शनिवार, 18 नवंबर 2017

हर एक गुजराती की प्रतिष्ठा लगी है दांव पर

Dr. Hari Krishna Barodiya
डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया


गुजरात विधानसभा के चुनाव देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर के लिए महत्वपूर्ण हो गए हैं. जहां एक और भाजपा अपने गढ़ को बचाए रखने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रही है वहीं कांग्रेस अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रही है. वैसे देखा जाए तो यह सामान्य निष्कर्ष है कि जिस राज्य का व्यक्ति (नरेंद्र मोदी) देश का प्रधानमंत्री है और जिसने दुनिया भर में भारत को प्रतिष्ठा दिलाने में अपना सर्वोत्तम दिया है, जिसने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित मुकाम बनाया है और जो खुद गुजराती है उसे गुजरात की जनता किसी भी स्थिति में पराजय नहीं देगी.

गुजरात की जनता यह भी अच्छी तरह जानती है कि प्रधानमंत्री मोदी आज दुनिया
भर में लोकप्रियता के उस मुकाम पर हैं जहां भारत का कोई भी प्रधानमंत्री अब तक
नहीं पहुंच सका. मोदी ने गुजरातियों को दुनिया भर में सम्मान दिलाया है. गुजरात
की जनता यह भी अच्छी तरह जानती है कि यदि प्रधानमंत्री मोदी की प्रतिष्ठा पर आंच आती है तो यह केवल गुजरात के लिए नहीं बल्कि देश के लिए शर्मनाक होगा.
 जहां तक कांग्रेस का प्रश्न है तो 2014 के बाद उसने आज तक देश में छोटे बड़े लगभग सारे चुनावों में हार का मुंह देखा है. राहुल गांधी आज गुजरात में जितना पसीना बहा रहे हैं यह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि कांग्रेस अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रही है. कांग्रेस की इस जी तोड़ मेहनत के पीछे बहुत सारे कारण हैं. यदि गुजरात के चुनाव कांग्रेस जीत जाती है तो स्वाभाविक रूप से इसका बहुत बड़ा असर 2019 के चुनावों पर पड़ेगा और इससे मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ एकदम नीचे आ जाएगा, जिसका उसे लाभ मिलने की संभावना बनेगी. तब वह 2019 में यह जताने में सफल हो सकेगी कि मोदी स्वयं के गृह राज्य में जनता द्वारा नकार दिए गए हैं क्योंकि मोदी का विकास का नारा केवल एक छलावा था. तब कांग्रेस यह भी सिद्ध करने में सफल हो जाएगी कि गुजरात की जनता ने उसकी नीतियों पर मोहर लगाई है.
 कांग्रेस अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए हर तरह के हथकंडों का इस्तेमाल कर रही है. उसने 1981 के उस जाति आधारित फार्मूले में संशोधन कर कुछ परिवर्तनों के साथ प्रयोग करने की रणनीति पर काम किया है, जिसके आधार पर तत्कालीन मुख्यमंत्री माधवसिंह सोलंकी ने 182 सीटों वाली विधानसभा में 156 सीटें जीती थीं. यह फार्मूला था ‘खाम’ ( के एच ए एम )  का जिसका अर्थ था, क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम. इस ‘खाम’ सिद्धांत के प्रमुख आर्किटेक्ट तत्समय के महत्वपूर्ण कांग्रेसी नेता झींगा भाई दर्जी थे. इस सिद्धांत में परिवर्तन कर कांग्रेस आज ओबीसी, दलित और पाटीदारों को अपने पक्ष में करने के लिए तीन नेताओं अल्पेश ठाकोर, जिग्नेश मेवाणी और हार्दिक पटेल के भरोसे पर दांव खेल रही है. अल्पेश और जिग्नेश का खुला समर्थन उसे यह आश्वासन लगता है कि अब पिछड़ा वर्ग और दलित समाज उसके समर्थन आ जाएगा. किन्तु कितनी भी कोशिश के बाद लगता नहीं कि यह शतप्रतिशत संभव हो पाएगा.
  पिछले 1 महीने से कांग्रेस हार्दिक पटेल से समर्थन पाने के लिए प्रयास करती रही है किंतु हार्दिक खुलकर समर्थन देने के लिए पाटीदारों को आरक्षण के मुद्दे पर कांग्रेस से सारे संवैधानिक अवरोधों को दूर करते हुए इस वक्त स्पष्ट आश्वासन चाहते हैं. हालांकि हार्दिक पटेल के खुद के बयान ने उनकी विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है जिसमें उन्होंने कहा था कि आरक्षण मुद्दा नहीं है बल्कि उन्हें तो भाजपा को हराना है. वहीं दूसरी ओर हार्दिक की विश्वसनीयता का ग्राफ तीव्र गति से नीचे गिरा है. उनकी दो सेक्स सीडी के बाहर आने से कांग्रेस पशोपेश में पड़ गई है कि हार्दिक का साथ उसे लाभकारी होगा या घाटे का सौदा. वहीँ पाटीदार समाज भी बटने लगा है. लेकिन हार्दिक के अलावा कांग्रेस के पास दूसरा कोई विकल्प नहीं है.
 राहुल गांधी का मंदिर मंदिर जाना इस बात को स्पष्ट करता है कि कांग्रेस अब सॉफ्ट हिंदुत्व के रास्ते पर चलने का प्रयत्न कर रही है. उसने अच्छी तरह जान लिया है कि केवल मुस्लिम तुष्टिकरण से उसे लाभ नहीं मिलेगा. यही कारण है कि उसने सारा फोकस गुजरात चुनाव में जाति आधारित रणनीति पर कर रखा है. लेकिन जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं कांग्रेस अपने नेताओं के विवादित बयानों से मुश्किल में फंसती जा रही है. गुजरात के कद्दावर कांग्रेसी नेता शक्ति सिंह गोहिल ने हार्दिक पटेल को तरजीह देने के चक्कर में यह कहकर कि हार्दिक पटेल का डीएनए  सरदार पटेल के डीएनए जैसा है, पाटीदारों को नाराज कर दिया है. सरदार पटेल केवल गुजरात के नहीं बल्कि पूरे देश के नेता थे. उन्होंने देश को जोड़ने का काम किया था जबकि हार्दिक पटेल ने गुजराती समाज को बांटने का काम किया है. गोहिल के बयान से सरदार पटेल के परिजन आहत हुए हैं जिन्होंने गोहिल के बयान का घोर विरोध किया है जो सही भी है.
 वहीं दूसरी ओर फिल्म पद्मावती विवाद में शशि थरूर के बयान ने कांग्रेस की मुसीबतें और बढ़ा दी हैं. शशि थरूर ने समूचे राजपूतों का अपमान करते हुए कहा कि ‘तथाकथित ‘जांबाज महाराज’ एक फ़िल्मकार के पीछे पड़े हैं और दावा कर रहे हैं कि उनका सम्मान दांव पर लग गया है. यही महाराजा उस समय भाग खड़े हुए थे जब ब्रिटिश शासकों ने उनके मान सम्मान को रौंद दिया था.’ यह बयान गुजरात चुनावों में भी कांग्रेस को भारी पड़ने वाला है क्योंकि यह उन महाराजाओं के वंशज राजपूतों के विरुद्ध है जिन्होंने अपनी आन बान शान से कभी समझौता नहीं किया. गुजरात में लगभग 20% लोग राजपूतों के समकक्ष और राजपूत हैं, जिनकी नाराजगी कांग्रेस को अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में निश्चित ही बाधक बनेगी. इसमें कोई शक नहीं कि कांग्रेस गुजरात चुनाव जीतने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है, राहुल गांधी अपनी छवि सुधारने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने दे रहे हैं, लेकिन सारी कोशिशों के बाद भी नहीं लगता की कांग्रेस साठ पेंसठ  सीटों से ज्यादा जीत सकेगी क्योंकि यह चुनाव मोदी और गुजरातियों की प्रतिष्ठा से जुड़े हुए हैं. गुजरात की जनता यह अच्छी तरह जानती है कि  उसका एक एक वोट गुजरातियों की प्रतिष्ठा से जुड़ा है. यदि मोदी हारते हैं तो ना केवल गुजरातियों की हार होगी बल्कि समूचे देश की हार होगी. सही मायने में गुजरात चुनाव में हरेक गुजराती की प्रतिष्ठा दांव पर है.


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें