बीते 75 महीनों में इस स्वतंत्रता दिवस तक देश ने बड़े
बदलाव देखे
डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया
देश का यह स्वतंत्रता दिवस कई मायने में अलग
है। एक तरफ तो कोरोना महामारी का कहर है तो दूसरी तरफ राम मंदिर निर्माण के भूमि
पूजन की विश्वव्यापी खुशी है। अगर कोरोना कहर की बात करें तो 9
अगस्त को लेख
लिखने तक भारत में कुल संक्रमितों की संख्या 21 लाख को पार कर गई, तो वहीँ लगभग 45000
लोगों की मौत हो
चुकी है। सिर्फ अगस्त के प्रथम आठ दिनों में ही संक्रमितों की संख्या में साढ़े चार
लाख की वृद्धि हुई जो चिंताजनक है। जितनी तेज गति से इसका प्रसार हो रहा है उससे
देश का हर नागरिक डरा हुआ है, कि पता नहीं किस दरवाजे से कोरोना हमला करदे कोई
नहीं जानता। मार्च के प्रारंभ में जब दूसरे देशों में संक्रमितों की संख्या हजारों का आंकड़ा छू रही थी तब देश
में 500
संक्रमितों की
संख्या देखकर सुकून मिला था कि हमारा देश सुरक्षित है लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता
गया ना केवल संक्रमितों की संख्या बढ़ती चली गई बल्कि मृतकों की संख्या में भी
वृद्धि होती गई।
आज जब हम स्वतंत्रता दिवस मनाएंगे तो ना तो देश
भर में शिक्षण संस्थाओं में बच्चों की किलकारियां होंगी, ना देश भर में बच्चों के
नारे गूंजेगे, ना मिठाई का वितरण होगा, ना बच्चों के मुख से आजादी के तराने गुनगुनाए
जाएंगे। स्वतंत्र भारत के इतिहास में शायद ही कभी ऐसा हुआ हो। आज पूरे देश की जनता
के मन मस्तिक में कोरोना की भयावहता इतनी व्याप्त है कि सारी अन्य गतिविधियां
जिनमें हर्षोल्लास से पर्व मनाने के भाव होने चाहिए थे उसकी जगह चिंता के भाव
व्याप्त हैं। साल भर के इस महानपर्व पर औपचारिकताओं की पूर्ति के अलावा अगर कुछ
होगा तो वह देश के यशस्वी प्रधानमंत्री का उन कोरोनावरियर्स की उपस्थिति में लाल
किले पर भाषण होगा जो अपना सर्वस्व दांव पर लगाकर कोरोना मरीजों की जान बचाने के
लिए रात-दिन एक किए हुए हैं।
यह
स्वतंत्रता दिवस इसलिए भी बहुत अलग है कि लगभग 492 सालों के कठिन संघर्ष के बाद देश की 100
करोड़ जनता के
आराध्य श्री राम के मंदिर का भूमि पूजन अयोध्या में देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री
मोदी ने किया। वस्तुतः राम मंदिर का निर्माण कोई पत्थरों का मांगलिक भवन नहीं होगा
बल्कि यह देश की अनादिकाल से चली आ रही संस्कृति और सभ्यता तथा प्रभु राम के
आदर्शों का प्रतीक बनेगा। आजादी के बाद से अयोध्या में राम जन्म भूमि के पूजन तक
देश में वर्तमान सरकार से पहले कितनी ही सरकारें आई गईं किंतु तुष्टिकरण की नीति
के चलते
कोई यह हिम्मत
नहीं दिखा सका कि देश के बहुसंख्यक समाज के हित में भी कुछ किया जा सकता है। राम
मंदिर निर्माण में जितनी बाधाएं खड़ी की गईं इतिहास साक्षी है उतनी बाधाएं किसी
अन्य विवादित प्रकरण में नहीं खड़ी की गईं। 100 करोड़ हिंदुओं के साथ धर्मनिरपेक्षता के नाम
पर छल होता रहा। यही नहीं मंदिर विरोधियों ने पूरी कोशिश की कि मंदिर निर्माण के
पक्ष में कोर्ट का निर्णय बहुसंख्य समाज के पक्ष में ना हो। राम को काल्पनिक और
राम रावण युद्ध को कपोल कल्पित कथा बताने वालों ने कोर्ट को यह सलाह तक दे डाली कि
इस मुद्दे का फैसला शीघ्र ना किया जाए क्योंकि इसका फायदा हिंदूवादी राजनीतिक दल
को मिल जाएगा। किंतु होता वही है जो राम ने रच दिया है। अगर यह विश्वास किया जाता
है कि ‘उसकी’ (भगवान या अल्लाह की) मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता तो देश के
हर वर्ग समुदाय और मजहब के लोगों को राम मंदिर निर्माण के निर्णय को उस ‘ऊपर वाले’
की मर्जी मान कर न केवल स्वीकार कर लेना चाहिए बल्कि अनावश्यक विवाद खड़े नहीं
करना चाहिए। राम मंदिर निर्माण के भूमि पूजन अवसर पर पीएम नरेंद्र मोदी के ये
उद्गार कि ‘हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के समय कई कई पीढ़ियों ने अपना सब कुछ समर्पित
कर दिया था, गुलामी के कालखंड में कोई ऐसा समय नहीं था जब आजादी के लिए आंदोलन न
चला हो। देश का कोई ऐसा भूभाग नहीं था जहां आजादी के लिए बलिदान न दिया गया हो। 15
अगस्त का दिन उस अथाह तप का, लाखों बलिदानों का प्रतीक है। स्वतंत्रता की
उत्कट इच्छा उस भावना का प्रतीक है। ठीक उसी तरह राम मंदिर के लिए कई सदियों तक कई
कई पीढ़ियों ने अखंड, अविरत, एकनिष्ठ प्रयास किए हैं। आज का दिन उसी तप, त्याग और
संकल्प का प्रतीक है। राम मंदिर के लिए चले आंदोलन में अर्पण भी था और तर्पण भी था,
संघर्ष भी था संकल्प भी था, जिनके त्याग बलिदान और संघर्ष से आज यह स्वप्न साकार
हो रहा है। जिनकी तपस्या राम मंदिर की नींव से जुड़ी हुई है, मैं उन सब लोगों को
आज नमन करता हूं, उनका वंदन करता हूं’।
वस्तुतः
यह स्वतंत्रता दिवस कोरोना की भयावहता और राम मंदिर निर्माण के भूमि पूजन के लिए
इतिहास में कभी नहीं भुलाया जा सकता। वैसे इसमें कोई शक नहीं कि आजादी के
संघर्ष की कहानी उन असंख्य आजादी के दीवानों के उल्लेख के बिना हमेशा अधूरी मानी
जाएगी जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों को न्योछावर किया, वे सब हमारे पूज्य हैं
और इतिहास के अमर हस्ताक्षर हैं, उनको शत-शत बार प्रणाम है लेकिन आजादी
के बाद के 73 सालों में बहुत कुछ बदला है और बीते 75 महीनों के मोदी कार्यकाल में तो इतना कुछ
बदला है कि एक नया इतिहास बन गया। पिछले साल की स्वतंत्रता दिवस के आसपास जहां एक ओर
जम्मू कश्मीर से धारा 370 और 35ए का खात्मा हुआ तो वहीं तीन तलाक जैसी कुप्रथा
का अंत हुआ। यही नहीं विगत वर्ष का अंत और इस वर्ष का प्रारंभ भी नागरिकता संशोधन
कानून के लिए हमेशा याद किया जाएगा। यह सारे काम कमजोर इच्छाशक्ति वाली सरकार के
वश के नहीं थे। ये सभी ऐसे निर्णय हैं जिनसे 70 सालों से चले आ रहे सामाजिक और सियासी असंतुलन
को खत्म करने में मदद मिली है। मत भिन्नता हो सकती है। एक समुदाय विशेष को ये
अप्रिय हों किंतु क्या देश तुष्टीकरण के मार्ग पर चलता रहता ? आज कश्मीर की स्थिति
में बदलाव ने वहां के नागरिकों के उन्नति के रास्ते खोल दिए हैं। सामाजिक-आर्थिक
दशाओं में तो परिवर्तन हो ही रहे हैं, अधोसंरचना का विकास तीव्र गति से हो रहा है। वहां
70
सालों से राज्य
के कई नागरिक अंधेरे में जीवन यापन कर रहे थे उन क्षेत्रों में शत-प्रतिशत विद्युतीकरण
किया गया है। दुर्गम स्थानों को सड़कों से जोड़ा जा रहा है। निम्नतम स्थिति वाले
वाल्मीकि समाज को सम्मानित नागरिक बनाने का काम किया गया है। यहां ऐसे कई वर्ग थे
जिनके कोई संवैधानिक अधिकार नहीं थे उन्हें नई नीति बनाकर ना केवल नागरिकता प्रदान
की गई बल्कि जीविकोपार्जन तथा चुनावों में भाग लेने के अधिकार दिए गए हैं। लद्दाख को केंद्र शासित
प्रदेश का दर्जा देकर अनेक परियोजनाओं के साथ विश्वविद्यालय की स्थापना तथा मेडिकल
और इंजीनियरिंग कॉलेजों की स्थापना की दिशा में द्रुत गति से काम किया जा रहा है। ये
सारे परिवर्तन लोक कल्याण की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। अब वे लोग जो संसाधनों पर
अपना ही हक मानते थे उन्हें तो तकलीफ होना ही है। वस्तुतः यह स्वतंत्रता दिवस 75
महीनों के मोदी
कार्यकाल के पहले के स्वतंत्रता दिवस से अलग ही नहीं बल्कि विशेष है। अब नए
कल्याणकारी परिवर्तनों की जैसे समान नागरिक संहिता और जनसंख्या नियंत्रण कानून की
प्रतीक्षा है। हो सकता है अगले वर्षों के स्वतंत्रता दिवस इन परिवर्तनों के साक्षी
बनें।
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