शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

याद रखना होगा कि मोदी देश की जरूरत हैं 

 

                                   याद रखना होगा कि मोदी देश की जरूरत हैं 

                                                डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया 

         देश के विपक्ष को भले ही मोदी फूटी आंखों नहीं सुहाते लेकिन मोदी ने देश को उन ऊंचाइयों पर पहुंचाया है जिसकी कल्पना 2014 के पहले संभव नहीं थी।  आज दुनिया भर में मोदी के जन हितेषी कामों की चर्चा के साथ-साथ देश में पूर्व में की गई राजनीतिक गलतियों को सुधारने में मोदी के योगदान को सराहा जा रहा है। विपक्ष हताश और निराश इसलिए है कि उसके पास मोदी की साख को गिराने के लिए कोई ऐसा ठोस मुद्दा है ही नहीं जिससे वह  जनता को अपने पक्ष में कर सके। यही नहीं विपक्ष जिस भी मुद्दे को उठाता है उसमें उसे मुंह की खानी पड़ती है। महत्वपूर्ण बात यह है कि मोदी एक दृढ़ संकल्पित नेता हैं। वे जो भी काम करते हैं उसका पूरा होमवर्क करने के बाद ही करते हैं और जिस रास्ते पर कदम बढ़ाते हैं ऐसा नहीं होता कि उन्हें कदम वापस खींचने के लिए बाध्य होना पड़े। मोदी देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने तुष्टीकरण के लिए अपनी विचारधारा से समझौता नहीं किया। इतिहास साक्षी है कि देश के किसी प्रधानमंत्री ने अपने कार्यकाल में हिंदुत्व की बात नहीं की। यही नहीं उन्होंने अपने हिंदू होने के गौरव को खुलकर स्पष्ट किया। मोदी के विगत 7 साल इस बात के साक्षी हैं कि मोदी ने प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए भी व्यक्तिगत संस्कारों को प्रदर्शित करने में कोई हिचक नहीं दिखाई। सबको मालूम है कि सीएम रहते हुए भी उन्होंने मुस्लिमों को अपने पक्ष में रिझाने के लिए मुस्लिम टोपी नहीं पहनी। इसके बावजूद भी गुजरात का मुसलमान मोदी के पक्ष में खड़ा रहा। गुजरात का मुसलमान शेष भारत के मुसलमानों से अलग इसलिए है कि वह मोदी की कार्यशैली और सबका साथ सबका विकास के सिद्धांत के तहत अपनी उन्नति में मोदी को साथ खड़ा पाता है।

   जिस देश की आबादी का 78 फीसदी हिंदू हो उस देश में 70 सालों तक इस बड़े तबके की उपेक्षा होती रही जिसे हर व्यक्ति जानता है। जब से मोदी देश के प्रधानमंत्री बने तब से देश में हिंदुओं को हिंदू होने का गौरव मिला है। आज स्थिति यह है कि धर्मनिरपेक्षता के ठेकेदार भी मंदिर मंदिर घूम कर और गले में केसरिया पटका डालकर हिंदुओं को रिझाने के उपक्रम करते देखे जा सकते हैं। मोदी के कार्यकाल में अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की शुरुआत ने कांग्रेस सपा और बसपा जैसे मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाले दलों को राम राम जपना सिखा दिया। लेकिन इनका यह दोहरा रवैया हर बार एक्सपोज हो जाता है।

  मोदी ने देश से जो वादे किए उन्हें पूरा करने में वह प्राणपण से जुटे हैं। कौन नहीं जानता कि मोदी ने कश्मीर के अलावा शेष भारत में देश को बम धमाकों से निजात दिलाई। 2014 के पहले देश में ऐसा कोई बड़ा शहर नहीं था जहां निर्दोष लोग आतंकवाद के शिकार ना बने हों। इससे बड़ी उपलब्धि और क्या हो सकती है कि जिस देश में हर सार्वजनिक स्थानों पर पढ़ने को मिलता था कि लावारिस वस्तुओं को न छुएं, इनमें विस्फोटक हो सकता है वहां हर व्यक्ति आज भय मुक्त है। बड़े शहरों में जहाँ हर व्यक्ति डर और दहशत में अपने दिन की शुरुआत करता था वहां मोदी के आने के बाद जनता पूरी तरह निश्चिंत है और सरकारी संस्थाओं को ऐसे किसी निर्देश दीवारों पर लिखने की जरूरत नहीं पड़ रहीजो पहले पैनिक पैदा करते थे।

