रविवार, 18 अक्तूबर 2020

आन्दोलन करो या चीन की मदद लो, 370 तो बहाल नहीं होगी 

 

                आन्दोलन करो या चीन की मदद लो, 370 तो बहाल नहीं होगी 

                                           


                                                            डॉ.हरिकृष्ण बड़ोदिया

        लगभग 40 मिनट के फारूक अब्दुल्ला के 'द वायर' के करण थापर को दिए इंटरव्यू ने यह स्पष्ट कर दिया कि सांप को कितना भी दूध पिलाया जाए वह हमेशा जहर ही उगलता है। कश्मीर पर शेखअब्दुल्ला की तीन पीढ़ियों के शासन करने वाला अब्दुल्ला परिवार न केवल  एक देशद्रोही  है बल्कि पूरा परिवार कश्मीर के लोगों का हित चिंतक नहीं बल्कि अपने स्वार्थ के अंधे कुएं में डूबा शातिर परिवार है। यह ऐसा परिवार है जो अपने स्वार्थ के अलावा और कुछ ना तो जानता है और ना ही करता है। यह ऐसा परिवार है कि जब यह सत्ता में होता है तब देशभक्ति की बड़ी-बड़ी बातें करता है, तब कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानता है लेकिन जब यह परिवार सत्ता से बाहर होता है तब यह पाकिस्तान के गुण गाने लगता है। यह ऐसा गिरगिट है जो इतने रंग बदलता है कि गिरगिट भी शरमा जाए। फारूक पिता पुत्र इतने शातिराना हैं कि इनकी बराबरी कोई नहीं कर सकता। दोनों पिता-पुत्र अपने हितों को आगे रखकर बयान देने में माहिर हैं। कहां किस को संतुष्ट करना है, यह अच्छी तरह जानते हैं। यही कारण है कि एक ही मुद्दे पर पिता-पुत्र कभी-कभी अलग बयान देते देखे जा सकते हैं। जब संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी दी गई थी तब फारूक अब्दुल्ला यूपीए सरकार में मंत्री थे और उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री। तब फारूख अब्दुल्ला ने अफजल की फांसी को सही ठहराया था जबकि मुख्यमंत्री उमर ने कहा था अफजल को फांसी नहीं दी जानी चाहिए थी।

         फारूक अब्दुल्ला खुलेआम पाकिस्तान का समर्थन करने वाले देशद्रोही राजनेता हैं। जब जब भी किसी देशभक्त राजनेता ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को भारत का बताने का प्रयास किया तब तब फारूक अब्दुल्ला पाकिस्तान के साथ खड़े नजर आए। 2017 में उन्होंने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर बयान  दिया "पाकिस्तान ने चूड़ियां नहीं पहनी हैं, उसके पास भी परमाणु बम है। वह भारत को जम्मू कश्मीर के अपने कब्जे वाले हिस्से पर नियंत्रण नहीं करने देगा। फारुख ने कहा पीओके पाकिस्तान का है। हम कब तक कहते रहेंगे कि पीओके भारत का है। यह पीओके उनके (मोदी के) बाप की जागीर नहीं है। पीओके पाकिस्तान में है और यह जम्मू कश्मीर भारत में है।" अब्दुल्ला ने कहा "70 साल हो गए लेकिन भारत पीओके को हासिल नहीं कर पाया, वह (भारत) यदि दावा करता है तो पीओके हासिल कर लीजिए हम भी देखेंगे। पाकिस्तान इतना कमजोर नहीं है, उसने चूड़ियां नहीं पहनी हैं, उसके पास भी एटम बम है।" फारूक अब्दुल्ला के इस  बयान का अगर मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया जाए तो लगेगा कि जिस गति और दमदारी से मोदी सरकार ने पाकिस्तानी आतंकवाद को हर मोर्चे पर सबक सिखाया है उससे कश्मीर के सियासतदां खासतौर से अब्दुल्ला और मुफ्ती  परिवार डरे हुए हैं, उन्हें लगता है कि यदि भारत ने पीओके पर कब्जा कर लिया तो पूरा जम्मू कश्मीर भारत का हो जाएगा और उनकी पहचान समाप्त हो जाएगी। इसलिए खुद डरा हुआ फारूख भारत को पाकिस्तान के परमाणु बम का बार-बार बखान कर डराने का प्रयत्न करते हुए नजर आता है।

