मोदी ऐसी शख्सियत हैं जिन्हें कोई इग्नोर नहीं कर सकता
(टाइम मैगजीन मोदी पर हमेशा
विरोधाभासी सामग्री छापती है)
डॉ हरीकृष्ण बड़ोदिया
पिछले सप्ताह
दुनिया की सर्वाधिक लोकप्रिय राजनीतिक मैगजीन ‘टाइम’ ने दुनिया के सबसे प्रभावशाली
100
लोगों की सूची
प्रकाशित की। इसे उसकी मजबूरी कहें या तटस्थ मूल्यांकन कि 2014
से अब तक लगातार
पत्रिका कभी कवर पेज पर तो कभी प्रमुखता से भारत के प्रधानमंत्री मोदी को बराबर
स्थान देती आई है। अब तक उसने मोदी को चार बार दुनिया के प्रभावशाली लोगों की सूची
में शामिल किया है। पिछले सितंबर महीने में उसने मोदी को चौथी बार विश्व की
प्रभावशाली शख्सियत निरूपित किया, लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि हर बार
‘टाइम’ को मोदी में कमियां ढूंढने की लत पड़ गई है। हालांकि यह पत्रिका मोदी को
भारत के प्रधानमंत्री बनने से पहले गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में भी विशेष
महत्व देती रही है। यही कारण है कि ‘टाइम’ पत्रिका मोदी को कभी इग्नोर नहीं कर सकी। लेकिन विशेष बात
यह है कि जहां एक ओर पत्रिका मोदी में विशेषताओं के दर्शन करती है वहीं उनमें जानबूझकर
ऐसी कमियों का उल्लेख करती है जो मोदी की कार्यप्रणाली से मेल नहीं खातीं। इस तरह
का विरोधाभास जिसमें किसी व्यक्ति को एक ही समय में दुनिया का प्रभावशाली बताते
हुए उसकी उसी समय अनावश्यक आलोचना भी करे यह केवल ‘टाइम’ ही कर सकती है।
उदाहरण के लिए 2012 में टाइम मैगजीन ने जब मोदी गुजरात के
मुख्यमंत्री थे तब अपने कवर पेज पर लिखा था 'मोदी मींस बिजनेस'
अर्थात मोदी का
मतलब व्यापार है, जिसका आशय मोदी एक व्यापारी हैं। इस हेड लाइन
के नीचे पत्रिका ने मोदी की योग्यता पर प्रश्न करते हुए छोटे अक्षरों में लिखा 'बट कैन ही लीड
इंडिया,
अर्थात क्या
मोदी देश का नेतृत्व कर सकते हैं? लगता है निश्चित ही पत्रिका ने 2012
में इस संभावना
को भांप लिया था कि आने वाले वक्त में मोदी देश का नेतृत्व कर सकते हैं। तभी उसने
यह प्रश्न उछाला था, क्या मोदी देश का नेतृत्व कर सकते हैं?
पत्रिका ने जब
प्रश्न किया था तब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। आज वे देश के विगत 6
वर्षों से अधिक
से प्रधानमंत्री हैं और दुनिया जानती है कि मोदी ने भारत को गौरवान्वित कराने में
कोई कसर नहीं छोड़ी। आज दुनिया के महत्वपूर्ण देशों से भारत के अच्छे संबंधों के
पीछे मोदी की कार्यप्रणाली और बेखौफ नेता की छवि है। 2014
के चुनावों में
जब उन्होंने एनडीए के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली तब भी विश्व स्तर पर यही अनुमान
था कि एक राज्य का मुख्यमंत्री होना और देश का प्रधानमंत्री होना दोनों में बहुत
अंतर है,
और क्या मोदी
देश का नेतृत्व कर पाएंगे। लेकिन सारी आशंकाएं फिजूल साबित हुईं और मोदी ने देश का
नेतृत्व पिछले सभी प्रधान मंत्रियों की तुलना में अच्छा किया,
जिसका लोहा आज
दुनिया मान रही है।
टाइम मैगजीन ने 2015
में फिर
विरोधाभासी मूल्यांकन किया। टाइम के कवर पेज पर फिर एक बार मोदी थे,
जिसमें लिखा गया
था 'व्हाय मोदी
मैटर्स'
अर्थात मोदी
इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं। लेकिन इसी के नीचे पत्रिका ने लिखा कि 'कैन ही डिलीवर'
क्या वे अच्छा
काम कर पाएंगे? अर्थात पत्रिका को हमेशा आशंका बनी रही कि
मोदी देश का नेतृत्व करने में सक्षम होंगे या नहीं। लेकिन मोदी ने 2014
के बाद लगातार 2019
के चुनावों से
अब तक न केवल देश का नेतृत्व किया बल्कि वैश्विक आतंकवाद के नाश में उन्होंने
दुनिया का नेतृत्व किया। उनके वैश्विक नेतृत्व का परिणाम ही है कि आज समूचा विश्व
आतंकवाद और आतंकवादी देशों के खिलाफ एकजुट है। पिछले साल टाइम पत्रिका ने अपने कवर
पेज पर मोदी के फोटो के नीचे लिखा 'इंडियाज डिवाइड इन चीफ'
अर्थात भारत को
बांटने वाला प्रमुख और इसी के नीचे छोटे अक्षरों में लिखा गया 'मोदी द रिफॉर्मर',
मोदी एक सुधारक।
कहने का तात्पर्य यही है कि टाइम मैगजीन मोदी की गंभीर आलोचना करती है किंतु उनमें
इतनी संभावनाएं देखती है कि पत्रिका उन्हें इग्नोर नहीं कर पाती। 'इंडियाज डिवाइडर
इन चीफ'
एक भारतीय
पत्रकार तवलीन सिंह और पाकिस्तानी नेता व कारोबारी सलमान तासीर के बेटे आतिश तासीर
ने लिखा था। आतिश तासीर की पृष्ठभूमि और उनकी पाकिस्तान के प्रति निष्ठा को देखकर
यही उम्मीद की जा सकती थी कि वह मोदी को देश बांटने वाला प्रमुख ही निरूपित कर
सकते थे। लेकिन इसके विपरीत इसी पत्रिका ने एक लेख में 'मोदी हैज
यूनाइटेड इंडिया लाइक नो प्राइम मिनिस्टर इन डिकेड्स'
बताया अर्थात
मोदी ने भारत को जितना एकजुट किया उतना दशकों में किसी प्रधानमंत्री ने नहीं किया।
इस
बार टाइम मैगजीन ने पुनः सितंबर में मोदी को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप
और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ दुनिया के सबसे प्रभावशाली लोगों में
शामिल किया। लेकिन उसके संपादक कार्ल विक ने मोदी की आलोचना करते हुए लिखा
"लोकतंत्र की विशेषता इसमें होने वाले स्वतंत्र चुनाव नहीं हैं,
वे तो सिर्फ यह
बताते हैं कि सबसे ज्यादा वोट किसे मिले। ज्यादा महत्वपूर्ण उन लोगों के अधिकार
हैं जिन्होंने जीतने वाले के पक्ष में वोट नहीं किया। भारत पिछले 7
दशकों से दुनिया
का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यहां की 1.3 अरब लोगों की आबादी में ईसाई,
मुस्लिम,
सिख,
बौद्ध,
जैन और कई अन्य
धर्म के लोग रहते हैं। सभी भारत में स्वीकार्य रहे हैं,
जिसका दलाई लामा
भी शांति और स्थायित्व का उदाहरण बताते हुए तारीफ करते हैं।“ लेकिन लेख में मोदी
को मुसलमानों के खिलाफ बताते हुए लिखा कि “भारत के लगभग सभी प्राधान मन्त्री
80% हिंदू आबादी से
ही रहे हैं। लेकिन सिर्फ मोदी ने ही इस तरह से शासन किया है जैसे कोई और मायने
नहीं रखता। पहले उनका चुनाव सशक्तिकरण जैसे लोकप्रिय वादे पर हुआ। उनकी
राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी ने ना सिर्फ उत्कृष्टता बल्कि विशेष तौर पर भारत
के मुस्लिमों को निशाना बनाकर बहुलतावाद को भी अस्वीकार कर दिया। मुस्लिम समुदाय
नरेंद्र मोदी की हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी बीजेपी के निशाने पर रहा।"
जबकि सच्चाई
बिल्कुल इसके विपरीत है। मोदी ना तो डिवाइडर इन चीफ हैं और ना बीजेपी मुस्लिम