   70 साल तक देश पर राज करने वाली पार्टी यह कहते नहीं अघाती कि राजीव गांधी देश में कंप्यूटर लाए लेकिन हर आदमी जानता है कि टेक्नोलॉजी की प्रकृति ऐसी है कि वह ना चाहते हुए भी लोगों के जीवन में प्रवेश करती है। लोग जीवन को सरल बनाने के लिए स्वत: ही उसका उपयोग करने लगते हैं। जब मोदी ने मुद्रा रहित अंतरण अर्थात कैशलेस ट्रांजैक्शन की बात की तो विपक्ष ने बड़े-बड़े सांप बिच्छू दिखाए। कहा जिस देश की अधिकांश आबादी साक्षर ना हो और जिनके पास मोबाइल तक नहीं उस देश में कैशलेस ट्रांजैक्शन संभव नहीं हो सकता। लेकिन मोदी की दृढ़ इच्छाशक्ति ने आज देश की एक चौथाई से अधिक आबादी को कैशलेस ट्रांजैक्शन से जोड़ दिया है। आज हर छोटे-बड़े शहर ही नहीं बल्कि बड़ी संख्या में बड़े कस्बों और गांवों में लोग नेट बैंकिंग और पेटीएम जैसे गूगल पे, फोन पे आदि का उपयोग कर कैशलेस ट्रांजैक्शन कर रहे हैं। क्या इसे बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं माना जा सकता। मोदी ने देश के गरीब किसानों और मजदूरों को भी बैंकिंग प्रणाली से जोड़ा। आज 31.31 करोड़ गरीब लोग जनधन खातों से जुड़े हुए हैं। उनमें एक नए आत्मविश्वास का संचार हुआ है जिसका सीधा लाभ यह मिला कि सरकारी योजनाओं का पैसा उनके खातों में डायरेक्ट ट्रांसफर हो रहा है। यह छोटी-छोटी बातें हैं जिन बातों पर विपक्ष खासतौर से कांग्रेस सांप बिच्छू का डर दिखाती रही वे बातें आज लोगों की दिनचर्या का हिस्सा बन गई हैं।

  2014 के पहले देश की सुरक्षा में सरकारों का हाल बेहाल किसी छुपा नहीं था। दुश्मन देश पाकिस्तान सेना के जवानों की गर्दन काटकर और पकड़कर उत्पीड़न कर उसका दुनिया भर में प्रदर्शन करता था और सरकारें समझौता वादी रवैया अपना लेती थीं। वहीं आज मोदी की इतनी दहशत है कि पाकिस्तान को अभिनंदन को 24 घंटे में छोड़ने को बाध्य होना पड़ा। सर्जिकल और एयर स्ट्राइक जैसी कार्रवाई ने दुश्मन देश पाकिस्तान को ऐसा कड़ा संदेश दिया कि वह भारत के विरुद्ध कुछ करने के पहले कई बार सोचता है। कौन नहीं जानता कि पाकिस्तान की संसद में मोदी के खौफ से खौफजदा राजनेता डर के मारे कांपते दिखाई देते हैं। मोदी सरकार ने 2014 में देश के रक्षा बजट में 9% की बढ़ोतरी की थी जिसका सकारात्मक असर सेना पर दिखाई देता  है। यही नहीं यूपीए सरकार बजट का रोना रोकर सेना को गोला बारूद जैसी आवश्यक जरूरतों की पूर्ति करने में अक्षम सिद्ध हुई वहीं अब सेना के पास बड़ी पनडुब्बियों और राफेल सहित कई लड़ाकू विमान और आधुनिक उपकरण मौजूद है।

  यदि मान लें कि सरकारी नौकरियों में जाति आरक्षण देश की जरूरत है और ना भी हो तो भी भविष्य में देश में ऐसी कोई सरकार नहीं हो सकती जो आरक्षण को समाप्त कर सके। देश भर में हमेशा यह आवाज उठती रही कि देश में आर्थिक आधार पर आरक्षण हो और सवर्ण वर्ग के गरीब लोगों को भी आरक्षण मिलना चाहिए। मोदी से पहले की किसी सरकार ने यह हिम्मत नहीं दिखाई कि वह सवर्णों को आरक्षण की सोच सकें लेकिन मोदी ने आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को 10 फीसदी  का आरक्षण स्वीकृत कर  सात दशक से लंबित मांग को पूरा किया। इसे किसी उपलब्धि से कम नहीं माना जा सकता।

   मोदी एक निडर राजनेता हैं वह यह नहीं सोचते कि उनके जनहित के कामों से कौन नाराज होगा और कौन खुश। वे देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं जो वर्ग विशेष के तुष्टीकरण से ऊपर उठकर काम करते हैं। मोदी ने हज यात्रा में मिलने वाली सब्सिडी को बंद कर उस गोरखधंधे को बंद किया जिसका लाभ मुस्लिम तबके के रसूखदार लोगों को मिलता रहा था। इससे हर साल देश को सात सौ करोड़ रुपयों की बचत होती है। वहीं नए प्रावधान के अनुसार 45 साल से ऊपर की कोई भी महिला बिना पुरुष सहयोगी के हज यात्रा पर जा सकती है। उन्होंने तीन तलाक से मुक्ति दिलाकर मुस्लिम महिलाओं की सामाजिक स्थिति में सुधार करने का जो काम किया उसे अनंत काल तक भुलाया नहीं जा सकता।

  कौन नहीं जानता कि जम्मू-कश्मीर की बेहतरी के लिए मोदी ने धारा 370 और 35 ए हटाकर वहां के निवासियों के जीवन को खुशहाल बनाया है। आज वहां के किसी नौजवान के हाथ में सेना पर फेंकने के लिए पत्थर नहीं है। यही नहीं मोदी एकरूपता में विश्वास करते हैं। डिस्क्रिमिनेशन उन्हें पसंद नहीं। यही कारण है कि टैक्स में एकरूपता के लिए उन्होंने वन नेशन वन टेक्स के तहत जीएसटी लागू किया तो वहीं जनता की भलाई के लिए वन नेशन वन राशन कार्ड योजना लागू की। आयुष्मान भारत, उज्ज्वला योजना, स्वच्छता मिशन, नागरिकता संशोधन कानून और प्रधानमंत्री आवास जैसी बड़ी योजनाओं के बारे में देश का हर नागरिक जानता है। आजादी के 70 सालों बाद तक देश के कई ऐसे गांव थे जहां बिजली नहीं थी, उन सभी गांव में आज बिजली पहुंच रही है, इससे बड़ी उपलब्धि और क्या हो सकती है। आज जब विपक्ष मोदी को नीचा दिखाने और उन्हें विचलित करने के लिए अनर्गल आरोप मढता रहता है तब उन सब के विरुद्ध जनता को मोदी के देश के हित में किए गए कामों को याद रखना होगा क्योंकि मोदी देश की जरूरत हैं, क्योंकि वह ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो न केवल ईमानदार हैं बल्कि उनके कार्यकाल में आज तक सरकार पर एक भी भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा।

ReplyForward

 

गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

 

                              वैक्सीन ही बचा सकता है कोरोना संक्रमण की घातकता से 

                                                डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया 

          कोरोना महामारी आज के हालातों में सबसे बड़ी त्रासदी है। इसकी दूसरी लहर ने भारत के आम नागरिकों को संकट में डाल दिया है। आज आम आदमी में मृत्यु का भय व्याप्त है। भारत में पिछले तीन सप्ताहों से रिकॉर्ड पॉजिटिव केस आ रहे हैं। देश में गुरुवार को पिछले 24 घंटों में 3.14 लाख से अधिक लोग संक्रमित हुए जो कोरोनावायरस का वर्ल्ड रिकॉर्ड है। वहीं 1 दिन में कोरोना से मरने वालों की संख्या 2100 से अधिक हो गई। इन दोनों आंकडोँ  ने स्पष्ट किया है कि हालात बेहद चिंताजनक हैं।  देश के महाराष्ट्र, यूपी, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक जैसे राज्य कोरोना की इस लहर से बहुत अधिक प्रभावित हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण के अनुसार देश के 146 जिलों में स्थितियां बहुत गंभीर हैं जहां संक्रमण की दर 15% है। स्थितियों की भयावहता इससे समझी जा सकती है कि अस्पताल में बैड कम पड़ रहे हैं। जीवन रक्षक दवाइयों की मारामारी है। ऑक्सीजन की पर्याप्त व्यवस्था का अभाव है और गंभीर मरीजों की संख्या बहुत अधिक है।

     वैज्ञानिकों का मानना है कि संक्रमण की इस घातकता से वैक्सीन ही लोगों को बचा सकता है। किन्तु  बावजूद इसके कि केंद्र सरकार ने सरकारी अस्पतालों और टीकाकरण केंद्रों से निशुल्क वैक्सीन उपलब्ध कराई, लोगों में वैक्सीन लगवाने के प्रति उदासीनता देखी गई। यह वास्तव में बेहद चिंताजनक स्थिति ही कही जाएगी। वस्तुतः वैक्सीन के बारे में कांग्रेस, सपा, एआईएमआईएम और मोदी विरोधी अन्य राजनीतिक पार्टियों ने इतना भ्रम फैलाया कि लोगों में साइड इफेक्ट होने का डर व्याप गया। दूसरी तरफ कांग्रेस के बड़े  राजनेताओं ने कहा कि सरकार को कोवैक्सीन की जगह आम लोगों को कोवीशील्ड लगवाना चाहिए क्योंकि कोवीशील्ड ज्यादा सुरक्षित है, तो किसी ने कहा कि वैक्सीन के लगवाने से लोग नपुंसक हो सकते हैं। किसी ने कहा मोदी अपने वोटों की संख्या बढ़ा रहे हैं। अखिलेश यादव ने कहा यह भाजपा वैसीं है मैं नहीं लगवाऊंगा (अभी वे लगवा चुके हैं।)वस्तुतः किसी ने इसे मोदी वैक्सीन का नाम ही दे दिया। कितनी हास्यास्पद बात है कि जीवन रक्षक वैक्सीन के संदर्भ में विपक्षियों ने मनगढ़ंत बातें कर लोगों को भ्रमित किया जबकि आज की स्थिति में वैक्सीन ही संजीवनी बनकर लोगों की जान की सुरक्षा कर रही है।           

     वर्तमान में भारत में 60 साल से ऊपर आयु के लगभग 10 करोड़ वरिष्ठ नागरिक हैं। सरकार ने कोरोना फ्रंटलाईन वर्कर्स और कोरोना वारियर  के बाद वरिष्ठ नागरिकों को प्राथमिकता देते हुए निशुल्क वैक्सीनेशन हेतु आमंत्रित किया था। सरकार के इस संवेदनशील निर्णय के बाद भी लगभग आधे वरिष्ठ नागरिकों ने टीका लगवाने में रुचि नहीं दिखाई जो चिंताजनक है। कितनी विडंबना है कि जो लोग भारत की स्वदेशी वैक्सीन को ज्यादा असरदार नहीं मान रहे थे उन्हें अब समझ में आ गया होगा कि भारत की स्वदेशी कोवैक्सीन सबसे ज्यादा असरदार साबित हुई है।  दुनिया भर में भारत आज सबसे कम समय में 10 करोड़ लोगों को वैक्सीनेट करने में सबसे तेज गति वाला देश है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के अनुसार भारत बायोटेक द्वारा बनाया गया कोवैक्सीन, वायरस के मल्टीवेरिएंट और डबल म्यूटेंट के विरुद्ध भी असरदार है। निश्चित ही जिन लोगों ने यह वैक्सीनेशन लगवाया है वे कोरोनावायरस के नए प्रारूपों से भी अन्य लोगों की तुलना में ज्यादा सुरक्षित हैं। 

     अगर वैक्सीनेशन के आंकड़ों को समग्र रूप में देखें तो भारत में कुल 10 करोड़ 96 लाख 59 हजार 181 लोगों को पहली डोज दी गई है जिसमें से अब तक 21353 लोग ही संक्रमित हुए जो कुल वैक्सीनेटेड लोगों का मात्र 0.02 प्रतिशत है अर्थात 10000 में मात्र 2 लोग संक्रमित हुए। इसी तरह देश भर में अब तक 1करोड़ 74लाख 69हजार 932 लोगों को दोनों डोज दी जा चुकी हैं। इनमें से केवल 5709 लोगों में ही संक्रमण पाया गया जो 0.3 प्रतिशत है अर्थात 10000 में मात्र 3 लोग संक्रमित हुए। इस प्रकार आज की स्थिति में अब तक कुल 12 करोड़ 71लाख 29 हजार लोगों को वैक्सीन दी गई है, जिनमें से मात्र 27062 लोग ही संक्रमित हुए जिनका प्रतिशत मात्र 0.2 है अर्थात 10000 में से 2 लोग ही ब्रेक थ्रू इन्फेक्शन अर्थात वैक्सीन के बाद संक्रमित हुए हैं।

     निसंदेह भारत निर्मित दोनों वैक्सीन पूर्णता सुरक्षित और निरापद हैं। वस्तुत: इन दोनों वैक्सीन को लगवाने में लोगों को जरा भी हिचक नहीं होना चाहिए। आज की स्थिति में महामारी की दूसरी लहर की मार देश के सभी आयु वर्ग पर पड़ रही है। किंतु इस लहर में सर्वाधिक संख्या उन युवाओं की है जो अपरिहार्य कारणों से घर के बाहर जाने के लिए मजबूर हैं। इन युवाओं को जहां एक ओर आजीविका हेतु बाहर जाना होता है तो उन्हें घर की आवश्यकताओं की पूर्ति और अपने वरिष्ठ परिवार सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी जाना होता है। ऐसे में सरकार का 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी लोगों को नए चरण में टीकाकरण की योजना स्वागत योग्य है। सरकार का यह भी सही निर्णय है कि अब राज्य सरकारें और प्राइवेट अस्पताल कुल उत्पादित वैक्सीन का आधा भाग सीधे खरीद सकेंगे और शेष आधा केंद्र सरकार के पास जाएगा। यह व्यवस्था जहां एक ओर राजनीतिक वितन्डावाद पर रोक लगाएगी वहीं दूसरी ओर टीकाकरण की गति में भी वृद्धि करेगी। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने अपने वैक्सीन कोविशिल्ड को राज्यों और निजी अस्पतालों को बेचने के दामों की घोषणा कर दी है जिसके अनुसार वह राज्यों को वैक्सीन का एक डोज 400 रु में और निजी अस्पतालों को एक डोज 600 रु में देगा। लेकिन जहां एक ओर देश में युवाओं की संख्या बहुत अधिक है वहीं दूसरी ओर सभी युवा आर्थिक रूप से संपन्न नहीं हैं ऐसी स्थिति में राज्य सरकारों को सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके राज्य के सभी युवाओं को वैक्सीन निशुल्क लगाई जाए। वैक्सीन की कीमत पर सोनू सूद की बात ज्यादा उचित लगती है जिसमें उन्होंने कहा कि कारपोरेटस और हर वह व्यक्ति जो अफोर्ड कर सकता है उसे आगे आकर सभी को वैक्सीनेशन कराने में मदद करना चाहिए। धंधा तो कभी और कर लेंगे। सोनू सूद आज देश की ऐसी शख्सियत हैं जिन्होंने कोरोना के प्रारंभिक भयावह दौर में जब देश में दीर्घ अवधि का लॉकडाउन लगा था, तमाम प्रवासी मजदूरों को अपने खर्चे से उनके घर पहुंचाया था।

https://ssl.gstatic.com/ui/v1/icons/mail/no_photo.png

 

शनिवार, 12 दिसंबर 2020

नए भारत की लोकतांत्रिक आवश्यकताओं को पूरा करेगा नया संसद भवन

 

        नए भारत की लोकतांत्रिक आवश्यकताओं को पूरा करेगा नया संसद भवन

                            डॉ हरिकृष्ण बड़ोदिया

        इसमें कोई संदेह नहीं कि आज का संसद भवन स्थापत्य का नायाब नमूना है और यह भी सच है कि लगभग 100 साल पहले बने इस संसद भवन ने देश के लोकतांत्रिक कर्तव्यों के निर्वाह करने में जनप्रतिनिधियों की अब तक बहुत सेवा की है, किंतु समय के साथ हर चीज कमजोर होती चली जाती है पूरी एक शताब्दी के बाद आज यह मानना कि वर्तमान संसद भवन अभी 50 साल और अपनी सेवाएं दे सकता था बड़ी भूल होगी और एक नायाब भवन के साथ अन्याय होगा निसंदेह आज जरूरत इसी बात की थी कि इस भवन को एक यादगार के रूप में संरक्षित किया जाए जो पीढ़ी दर पीढ़ी आम लोगों को अपने गौरवशाली इतिहास को बताता रहे, जो बताए कि 100 साल पहले बने इस भवन ने लोकतंत्र के कई पड़ाव देखे हैं

      गुरुवार को जब नए संसद भवन का शिलान्यास हुआ तब एक बात स्पष्ट हो गई कि वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी एक दूरदृष्टि और पक्के इरादे वाले व्यक्ति हैं नए संसद भवन के निर्माण की रूपरेखा वस्तुतः उन सरकारों को बनानी चाहिए थी जिन्होंने इस देश पर 60 से अधिक वर्षों तक राज किया किंतु केवल सत्ता पर विराजमान रहने के अलावा इस दिशा में कभी सोचा ही नहीं गया प्रधानमंत्री मोदी ने भवन की आधारशिला रखते हुए ठीक ही कहा कि ‘नया संसद भवन भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में एक मील का पत्थर साबित होगा इसका केवल प्रतीकात्मक महत्व नहीं है बल्कि यह बदलते भारत और नए भारत की लोकतांत्रिक आवश्यकताओं की पूर्ति करेगा’

     वर्तमान संसद भवन की आधारशिला 12 फरवरी 1921 को रखी गई थी जिसे बनने में 6 साल लगे थे तथा इस पर कुल 83 लाख रुपए की लागत आई थी इसका उद्घाटन 18 जनवरी 1927 को भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड इरविन ने किया था स्वाभाविक है वर्तमान संसद भवन लंबे समय तक सेवाएं देने में सक्षम नहीं रहेगा जब इस भवन का उद्घाटन हुआ था तब इसमें  तीन महत्वपूर्ण सभाकक्ष थे जिन्हें चेंबर ऑफ प्रिंसेस, स्टेट काउंसिल और सेंट्रल लेजिसलेटिव असेंबली कहा गया था स्वतंत्र भारत में आजादी के बाद इन तीनों को क्रमश: लाइब्रेरी हाल, राज्यसभा और लोकसभा के रूप में तब्दील कर दिया गया था स्वतंत्रता के बाद जैसे-जैसे भवन में प्रतिनिधियों की आवश्यकताओं में इजाफा होता गया वैसे वैसे इसमें अतिरिक्त निर्माण किए जाते रहे

      नए संसद भवन का निर्माण स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूर्ण होने के पहले सन 2022 तक पूरा हो जाएगा लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला का यह कहना कि 2022 में संसद सत्र नए संसद भवन में ही आयोजित होगा इस बात का प्रतीक है कि निर्माण कार्य द्रुतगति से किया जाएगा

 इस निर्माण कार्य में लगभग 2000 लोग प्रत्यक्ष रूप से तथा 9000 लोग अप्रत्यक्ष रूप से काम करेंगे उनका यह कहना कि नया संसद भवन देश की सांस्कृतिक विविधता का प्रदर्शन करेगा सुखद अनुभूति देता है नया संसद भवन 64500 वर्ग मीटर क्षेत्र में बनेगा यह इमारत भूकंप रोधी होगी इसके निर्माण पर लगभग 862 करोड रुपए खर्च किए जाएंगे इस भवन के सेंट्रल हॉल में देश के 1224 माननीय सांसद एक साथ बैठ सकेंगे इस भवन में 876 सीट वाली लोकसभा और 400 सीट वाली राज्य सभा होगी लोकसभा अध्यक्ष श्री बिरला के अनुसार इस भवन में बेसमेंट भूतल, प्रथम तल और द्वितीय तल होंगे इसकी ऊंचाई भी वर्तमान संसद भवन के बराबर होगी ताकि दोनों भवनों में समरूपता दिखाई दे लोकसभा अध्यक्ष का कहना है कि नए संसद भवन में सभी सांसदों के अलग कार्यालय होंगे जो आधुनिक डिजिटल सुविधाओं से लैस होंगे यही नहीं इसे पेपरलेस ऑफिस बनाया जाना है इसमें सांसदों के लिए एक लोंज और पुस्तकालय, विभिन्न समितियों के कक्ष, भोजन कक्ष और पार्किंग क्षेत्र होंगे यह नया संसद भवन नए भारत की प्रगति का सूचक बनेगा देश के आम नागरिक को इस पर गर्व होगा तो वहीँ यह विश्व पटल पर भारत की भवन निर्माण कला का उत्कृष्ट उदाहरण बनेगा