      वस्तुत: पाकिस्तानी पिट्ठू अब्दुल्ला परिवार अपने स्वार्थ की खातिर पीओके को भारत का हिस्सा मानने को सपने में भी तैयार नहीं दिखता। अब्दुल्ला कहते हैं “पीओके पाकिस्तान का है, दोनों देश कितने भी लड़ लें यह हकीकत बदलने वाली नहीं है। मैं (फारुख) केवल भारत से नहीं कहता बल्कि पूरी दुनिया से कहता हूं कि जम्मू कश्मीर का जो हिस्सा पाकिस्तान के पास है वह पाकिस्तान का है और जो हिस्सा इस तरफ है वह भारत का है। यह बदलेगा नहीं। भारत कितनी भी लड़ाइयां लड़ लें इसमें बदलाव नहीं होगा”। असल में अब्दुल्ला परिवार को पीओके से ज्यादा खुद की सियासत की चिंता है। लेकिन 5 अगस्त 2019 को फारूक अब्दुल्ला को समझ आ गया होगा कि मोदी सरकार जो कहती है वह करती है और जो नहीं कहती वह जरूर करती है। जब जब भी अनुच्छेद 370 और 35ए हटाने की मोदी सरकार ने प्रतिबद्धता दिखाई तब-तब अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार ने सांप बिच्छू से डराने का प्रयत्न किया। किसी ने कहा कश्मीर जल उठेगा तो किसी ने कहा यह आग से खेलना है और पूरा भारत जल उठेगा। लेकिन ना केवल यह दोनों प्रावधान अब इतिहास का हिस्सा हो गए बल्कि एक नए जम्मू कश्मीर का उदय हुआ जिसमें लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बन गया।

    अगस्त 19 से नजरबंद अब्दुल्ला को 13 मार्च 20 को, उमर अब्दुल्ला को 24 मार्च को और महबूबा मुफ्ती को 13 अक्टूबर को रिहा करने के बाद से अब ये सियासतदां परेशान हैं कि उनके हाथ से राजशाही अब समाप्त हो चुकी है। जिसके लिए यह किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं, भले ही इन्हें देशद्रोही क्यों न कहा जाए। अब्दुल्ला परिवार इस बात को स्वीकार करने को तैयार नहीं है कि अब उनके पास वह कश्मीर नहीं जिसे उन्होंने चार हाथों से लूट कर, जनता के हाथों में आतंकवादियों का सफाया करने वाली सेना पर हमला करने के लिये पत्थर थमाए, जिस पर कभी खुद ने तो कभी बेटे ने राज किया। अब उनके सामने ऐसा कश्मीर है जिसके पास कोई स्वतंत्र दर्जा नहीं है, जिसका कोई अलग झंडा नहीं है, जिसके पास 370 और 35ए के विशेष प्रावधान नहीं हैं। यह ऐसा कश्मीर है जो भारत के अन्य राज्यों की तरह है। जिसके दो भाग हो गए, एक जम्मू कश्मीर तो दूसरा लद्दाख। यह देखकर फारूक अब्दुल्ला परिवार विचलित है। यही कारण है कि फारूक अब्दुल्ला ने 23 सितंबर को द वायर टीवी के करण थापर को दिए इंटरव्यू में देशद्रोही बयानों से भी परहेज नहीं किया। इंटरव्यू  में  फारूख जितना जहर उगल सकते थे उन्होंने उगला। फारूक अब्दुल्ला कश्मीर में धारा 370 और 35ए बहाल करने की मांग करते हैं। इतना स्वार्थी और देशद्रोही नेता दुनिया के किसी भी देश में नहीं मिलेगा जो कहे कि “वह भारत को अपना देश नहीं मानते।“ फारूख कहते हैं "वे खुद को भारतीय नहीं मानते और ना ही भारतीय होना चाहते" यही नहीं वह यहां तक कहते हैं कि "कश्मीरी लोग भी अपने आप को भारतीय नहीं मानते और वह भारत के साथ नहीं रहना चाहते।" लगता है कई सालों तक राज करते हुए अब्दुल्ला खुद को ही कश्मीर मानने लगे। कश्मीरी जनता तो कल भी भारतीय थी और आज भी भारतीय है। हां ना तुम(अब्दुल्ला परिवार) पहले भारतीय थे और ना अब हो। तुम कल भी पाकिस्तानी थे और आज भी पाकिस्तानी हो और ऐसे देश विरोधियों से निपटना मोदी अच्छी तरह जानते  हैं। क्या कश्मीर के सियासतदां नहीं जानते कि भाजपा ने मुफ्ती के साथ मिलकर सरकार बना कर सारे सियासतदाओं को निपटा दिया है। 

