राहुल जी नकारात्मक चिंतन के सकारात्मक
परिणाम नहीं होते
डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया
किसी व्यक्ति की छवि बिगाड़ने के लिए आपको तर्कों के स्थान पर कुतर्कों का
सहारा लेना पड़ता है, आपको सच के स्थान पर झूठ का सहारा लेना पड़ता है, आपको
समालोचना के स्थान पर अनावश्यक आलोचना के लिए तथ्यों को तोड़ना मरोड़ना पड़ता है।
इतना सब होने के बाद भी आवश्यक नहीं की उस व्यक्ति की छवि बिगड़ ही जाए। भारतीय
राजनीति में आजकल देश के प्रधानमंत्री की छवि बिगाड़ने का असफल काम किया जा रहा है।
इस कवायद में सबसे आगे देश की पुरानी पार्टी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल
गांधी हैं। जब से मोदी प्रधानमंत्री बने हैं तब से ही कांग्रेस सत्ता विहीन होकर
अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रही है। इस लड़ाई में उसका प्रमुख और एकमात्र
शत्रु मोदी हैं। 2014 से आज तक बीते साढ़े 6
सालों में देश
के प्रधानमंत्री ने देश को दुनिया में सम्मान दिलाने का गंभीर प्रयत्न किया है।
यूपीए काल में जहां दुनिया के प्रभावशाली देशों के लिए भारत केवल एक देश मात्र था
वह आज उनके लिए एक महत्वपूर्ण देश बन गया है जिसकी प्राय: हर बात पर गौर किया जाता
है और इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी ने जो भागीरथी प्रयत्न किए हैं वह किसी से छिपे
नहीं हैं। जिसका फायदा देश को पाक प्रायोजित आतंकवाद से लड़ने या वर्तमान में चीन-भारत
विवाद में भारत को मिल रहा है। वर्तमान चीन-भारत विवाद में प्रमुख रूप से अमेरिका,
रूस, ब्रिटेन, इजरायल और फ्रांस जैसे कई देश भारत के साथ हैं। फ्रांस भारत का रूस
के बाद ऐसा नया साथी है जिसने भारत-चीन विवाद के समय राफेल की पांच विमानों की खेप
देकर अपना समर्थन दिया है। यह कोई छोटी बात नहीं है लेकिन यह सब देश के विपक्ष को
पच नहीं रहा है और विचित्र बात तो यह है कि विपक्षी दलों के नेता यह नहीं जान रहे कि उनके प्रयत्न मोदी की छवि बिगाड़ें न बिगाड़ें
लेकिन उनकी स्वयं की छवि को गंभीर क्षति पहुंच रही है।
वस्तुतः
प्रधानमंत्री मोदी एक दृढ़ प्रतिज्ञ व्यक्ति के रूप में पहचाने जा रहे हैं। विगत
सालों में उन्होंने जो निर्णय लिए वे देश की जनता की आकांक्षा हैं और जिन की
पूर्ति की संभावना किसी और नेतृत्व में संभव नहीं थी। अपने शासन के पहले पांच साल तक मोदी ने उन
योजनाओं पर काम किया जो देश की जनता को सीधे सीधे प्रभावित करती थीं। जैसे-जैसे
मोदी जन आकांक्षाओं की पूर्ति करते गए विपक्ष के मन में मोदी के विरुद्ध आक्रोश और
नफरत बढती गई और जनता उनकी मुरीद होती गई। 2014 के चुनाव से पहले ही मोदी विपक्ष के निशाने
पर इतने अधिक थे कि किसी अन्य चुनाव में कोई अन्य नेता इतना निशाने पर कभी नहीं
रहा। मोदी की बोटी बोटी काट देने वाला सहारनपुर के इमरान मसूद का बयान चुनाव
प्रचार के दौरान इस बात की तस्दीक करता है कि मोदी के विरुद्ध कितना जहर घुला हुआ
था। लेकिन तब देश की जनता एक परिवर्तन चाहती थी जिसमें मोदी फिट बैठते थे। यूपीए के काल में भारत की जनता पाक प्रायोजित आतंकवाद से पीड़ित थी क्यों कि वह देशभर
में बम धमाकों से आजिज आ चुकी थी। ऐसे में वह ऐसे नेतृत्व की चाह रखती थी जो
पाकिस्तान को दृढ़ता से जवाब दे सके, जो जम्मू कश्मीर पर भारत की पकड़ को और
ज्यादा मजबूत कर सके। कश्मीरी अलगाववादियों की बेजा हरकतों को ठिकाने लगा सके। और
मोदी ने इन आकांक्षाओं के अनुरूप काम करने की प्रतिबद्धता अपने चुनाव प्रचार में
की थी। देश में भ्रष्टाचार के शिष्टाचार को रोकने के लिए मोदी ने विशेष प्रयत्न
किए। नोटबंदी कर रसूखदार लोगों के पास पड़ी करोड़ों की नगदी को एक झटके में रद्दी
बनाने का काम किया। बेनामी संपत्ति का कानून बनाकर संपत्ति संबंधी गोरखधंधे को बंद
करना भी एक ऐसा ही महत्वपूर्ण काम हुआ। बैंकों से कर्ज लेकर भागने वाले धन कुबेरों
को कानूनी गिरफ्त में लेने में कोई कोताही नहीं बरतना भी मोदी के पक्ष में गया।
यही नहीं देश के गरीबों को अनेक योजनाओं के माध्यम से उनके जीवन को सरल और सुखद
बनाने के लिए जनकल्याण योजनाएं मोदी सरकार की प्रथम कार्यकाल की उपलब्धियां हैं।
प्राय: लेखों में उनकी पुनरावृत्ति होती है लेकिन यह भी सच्चाई है कि जनधन खाते,
उज्जवला योजना, आवास योजना और शौचालय निर्माण जैसी अनेक योजनाएं हैं जिनके उल्लेख
के बिना मोदी के जन कल्याणकारी नजरिया को स्पष्ट नहीं किया जा सकता। 2014
से 2019
तक के 5
वर्ष के
कार्यकाल में मोदी ने जो काम किए उन कामों ने उन्हें विशिष्ट और सभी का चहेता बना
दिया लेकिन विपक्ष को इन कामों के प्रभावों का मूल्यांकन करना ही नहीं आया। 2019
में जब विपक्ष
आम चुनावों में उतरा तो उसे लगा कि मोदी अच्छे दिनों का भ्रमजाल फैलाकर 2014
में चुनाव जीते
थे अब दोबारा उनका आना मुश्किल है। और यही सोचकर उन्होंने न केवल मोदी का कमजोर
आकलन किया बल्कि उन कामों को इतना हल्का आँका जैसे कि मोदी के इन जनकल्याणकारी कामों का जनता
पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा होगा और जनता उन्हें 2019 में उखाड़ फेंकेगी। मोदी विरोधी प्रसिद्ध
पत्रकार शेखर गुप्ता ने 2019 में अपने एक लेख में यह स्वीकार किया था कि
उन्होंने मोदी के गरीबों और दलितों के लिए किए गए कामों का सही ढंग से मूल्यांकन
नहीं किया। वस्तुतः इन कामों ने मोदी को गरीबों का मसीहा बना दिया और 2019
में विपक्ष तब हतप्रभ
हो गया जब अकेले दम पर भाजपा ने मोदी के कंधों पर सवार होकर 303
सीटें जीतने का
असंभव काम कर दिखाया। ऐसे जनादेश की तो देश के किसी भी राजनेता और राजनीतिक
भविष्यवक्ता को भी उम्मीद नहीं थी। जो विपक्ष 2014 के बाद से जैसे-तैसे 5
साल बिता कर 2019 में सरकार बनने
की अपेक्षा कर रहा था वह धड़ाम से घुटनों के बल गिर पड़ा। लेकिन 2019
के बाद मोदी के
खिलाफ नफरत का जहर इतना घुल गया कि विपक्ष ने मई के महीने से ही मोदी पर जहर बुझे
तीर बरसाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। संसदीय लोकतंत्र का इतिहास बताता है कि प्रायः
आम चुनाव हारने के बाद विपक्षी दल नई सरकार के 1 साल के कार्यकाल में प्राय: सरकार के कामकाजों
की प्रतीक्षा करते हैं और फिर सरकार को घेरने की रणनीति बनाते हैं लेकिन 2019
के मई महीने से
प्रारंभ हुई मोदी सरकार की आलोचना उसके शपथ ग्रहण के साथ ही शुरू हो गई। किंतु
मोदी सरकार ने बिना किसी की परवाह किए अपने मिशन के अनुरूप काम करना जारी रखा।
2014 में प्रचार मंचों से मोदी और भाजपा ने जम्मू
कश्मीर से धारा 370 और 35ए हटाने की जो बात कही उसे उसने 5
अगस्त 2019
को पूरा कर दिया।
यही नहीं मोदी सरकार ने तीन तलाक को खत्म करने का जो वादा किया था वह भी पूरा कर
दिया। और तो और सैकड़ों सालों से चल रहे राम मंदिर के मुद्दे के विवाद का पटाक्षेप
भी सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद होना
मोदी सरकार की उपलब्धि ही कही जाएगी। ये ऐसे निर्णय हैं जो भारतीय इतिहास में कभी
भुलाए नहीं जाएंगे। यही नहीं इस साल के प्रारंभ में
नागरिकता संशोधन कानून लागू करने का इतिहास लिखने वाले मोदी 2014
की तुलना में 2019
में और ज्यादा विपक्ष
के सीधे निशाने पर आ गए। 2019 के चुनावों में कांग्रेस ने मोदी विरोध में ‘चौकीदार
चोर है’ को प्रचार का अमोघ अस्त्र बनाया किन्तु सुप्रीम कोर्ट ने उसकी हवा निकाल
दी। जनता ने भी भरपूर समर्थन देकर मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री पद पर आसीन किया।
और अब 29
जुलाई को राफेल
की पांच विमानों की पहली खेप ने मोदी विरोधियों के हाथों के तोते उड़ा दिए।
हालांकि विपक्ष को आलोचना के लिए फिर से राफेल मिल गया है लेकिन उसकी आलोचना के
आधार इतने थोथे हैं कि वह राफेल खरीद, सेना में उनकी उपयोगिता और दुश्मन देशों को
जवाब देने के लिए आधुनिक युद्धक विमान राफेल पर मोदी सरकार की सोच के आगे बौने ही
कहे जाएंगे। निसंदेह देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल
गांधी ने मोदी को 2019 से ही अपने निशाने पर ले रखा है और अब ट्विटर
और वीडियो वार्ता के माध्यम से वह मोदी की छवि धूमिल करने का कोई मौका हाथ से नहीं
जाने दे रहे किंतु यह पब्लिक है सब जानती है। वस्तुतः राहुल गांधी को यह समझना
होगा कि नकारात्मक चिंतन के सकारात्मक परिणाम कभी नहीं मिलते। उन्हें यह भी समझना
होगा की आलोचना के लिए तथ्यों पर पकड़
होना जरूरी है। वस्तुतः जो लोग राजनीति में रुचि रखते हैं वह अच्छी तरह जानते हैं
कि विपक्ष ने मोदी को जितना नीचा दिखाने की कोशिश की उसे उतना ही ज्यादा नुकसान
हुआ। मोदी की यह विशेषता है कि वह बेवक्त कभी बात नहीं करते और कांग्रेस की यह
कमजोरी है कि वह वक्त का महत्व नहीं समझते हुए कब क्या कहना है नहीं जानती।
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