उम्र दराज
नेताओं पर इसलिए भरोसा करती है कांग्रेस
सोमवार को
दोपहर 1:30 बजते बजते यह खबर
आना की अशोक गहलोत के समर्थन में 109
विधायक हैं कांग्रेस के लिए सुकून की बात थी किंतु मंगलवार
दोपहर को कांग्रेस हाईकमान ने राजस्थान के युवा, ऊर्जावान और अच्छे जनाधार वाले नेता सचिन
पायलट को ना केवल उप मुख्यमंत्री पद से हटा दिया बल्कि उन्हें राज्य के अध्यक्ष पद
से भी मुक्त करते हुए उनके दो समर्थक मंत्रियों को भी पद मुक्त कर दिया। यह समाचार
राजस्थान में कांग्रेस सरकार के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह अंकित कर गया। वस्तुतः कांग्रेस ने
अपनी सरकार पर आए संकट को फौरी तौर पर हल तो कर लिया किंतु यह किसी से छिपा नहीं
है कि सचिन पायलट ने कांग्रेस के सामने एक बड़ी समस्या खड़ी कर दी है। 200 सदस्यों वाली
विधानसभा में आज की स्थिति में कांग्रेस भले ही यह बता रही है कि उसके साथ 109 सदस्य हैं और सरकार
पर कोई संकट नहीं है किंतु सचिन पायलट ने अशोक गहलोत को बिना किसी आधार के चुनौती
दी होगी यह मानना कतई उचित नहीं है। सचिन पायलट को इतना अंदाजा और भरोसा तो होगा
ही कि यदि वे गहलोत को चुनौती दे रहे हैं तो उसके पीछे पर्याप्त समर्थन उनके पास
है। इस आधार पर कहा जाए तो गहलोत सरकार आज की स्थिति में असमंजस की सरकार ही है कि
पता नहीं कल क्या होगा।
कांग्रेस वैसे तो अपने
जनाधार में लगातार पतन से जूझ रही है किंतु जहां उसकी सरकारें हैं वहां
ऐसी परिस्थितियों ने उसे और अधिक परेशान करके रख दिया है। इसके लिए जिम्मेदार यदि
कोई है तो वह कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व ही है। कौन नहीं जानता कि
सचिन पायलट ने 2018 में कांग्रेस को दोबारा सत्ता में लाने के लिए जी तोड़ मेहनत की
थी। उन्होंने कांग्रेस के उलझे हुए समीकरणों को हल करने में जो ऊर्जा लगाई थी उसी
का परिणाम था कि राजस्थान के गुर्जर और मीणा के बीच की दूरी कम हुई थी जिसके
परिणाम स्वरूप कांग्रेस को 20 से 25 सीटों का फायदा हुआ था। राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष होते हुए
उन्होंने कांग्रेस को जो सफलता दिलाई उसी का परिणाम था कि कांग्रेस सत्ता में
वापसी कर सकी। यही नहीं चुनाव प्रचार के दौरान सचिन पायलट राजस्थान में
प्रमुख प्रचारक की भूमिका में थे जिसका सीधा अर्थ था कि यदि कांग्रेस सत्ता में
आती है तो सीएम सचिन ही होंगे जिसका खासा असर युवाओं पर हुआ था। यही कारण था कि
सचिन को अन्य नेताओं की तुलना में अधिक पसंद किया गया। किंतु जब कांग्रेस सरकार
बनाने की स्थिति में पहुंची तब उसने सचिन पायलट को दरकिनार कर दिया और सचिन को मन
मसोसकर राजस्थान का उप मुख्यमंत्री पद स्वीकार करना पड़ा। यहीं से सचिन की मन:स्थिति
हाईकमान के प्रति सकारात्मक नहीं रही। सचिन को मुख्यमंत्री न बनाए जाने से यह
संदेश पूरी तरह से स्पष्ट हो गया कि कांग्रेस आलाकमान युवा नेतृत्व को महत्व नहीं
देती। वस्तुतः इसके पीछे यही कारण है कि आलाकमान यह कतई नहीं चाहता कि उसकी पार्टी
में कोई युवा सशक्त होकर उसे चुनौती देने की स्थिति में आ जाए। वस्तुत कांग्रेस उम्र दराज लोगों पर इसलिए भरोसा करती है, क्योंकि वह
जानती है कि उम्र दराज नेता कांग्रेस नेतृत्व को चुनौती देने की कूबत नहीं रखते। यही कारण था कि कांग्रेस ने
मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य के स्थान पर कमलनाथ और राजस्थान में सचिन पायलट की
जगह अशोक गहलोत को राज्य की बागडोर सौंपी।
सचिन पायलट ने
सरकार के गठन के समय विषघूंट पीकर भी अपनी निष्ठा कांग्रेस में व्यक्त की किंतु अशोक गहलोत निरंतर उनके पर कतरने
का कोई मौका
नहीं छोड़ते रहे। सरकार गठन के बाद से ही गहलोत सचिन पायलट को दरकिनार करने की
अपनी कारगुजारी में लिप्त रहे। बताया जाता है कि गहलोत ने सचिन को कभी महत्त्व
नहीं दिया। उप मुख्यमंत्री होते हुए भी उन्होंने कभी उनके कामों में सहयोग नहीं
किया। सचिन जो भी करना चाहते उस में अवरोध पैदा करना उनकी आदत बन गई। कहा तो यहां
