प्रधानमंत्री ने चीन को विस्तारवादी कहकर करारा
तमाचा जड़ा
डॉ. हरिकृष्ण
बड़ोदिया
प्रधानमंत्री मोदी का अचानक लेह दौरा ना केवल
देश बल्कि दुनिया भर के लिए आश्चर्य भरे एहसास से कम नहीं रहा। जब भारत और चीन के
बीच तनाव है और सीमा पर दोनों देशों की सेनाओं की तैनाती है तब ऐसे में देश के
प्रधानमंत्री मोदी का अचानक लेह दौरा न केवल सेना के अधिकारियों और जवानों के लिए प्रोत्साहन और हौसला अफजाई का सबब बना बल्कि देश
वासियों के लिए यह आश्वासन भी है कि देश उनके नेतृत्व में सुरक्षित है। मोदी का यह
दौरा स्पष्ट करता है कि ना तो वे डरे हैं, न वे छुपे हैं और ना वे सरेंडर हैं,
बल्कि वे जो भी करते हैं हर काम सही समय पर करते हैं। इस दौरे ने न केवल चीन की
परेशानियां बढ़ा दी हैं बल्कि उसे यह स्पष्ट संदेश भी मिल गया है कि भारत किसी को छेड़ता
नहीं और यदि कोई छेड़ता है तो उसे छोड़ता भी नहीं। प्रधानमंत्री मोदी ने इस दौरे
में सैनिकों को संबोधित करते हुए चीन को विस्तारवादी देश बताया और चेतावनी दी कि ‘विस्तारवाद का युग समाप्त हो गया है, अब
विकासवाद का युग है। जब किसी मुल्क पर विस्तारवाद की सनक सवार हो जाती है तो वह
विश्व शांति के लिए किसी खतरे से कम नहीं होता और इतिहास गवाह है ऐसी ताकतें या तो
मिट गईं या रास्ता बदलने के लिए मजबूर हुईं।
वस्तुतः प्रधानमंत्री के चीन को विस्तार वादी कहने के कई पहलू हैं। आज
दुनिया भर के सभी देश जानते हैं कि चीन ने विगत 70 सालों में अपने वास्तविक क्षेत्रफल से दोगुना
क्षेत्र आकार कर लिया है। जमीन हथियाने का यह काम उसने धीरे-धीरे किया। अगर हम
उसकी जमीन हड़प नीति पर विचार करें तो पाते हैं कि उसने 1945
में मंगोलिया पर
हमला कर कोयला भंडार से भरपूर लगभग 12 लाख वर्ग किलोमीटर जमीन हथिया ली। यही नहीं 1997
में उसने
हांगकांग पर आधिपत्य जमा लिया। 1999 में पुर्तगाल की जमीन पर कब्जा किया। यही
नहीं आज भी रूस और चीन के बीच 52 हजार वर्ग किलोमीटर
क्षेत्र पर विवाद चल रहा है, यह अलग बात है कि चीन और रूस के संबंध वर्तमान में
सामान्य हैं। चीन जहां एक ओर भारत से गलवान घाटी पर सीमा विवाद कर रहा है वहीं रूस
के व्लादिवोस्तोक शहर पर अपना दावा जता रहा है। चीन के सरकारी समाचार चैनल
सीजीटीएन
के संपादक
शेन सिवई
ने दावा किया है
कि रूस का व्लादिवोस्तोक शहर 1860 से पहले
चीन का हिस्सा
था। 1950
में चीन ने
तिब्बत पर कब्जा कर लिया और इसका विस्तार भारत की सीमा तक किया। यही नहीं चीन के अत्याचारों
के कारण तिब्बत के नागरिकों ने दूसरे देशों में शरण ली।
तिब्बत पर कब्जे
के कारण चीन भारत की सीमा के नजदीक पहुंच गया। यही नहीं चीन ने उइगर मुसलमानों की बड़ी
आबादी वाले पूर्वी तुर्किस्तान की 16 लाख वर्ग किलोमीटर
जमीन पर कब्जा कर लिया। 1962
में चीन ने भारत
के अक्साई चीन को हड़प लिया। 1967 में चीन ने भारत
की जमीन हडपने के लिए फिर कोशिश की किन्तु सेना के पराक्रम से उसे हार का मुंह
देखना पड़ा। आज की स्थिति में चीन ने भारत की लगभग 43 हजार वर्ग किलोमीटर
जमीन हड़पी हुई है और उसकी यह भूख अभी भी मिटी नहीं है। यही नहीं चीन ने पाकिस्तान
को कर्ज दे देकर उसे इतना कंगाल कर दिया कि वह चीन से प्राप्त कर्ज को कभी वापस
नहीं कर सकता। इसी के चलते चीन ने ‘चीन पाकिस्तान इकोनामिक कॉरिडोर’(CPEC) के नाम पर भारत की सीमा से सटे पाकिस्तान की
जमीन हथिया ली। इस कॉरिडोर के अंतर्गत पाकिस्तान ने चीन से 62
अरब डॉलर का
कर्ज लिया है।
पिछले
दो महीनों से भारत और चीन के बीच गलवान घाटी को लेकर विवाद इतना गहरा गया है कि
दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हैं। चीन की नीति बहुदा यह होती है कि वह धोखे से पड़ोसी देश की सीमा
में घुसता है। यदि वह 50 किलोमीटर आगे बढ़ता है तो विवाद के बाद
समझौता कर 20 से 25 किलोमीटर पीछे हट जाता है और इस तरह 25-30 किलोमीटर जमीन हथिया कर पड़ोसी देश को हानि
पहुंचाता है। वस्तुतः चीन एक शातिर देश है। चीन की
सीमा 14
देशों के समीप
है किंतु वह 23 देशों की जमीन या समुद्री सीमाओं पर दावा
जताता है। आज की स्थिति में वह अब तक दूसरे देशों की 41लाख वर्ग किलोमीटर भूमि पर कब्जा कर चुका है। ऐसी
स्थिति में जब चीन के अधिकांश सीमावर्ती देश चीन की जमीन हड़प नीति से पीड़ित हैं
तब उसे विस्तारवादी देश ना कहा जाए तो क्या कहा जाए। प्रधानमंत्री मोदी ने लेह में किसी देश का
नाम नहीं लिया लेकिन उनके बयान से चीन बिलबिला उठा। चीन ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त
करते हुए कहा कि ‘हम विस्तारवादी सोच नहीं रखते, कई देशों के साथ हमने शांतिपूर्ण
तरीके से सीमा विवाद सुलझाए हैं’। यही नहीं भारत में स्थित चीनी दूतावास ने कहा कि
प्रधानमंत्री मोदी का बयान ‘आधारहीन और अतिरंजित’ है। लेकिन सच्चाई तो यही है कि
प्रधानमंत्री मोदी ने चीन को विस्तारवादी कहकर न केवल करारा तमाचा जड़ा बल्कि ड्रैगन
की पूरी हकीकत दुनिया के सामने खोल कर रख दी। सच्चाई तो यह है कि चीन की इस
विस्तारवादी नीति से दुनिया के कई देश
परेशान हैं।
प्रधानमंत्री
मोदी ने भगवान कृष्ण का उल्लेख करते हुए चीन को सचेत किया कि ‘हम उन भगवान कृष्ण
के उपासक हैं जो अपने हाथ में मुरली भी रखते हैं और जरूरत पड़ने पर सुदर्शन चक्र
भी रखते हैं, और उसका प्रयोग भी करते हैं’। स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री मोदी ने चीन
को कड़े शब्दों में शांति सन्देश और युद्ध की चेतावनी दे दी कि हम शांति तो चाहते
हैं किंतु वक्त आने पर युद्ध से भी पीछे नहीं हटेंगे। इस पर चीन ने अपनी
प्रतिक्रिया में कहा कि ‘हमें (दोनों पक्षों को) कोई ऐसा काम नहीं करना चाहिए
जिससे विवाद और बढे’। वस्तुतः चीन खुली आंखों और कानों से देख और सुन रहा है कि
भारत चाहता है कि बातों से सीमा विवाद का हल निकल आए किंतु यदि ऐसा नहीं होता है
तो भारत ने सीमा पर जल, थल और नभ में सामरिक मोर्चाबंदी भी शुरू कर दी है। चीन यह भी
जानता है कि प्रधानमंत्री जो कहते हैं वह करते हैं, और यह भी जानता है कि विश्व की
कई शक्तियां युद्ध काल में भारत के साथ खड़ी दिखाई देंगी। अमेरिका ने भी चीन के
विरुद्ध अपने युद्धपोत दक्षिण चीन सागर में तैनात कर दिए हैं जो चीन की दादागिरी
को किसी चुनौती से कम नहीं है तो रूस से भारत ने अभी-अभी 33
फाइटर जेट
विमानों का सौदा किया है। वहीं फ्रांस से राफेल की पूर्ति इस महीने के अंतिम
सप्ताह में होने जा रही है। स्पष्ट है कि भारत चीन के सामने एक योद्धा की तरह खड़ा
है जिस की सेना ने 67 में चीन पर जीत , 71 की जंग में पाकिस्तान पर विजय हासिल की और 99
में कारगिल में
पाकिस्तान को फिर से धूल चटाई। वस्तुतः प्रधानमंत्री ने अपने एक्शन से यह स्पष्ट
कर दिया है कि भारत अब 1962 का भारत नहीं। यह ऐसा नया भारत है जिसकी सेना
ने सर्जिकल और एयर स्ट्राइक कर दुश्मन देश पाकिस्तान को सबक सिखाया है। आज की
स्थिति में चीन भारत से सीमा विवाद के मुद्दे पर लगभग अकेला पड़ गया है। अब उसे
निर्णय करना है कि वह युद्ध में जाए या फिर कुटनीतिक शांतिपूर्ण वार्ताओं से
समस्या का समाधान निकालेI
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