      किंतु भारत में जब तक किसी भी काम का विरोध ना हो तब तक आपत्ति करने वालों को रोटी हजम नहीं होती है यह सही है कि 10 दिसंबर को नए संसद भवन का प्रधानमंत्री मोदी ने शिलान्यास किया है लेकिन सुप्रीम कोर्ट में लगभग 10 याचिकाएं इसके निर्माण पर आपत्ति की दायर हुई हैं जिन पर निर्णय होना है सुप्रीम कोर्ट ने अभी केवल आधारशिला रखने की इजाजत दी है इसमें सबसे अहम याचिका वकील राजीव सूरी की है, उन्होंने पूरे प्रोजेक्ट के निर्माण और जमीन के इस्तेमाल पर आपत्ति दर्ज की है याचिकाकर्ताओं की आपत्ति है कि संसद भवन वाले इलाके में नई इमारत बनाने पर रोक लगी हुई है अब इन्हें कौन समझाए कि यह रोक किसी अन्य तरह के निर्माण कार्य जो संसद भवन से जुड़े नहीं हैं पर है ना कि नए संसद भवन के निर्माण पर

      वस्तुतः नरेंद्र मोदी के एक के बाद एक उल्लेखनीय कामों से विपक्ष की हर पार्टी हैरान परेशान नजर आ रही है। देश की सांस्कृतिक पहचान को स्थायित्व देने के लिए जहां एक ओर अयोध्या में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय के बाद राम मंदिर निर्माण का काम प्रारंभ हो गया है वहीं गुरुवार को मोदी ने देश के नए संसद भवन के निर्माण की आधारशिला रखकर ब्रिटिश काल में बने वर्तमान संसद भवन को वक्त के झंझावातों  से बचाने और उसे संरक्षित करने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, लेकिन देश के विपक्ष को ये सब रचनात्मक निर्णय पसंद नहीं आ रहे हैं। राम मंदिर निर्माण निर्णय पर विपक्ष ने उतनी मुखर आलोचना इसलिए नहीं की थी क्योंकि उसे हिंदुओं की बेरुखी का डर था किंतु नए संसद भवन के निर्माण पर कांग्रेस की छाती पर सांप लोट गया है। यही कारण है कि उसके महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने ट्वीट कर मोदी को संबोधित करते हुए लिखा 'मोदी जी इतिहास में यह भी दर्ज होगा कि जब अन्नदाता सड़कों पर दो हफ्ते से अधिक समय से हक की लड़ाई लड़ रहे थे तब आप सेंट्रल विस्टा के नाम पर 'अपने लिए' महल खड़ा कर रहे हैं। इस ट्वीट से यह तो स्पष्ट हो गया कि कांग्रेस कितनी हताश है। वह समझ रही है कि संसद भवन का निर्माण देश के लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी जिसका लाभ मोदी को अगले चुनाव में मिलने से नहीं रोका जा सकता। इसी ट्वीट में सुरजेवाला का यह कहना कि 'आप सेंट्रल विस्टा के नाम पर अपने लिए महल खड़ा कर रहे हैं' स्पष्ट करता है कि कांग्रेस को किसी तरह की गलतफहमी नहीं है कि 2024 में पुनः मोदी ही प्रधानमंत्री बनेंगे। यदि ऐसा नहीं होता तो वे यह नहीं लिखते कि 'आप अपने लिए महल खड़ा कर रहे हैं'। वस्तुतः विपक्ष का मोदी के हर काम की आलोचना करना स्वयं के पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है। जो पार्टी 70 साल के शासन में वर्तमान संसद भवन के भविष्य और नई आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नए संसद भवन के निर्माण पर कोई विजन नहीं दे पाई उससे आलोचना के सिवाय और क्या उम्मीद की जा सकती है। जो प्रतिनिधि अपने महल बनाने में ही लगे रहे हों वे संसद के महल को बनाने के बारे में कैसे सोच सकते थे। कांग्रेस के ही जयवीर शेरगिल ने कहा कि ‘यह अंतिम संस्कार के समय डीजे बजाने जैसा है’। अब यह तो शेरगिल जी ही बता सकते हैं किसका अंतिम संस्कार है, वैसे ऐसा नकारात्मक सोच नहीं रखना चाहिए।असल में पूर्व की सरकारों के जिम्मेदार मंत्री और प्रतिनिधियों ने स्वयं की उन्नति के बारे में सोचने पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया होता तो देश की उन्नति के बारे में सोच पाते। आज जब पीएम मोदी देश की उन्नति के बारे में निर्णय ले रहे हैं तो यह सब अखरना स्वाभाविक है।

                                           

 

 .