भारत का कश्मीर जो कभी जन्नत हुआ करता था
विगत 30 सालों से जल रहा है और कब तक जलेगा कहा नहीं जा सकता.
हालांकि यह कहना उचित नहीं होगा कि विगत 3 सालों में कश्मीर में कोई
बड़ा बदलाव आया है लेकिन इतना तो कहा ही जा सकता है कि मोदी सरकार के आने के बाद
कश्मीर के दुश्मनों में हड़कंप मच गया है. यह सही है कि कश्मीर की समस्या का
समाधान गोलियों से नहीं होगा किंतु यह भी उतना ही सही है कि कश्मीरी गद्दारों को लाल
कालीन बिछाकर भी समस्या का समाधान नहीं होगा. विगत स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से
भाषण करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने सही कहा था कि ‘कश्मीर की समस्या का समाधान न गोलियों से होगा और ना
गालियों से बल्कि कश्मीरियों को
गले लगाने से होगा’. इस बात का सीधा अर्थ है कि कश्मीर के अमनपसंद और भारत
के संविधान में विश्वास करने वाले कश्मीरियों के दुख दर्द को समझ कर उन लोगों से बात की जाए जो कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानते हैं. इसी परिप्रेक्ष में भारत सरकार ने वार्ता की एक नई शुरुआत की है.
गले लगाने से होगा’. इस बात का सीधा अर्थ है कि कश्मीर के अमनपसंद और भारत
के संविधान में विश्वास करने वाले कश्मीरियों के दुख दर्द को समझ कर उन लोगों से बात की जाए जो कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानते हैं. इसी परिप्रेक्ष में भारत सरकार ने वार्ता की एक नई शुरुआत की है.
एक बात तो तय है कि सरकार हमेशा गोलियां
बरसाती रहे तो भी समस्या का समाधान नहीं होगा और बंदूकों के मुंह बंद कर दिए जाएं
तो भी समस्या हल नहीं होगा. यही कारण है कि भारत सरकार ने दोनों ही तरह की नीतियों
पर काम करने का मन बना लिया है. एक तरफ उसने सेना को खुली छूट दी है तो दूसरी तरफ
उसने कश्मीर समस्या के स्थाई समाधान के लिए इंटेलिजेंस ब्यूरो के पूर्व निदेशक
दिनेश्वर शर्मा को केंद्र सरकार की ओर से कश्मीरियों से बात करने की कमान सौंपी है, जो कश्मीर के लोगों की वह वैध इच्छाओं को
समझने का प्रयत्न करेंगे. यहां यह स्पष्ट है कि सरकार ने साफ कर दिया है कि
कश्मीरियों की जो ‘लीगल विल’ होगी उसको समझने का प्रयत्न किया जाएगा.
निश्चित ही ऐसा लगता है कि दिनेश्वर शर्मा उन लोगों से बात करेंगे जो कश्मीर में
अमन चाहते हैं. गृहमंत्री राजनाथ सिंह के इस बयान से कि दिनेश्वर शर्मा ही तय
करेंगे कि वह किससे बात करें, से
स्पष्ट है कि दिनेश शर्मा को पूरी आजादी दी गई है किंतु नहीं लगता कि दिनेश्वर
शर्मा हुर्रियत कांफ्रेंस और जेकेएलएफ जैसे अलगाववादी संगठनों से बात करेंगे.
क्योंकि ये अलगाववादी ही हैं जो, जब से
केंद्र में मोदी सरकार आई है तब से रोज कश्मीर में हिंसा फैलाने का काम करते रहे
हैं. तो दूसरी बात यह है कि इन से बात करने का सीधा मतलब इनके महत्व को बढ़ाना
होगा. ये अलगाववादी ही हैं जिन्होंने पाकिस्तानी फंडिंग के चलते हवाला के
जरिए पत्थरबाजों पर 1 साल में 800 करोड रुपए खर्च किए. मतलब साफ है कि पत्थरबाजों को कश्मीर
में सेना की आतंकवादियों से निपटने की कार्यवाहियों में रोड़ा अटकाने के लिए इन
अलगाववादियों ने स्कूली बच्चों और कश्मीरी युवाओं से जहां उनके स्कूल छीन लिए वहीँ
युवाओं से उनकी तरुणाई छीन ली. इन अलगाववादियों को सरकार के कड़े फैसलों के कारण
विगत 30 सालों में पहली बार छठी का दूध याद आया है जिसके तहत कई आज
जेलों में कैद हैं. यह पहली बार हुआ है इन के विरुद्ध एनआईए ने कठोर कार्यवाही की
है. ऐसे में यदि दिनेश्वर शर्मा इन अलगाववादियों से बात करेंगे तो इनके दिमाग
सातवें आसमान पर पहुंचने में देर नहीं लगेगी और हो सकता है कि वह अपनी अवैध मांगों
को मनवाने का प्रयत्न करें. साथ ही यह भी कि इन अलगाववादियों से बातचीत करने का
मतलब होगा कि सरकार उनके सामने घुटने टेक रही है. जो किसी भी दशा में सरकार के अब
तक उठाए गए कड़े कदमों पर पानी फेरने जैसा होगा. एनआईए जो निरंतर कश्मीर के दुश्मन
अलगाववादियों को चुन-चुन कर उनके काले कारनामों की जांच कर रही है यदि दिनेश्वर
शर्मा उन्हीं अलगाववादियों से बात करते हैं तो इससे एनआईए का मोरल डाउन होगा.
