बुधवार, 22 नवंबर 2017

आतंकियों के जनाजे निकालने पर बैन लगाया जाए

Dr. Hari Krishna Barodiya
डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया

इसमें अब कोई शक नहीं रह गया कि कश्मीर के सभी सियासी दल चाहे वह पीडीपी हो या  नेशनल कांफ्रेंस, कश्मीर के अवाम की चिंता नहीं कर रहे. इन सियासी दलों का यही एक मकसद है कि ऐनकेन प्रकारेण वह सत्ता सुख को भोगते रहें. जो सत्ता में हो होते हैं वे दबी  जुबान से पाकिस्तान की तरफदारी करते हैं और जो विपक्ष में होते हैं वे खुली जुबान से पाकिस्तान का समर्थन करते हैं. चाहे मरहूम मुफ्ती मोहम्मद सईद हों या महबूबा मुफ्ती, चाहे फारुख हों या उमर अब्दुल्ला, ये सारे के सारे नेता कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग तब तक मानते हैं जब तक यह सत्ता में होते हैं और जैसे ही ये सत्ता से बेदखल होते हैं वैसे ही पाकिस्तान की कश्मीर की आजादी की मांग का समर्थन करने
लगते हैं.
 अभी पिछले शनिवार को फारूक अब्दुल्ला ने अपने पाकिस्तानी प्रेम को एक बार फिर
खुल कर व्यक्त किया जिसमें उन्होंने अपने पहले के बयानों को सही बतलाते हुए यहां तक कहा कि ‘हां मैंने कहा था कि पीओके उनका (पाकिस्तान का ) है, क्या उन्होंने चूड़ियां पहन रखी हैं. उनके पास भी परमाणु बम है. क्या आप चाहते हैं कि हम उनके हाथों मारे जाएं. आप महलों में बैठे हैं. सीमा पर रहने वाले गरीब आदमी के बारे में सोचिए जो रोज बमबारी में के शिकार होते हैं.’ ऐसा लगता है कि फारुख साहब को कश्मीर की आवाम की बहुत चिंता है, लेकिन फारुख की यह चिंता उनके दोगलेपन को उजागर करती है. यह स्पष्ट करती है कि वे शरीर से भले ही हिंदुस्तानी हों किंतु आत्मा और दिमाग से वे पूरे पाकिस्तानी ही हैं. यदि ऐसा नहीं होता तो वह पाकिस्तान की तरह भारत को पाकिस्तानी एटम बम से डराते नहीं. हकीकत यह है कि कश्मीर के सियासतदां पाकिस्तान का खुलकर समर्थन करते हैं और भारत सरकार इन पर कोई एक्शन नहीं लेती. यदि कश्मीर के सियासी दल पाकिस्तान का समर्थन करना बंद कर दें तो निश्चित रुप से कश्मीर में और खास तौर से घाटी में अमन चैन आ जाए. लेकिन ऐसा होगा इसकी संभावना दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती.
 आज कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं के अधिक तीव्र होने का एक कारण भारत में हिंदूवादी  सरकार का सत्ता में होना भी है. ऐसा नहीं है कि जब कांग्रेस केंद्र में सत्ता में काबिज रही तब कश्मीर आतंकवाद से परेशान नहीं रहा, वह तब भी परेशान था किंतु उसकी तीव्रता आज के मुकाबले कम थी. कारण स्पष्ट है कि कांग्रेस आतंकवाद पर कठोर प्रहार करने से बचती रहती थी. पाकिस्तानी सेना द्वारा भारतीय सैनिकों के सर काटने के बावजूद कांग्रेस के दौर में पाकिस्तानी सरकार के नुमाइंदों का गाजे बाजे के साथ इस्तकबाल किया जाता था. किन्तु भाजपा के उत्कर्ष और मोदी सरकार के बनने के बाद न केवल पाकिस्तान की सियासत बल्कि पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तोएबा और हिजबुल मुजाहिदीन आदि ज्यादा बौखलाए हुए हैं. यही कारण है कि यह सब मिलकर दुगनी तीव्रता के साथ कश्मीर को आतंकवादी गतिविधियों का केंद्र बनाए हुए हैं. लेकिन जितनी तीव्र गति से कश्मीर में आतंकी घटनाएं घट रही हैं उतनी ही तीव्रता से उनका सफाया भी हो रहा है. जो स्पष्ट रूप से दिखाई देता है. आतंकियों की सफाई के लिए सेना के ‘ऑपरेशन ऑल आउट’ ने आतंकी संगठनों और आतंकियों में खौफ पैदा कर रखा है. पिछले 1 महीने में कश्मीर में 190 आतंकियों को मौत के घाट उतारा गया. गौर करने वाली बात यह है कि 1 नवंबर से 21 नवंबर तक औसतन रोज एक आतंकी मारा गया. इन 190 आतंकियों में 110 आतंकी विदेशी अर्थात पाकिस्तान से आए थे जबकि लगभग 80 आतंकी स्थानीय थे. मारे गए सभी आतंकियों में से 66 आतंकी नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ करते हुए मारे गए. सेना की यह सफलता यह तो स्पष्ट करती है की ‘ऑपरेशन ऑल आउट’ के तहत कोई भी आतंकी भागने में सफल नहीं हो पाया है किंतु यह भी एक बड़ी सच्चाई है कि आतंकी घटनाओं में कमी नहीं हो रही है.
 पिछले 3 दिनों में कश्मीर में सेना ने बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए लगभग 9 आतंकियों को मौत के घाट उतारा है. इनमें आतंकी संगठनों के सरगनाओं के रिश्तेदारों के भी नाम शामिल हैं. इनमें से एक 26/ 11 का मास्टरमाइंड जकी उर रहमान लखवी का भांजा ओवैद था तो दूसरा जमात-उद-दावा के मुखिया अब्दुर रहमान मक्की का बेटा भी शामिल है. लेकिन सबसे चिंताजनक बात यह है कि शनिवार को पहली बार श्रीनगर के जकूरा इलाके में खूंखार आतंकी संगठन आईएस की उपस्थिति दर्ज की गई. जकूरा में हुए आतंकी हमले की जिम्मेदारी आईएस आईएस ने ली है. हालांकि इस हमले में खूंखार आतंकी मुगैस अहमद मीर को मार गिराया गया जो नवगठित कश्मीर स्थित अलकायदा की इकाई ‘अंसार गजवातुल हिंद’ से जुड़ा था. यह अलकायदा कमांडर जाकिर मूसा का करीबी था. लेकिन यह बात साफ है कि अब पाकिस्तानी आतंक का भय कम होने से दूसरे आतंकी संगठन कश्मीर में सक्रिय हो गए हैं.
 यह सही है कि सेना पाकिस्तानी आतंक को खत्म कर रही है लेकिन अब बगदादी के आतंक का खतरा दस्तक दे रहा है जो चिंता का विषय है. वस्तुतः पाकिस्तानी आतंकी संगठनों का जोर कम होने के कारण ऐसा लगता है कि इन्होंने दूसरे आतंकी संगठनों की मदद लेना शुरू कर दिया है जिनमें अलकायदा और आईएसआईएस  शामिल हैं. तो दूसरी ओर कश्मीरी अलगाववादी भी खुद को इनसे जोड़ कर अपने अस्तित्व को बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि इस जनाजे के दौरान नारों में कि ‘ना हुर्रियत वाली शरियत, ना हुर्रियत वाली आजादी, कश्मीर बनेगा दारुल इस्लाम’ हुर्रियत के विरोध जैसा लग रहा था लेकिन यह केवल दिखावा ज्यादा प्रतीत होता है. वैसे यह सही है कि मोदी की कश्मीर  नीति ने हुर्रियत को बेकफुट पर धकेल दिया है. यही कारण है कि बीते 2 दिन पहले घाटी में जिस आतंकी मीर का जनाजा निकाला गया उसे आईएसआईएस के झंडे में लपेटा गया. यही नहीं आईएसआईएस  के समर्थन में नारे भी लगाए गए. सच्चाई तो यह है कि भारतीय सेना ने आतंकियों का जिस तेजी से खात्मा किया है इससे कट्टरपंथी और अलगाववादी खासे परेशान हैं. यही कारण है कि उन्हें भारत को डराने के लिए बगदादी -आईएसआईएस और अलकायदा जैसे खूंखार आतंकवादी संगठनों का सहारा लेना पड़ रहा है. यही नहीं आतंकियों की लगातार सफाई से घबराए फारूक अब्दुल्ला भी लोगों को भड़काने का काम करने में लगे हैं.
 घाटी में यह भी एक चिंता का सबब है कि आतंकियों के जनाजे बड़ी शान के साथ निकाले जाते हैं जो आतंकवाद को बढ़ावा देने में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं. मारे गए आतंकी को कश्मीर की आजादी के लिए शहीद होना बताने का यह प्रदर्शन अविलंब बंद किया जाना चाहिए. यदि ऐसा नहीं होगा तो स्वाभाविक रूप से कश्मीर के युवा, आतंकवादियों को अपना हीरो मानना बंद नहीं करेंगे. मोदी सरकार को जम्मू कश्मीर सरकार की मुखिया महबूबा को यह स्पष्ट रूप से कह देना चाहिए कि उनकी ‘हीलिंग टच’ की पॉलिसी कश्मीर के युवाओं को दिग्भ्रमित कर रही है जिससे कश्मीर का ज्यादा नुकसान तो हो ही रहा है साथ ही सेना का मनोबल भी टूटता है. यदि आतंकवादियों के जनाजे पर बेन लगे तो निश्चित ही न केवल कश्मीर में शांति बहाल हो सकती है बल्कि सेना का मनोबल भी और अधिक बढ़ सकता है.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें