डॉ. हरिकृष्ण
बड़ोदिया
पुलवामा हमला मोदी के शासनकाल का भीषण और कभी ना
भुलाया जाने वाला पाक प्रायोजित आतंकवाद का निकृष्टतम उदाहरण है जिसमें सीआरपीएफ
के 40
जवानों के प्राणों
की आहुति हुई. यह ऐसा हमला है जिस पर न केवल देश का एक एक नागरिक उद्वेलित हुआ
बल्कि आक्रोश से भरा हुआ है. देश के चारो
छोरों से बदला लेने की आवाजें सुनाई दे रही हैं. हमले पर प्रधानमंत्री की
प्रतिक्रिया कि “पुलवामा हमले के दोषियों को ना केवल बख्शा नहीं जाएगा बल्कि इसका
बदला लिया जाएगा, कब और कैसे यह सेना तय करेगी” ने भारतीय जनमानस में अतिरिक्त जोश
भर दिया है. भारतीय जनमानस की आवाजें चीख चीख कर बदले की गुहार कर रही हैं. उसका
धैर्य यदि कुछ बड़ी कार्यवाही नहीं होती तो टूटना तय है. यह सही है कि हमले के 100
घंटे के भीतर ही
पुलवामा हमले के आतंकी जैश कमांडर गाजी और उसके दो साथियों को मौत के घाट उतार
दिया गया लेकिन यह कार्रवाई ऑपरेशन ऑल आउट के क्रम में ही देखी जा रही है. भारत की
जनता इससे कुछ अलग और कुछ बड़ा चाहती चाहती है जो यह साबित कर सके कि लिया गया बदला
ना केवल विलक्षण था बल्कि उसने दुश्मनों की मंशाओं पर कुठाराघात करने का काम किया
और यह भी कि यह ऐसा बदला हो जिसका कोई उदाहरण ना रहा हो और आगे दुश्मन देश
पाकिस्तान ऐसी जुर्रत नहीं कर सके.
पुलवामा हमले के बाद सेना के 5
जवान और शहीद
हुए जिसका असर देश की जनता पर गंभीर रूप में देखा जा रहा है. साफ है कि हमलों का
सिलसिला किसी भी हमले के बाद थमता नहीं. क्या कोई ऐसा बदला नहीं लिया जा सकता कि
पुलवामा का हमला आखरी साबित हो. जनता पूछ रही है और कब तक हम अपने सैनिकों की जानें
गवांते रहेंगे. जनता परिणाम चाहती है आश्वासन नहीं. भारत की जनता पाकिस्तान को
रोते हुए देखना चाहती है यह कब होगा हरएक के मस्तिष्क में अनुत्तरित प्रश्न है.
मोदी के बदला ऐलान ने पाकिस्तान को इतना डरा दिया कि उसकी घिग्घी बंध गई है. 4
दिनों तक
पाकिस्तान का कोई बयान नहीं आया और जब इमरान का बयान आया तो उससे लगा कि पाकिस्तान
को पुलवामा हमले का कोई अफसोस नहीं है. इमरान ने उसकी भर्त्सना भी नहीं की. बल्कि
इमरान ने कहा बिना किसी सबूत के पुलवामा हमले के लिए पाकिस्तान को क्यों जिम्मेदार
ठहराया जा रहा है. इस मासूमियत पर ठहाका लगाने का मन करता है. यह जानते हुए कि
हमले के दिन ही जैश-ए-मोहम्मद ने इसकी जिम्मेदारी ली थी तब यह कहना कि सबूत नहीं
है बेवकूफी भरा बयान है और यह भी कि जब 26/11 हुआ या भारत के
उरी में 19
जवानों की शहीदी
हुई या पठानकोट हमला हुआ तब भारत ने हर एक हमले के ठोस सबूत दिए तब पाकिस्तान ने
क्या किया. अब हालात बदल चुके हैं हमला पाकिस्तानी आतंकियों ने किए हैं यह भारत दृढ़ता
से कह रहा है. भारत सबूत नहीं देगा क्योंकि हमलावर पाकिस्तान में हैं और यह भी कि
अगर पाक को अपना बचाव करना है तो वह सबूत दे कि हमला उसके आतंकी संगठन जैश नहीं
किया.
हाफिज सईद और मसूद अजहर जैसे आतंकियों को पालने पोषने वाले पाकिस्तान को अब
सबूत नहीं ताबूत दिए जाएं. इमरान को होश में आ जाना चाहिए, उन्हें अपने देश की
जनता के बारे में सोचना चाहिए ना कि भारत और कश्मीर के बारे में. कश्मीर भारत का
अभिन्न अंग है और रहेगा उसे इमरान की सात पुश्तें भी आ जाएं तो जुदा नहीं कर सकती.
वस्तुतः पाकिस्तान कश्मीर समस्या के नाम पर ही देश में आतंक फैलाता है और इसमें
उसका साथ कश्मीर के दोगले और गद्दार नेता, अलगाववादी, बुद्धिजीवी, पत्रकार और भारत
के ख़िलाफ़ बरगलाए गए युवा देते हैं. यहां यह जरूर कहना पड़ेगा कि देश को जितना
नुकसान पाकिस्तान से हो रहा है उससे कहीं अधिक इन कश्मीरी पाक परस्तों से हो रहा
है. चाहे फारूक अब्दुल्लाह हो या उमर अब्दुल्ला या महबूबा हो या सैफुद्दीन सोज हो या
सारे के सारे अलगाववादी हों, ये पाक परस्त
लोग अपना उल्लू सीधा करने के लिए ना केवल पाकिस्तान का गुणगान करते हैं बल्कि पाक आतंकियों के लिए भारत में हमला करने के लिए
सहायता करते हैं. पाकिस्तान से अरबों की सहायता पाकर ये ही भारतीय सेना पर 500
-500 रु. की दिहाड़ी पर
सेना पर पत्थर फिकवाते हैं. इन्हें वंदे मातरम, भारत माता के नाम से चिढ़ है.
इन्हें भारत के संविधान से चिढ़ है. इन्हें मोदी से चिढ़ है, क्योंकि मोदी
तुष्टीकरण की राजनीति नहीं करते. तो सबसे पहली प्राथमिकता सरकार की यह होनी चाहिए कि
इन देशद्रोहियों को कैसे कमजोर किया जाए. जब तक घाटी में यह फलते फूलते रहेंगे तब
तक कश्मीर की समस्या बनी रहेगी. वहीँ कश्मीर को समस्या बनाए रखने में धारा 370
और 35 A बहुत बड़ी सहयोगी हैं. जरूरत इस बात की है
कि हर हाल में इनको हटा दिया जाए. जिस दिन कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा, 370
और 35A
से हटा ली गई
उसी दिन तथाकथित कश्मीर समस्या अपने आप सुलझ जाएगी. पाक
प्रधानमंत्री इमरान ने यह भी कहा कि वह बदले की कार्यवाही का मुंहतोड़ जवाब देंगे. तो देश की जनता चाहती है कि बदला लिया जाए
जिससे देखा जा सके कि पाकिस्तान कैसा जवाब देता है. इमरान नवाज
शरीफ की तरह ही सेना के एक पपेट प्रधानमंत्री हैं जो सेना अध्यक्ष जनरल बाजवा और
आई एस आई की जुबान बोलते हैं. वह क्या जवाब देंगे पूरी दुनिया जानना चाहती है. बस
जरूरत इस बात की है कि भारत गर्म लोहे पर चोट करे, जितनी देर होगी लोहा ठंडा हो
चुकेगा और फिर कुछ नहीं होगा. अगर कुछ होगा तो वह यह कि लोकसभा चुनाव 2019
में मोदी अपने 2004
के परिणामों को
दौरा नहीं सकेंगे. और यह भी कि बड़ा बदला भी तब ही माना जाएगा जब 40 के बदले पाकिस्तान के 400 हलाक़ हों.
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