फारूक अब्दुल्ला आगे कहते हैं  यदि ईमानदारी से कहूं तो मुझे हैरानी होगी, अगर उन्हें (सरकार को) वहां कश्मीर में कोई ऐसा शख्स मिल जाए जो खुद को भारतीय बोले।“ वे कहते हैं "आप जाइए और खुद बात कीजिए वे(कश्मीरी) खुद को भारतीय नहीं मानते और ना ही पाकिस्तानी। पिछले साल 5 अगस्त को उन्होंने (मोदी ने) जो किया वह ताबूत में आखिरी कील था। फारूख ने यह भी कहा "यह वहां के लोगों का मूड है क्योंकि कश्मीरियों को सरकार पर कोई भरोसा नहीं रह गया। विभाजन के वक्त घाटी के लोगों का पाकिस्तान जाना आसान था लेकिन तब उन्होंने गांधी के भारत को चुना, ना कि मोदी के भारत को।" वे आगे कहते हैं "आज चीन दूसरी तरफ से आगे बढ़ रहा है, अगर आप कश्मीरियों से बात करेंगे तो कई लोग चाहेंगे कि चीन भारत में आ जाए। जबकि उन्हें पता है कि चीन ने मुसलमानों के साथ क्या किया। मैं इस पर गंभीर नहीं हूं लेकिन मैं ईमानदारी से कह रहा हूं जिसे लोग सुनना चाहते हैं।" वस्तुतः फारूक अब्दुल्ला कश्मीरियों की आड़ लेकर अपने मन की बात कहते हुए लगते हैं। वे चाहते हैं कि चीन लद्दाख पर हमला कर दे और भारत उसमें हार जाए जिससे वह चीन की तरफदारी में कसीदे पढ़ने लगें। फारूख ने धारा 370 पर भी विवादित नजरिया रखा, उनका कहना है कि "एलएसी पर जो तनाव है उसका जिम्मेदार केंद्र का वह फैसला है जिसमें जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म किया गया", उन्होंने कहा कि चीन ने अनुच्छेद 370 खत्म करने के फैसले का समर्थन नहीं किया है और हमें उम्मीद है इसे 370 को फिर से चीन की मदद से बहाल कराया जा सकेगा। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव की जो स्थितियां बनी है वह 370 के अंत के कारण बनी हैं। चीन ने कभी इस फैसले को स्वीकार नहीं किया। हम उम्मीद करते हैं कि चीन की मदद से जम्मू कश्मीर में फिर अनुच्छेद 370 बहाल होगा। 5 अगस्त 2019 का 370 को हटाने का फैसला हम कभी स्वीकार नहीं कर सकते।" सच्चाई तो यह है अब्दुल्ला साहब कि तुम्हारे मानने या ना मानने से या तुम्हारे स्वीकार करने या ना करने से कुछ होना जाना नहीं है क्योंकि यह फैसला तुम ना तो कभी स्वीकार करोगे और ना ही यह फैसला बदला ही जाएगा। 

कुल मिलाकर नए कश्मीर से बौखलाए कश्मीर के अब्दुल्ला परिवार और  महबूबा मुफ्ती केंद्र सरकार के खिलाफ आंदोलन खड़ा करने के लिए साथ आ रहे हैं। यही कारण है कि जैसे ही 13 अक्टूबर को महबूबा मुफ्ती रिहा हुईं दोनों बाप बेटे उनके निवास पर पहुंच गए और सरकार के विरुद्ध रणनीति बनाने के लिए प्रतिबद्धता जताने लगे। 5 पार्टियों ने मिलकर गुपकार घोषणापत्र (गुपकार डिक्लेरेशन) तैयार किया। इस घोषणा पत्र के माध्यम से इन लोगों ने अलगाववाद का राग ही नहीं अलापा बल्कि धारा 370 की बहाली, जम्मू कश्मीर और लद्दाख के वर्तमान विभाजन को रद्द करने और प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर सड़कों पर उतरने की चेतावनी दी है।

 वस्तुतः यह चेतावनी तो यूं ही खारिज कर दी जानी चाहिए। जब ये लोग स्वयं को भारतीय ही  नहीं मानते तो किस मुंह से धारा 370 बहाल करने की मांग कर सकते हैं। जब यह लोग भारत के दुश्मन चीन की मदद से बहाली की बात करते हैं तो इन्हें यही करना चाहिए। देखते हैं किसमें कितना दम है। जम्मू कश्मीर के सियासतदानों को समझ लेना चाहिए कि यह मोदी सरकार है। यदि शांत नहीं रहे तो अभी तो 13 महीने के लिए अंदर किया था पता नहीं आगे इतिहास में दर्ज शेख अब्दुल्ला की तरह 10 सालों तक अंदर रहना पड़े।

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