादी और जेकेएलएफ के नेता यासीन मलिक ने कहा कि “धारा 370 हटाई  तो जम्मू कश्मीर में आग लग जाएगी, कश्मीर जल उठेगा”। यही नहीं देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के कपिल सिब्बल, पी चिदंबरम और गुलामनबी आजाद सहित कई नेताओं ने अपनी-अपनी तरह से विरोध प्रकट किया किंतु साहसी मोदी ने एक झटके में कश्मीर से धारा 370 और 35 को हटाकर इतिहास रच दिया।            आज जम्मू कश्मीर न केवल भारत का अभिन्न अंग है बल्कि विशेष राज्य से उलट जम्मू कश्मीर और लद्दाख 2 केंद्र शासित प्रदेश बना दिए गए। इस साहसिक निर्णय की मुस्लिमों तथा सत्ता और मोदी विरोधियों को छोड़कर समूची दुनिया में भारत की अधिकांश जनता ने सराहना की।
    अयोध्या में राम मंदिर निर्माण बीजेपी के लिए एक ऐसा मुद्दा रहता रहा जिसकी विपक्षी दल हमेशा आलोचना करते थे। विपक्षी दल यह कहते नहीं थकते थे कि भाजपा राम मंदिर निर्माण का झूठा आश्वासन देकर भारत के मतदाताओं के साथ छल करती है। विपक्षी दल हर चुनाव में राम मंदिर के नाम पर भाजपा की आलोचना करती रही। विपक्ष हमेशा यह कहकर कि “मंदिर वहीं बनाएंगे पर तारीख नहीं बताएंगे” जैसे नारों से जनता को यह बताने का प्रयत्न करता कि  मंदिर निर्माण का असंभव काम कभी पूरा नहीं होगा। आखिरकार राम मंदिर विवाद का पटाक्षेप सुप्रीम कोर्ट के फैसले से हुआ। इसमें कोई शक नहीं कि यह कहा जा सकता है कि इसमें सरकार की कोई उपलब्धि नहीं है। किंतु यह भी एक सच्चाई है कि सुप्रीम कोर्ट में दिन-प्रतिदिन की सुनवाई केंद्र के आग्रह पर ही हुई और केंद्र में भाजपा की सरकार ने राम मंदिर के निर्माण में बड़ी भूमिका का निर्वाह किया। यदि केंद्र में किसी अन्य दल की सरकार होती तो राम मंदिर निर्माण का रास्ता असंभव से भी असंभव काम था। वस्तुतः राम मंदिर निर्माण मोदी 2.0 की बहुत बड़ी उपलब्धि है।
    मोदी 2.0 कार्यकाल का एक महत्वपूर्ण निर्णय नागरिकता संशोधन कानून है। देश के इतिहास में यह एक ऐसा निर्णय है जिसने पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा अफगानिस्तान के बहुसंख्यको द्वारा प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को जिनमें हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, पारसी और जैन आदि हैं को भारत में नागरिकता देने का कानून पास किया जिसे नागरिकता संशोधन कानून या सी ए ए कहा जाता है। यह कानून जब से बना है तब से विरोधी दल खासतौर से कांग्रेस और कम्युनिस्ट सहित मुस्लिम तबका इसका विरोध कर रहे हैं। इसके विरोध में कई महीनों तक मुस्लिम महिलाओं ने शाहीनबाग पर धरना देकर सरकार को अस्थिर करने की कोशिश की किंतु धैर्यवान मोदी और उनकी सरकार विचलित नहीं हुई। वस्तुतः यह साहस विरले ही लोगों में होता है जो अविचलित होकर जनकल्याण के काम करते चले जाते हैं। यदि कोरोना महामारी देश में दस्तक नहीं देती तो शाहीबाग आज भी बदस्तूर जारी होता हालांकि जब से देश में अनलॉक-1 प्रारंभ हुआ है तब से ही विरोध के लिए मुस्लिम तबका शाहीनबाग दोहराने के लिए एकजुट हो रहा है लेकिन दिल्ली दंगों के बाद दिल्ली पुलिस और अन्य एजेंसियों की सतर्कता से इसे रोके जाने की उम्मीद है। सीएए  कानून के विरोध की सच्चाई असल में मोदी सरकार के तीन तलाक, धारा 370 और 35 ए तथा राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ होने के विरोध की स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। सत्ता विरोधियों को जब उक्त तीन कानून संशोधन के विरोध का मौका नहीं मिला तो सीएए कानून के विरोध में मोदी विरोधी एकजुट होने लगे जिसकी परिणिति शाहीनबाग और बाद में दिल्ली दंगों के रूप में परिलक्षित हुई।
    मोदी सरकार ने एक और कानून में संशोधन कर अपने साहस का परिचय दिया जिसकी चर्चा बहुत अधिक नहीं हुई। गैरकानूनी गतिविधियों की रोकथाम का  कानून जिसे यू ए पी ए कहा जाता है में संशोधन कर मोदी सरकार ने देश विरोधी काम करने वाले व्यक्तियों को अब आतंकवादी घोषित करने का काम किया। इस प्रकार मोदी सरकार ने भारत विरोधी ताकतों को कड़ा संदेश देने का काम किया। वस्तुतः मोदी 2.0 का पहला साल साहसिक निर्णयों का साल रहा। प्रधानमंत्री मोदी ने देश हित में जो निर्णय किए वह ऐसे हैं जिन्हें करने की हिम्मत बीते 65 सालों के शासन में कोई सत्ताधारी दल नहीं कर सका।
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