तक जाता है कि सचिन छोटे-मोटे ट्रांसफर करने में भी अपने को अक्षम महसूस करते थे।
सचिन के अपमान की इंतहा तो तब हो गई जब पार्टी विधायकों की खरीद-फरोख्त से संबंधित
मामले में पुलिस ने उन्हें जांच में शामिल होने का समन थमा दिया। और यह बिना गहलोत
की सहमति के संभव नहीं था क्योंकि गृह मंत्रालय मुख्यमंत्री के पास ही है। बताया
तो यह भी जाता है कि जिस दरवाजे से मुख्यमंत्री और स्पीकर विधानसभा में प्रवेश
करते हैं उस दरवाजे से सचिन पायलट को प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी। कुल मिलाकर
गहलोत ऐसा कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देते थे जिससे सचिन का अपमान होता। वस्तुतः जो स्थिति
मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य की कर दी गई थी वैसी ही स्थिति राजस्थान में सचिन
पायलट की थी। मध्यप्रदेश में कमलनाथ ने ज्योतिरादित्य को ना तो प्रदेश कांग्रेस
अध्यक्ष बनने दिया और ना ही उन्हें राज्यसभा में भेजने के बारे में सकारात्मक रुख
दिखाया। अपमान का यह आलम की कमलनाथ ज्योतिरादित्य को सार्वजनिक तौर पर चुनौती देते
कि “जो बने वह कर
लो”, नतीजा सबके
सामने है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार का पतन हो गया। वहीं राजस्थान में
अशोक गहलोत सचिन पायलट की उपेक्षा में इतने मशगूल हो गए कि सचिन को महत्वहीन बनाने की जुगत
में जुट गए जिसका परिणाम आज यह है कि आज कांग्रेस एक सशक्त युवा, ऊर्जावान और
जनाधार वाले नेता से वंचित हो गई है। कहा जा सकता है कि कांग्रेस आलाकमान भी नहीं
चाहता कि उनके रहते हुए उनके दल में कोई युवा नेता शक्तिशाली और प्रभावी हो
क्योंकि उन्हें डर लगता है कि किसी दिन यही नेता उन्हें खुलकर खुली चुनौती देने आगे आ सकता है। कांग्रेस
रूपी राजनीतिक दल आज पारिवारिक नेतृत्व में सिमट कर रह गया है। यही कारण है कि
युवा और स्वाभिमानी वर्ग के नेता स्वयं को कांग्रेस में उपेक्षित और अपमानित महसूस कर रहे हैं जिसकी वजह से
एक-एक कर नेतागण अपना अलग रास्ता खोजने की राह पर आगे बढ़ रहे हैं। असम के हेमंत बिश्वाशर्मा, मध्यप्रदेश
के ज्योतिरादित्य सिंधिया, गुजरात के अल्पेश ठाकोर और अब सचिन पायलट सभी की कहानी अपमान और
उपेक्षा की कहानी है।
वस्तुतः
कांग्रेस की दिक्कत केवल राजस्थान में नहीं है बल्कि पूरे देश में उसकी स्थिति
कमजोर से कमजोर होती जा रही है। कर्नाटक और मध्य प्रदेश में सत्ता गंवाने का दोष
राज्य नेतृत्व की अक्षमता से अधिक शीर्ष नेतृत्व की अक्षमता है। लेकिन इसे कोई
स्वीकार नहीं करता। आज पार्टी के दिग्गज भी चिंतित होते देखे जा रहे हैं। कपिल
सिब्बल और शशि थरूर ने एक एक कर राज्यों में सत्ता गंवाने पर अपनी चिंता सार्वजनिक
तौर पर जाहिर की है। सच तो यह है कि आज कांग्रेस नेतृत्व डरा हुआ है और डर इतना व्यापक है की अपने
ही निष्ठावान नेताओं की सलाहों से भी डरता है, अगर ऐसा नहीं होता तो शीर्ष नेतृत्व जून में संजय
झा को प्रवक्ता पद से निष्कासित नहीं करता। कौन नहीं जानता कि संजय झा बड़ी संजीदगी और मजबूती से कांग्रेस का पक्ष रखने के
लिए जाने जाते हैं। यही नहीं संजय झा को पार्टी से निलंबित इसलिए कर दिया गया क्योंकि
उन्होंने ट्वीट कर कांग्रेस नेतृत्व को सुझाव दिया था कि सचिन पायलट को राजस्थान
का सीएम बना देना चाहिए और अशोक गहलोत को संगठन की बड़ी जिम्मेदारी सौंपना चाहिए।
स्पष्ट है कि कांग्रेस का शीर्ष पारिवारिक नेतृत्व किसी भी ऐसी
सलाह को नहीं मानता जिससे उसका महत्व कम हो जाए। हालांकि राजस्थान में आज की
स्थिति में संकट टल गया है किंतु यह कहना
कठिन है कि यह संकट पूरी तरह से टल गया है और राजस्थान में कांग्रेस आने वाले समय में निर्विघ्न सरकार चला पाएगी। यदि आने वाले समय में
कर्नाटक और मध्य प्रदेश की तरह राजस्थान में भी कांग्रेस सत्ता से बेदखल होती है तो यह पूरी तरह
शीर्ष नेतृत्व की अक्षमता ही मानी जाएगी।
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