वैसे इसमें कोई शक नहीं कि
वर्तमान मोदी सरकार हिंसा पर अंकुश लगाने और कश्मीर में खुशहाली लाने के लिए
संतुलित प्रयास करती नजर आ रही है. यह इस बात से भी स्पष्ट होता है कि अभी-अभी
जम्मू कश्मीर सरकार ने एक अध्यादेश लागू कर कश्मीर की सियासत को हिला कर रख दिया
है. पिछले सालों में कश्मीरी अलगाववादियों और पाकिस्तान परस्त कश्मीरियों ने
कश्मीर में बहुत तबाही मचाई है. पिछले 1 साल में बुरहान वानी के
एनकाउंटर के बाद से अब तक कश्मीर में लगभग 18 हजार करोड़ की संपत्ति का
नुकसान हुआ है जिसमें कश्मीर में सरकारी और गैर सरकारी संपत्तियां शामिल हैं
जिनमें बड़ी संख्या में वहां के स्कूलों को आग के हवाले किया गया. इस नुकसान को
रोकने के लिए जम्मू कश्मीर सरकार द्वारा पारित उस अध्यादेश को राज्यपाल एन एन
वोहरा ने मंजूरी दे दी है जिसके तहत हड़ताल या प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक
संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले व्यक्तियों को 2 से 5 साल तक की कैद और इनके द्वारा हुए नुकसान की भरपाई
प्रदर्शनकारियों की संपत्ति से की जाएगी. मतलब साफ है कि अब सार्वजनिक संपत्ति को
नुकसान पहुंचाने वाले व्यक्तियों को न केवल जेल में डाला जाएगा बल्कि उसकी निजी
संपत्ति से नुकसान की भरपाई की जाएगी. राज्य सरकार ने यह कदम सुप्रीम कोर्ट के
दिशा निर्देशों के तहत उठाया है. इस कदम की जितनी प्रशंसा की जाए कम है लेकिन केवल
अध्यादेश से कानून बनाने भर से कुछ नहीं होगा. बल्कि उसका क्रियान्वयन सही ढंग से
होना आवश्यक है. पहले भी 1985 में सार्वजनिक संपत्ति को
नुकसान पहुंचाने वाले को 1 साल की कैद का प्रावधान था
किंतु उसका गंभीरता से कभी पालन हुआ हो ऐसा बीते वर्षों में दिखाई नहीं दिया.
लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि फिलहाल आए अध्यादेश ने कश्मीर की सियासत और
अलगाववादियों को हिलाकर रख दिया है. अब तक ये अलगाववादी ‘पत्थर मारो और भाग जाओ की सियासत’ के तहत काम कर रहे थे लेकिन वह अब ऐसा
नहीं कर सकेंगे. अध्यादेश का आना स्वागत योग्य है लेकिन इससे बड़ी जवाबदारी महबूबा
सरकार की है कि वह संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले हिंसक लोगों की धर पकड़
कर उन्हें नए कानून के तहत अंजाम तक पहुंचाएं. अगर ऐसा नहीं हुआ तो अध्यादेश लाने
का कोई मतलब नहीं रह जाएगा. बल्कि वह केवल कोर्ट के दिशा निर्देशों की पूर्ति करना
भर रह जाएगा.
निसंदेह मोदी सरकार कश्मीर में शांति बहाली पर
गंभीर नजर आ रही है. उसके संतुलित कदमों से स्पष्ट हो रहा है जहां एक ओर वह बातचीत
का रास्ता खोल रही है वहीं दूसरी ओर वह हिंसा को नियंत्रित करने के लिए उपाय भी कर
रही है. यह दोनों ही कदम दहशतगर्दों और अलगाववादियों को रास नहीं आएंगे लेकिन इतना
तो तय है की इस नीति से कश्मीर की आम अमन पसंद अवाम को फायदा होगा.
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