गुरुवार, 2 जुलाई 2020

धारा 370 के खात्मे ने आतंक और अलगाववादियों की कमर तोड़ी है


         धारा 370 के खात्मे ने आतंक और अलगाववादियों की कमर तोड़ी है
                                
  डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया
                जम्मू कश्मीर की आम जनता कभी पाकिस्तानी आतंकवाद और अलगाववाद से मुक्त नहीं रही संविधान की धारा 370 और 35 के चलते भारत का यह अभिन्न राज्य भारत में होते हुए भी भारत के संविधान से अलग एक विशेष राज्य के रूप में ही सुख सुविधाओं का उपभोग करता रहा यहां के सियासतदां शहंशाहों की तरह इस पर राज करते रहे और जनता गुलामों की तरह जीवन यापन करती रही यह ऐसा राज्य है जहां मुसलमान बहुसंख्यक होते हुए भी संवैधानिक दृष्टी से अल्पसंख्यक हैं और शेष हिंदू यहां अल्पसंख्यक होते हुए भी शेष भारत की  तरह बहुसंख्यक माने जाते हैं संविधान द्वारा प्रदर्शित अल्पसंख्यकों को मिलने वाले  फायदे यहां के बहुसंख्यक मुसलमान उठाते हैं और अल्पसंख्यक हिंदू उनके गुलाम बनाए जाते हैं कुल मिलाकर भारत के इस अभिन्न राज्य को यहां के सियासतदानों ने एक मिनी पाकिस्तान जैसा बना कर रखा और भारत की सरकार को हमेशा सिर दर्द देने का काम किया
    लेकिन 5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने अहम फैसला लेते हुए इस राज्य से धारा 370 और 35 हटाकर विशेष राज्य के दर्जे को खत्म कर दिया जिसका परिणाम यह हुआ कि वहां के राजनेता, पाकिस्तान, आतंकवादी संगठन और अलगाववादी बिलबिला रहे हैं आज स्थिति यह है कि लगभग एक साल से कम समय में यहां के बदलावों ने आम कश्मीरियों को इन जन शोषक परजीवीओं से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया है धारा 370 हटने का जो सबसे गहरा असर यहां के  राजनीतिक नेताओं और अलगाववादियों पर पड़ा है वह अब दिखाई देने लगा है धारा 370 हटाने के बाद मोदी सरकार ने अलगाववादियों को या तो नजरबंद किया  या जेल की सलाखों के पीछे रखा ऐसी स्थिति में अलगाववादियों को अपने एजेंडे को चलाने की संभावना पूरी तरह से खत्म सी हो गई जब से कश्मीर में नए बदलाव आए हैं अलगाववादियों को पाकिस्तानी टेरर फंडिंग से पैसा आना बंद हो गया तो वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार द्वारा मिलने वाली समस्त सुविधाओं पर ताला लगा दिया गया जिससे स्वाभाविक रूप में इन अलगाववादियों की कमर टूटने लगी इसी के चलते अलगाववादियों के सबसे बड़े नेता सैयद अली शाह गिलानी का आल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस से इस्तीफा इसी बात की ओर संकेत करता है कि अब कश्मीर घाटी में इनकी मनमानी नहीं चलने वाली पाकिस्तान भी इन बदले हालातों में कश्मीर में टूटी कमर वाले अलगाववादियों पर ज्यादा भरोसा नहीं कर रहा जिसके चलते उसने अली शाह गिलानी को महत्व देना बंद कर दिया अली शाह गिलानी ने इस बात से नाराज होकर भी ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस से अपना इस्तीफा दिया है यही नहीं पाकिस्तान में ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस द्वारा एक नए व्यक्ति को संयोजक चुना गया जिस के संबंध में गिलानी से सलाह मशविरा नहीं किया गया  इससे भी गिलानी की नाराजी सतह पर आ गई वस्तुतः अब अलगाववादियों में गंभीर फूट पड़ चुकी है धारा 370 हटने के बाद इन अलगाववादियों को ना तो कश्मीर की जनता महत्व दे रही है और ना ही पाकिस्तान महत्व दे रहा है जिससे गिलानी आहत लगते हैं
      90 वर्षीय गिलानी विगत 10 महीनों के 370 रहित कश्मीर के हालातों के बारे में यह जान गए हैं कि अब कश्मीर घाटी में अलगाववाद की जड़ें कमजोर हो चली हैं क्योंकि अब ना तो पाकिस्तानी फंड मिलेगा और ना ही वे यहां अब युवाओं और बच्चों को बरगला कर सेना पर पत्थर फिकवाने का काम करा सकेंगे वस्तुतः गिलानी ऐसे अलगाववादी नेता रहे जिन्होंने कश्मीर में आतंकवाद का नंगा नाच कराने में महारत हासिल कर रखी थी वे जब चाहते तब कश्मीर में उत्पात होता रहता था गिलानी कश्मीरी युवाओं को पैसे के बल पर बरगलाने और पत्थरबाज गैंग को सक्रिय करने का काम करते थे भाजपा के कश्मीर प्रभारी राम माधव के शब्दों में – ‘इस एक अकेले आदमी ने कश्मीर को हिंसा की आग में धकेल कर हजारों युवाओं की जिंदगी तबाह की है हुर्रियत छोड़ने से उनके गुनाह खत्म नहीं होंगे’ जाहिर है गिलानी हुर्रियत छोड़ने के बाद भी आरोपों से घिरे रहेंगे
    इसमें कोई शक नहीं कि खुर्राट अलगाववादी नेता गिलानी कश्मीर घाटी में ऐसे शख्स रहे जिन्होंने कश्मीर के युवाओं को साथ लेकर अलगाववाद  का संचालन किया हालांकि इससे पहले वे 70 के दशक में लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास करते थे और चुनावों में भाग लेते रहे थे पर 80 के दशक में वे कश्मीर घाटी में अलगाववाद की पहचान बन गए थे यही नहीं दिल्ली में पाकिस्तान एम्बेसी में उनकी उपस्थिति के बिना कोई कार्यक्रम नहीं होता था अब जब वे यह महसूस करने लगे कि बदली हुई परिस्थितियों में वे कश्मीर में हुर्रियत का कोई आंदोलन खड़ा नहीं कर सकते उन्होंने खुद को अलग करना ही बेहतर समझा दूसरी ओर केंद्र शासन की सख्तियों ने भी वहां के राजनेताओं सहित भारत विरोधी एजेंडा चलाने वालों पर लगाम कसी है इसी वजह से न केवल अलगाववादी बल्कि आतंकवादी गतिविधियों पर शिकंजा कसता चला जा रहा है कश्मीर में सेना को आतंकवाद के खिलाफ खुली छूट और आम नागरिकों की बेहतरी के लिए अनेक जन कल्याण योजनाओं के कारण राज्य की तस्वीर बदल रही है पिछले 1 महीने में सेना ने हिजबुल कमांडरों सहित लगभग 110 आतंकवादियों को मौत के घाट उतार दिया है जिससे वहां आतंकवादी भी खौफ में हैं अब सेना ने कश्मीर को आतंकवाद मुक्त क्षेत्र बनाना शुरू कर दिया है अब सारे लोभ लालचों के बावजूद युवा आतंकवाद की तरफ मुंह करने की बात नहीं सोचते वे देश की मुख्यधारा में शामिल होना ज्यादा बेहतर समझ रहे हैं दूसरी ओर जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश बन जाने के कारण सत्ता के सारे सूत्र दिल्ली के पास आ गए जिससे आम कश्मीरी नागरिक को ज्यादा सुविधाएं मिल रही हैं
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