विरोधी है। असल में देश के मुसलमानों में विश्वास का संकट है। वे मोदी को
प्रधानमंत्री के रूप में अब तक स्वीकार नहीं कर पाए, जबकि 2014 के बाद से ही मोदी देश में 'सबका साथ,
सबका विकास'
की बात करते रहे
हैं। वे मुस्लिम बच्चों की तरक्की के लिए कहते हैं कि उन्हें बदलना होगा, वे तब तक
मुख्यधारा में शामिल नहीं हो सकते जब तक उनके एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में
कंप्यूटर ना हो। सच्चाई तो यह है कि मोदी ने जो कठोर कदम उठाए वह भारत की एकता और
अखंडता के लिए जरूरी थे। अब यदि इन्हें मुस्लिम तबका अपने ऊपर आघात माने तो यह
उसकी मर्जी है। उदाहरण के लिए कश्मीर से धारा 370 को हटाना या मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से
मुक्ति जैसे कानून देश के लिए आवश्यक और बेहतरी के लिए हैं। दूसरी ओर नागरिकता
संशोधन कानून जिसके अंतर्गत विदेशों में प्रताड़ित गैर मुस्लिमों को भारत में
नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान किया गया जिसका भारत के मुसलमानों से कोई संबंध
नहीं है उसे भी भारतीय मुसलमानों ने अपने विरुद्ध माना। यही नहीं जितनी भी जन
कल्याण की योजनाएं हैं उनमें भारत में किसी संप्रदाय से कोई भेदभाव नहीं है। वे
सारी सुविधाएं और लाभ जो अन्य को मिलते हैं, देश के मुसलमानों को भी मिल रहे हैं। तो भी
देश का मुसलमान संतुष्ट नहीं है, और उसका प्रमुख कारण यह है कि देश के
प्रधानमंत्री मोदी तुष्टीकरण में विश्वास नहीं करते। जिसकी पीड़ा मुस्लिम संभ्रांत
वर्ग और कट्टरपंथीयों को अधिक है। जिसकी वजह से उनका,
मोदी विरोध
स्थाई हो गया है। इस विरोध को देश ने शाहीन बाग प्रदर्शन में देखा जिसने शाहीन बाग
के कई किलोमीटर क्षेत्र की जनता के जीवन को अस्त-व्यस्त और त्रस्त कर दिया था। जिस
प्रदर्शन की 82 वर्षीय दादी बिलकिस वानो को टाइम ने
प्रभावशाली लोगों की सूची में मोदी के साथ ही शामिल किया है। क्या यह नहीं माना
जाए कि टाइम ने भी गैरकानूनी धरने प्रदर्शन को मान्यता देकर देश के नागरिकता
संशोधन कानून का विरोध करने वालों को महिमामंडित करने का काम किया है। मोदी की
प्रशंसा के साथ गंभीर आलोचना से किसी को कोई आपत्ति नहीं किंतु देश की एकता और
अखंडता को सोची समझी रणनीति के तहत हानि पहुंचाई जाए तो लगता है कि विदेशी मीडिया
भी भारत के टुकड़े टुकड़े गैंग की भाषा बोल रहा है। लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि
ऐसे प्रयत्नों का ना तो मोदी की सेहत पर कोई असर पड़ता है और ना जनता में उनकी छवि
धूमिल होती है और ना कभी होगी। कौन नहीं जानता कि देश के एकजुट विपक्ष के सारे
प्रयत्न और प्रचार के बाद भी 2019 में मोदी ने दोबारा बहुमत पाया। मोदी ने 2014
में 'सबका साथ,
सबका विकास'
नारा दिया था और
2019
में चुनावों में
सफलता के बाद नारा दिया 'सबका साथ, सबका विकास और सब का विश्वास'। वस्तुतः यह
केवल नारा नहीं बल्कि मोदी का देश के हर नागरिक को आश्वासन है। अब यह लोगों पर
निर्भर करता है कि वे विश्वास करते हैं या नहीं।
.
|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें