सोमवार, 6 नवंबर 2017

जब आतंक का कोई धर्म नहीं होता तब भगवा आतंकवाद कैसे?


Dr. Hari Krishna Barodiya
डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया


वर्तमान भारत की राजनीति में विवादित बयानों की जैसे बहार आ गई है. सत्ता पक्ष हो या विपक्ष दोनों ही ओर से विवादित बयानों की झड़ी लगी रहती है. मणिशंकर अय्यर, पी चिदंबरम, हामिद अंसारी, संदीप दीक्षित, मनीष तिवारी, दिग्विजय सिंह, साध्वी निरंजन ज्योति, गिरिराज सिंह और शत्रुघ्न सिन्हा आदि राज नेताओं के विवादित बयान हमेशा सुर्खियों में रहते रहे हैं. सुधी पाठक अच्छी तरह से जानते हैं कि जब राजनेताओं को जनता में अपने होने का आभास कराना होता है तब वे विवादित बयान देकर सुर्खियां बटोरते हैं.
अभी-अभी दक्षिण भारतीय और बॉलीवुड के प्रसिद्ध अभिनेता-निर्माता-निर्देशक कमल
हासन का एक लेख तमिल पत्रिका आनंदा विकटनमें प्रकाशित हुआ जिसमें उन्होंने लिखा कि राइट विंग हिंसा में शामिल है और हिंदू कैंपों में आतंकवाद दाखिल हो चुका
हैउन्होंने आगे लिखा कि पहले हिंदू राइट विंग दूसरे धर्मों के साथ बौद्धिक चर्चा में शामिल होते थे, तर्कों के आधार पर विरोध करते हुए शास्त्रार्थ करते थे, यह सोच खत्म हो गई है. वे बाहुबल का इस्तेमाल करने लगे हैं, वे हिंसा में शामिल होने लगे हैं. उन्होंने लिखा कि लोगों की सत्यमेव जयते में आस्था खत्म हो चुकी है’. उन्होंने केरल सरकार की तारीफ करते हुए लिखा कि केरल में सांप्रदायिक हिंसा के मामले   तमिलनाडु के मुकाबले बेहतर ढंग से निपटाए गए हैं.
उक्त विचार से यह तो स्पष्ट हो गया कि कमल हासन वामपंथी विचारधारा के पोषक हैं और जब कोई वामपंथ से प्रेरित होता है तब उसे हिंदुओं में बुराइयां नजर आने लगती हैं. वस्तुतः कमल हासन एक नई राजनीतिक पार्टी बनाने की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं जिस की घोषणा संभवता वह अपने जन्मदिन नवंबर को करने वाले हैं. राजनीति में आने और अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए उन्होंने विवादित लेख लिखने को माध्यम बनाया जो शायद उनकी दृष्टि में प्रसिद्धि पाने के लिए जरूरी रहा होगा. उनके दक्षिणपंथी लोगों के हिंसा में शामिल होने के कथन का सीधा अर्थ विश्व की सबसे ज्यादा सदस्य संख्या वाली पार्टी भाजपा, सामाजिक सांस्कृतिक संगठन आरएसएस और उसके अनुषांगिक संगठन विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल आदि के हिंसा में शामिल होने से है. उन्होंने अपने इस लेख में कांग्रेस और वामपंथियों से अपनी निकटता का खुलासा कर यह स्पष्ट कर दिया कि वह भी तुष्टिकरण की राजनीति के पैरोकार हैं. उनका यह कथन की राइट विंग हिंसा में शामिल है का अर्थ हिंदू या भगवा आतंकवाद से है जिसका कुत्सित सृजन देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के तत्कालीन गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने किया था. गृह मंत्री शिंदे ने कांग्रेस कमेटी की एक मीटिंग में हिंदुओं को बदनाम करने के लिए पहली बार भगवा आतंकवाद शब्द का प्रयोग कर मालेगांव ब्लास्ट के दो प्रमुख आरोपी कर्नल श्रीकांत पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर पर लगे मनगढ़ंत आरोपों को आधार बनाकर पूरे हिंदू समुदाय को कटघरे में लाने का जो कुछ प्रयास किया वह इतिहास के काले पन्ने बन गए. इस भगवा आतंकवाद के शब्द को पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम और कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने खूब प्रचारित किया, लेकिन कमल हासन यह भूल गए कि वे कट्टरपंथी मुस्लिम हिंसा के शिकार हो चुके हैं. उनकी 2013 में विश्वरूपमफिल्म आई थी जिसमें उन्होंने इस्लामिक आतंकवाद पर कठोर प्रहार किया था. इस फिल्म का मुस्लिम कट्टरपंथियों ने केरल और तमिलनाडु में विरोध कर उन के पुतले जलाए थे, कमल हासन का इतना विरोध हुआ कि उनकी नींद हराम हो गई थी तब इस देश के हिंदुओं ने ही उस फिल्म को हिट कराया था. कांग्रेस, वामपंथी, केरल की पीपुल्स फ्रंट ऑफ इंडिया और मुस्लिम लीग के जिहादियों ने उन्हें जान से मारने और उनकी बेटी से बलात्कार की भी धमकी दी थी. संभवत: कमल हासन उस दौर को कभी नहीं भूल सकेंगे. लगता तो यही है कि कमल हासन पर आज भी वह डर इतना हाबी है कि वह कट्टरवादियों के समर्थन और हिंदुओं के विरोध से अपनी राजनीतिक दुकानदारी चलाने को मजबूर हुए हैं. यह भी एक तथ्य है कि अमेरिका में उन्हें मुस्लिम समझकर गिरफ्तार किया गया था तब वे स्वयं को हिंदू बता कर बच पाए थे क्योंकि हिंदुओं की उदारता से अमेरिका भली भांति परिचित है.
 कमल हासन ने केरल की वामपंथी सरकार की तारीफ में कसीदे पढ़े हैं कि वहां की सरकार सांप्रदायिक हिंसा को नियंत्रित करने में सफल रही. जबकि सच्चाई इसके उलट है. वहां के वामपंथियों ने अब तक लगभग 120 भाजपा और आरएसएस  के लोगों की राजनीतिक हत्याएं की हैं जो उनकी असहिष्णुता को स्पष्ट करती है. यही नहीं केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन के गृह क्षेत्र कुन्नूर में सबसे ज्यादा हिंदुओं की हत्या की गईं, तब कैसे माना जाए कि केरल सरकार सांप्रदायिक हिंसा को रोकने में सफल रही. यह क्यों ना माना जाए कि केरल के वामपंथी अपनी सरकार की शह पर हिंदुओं की हत्या करते हैं. केरल में जारी लव जिहाद पर भाजपा विरोधियों की जुबान पर ताला लग जाता है.
 जहां तक हिंदुओं की बात है तो हिंदू हमेशा से उदार रहा है. वह हिंसा में विश्वास नहीं करता. इतिहास साक्षी है कि भारत के हिंदुओं ने आतताईयों को भी उदारता से अपनाया. भले ही उन्हें हानि ही उठाना पड़ी हो. हां, पहले और आज के दौर में अंतर जरूर आया है. पहले हिंदू दब जाया करते थे किंतु आज वे   विरोध करते हैं. हिंदुओं में आत्म सम्मान की भावना जागृत हुई है लेकिन वे हिंसा का विरोध हिंसा से फिर भी नहीं करते. लेकिन आत्मरक्षा का भाव किसी भी दृष्टि से गैरवाजिब नहीं माना जा सकता. कमल हासन या अन्य लोग यदि हिंदुओं द्वारा की गई आत्मरक्षा को आतंक मानते हैं तो इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है. जब पूरी दुनिया आतंकवाद की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं दे सकी तब हिंदू विरोधी विचारधारा के लोगों द्वारा हिंदू आतंकवाद या भगवा आतंकवाद कहना आश्चर्य पैदा करता है. इस देश का दुर्भाग्य देखिए कि भारत पर हुए अब तक के आतंकी हमलों में कांग्रेस, वामपंथी या हिंदू विरोधी आतंक का धर्म नहीं बता पाए वे ही हिंदुओं के लिए भगवा या दक्षिणपंथी आतंकवाद का आक्षेप लगा रहे हैं. जब आतंक का कोई धर्म नहीं होता तो आतंकवाद भगवा कैसे हो गया. सुविधा की राजनीति के लिए गढे गए इस शब्द का कोई औचित्य नहीं है. लेकिन समाज को बाँटने और देश के साम्प्रदायिक सौहार्द को नष्ट करने में इस कुत्सित मानसिकता को जनता को समझना होगा. हिंदुओं के विरोधी राजनितिक दल आज जितने हासिए पर जा रहे हैं वह गौर करने वाली बात है. सत्यमेव जयते’, सत्य की हमेशा जीत होती है. हिंदू न कभी आतंकी था, ना है और ना ही कभी होगा  यह पूरी दुनिया जानती है.


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