ऐसा कोई दिन नहीं जाता जिस दिन कश्मीर से यह खबर ना आए कि वहां आतंकियों को खोजने में सेना ने सर्च ऑपरेशन शुरू न किया हो. हर दिन पाकिस्तान आतंकियों की घुसपैठ कराता है और भारतीय सेना उन्हें खोज कर जन्नत पहुंचाती है. यह सिलसिला कमोवेश 30 सालों से जारी है. सैकड़ों भारतीय सैनिक इसमें अब तक शहीद हो चुके हैं किन्तु समस्या का समाधान अब तक नहीं निकला है और कब निकलेगा कहा नहीं जा सकता. असल में यह समस्या 1947 से तब से ही बनी हुई है जब देश के दो टुकड़े हुए थे. और यह समस्या तब और ज्यादा बड़ी होती चली गई जब पाकिस्तान को 1965, 1972 और कारगिल युद्ध में हार का सामना करना पड़ा. एक कमजोर देश पाकिस्तान के सामने हार का बदला लेने का इससे बेहतर रास्ता कोई नहीं मिला कि वह कश्मीर को अशांत बनाए रखे, उसकी आजादी की मांग
करता रहे. पाकिस्तान के इस दुष्कृत्य को समर्थन देने में कश्मीर के सियासतदानों का भी बहुत बड़ा हाथ है.
नेशनल कान्फ्रेंस के नेताओं की पूरी अब्दुल्ला पीढ़ी, शेख अब्दुल्ला, फारुख अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला तो पाकिस्तान के तलवे चाटने वाले ऐसे नेता हैं जो खाते हिंदुस्तान का हैं और गीत पाकिस्तान के गाते हैं. वहीँ पीडीपी के स्वर्गीय मुफ्ती मोहम्मद सईद भी पाकिस्तान के पैरोकार बने रहे. जब भी मौका मिला उन्होंने भारत के ऊपर पाकिस्तान को तरजीह दी. पिछले जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों के बाद उन्होंने कश्मीर में शांतिपूर्ण मतदान के लिए पाकिस्तान और अलगाववादियों का शुक्रिया अदा किया था तब यह बात साफ हो गई थी कि वह भी पाकिस्तान परस्त हैं और अब्दुल्ला कुनबे से किसी तरह अलग नहीं हैं. जहां तक अलगाववादियों का सवाल है तो कश्मीर में उनका एक अलग साम्राज्य है. उनका उद्देश्य ना केवल पूरी तरह से खुला हुआ है बल्कि यह लोग कश्मीर में उग्रवाद पनपाने के लिए कुख्यात भी हैं. तब ऐसे में कोई बचे रहते हैं तो वह घाटी के अमनपसंद नागरिक जो रोज रोज की परेशानियों से मुक्ति चाहते हैं तो जम्मू और लद्दाख की जनता के साथ ही भारत की सवा सौ करोड़ जनता भी जो चाहती है कि कश्मीर भारत की जन्नत बनी रहे. उसके नागरिक भारत के शेष राज्यों की तरह शांति से जीवन यापन कर सकें. लेकिन जब तक कश्मीर के अलगाववादी और वहां के सियासतदां भारत विरोधी बने रहेंगे तब तक ऐसा संभव नहीं है.
देश का
यह भी बड़ा दुर्भाग्य है कि कश्मीर के मुद्दे पर भारत की राजनीतिक पार्टियां भी
कभी एकमत नहीं होतीं. कांग्रेस और मोदी विरोधी पार्टियां गाहे-बगाहे कश्मीरियों की
उल जलूल मांगों का समर्थन करने से बाज नहीं आतीं. जिससे उन लोगों को सिर उठाने का
मौका मिलता है जो कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा नहीं मानते. मणिशंकर अय्यर, खुर्शीद
आलम और चिदंबरम जैसे लोग कश्मीरियों की मांगों का न केवल समर्थन करते देखे जा सकते
हैं बल्कि वे सरकार पर दबाव बनाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते
हैं. अगर सच्चाई देखी जाए तो कांग्रेस ने भारत पर साठ सालों
तक राज किया और अपने शासनकाल में कश्मीरी अलगाववादियों को इतना सिर पर बैठा लिया
कि ये आज भी समस्या बने हुए हैं. कश्मीर को अपनी बपौती समझने वाले फारूक अब्दुल्ला ने पिछले शनिवार को बयान देकर एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि वह जब तक सत्ता में बने रहते हैं तब तक उनका अकीदा भारत के संविधान में रहता है, तब तक वह कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा मानते हैं और जब भी सत्ता से बेदखल रहते हैं तब वे भारत को तोड़ने का समर्थन करने लगते हैं. यह जानते हुए भी कि पाक अधिकृत कश्मीर की जनतापाकिस्तान से मुक्ति चाहती है, वहां के लोग पाकिस्तानी सेना की बर्बरता का शिकार हैं, फारुख ने बयान दिया कि ‘कश्मीर का जो हिस्सा पाकिस्तान का है वह पाकिस्तानका ही है. भारत ने कश्मीर को धोखा दिया है. भारत को जम्मू कश्मीर को और स्वायत्तता देनी होगी तब अमन चैन बरकरार हो पाएगा’. फारुख ने यह भी कहा कि ‘कश्मीर पर पाकिस्तान का भी हिस्सा है अगर हम चीन से बात कर सकते हैं तो पाकिस्तान से क्यों नहीं’. कश्मीर पर बोलते हुए उन्होंने यह भी कहा कि ‘पाक अधिकृत कश्मीर पाक का हिस्सा है और उसे पाकिस्तान से कोई नहीं छीन सकता. कितनी भी जंग हो जाए यह बदलने वाला नहीं.’ कश्मीर किसी के बाप का नहीं कहने वाले फारूक यही नहीं रुके बल्कि वह चीन और पाकिस्तान की तरफदारी करते हुए यहभी बोले कि ‘हम लोग चीन और पाकिस्तान से युद्ध नहीं कर सकते क्योंकि हमारी तरह उनके पास भी एटम बम हैं.’ वस्तुतः फारूक अब्दुल्ला देश विरोधी बयान देकर अपनी प्रासंगिकता बढ़ाना चाहते हैं. हालांकि उनके बयानों का कोई मतलब नहीं है क्योंकि मोदी सरकार का यह स्पष्ट संदेश है कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और उस पर किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता. यही नहीं पीएम मोदी नेतो पाक अधिकृत कश्मीर के आंदोलनकारियों का भी समर्थन किया है.
फारूक के बयानों की जहां चारों तरफ निंदा हुई वहीं देश के
जाने माने अभिनेता ऋषि कपूर के रूप में एक और पाकिस्तानी भक्त पैदा हो गया. फारुख
के बयान का समर्थन करते हुए ऋषि कपूर ने कहा कि ‘फारुख जी सलाम! आप से पूरी तरह सहमत हूं, जम्मू कश्मीर हमारा है और
पीओके उनका (पाकिस्तान का) है. यही एक आखरी रास्ता है जिससे समस्या को सुलझाया जा
सकता है. स्वीकार कीजिए इसे.’ ऋषि ने कहा कि ‘मैं 65 साल का हो गया हूं, मरने से पहले पाकिस्तान देखना
चाहता हूं.’ आश्चर्य
है कि ऋषि कपूर पाकिस्तान देखने की अपनी इच्छा पूर्ति के लिए फारुख जैसे देश
विरोधी और पाकिस्तान परस्त नेता से आग्रह कर रहे हैं. क्या वे भारत सरकार से
अनुमति लेकर पाकिस्तान नहीं जा सकते, जो फारुख से चिरौरी कर रहे हैं. धिक्कार है
उन पर और उनकी सोच पर. देश के तोड़ने वालों का समर्थन करना कहां तक उचित है? लेकिन दुर्भाग्य तो यह है कि
देश में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देशद्रोही लोगों को भी बख्श दिया जाता है.
वहीं दूसरी ओर कुमार विश्वास ने फारुख के बयान की निंदा करते हुए कहा कि ‘समस्या कश्मीर नहीं फारुख खुद
हैं. उन्होंने कहा कि आपकी (फारुख की) खानदानी दुकानदारी इसी तरह की बातों से
चलती आई है. आप हिंदुस्तान में हैं या सीमा पार हैं.’ कहना ना होगा कि अब्दुल्ला
परिवार सत्ता में रहकर तो भारत की तरफदारी करता है और सत्ता से बेदखल होते ही
पाकिस्तान का पिट्ठू हो जाता है. फारुख और ऋषि के बयान की जितनी भर्त्सना की जाए
कम ही होगी. सच्चाई तो यह है कि पूरा कश्मीर चाहे वह जम्मू कश्मीर हो या वह
पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर हो, भारत का है. पाकिस्तान अच्छी तरह समझ गया है कि वह भारत से
युद्ध में कभी नहीं जीत सकता. यही कारण है कि कश्मीर में लगातार आतंकवादियों के
ठिकाने लगने से भयभीत होकर ही पाकिस्तान के पीएम शाहिद खान अब्बासी भी भारत से
बातचीत की गुहार लगाने लगे हैं.
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