एक मजबूत प्रधानमंत्री
और हताश विपक्ष
डॉ. हरिकृष्ण
बड़ोदिया
पुलवामा हमले के बाद देश में
चारों तरफ जहां एक ओर प्रधानमंत्री मोदी से पाकिस्तान से बदला लेने की अपेक्षाएं
बढ़ गई है वहीँ देश का विपक्ष निराश और हताश नजर आ रहा है. कहने को ऑल पार्टी
मीटिंग के बाद ऐसा लगा कि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ देश के सभी
राजनीतिक दल एक मत से सरकार के साथ हैं किंतु जैसे जैसे समय गुजरा वैसे वैसे सबके
चेहरे उजागर होने लगे. प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस हो या देश के अति सीमित क्षेत्र
में अपनी पहचान समेटे हुए कम्युनिस्ट हों या समाजवादी पार्टी हो या बहुजन समाजवादी
पार्टी हो या महबूबा हों या उमर अब्दुल्ला या एक वाक्य में कहें तो सभी मोदी
विरोधी धीरे धीरे सरकार द्वारा लिए जा रहे निर्णयों की आलोचना करने लगे हैं. कारण
साफ है कि लोकसभा चुनाव सिर पर हैं और पुलवामा हमले के बाद सरकार के पाकिस्तानी
आतंकवाद के खिलाफ कठोर प्रहार से देश में मोदी के ऊंचे होते हुए ग्राफ से विरोधी
दल सकते में हैं. यही कारण है कि सभी विरोधी अगर- मगर, किंतु- परंतु के साथ अपने
विचार व्यक्त करते हुए दिखाई दे रहे हैं. ये सब भारत के स्टैंड के विरुद्ध परोक्ष
रूप से पाकिस्तान का बचाव करते नजर आ रहे हैं. इस क्रम में वह पाकिस्तान को कम और
मोदी को ज्यादा कोस रहे हैं.
मोदी के कठोर रुख और निर्णयों से पाकिस्तान अपनी आजादी के बाद पहली बार इतने दबाव
में है कि वह सिवाय बचाव करने के कुछ नहीं कर पा रहा है. बात बात पर परमाणु हमले
की धमकी देने वाला पाकिस्तान आज बातचीत की गुहार लगा रहा है. इमरान खान की बॉडी
लैंग्वेज बताती है कि पाकिस्तान भारत के कठोर रुख से डरा हुआ है. पाकिस्तान के
विरुद्ध उठाए गए कदमों ने उसे बुरी तरह झकझोर कर रख दिया है. पुलवामा हमले
के तुरंत बाद पाकिस्तान को दिए गए मोस्ट फेवर्ड नेशन के दर्जे को वापस लेने के
निर्णय ने मोदी के रुख को स्पष्ट कर दिया कि भारत पाकिस्तानी प्रायोजित आतंकवाद को
नहीं सहेगा. यही नहीं इस दर्जे को वापस लेने के साथ ही भारत ने कस्टम ड्यूटी भी दो
सौ पर्सेंट तक बढ़ा दी. पाकिस्तान की इकोनामी की कमर तोड़ने के लिए ऐसे निर्णय की
पाकिस्तान ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी. यही नहीं सरकार ने जम्मू कश्मीर के
पाकिस्तान परस्त दोगले 18 अलगाववादियों और 155
नेताओं की
सुरक्षा कवच और बड़ी संख्या में उन्हें उपलब्ध वाहनों को हटाकर भी यह संदेश देने
में सफलता पाई कि जो भी पाकिस्तान का समर्थन करेगा उसे सरकार स्वीकार नहीं करेगी.
यहां लोग पूछते हैं की धारा 370 और 35ए कब हटेगी तो यह कहने में कोई संकोच नहीं कि
मोदी एक दृढ़ निश्चयी व्यक्ति हैं और अगर उन्हें मौका मिला और जब परिस्थितियों का
साथ और राज्यसभा में पूर्व पूर्ण बहुमत मिला तो वह दिन दूर नहीं जब कश्मीर को
विशेष राज्य का दर्जा और 370 और 35ए भी हट ही
जाएगी. यही नहीं सरकार ने एक बड़ा निर्णय कर पाकिस्तान को घुटनों पर लाने में
सफलता पाई है. मोदी सरकार ने घोषणा कर दी है कि इंडस वाटर ट्रीटी के आधार पर
पाकिस्तान को मिल रहे अतिरिक्त पानी को भी रोका जाएगा. इसके तहत भारत के हिस्से का
पानी अब पाकिस्तान को नहीं दिया जाएगा. अभी सतलुज, व्यास और रावी नदियों का पानी
पाकिस्तान को मिलता रहा है. सरकार ने निर्णय किया है कि अब वह अपने हिस्से का
अतिरिक्त पानी इन नदियों पर बांध बनाकर पंजाब, जम्मू कश्मीर और हरियाणा को उपलब्ध
कराएगी. इस हेतु पाक जाने वाले पानी को रोकने के लिए डैम बनाने का काम जारी है. स्वाभाविक है कि पाकिस्तान पानी की
समस्या से जूझेगा. पानी रोकने का यह निर्णय एक ऐसा निर्णय है कि पाकिस्तान खून के
आंसू रोएगा. तब उसे समझ आएगा कि जनता की जरूरत पूरी करें या पाकिस्तान की आई एस आई
और सेना की मंशा पूरी करें.
सच्चाई तो यह है कि ऐसे कठोर निर्णयों
की पाकिस्तान तो क्या मोदी विरोधियों ने भी उम्मीद नहीं की थी. यही कारण है कि देश
का विपक्ष भी सकते में आ गया है. यही नहीं लोकसभा चुनावों के मद्देनजर मोदी को
बढ़त मिलती देखकर देश का विपक्ष अब अपने पाकिस्तान के प्रति नरम रुख पर वापस फोकस
करने लगा है नहीं तो कोई कारण नहीं था कि कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला
प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पुलवामा हमले पर सियासत करते. ऑल पार्टी मीटिंग के बाद
आतंकवाद के खिलाफ सरकार के साथ खड़े होने की बात करने वाली कांग्रेस 7
दिन बाद ही मोदी
को निशाने पर ले बैठी. उसने इस बात की परवाह नहीं की कि जो वह कह रही है उसका
प्रभाव आज की स्थिति में जनता पर नकारात्मक ही होगा. छिछले आरोपों से कभी भी बड़े
उद्देश्यों को नहीं पाया जा सकता और आतंकवाद को ढाल बनाकर तो कतई ही नहीं. यह
कांग्रेस को सोचना होगा. यह जानते हुए भी की पुलवामा हमले में जैश के आतंकी थे और
यह भी कि जैश -ए -मोहम्मद ने इसकी जिम्मेदारी ली थी, कांग्रेस ने इन आतंकियों को
स्थानीय आतंकी निरूपित किया जो किसी भी व्यक्ति के गले नहीं उतर सकता. जब सारी
दुनिया पुलवामा के हमले में भारत के साथ खड़ी है तब कांग्रेस का मोदी विरोध उसके दल
हित चिंतन पर प्रश्न खड़े करता है. अपनी
प्रेस कॉन्फ्रेंस में मोदी के, हमले के दिन पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों पर छिछली टिप्पणी कर उन्होंने देश
पर हुए गंभीर आतंकी हमले के मुद्दे को हास्यास्पद बना दिया. जो कांग्रेस जैसी सबसे
पुरानी पार्टी से अपेक्षा नहीं की जा सकती. उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी ने शहादत
का अपमान किया जबकि वे भूल गए कि राहुल गांधी को एयरपोर्ट पर शहीदों को दी गई
श्रद्धांजलि के दौरान मोबाइल ऑपरेट करते हुए पूरी दुनिया ने देखा. उनके नेता सुशील
शिंदे कहते हैं ‘सर्जिकल स्ट्राइक के कारण हमला’ हुआ तो कपिल सिब्बल कहते हैं ‘यह हमला हाइपर नेशनलिज्म का
दुष्परिणाम है’ तो वहीं नवजोत सिंह सिद्धू के मत में यह हमला ‘पाकिस्तान ने नहीं
किया, आतंक का कोई देश नहीं होता’. कांग्रेस की यह कैसी राजनीती है. सुरजेवाला यह
कहते हुए मोदी को कोसते हैं कि ‘सीआरपीएफ पर हमला मोदी की नाकामी है’. ऐसे ही देश
के सारे विपक्षी दल मोदी विरोध में राजनीतिक रोटियां सेंकते नजर आए. विपक्ष को
आलोचना करने का अधिकार है इसमें कोई दो राय नहीं किंतु आलोचना का स्तर क्या हो,
क्या उसे इस पर विचार नहीं करना चाहिए. क्या ऐसा कर विपक्ष पाकिस्तान और उसके
द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का समर्थन नहीं कर रहां. देश की एकता- अखंडता और
राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे को इस तरह विवादित बनाना किसी भी दल को अभीष्ट की
प्राप्ति नहीं करा सकता. पुलवामा हमले के बाद आतंकवाद के इस मुद्दे पर पाकिस्तान
के विरुद्ध आज जब विश्व के अनेक देश जिनमें रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, न्यूजीलैंड,
इजरायल, सऊदी अरब और ईरान जैसे कई देश भारत के साथ खड़े हैं तब विपक्ष मोदी का
विरोध करे, यह ना केवल निंदनीय है बल्कि अक्षम्य है. आज की स्थिति में मोदी
आतंकवाद से लड़ाई में विश्व में एक अहम और अग्रणी भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं.
यह मोदी ही हैं जिनके नेतृत्व के कारण ही आज पाकिस्तान दुनिया भर में अलग-थलग पड़
गया है. वास्तव में मोदी आज एक मजबूत प्रधानमंत्री बनकर उभरे हैं लेकिन देश का
विपक्ष अपनी हताशा से नहीं उबर पा रहा.
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