डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया
भले ही पाकिस्तान को अभी आतंकवादी देश
घोषित न किया गया हो किंतु यह एक सच्चाई है कि भारत ने उसकी विश्व समुदाय में अघोषित
आतंकवादी देश के रूप में पहचान बनाने में सफलता पाई है. सही मायने
में पाकिस्तान आतंकवादियों की पुख्ता गिरफ्त में है उसके पास इन से पीछा छुड़ाने
की कोई युक्ति भी नहीं है और ना वह कश्मीर मुद्दे के कारण इसे छोड़ना ही चाहता है. 1965, 1971 और कारगिल युद्ध में शिकस्त
खाने के बाद पाकिस्तान यह अच्छी तरह समझता है कि वह भारत से युद्ध के मैदान में
कभी नहीं जीत सकता यही कारण है कि उसके पास केवल भारत में आतंकवाद फैलाने का
विकल्प शेष बचा है. वह केवल इस्लाम के नाम पर कश्मीरियों को बरगलाते हुए भारत के
सामने समस्याएं खड़ी करने में ही अपना भला समझता है. पाकिस्तान अपने जन्म से लेकर
आज तक ऐसी कोई
उपलब्धि हासिल नहीं कर पाया जो विश्व समुदाय में उसे पहचान दिलाने में कामयाब होती. पाकिस्तान ने अगर कोई पहचान बनाई है तो वह यही कि वह आतंकवाद का प्रायोजक है और यह भी कि कटोरा लेकर भीख मांगने वाला देश है इसके अलावा कुछ नहीं. दूसरे देशों के रहमो करम पर पलने वाला देश कभी कोई तरक्की कर पाएगा ऐसा संभव नहीं.
उपलब्धि हासिल नहीं कर पाया जो विश्व समुदाय में उसे पहचान दिलाने में कामयाब होती. पाकिस्तान ने अगर कोई पहचान बनाई है तो वह यही कि वह आतंकवाद का प्रायोजक है और यह भी कि कटोरा लेकर भीख मांगने वाला देश है इसके अलावा कुछ नहीं. दूसरे देशों के रहमो करम पर पलने वाला देश कभी कोई तरक्की कर पाएगा ऐसा संभव नहीं.
पाकिस्तान पर जब भी आतंकवाद में लिप्त
होने के आरोप लगते हैं वह हमेशा खुद को आतंकवाद से ग्रस्त होने की बात करता है. इसमें कोई शक नहीं
कि पाकिस्तान में पेशावर में मिलिट्री स्कूल पर आतंकी हमले जैसे कई छोटे बड़े
आतंकी हमले वहाँ होते रहे हैं किंतु यह भी एक सच्चाई है कि कई आतंकी संगठन वहां
सक्रिय हैं जिनके सरगनाओं को पाक सरकार, आईएसआई और पाक फौज का समर्थन और संरक्षण हासिल है. यही नहीं
जैश-ए-मोहम्मद लश्कर-ए-तैयबा हक्कानी नेटवर्क जैसे कई ऐसे आतंकी संगठन है जो भारत
और अफगानिस्तान में अपनी कारगुजारियां करते हुए आतंकी गतिविधियां जारी किए हुए
हैं. इन संगठनों द्वारा कश्मीरी युवाओं को प्रशिक्षण देने का काम लगातार जारी है.
आज पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में लगभग 50 से अधिक आतंकवादी प्रशिक्षण
केंद्र जारी हैं जहां कश्मीरी युवकों को आतंक की ट्रेनिंग दी जा रही है.
2014 से पहले पाकिस्तान इतना परेशान और अंतरराष्ट्रीय बिरादरी
में इतना अलग-थलग नहीं था जितना मोदी सरकार के आने के बाद इन 3 सालों में हुआ है. यूपीए के 10 साल के शासन में भारत में
पाकिस्तान की आतंकवादी नीति का सतही तौर पर ही विरोध किया गया और सच कहा जाए तो
यूपीए सरकार ने जुबानी जमा खर्च ज्यादा किया ना कि विरोध के लिए कोई ठोस कदम उठाए.
अक्सर यूपीए सरकार ने पाकिस्तानी आतंकवादी नीति की केवल कड़ी निंदा ही की. यही
नहीं एक तरफ पाकिस्तान भारत के खिलाफ योजनाबद्ध तरीके से कश्मीर में आतंकी
गतिविधियों को बढ़ाता रहा तो दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान भारत को
कश्मीर मुद्दे पर कटघरे में खड़ा करता रहा. यही नहीं पाकिस्तानी सेना भारतीय
सैनिकों के सिर काटती रही और बर्बरतापूर्ण कार्यवाही करती रही और भारत सरकार मौखिक
निंदा कर भारत में आने वाले पाक अधिकारियों और सियासतदानों को विशिष्ट मेहमान का
दर्जा देते हुए उनका स्वागत करती रही. ऐसी नीति के चलते ही कश्मीर के देशद्रोही
अलगाववादी शांत बने रहे. एक दूसरा कारण इन अलगाववादियों के शांत रहने का यह भी रहा
कि इन्हें भारत सरकार से सालाना करोड़ों रुपए की मदद और सुख सुविधाएं प्राप्त होती
रही. लेकिन 26 मई 2014 को मोदी के प्रधानमंत्री बनते
ही स्थितियों में बदलाव दिखाई दिया. प्रधानमंत्री मोदी एक बहुत बड़े कूटनीतिज्ञ के
रूप में सामने आए. मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में पाक प्रधानमंत्री नवाज सहित
दक्षेस के सभी 7 देशों के नेताओं को आमंत्रित कर यह संदेश देने का प्रयत्न
किया कि वह एशिया के सभी देशों से महत्वपूर्ण संबंध चाहते हैं और वे समस्याओं के
निदान में सभी का सहयोग चाहते हैं. इसके लिए उनहोंने कई प्रयत्न किए जिनमें एक
महत्वपूर्ण प्रयत्न यह था कि वह अपनी विदेश यात्रा से लौटते हुए नवाज शरीफ की बेटी
की शादी में भी पहुंचे लेकिन धृष्ट पाकिस्तान इसे भारत की कमजोरी समझता रहा और वह इसे भारत की
यूपीए सरकार की पूर्व स्थापित कश्मीर की नीति की तरह ही मानकर अपनी दोगली नीति का
काम करता रहा जिस पर वर्तमान मोदी सरकार ने मुंह तोड़ जवाब दिया है. प्रधानमंत्री
मोदी और एनआईए चीफ अजीत डोवाल की कठोर नीति ने पाकिस्तान को उसके किए की सजा देना
शुरू किया तो समूचा पाकिस्तान, वहां की
दहशतगर्द तंजीमें, आईएसआई और
सेना बिलबिलाने लगी और इसी के चलते कश्मीर में ना केवल आतंकी गतिविधियों में
बढ़ोतरी हुई बल्कि कश्मीर के पाकिस्तान समर्थक देशद्रोही अलगाववादी भी भारत के
खिलाफ जहर उगलने लगे. यही नहीं ये अलगाववादी पाकिस्तानी फंडिंग के सहारे भारत की
फौज के विरुद्ध पत्थर फिकवाने लगे लेकिन प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह और एनआईए चीफ अजीत
डोभाल ने इन पर नियंत्रण करने के लिए फौज को पूरी छूट दी. यही नहीं आतंकवाद की कमर
तोड़ने के लिए पिछले साल सितंबर में पाकिस्तान के भीतर घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक भी
की जिससे पाकिस्तान और अधिक बिलबिला गया. यूपीए सरकार की नीति के बिल्कुल उलट पाक
आतंकी घुसपैठियों और आतंकियों को बच कर भागने का आज भारतीय सेना कोई मौका नहीं
देती क्योंकि भारत ने अपनी सेना को आतंकवाद से लड़ाई में खुली छूट दी है जिससे
आतंकवाद की कमर टूटने का सिलसिला शुरू हो गया. बीते एक साल में बुरहान वानी और अबू दुजाना जैसे खूंखार
पाकिस्तानी आतंकी संगठनों के जैस और लश्कर के कई कमांडर कश्मीर में ढेर कर दिए गए. आज स्थिति यह
है कि आतंकवादी कश्मीर में आने में खौफ खा रहे हैं. आज पाक आतंकी अपने आकाओं के
निर्देशों की अवहेलना कर रहे हैं. इन आतंकी संगठनों के कश्मीर में कमांडरों के पद
खाली पड़े हैं जो दर्शाता है कि मोदी के पाक आतंकवाद के विरुद्ध उठाए गए कदमों से
कश्मीर में आतंकवाद की कमर टूट रही है. लेकिन कितनी विडंबना है कि भारत का विपक्ष
खासतौर से कांग्रेस इस से खुश नहीं है. वह हमेशा मोदी की कश्मीर नीति की आलोचना
करती है. वह पत्थरबाजों के मानवाधिकारों की पैरवी करती है. वह अलगाववादियों से
मिलकर कश्मीर में शांति बहाली के सूत्र ढूंढती है. वह मणिशंकर अय्यर के माध्यम से
पाक मीडिया से मोदी को हटाने की गुहार करती है. लेकिन अलगाववादियों में आज जितनी
दहशत है स्वतंत्र भारत के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ. आज जेल में बंद 7 अलगाववादी अपनी करतूतों का कच्चा चिट्ठा खोलने को मजबूर
हैं. यूएन में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान को उसके असली चेहरे को आईना
दिखा कर करारा प्रहार किया है जो स्वतंत्र भारत के इतिहास में कभी नहीं हुआ.
पाकिस्तान पूरी तरह से बेनकाब हो गया है. मोदी की कूटनीति ने चीन को भी पस्त किया
है. जिस तरह पाकिस्तान को भारत ने सुधरने के कई मौके दिए, पाकिस्तान से मैत्रीपूर्ण संबंधों के लिए
हमेशा प्रयत्न किए इसी तरह भारत ने चीन से भी मैत्रीपूर्ण संबंधों के लिए मोदी ने
प्रयास किए. मोदी ने चीन के प्रधानमंत्री को भारत आमंत्रित कर यह संदेश देने का
प्रयत्न किया कि सब मिलकर क्षेत्र की प्रगति के लिए प्रयत्न करें. भारत अपने
पड़ोसी राष्ट्रों से अच्छे संबंध चाहता है इसी के तहत उसने चीन के प्रधानमंत्री शी
जिनपिंग को अतिरिक्त सम्मान देते हुए झूला झुलाए लेकिन चीन भी उसके पाकिस्तानी
लगाव के चलते मित्रवत नहीं रह
पाया. डोकलाम विवाद में उसे अपनी कूटनीति से मोदी ने झुकाने में सफलता पाई. 38 दिनों तक चले इस विवाद में भारत ना तो चीन के सामने झुका और
ना ही उसने अपनी सेना पीछे हटाई, आखिरकार
चीन को मुंह की खानी पड़ी. प्रधानमंत्री मोदी ने भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक
सशक्त एवं सक्षम देश बनाने में अपनी उर्जा लगाई लेकिन विपक्ष को यह सब पच नहीं रहा
है. वह लगातार मोदी की आलोचना कर अपनी खोई हुई जमीन प्राप्त करने की कोशिश कर रहा
है लेकिन देश की जनता जानती है कि मोदी के हाथों में न केवल देश सुरक्षित है बल्कि
देश का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान बढ़ा है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें