शुक्रवार, 1 दिसंबर 2017

दो नावों की सवारी के फेर में फंस गई कांग्रेस

डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया

यह बात तो मानना ही पड़ेगी कि आज स्वतंत्रता के 70 सालों के इतिहास में देश में हिंदू और हिंदुत्व को अपने असली और महत्वपूर्ण मुकाम पर पहुंचाने का काम यदि किसी राजनीतिक दल ने किया तो वह भारतीय जनता पार्टी ही है. आज हिंदुओं को अपनी शक्ति का एहसास हुआ है. वर्षों तक हाथ पर हाथ धरे बैठा हिंदू आज इतना प्रासंगिक हो जाएगा किसी ने सोचा भी नहीं होगा. 2014 के चुनावों  में हिंदुओं को अपनी शक्ति का पहली बार अहसास हुआ. उसे मालूम पड़ा कि उसके एक वोट की अहमियत क्या है. उसे मालूम पड़ा कि वह देश में जिसे चाहे सत्ता सौंप सकती है और जिसे चाहे सड़क पर ला सकती है.


भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है और यह उसकी खूबसूरती भी है. किंतु इस
धर्मनिरपेक्षता की आड़ में तुष्टिकरण की राजनीति ने देश की जनता को जाति, संप्रदाय और वर्ग में बाँटने  का काम किया. 78 प्रतिशत हिंदुओं की पूरी आबादी जाति, वर्ग और संप्रदाय में बंट कर अपना अहित करती रही और दुर्भाग्य यह कि वह इसे वर्तमान से पहले तक कभी समझ भी नहीं पाई. पिछले लोकसभा चुनाव में देश की हिंदू बहुसंख्यक जनता को यह अहसास हो गया कि तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों ने उसके साथ छल किया है. स्वघोषित रुप से देश को आजादी दिलाने वाली सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ने अपनी राजनीतिक चतुराई से जाति और मजहब आधारित  राजनीतिक दल बनाकर अपनी सत्ता को अक्षुण्ण बनाने का काम किया. देश में जाति, भाषा, वर्ग, संप्रदाय और धर्म आधारित छोटे-छोटे क्षेत्रीय राजनीतिक दल इसके प्रमाण हैं. कुल मिलाकर पूरे हिंदू समाज को छोटे-छोटे धडों में बांटकर 60 साल तक एकछत्र राज करने में कांग्रेस ने इसी आइडियोलोजी का प्रयोग किया.  किंतु अब हालात बदल गए हैं. वे राजनीतिक दल जो हिंदुओं को बांटकर और अल्पसंख्यकों की पैरोकारी कर सत्ता सुख भोगते रहे धरधरा कर चारों खाने चित होते जा रहे हैं. जहां एक ओर सबसे बुरा हाल तुष्टिकरण की नीति पर चलने वाली कांग्रेस का हुआ तो वहीँ जाति आधारित क्षेत्रीय दलों का हुआ. लोकसभा चुनावों के बाद हुए पिछले साल के उत्तर प्रदेश चुनाव में भाजपा की जीत से यह पूरी तरह स्पष्ट हो गया कि भाजपा विरोधी दलों की हिंदुओं को बांटने वाली राजनीति अब और आगे नहीं चल सकेगी, यही कारण है कि लाल, नीली और सफ़ेद टोपियां  लगाने वाले लोग भी झेंप के साथ हिंदू और हिंदुत्व की बात करने लगे हैं.
 जनसंघ के रूप में जन्म लेकर भाजपा के अस्तित्व में आने के बाद से आज तक केवल भाजपा ही अपनी निरंतरता से हिंदुओं की बात करती रही. यही कारण है  कि हमेशा उसे सांप्रदायिक कहा गया. हिंदुओं के महत्व का इससे बड़ा उदाहरण  और क्या हो सकता है कि अपने आप को ढोल बजा बजा कर धर्मनिरपेक्ष बताने वाली कांग्रेस भी आज सॉफ्ट हिंदुत्व को शिरोधार्य करने को बाध्य हुई है. यह बात गुजरात के चुनाव में स्पष्ट हो रही है. गुजरात का चुनाव इस दशक का संभवत: सबसे महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव है, क्योंकि इस चुनाव में कांग्रेस का अस्तित्व पूरी तरह से दांव पर लगा हुआ है. कांग्रेस जानती है कि यदि वह गुजरात में हारी तो कौन सा मुंह लेकर 2019 के चुनाव में जाएगी. कुल मिलाकर यदि कांग्रेस गुजरात में हार जाती है तो वह पूरा देश हार जाएगी. वह यह भी जानती है कि यदि वह गुजरात में जीत जाती है तो उसे सबसे बड़ा मैडल यह मिलेगा कि उसने गुजराती मोदी को गुजरात में हराया और यह भी कि प्रधानमंत्री मोदी की नीतियां और विकास को उनके अपने राज्य ने नकार दिया है.
 मोदी चूँकि एक धर्म निष्ठ और आरएसएस के स्वयंसेवक रहे हैं इसलिए उनका मंदिर जाना कोई आकस्मिक घटना नहीं है, लेकिन गुजरात चुनावों में राहुल गांधी का मंदिर मंदिर जाना इस बात की पुष्टि करता है कि कांग्रेस अब यह समझ गई है कि केवल अल्पसंख्यक तुष्टिकरण से बात नहीं बनने वाली है. देश का  बहुसंख्यक हिंदू समाज अब उन लोगों को नकारने की ताकत रखता है जो केवल तुष्टिकरण की राजनीति करते हैं. कहां तो एक समय था राहुल गांधी मंदिर जाने वालों को यह कहकर कटघरे में खड़ा करते थे कि मंदिर जाने वाले लड़कियों को छेड़ते हैं, वहीं आज वे बड़ा सा तिलक लगाकर यह प्रकट कर रहे हैं कि वह हिंदू हैं. वे अब तक वह गुजरात में 20 से अधिक मंदिरों में जाकर भगवान से अपनी जीत की प्रार्थना कर चुके हैं. नतीजा जो भी हो लेकिन शायद कांग्रेस इस नतीजे पर पहुंची है कि मोदी के लोकसभा चुनाव जीतने में उनकी मंदिर पूजा और भक्ति ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है. लेकिन यह कांग्रेस का सतही मूल्यांकन है क्योंकि केवल मंदिर जाने से वोट मिले होंगे यह मानना हास्यास्पद ही कहा जाएगा. लगता है मंदिर थ्योरी पर कांग्रेस ने ज्यादा फोकस कर विकास के मुद्दे को पीछे छोड़ दिया है. सही मायने में कांग्रेस आज की स्थिति में अस्थिर वैचारिकी के दौर से गुजर रही है. आज वह जाति, धर्म और तुष्टिकरण तीनों के घालमेल को अपनाकर अपना नुकसान कर रही है.

 पिछले दिनों कांग्रेस के भावी अध्यक्ष राहुल गांधी सोमनाथ मंदिर में भगवान सोमनाथ के दर्शन करने गए. वहां  दो विजिटर्स रजिस्टर  होते हैं. एक  हिंदुओं के लिए तो दूसरा गैर हिंदुओं के लिए. गैर हिंदुओं के विजिटर्स रजिस्टर में राहुल गांधी और अहमद पटेल का नाम कांग्रेस के मीडिया कोऑर्डिनेटर मनोज त्यागी ने दर्ज किया. तब सवाल उठना लाजमी था कि राहुल गांधी क्या गैर हिंदू हैं. जब कांग्रेस से पूछा गया तो पहले तो कहा गया कि राहुल गांधी का नाम किसी ने बाद में जोड़ा. जब बात नहीं बनी तो कहा गया कि यह कौन सिद्ध करेगा कि यह हस्तलिपि (हैंडराइटिंग) मनोज त्यागी की ही है. और अंत में इस बात का ढोल पीटना पड़ा कि राहुल गांधी हिंदू हैं. बताया जाता है कि हिंदू विजिटर्स के रजिस्टर पर भी राहुल गांधी ने अपना नाम दर्ज किया था, तो प्रश्न यह है कि दोनों रजिस्टरों पर नाम दर्ज करने की क्या आवश्यकता थी. लगता तो यह है कि हिंदुओं वाले रजिस्टर में नाम दर्ज कर वह अपने आप को हिंदू घोषित कर हिंदू वोटों को आकर्षित करना चाह रहे थे तो वहीं गैर हिंदू वाले रजिस्टर में स्वयं को दर्ज करा कर गैर हिंदू या अल्पसंख्यकों के वोटरों को यह जताने की कोशिश कर रहे थे कि वह गैर हिंदू होकर अल्पसंख्यकों के साथ हैं, भले ही वे हिंदुओं के मंदिर मंदिर जाकर तिलक लगवा रहे हैं. इस सारे प्रकरण में कांग्रेस के सारे बड़े नेताओं की बेचारगी उनके बयानों से स्पष्ट हुई. कांग्रेस के रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि ‘वह (राहुल) हिंदू ही नहीं बल्कि जनेऊ धारी हिंदू हैं’ और इसके प्रमाण में कांग्रेस ने ऐसे  ऐसे छायाचित्र पेश किए जो हास्यास्पद ज्यादा थे, जैसे सूट के ऊपर डला हुआ जनेऊ. सोचने वाली बात यह है कि गुजरात चुनाव से पहले तक आपको अपना धर्म बताने की आवश्यकता नहीं थी किंतु अचानक जनेऊ धारी हिंदू कहने  की क्या आवश्यकता आन पड़ी. खैर राहुल गांधी किसी भी धर्म के हो सकते हैं और जनता इस पर शायद कोई गौर भी नहीं करती किंतु कांग्रेस दो नावों की सवारी के फेर में फस गई. कांग्रेस ने गुजरात में ‘विकास पागल हो गया है’ का नारा दिया था जो लगता है औंधे मुंह गिर गया और उसे लगने लगा की इससे उसे लाभ नहीं होगा तब उसने मंदिर जाने और गुजरात को जातियों में बांटने की कोशिश की. इसमें उसे कितनी सफलता मिलेगी कहना मुश्किल है. सबसे बड़ी और देखने वाली बात यह है कि कांग्रेस आज राहुल को जनेऊ धारी हिंदू बता रही है जबकि राहुल गांधी ने अपने अमेरिका प्रवास में दिए एक इंटरव्यू में यहां तक कहा था कि ‘भारत को लश्कर-ए-तैयबा से उतना खतरा नहीं जितना हिंदू आतंकवाद से है’ तो फिर यह कैसे हिंदू है जो हिंदुओं को आतंकवादी बताते थे. यही नहीं कांग्रेस राहुल गांधी को जनेऊ धारी हिंदू सिद्ध करते-करते मोदी को नकली हिंदू साबित करने पर उतर आई है. मोदी के हिंदू होने पर सवाल उठाते हुए कपिल सिब्बल ने कहा कि ‘मोदी हिंदू हैं ही नहीं, मोदी नकली हिंदू हैं. मोदी का हिंदू धर्म से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं. मंदिर का आदर तो वह करता है जो हिंदू धर्म का आदर करे. मोदी ने तो हिंदू धर्म को छोड़ दिया है, उन्होंने तो हिंदुत्व को अपना लिया है.’ कुल मिलाकर आज कांग्रेस आत्ममंथन करने के स्थान पर भारतीय जनता पार्टी को कोसने और ढकोसले करने में लगी है. आज स्थिति यह है कि कांग्रेस का उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों में सूपड़ा साफ हो गया है. कांग्रेस राहुल गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी की नगर पंचायत तक का चुनाव हार गई. देखने वाली बात  यह होगी कि धर्मनिरपेक्षता छोड़कर धर्म सापेक्षता की राजनीति कांग्रेस को कितना लाभ पहुंचाएगी.

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