डॉ. हरिकृष्ण
बड़ोदिया
पाकिस्तान यदि
यह कहता है कि वह आतंकवाद से खुद पीड़ित है तो इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं है
किंतु इससे भी बड़ी सच्चाई यह है कि वह आतंकवाद का प्रायोजक देश है. उसके अपने घर
में जैश और लश्कर जैसे आतंकवादी संगठन बड़ी सिद्दत के साथ फलफूल रहे हैं, जिनका
उपयोग वह भारत के कश्मीर में दहशत फ़ैलाने में विगत अनेक वर्षों से करता आ रहा है. पाकिस्तान स्वयं को आतंकवादी पीड़ित
कहकर कतिपय देशों की जितनी सहानभूति बटोरता है उससे कहीं अधिक वह आतंकी गतिविधियों
को अंजाम देकर खो देता है. असल में
पाकिस्तान दुनिया भर को यह दिखाने की कोशिश तो
करता है कि वह आतंक के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है किंतु यह लड़ाई तब बेमानी हो जाती
है जब वह जम्मू कश्मीर में दहशत फैलाने के लिए दोषी पाया जाता है. आज पाकिस्तान आतंकवादियों,
कट्टरपंथियों, फौज, और आईएसआई के शिकंजे में इतना फंस चुका है कि चाह कर भी वह
इनके चंगुल से मुक्ति नहीं पा सकता तो दूसरी ओर भारतीय कश्मीर में अस्थिरता फैलाने
और उसे आजाद कराने के भ्रामक विश्वास के कारण भी पाकिस्तान आतंकवाद का रास्ता कभी
छोड़ सकेगा ऐसा लगता नहीं. यही कारण है कि वह आतंकी संगठनों को पालने पोसने में
लगा रहता है.
पाकिस्तान में इस दिसंबर की 1 तारीख को पेशावर में
बुर्काधारी दहशतगर्दों ने एग्रीकल्चर ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट में घुसकर गोलीबारी की
जिसमें लगभग 12 लोग मारे गए और 2 दर्जन से अधिक घायल हुए. इससे 3 साल पहले 2014 में भी पेशावर में ही आतंकियों ने एक आर्मी पब्लिक स्कूल पर
हमला किया था जिसमें 150 से अधिक स्कूली बच्चों को मौत के घाट उतार दिया गया था. इन
दोनों ही हमलों की जिम्मेदारी तहरीक-ए-तालिबान नामक आतंकी संगठन ने ली. किंतु ऐसी
घटनाओं से सबक सीखने के स्थान पर पाकिस्तान आतंकवाद को लगातार प्रश्रय दे रहा है,
जिसका खामियाजा आज नहीं तो कल उसे भुगतना जरूर पड़ेगा.
आतंकवाद को समर्थन देने में पाकिस्तानी सेना का
हाथ जगजाहिर है. पाकिस्तानी फौज, आईएसआई और कट्टरपंथी मिलकर न केवल चुनी हुई सरकार
बल्कि पूरी आवाम को अपनी उंगलियों पर नचा रहे हैं. इसका परिणाम यह हो रहा है कि
पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी विश्वसनीयता खोता जा रहा है. अभी हाल ही
में पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी की नेता शिरीन मजारी की बेटी ईमान मजारी ने
सेना और आतंक के गठजोड़ को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि ‘सेना पर शर्म आती है
क्योंकि पाकिस्तानी सेना सिर्फ आतंकियों की भाषा समझती है. हमें भी सेना तक संदेश
पहुंचाने के लिए ऐसी ही भाषा का इस्तेमाल करना होगा. ऐसी सेना पर लानत है जो उन
लोगों का समर्थन करती है जो पाकिस्तान में आतंक को बढ़ावा देते हैं. मैं ऐसी सेना
की निंदा करती हूं क्योंकि वह समझ नहीं पा रही कि आतंकवाद को समर्थन देने से उसका
देश तबाह हो रहा है. पाकिस्तानी लोग अब आतंकवादियों की कठपुतली बन गए हैं. वह
आतंकवादियों की बात मानते हैं. क्या यह हमारा देश है, हमारा समुदाय है. इस सेना ने
देश को बर्बाद कर दिया.’ कहना ना होगा कि पाकिस्तानी फौज और आतंक के बीच गहरा
रिश्ता है.
पाकिस्तान की आतंक के खिलाफ लड़ाई पूरी तरह से
एक ढकोसला है. अगर ऐसा नहीं होता तो वह मुंबई हमले के मास्टरमाइंड लश्कर के प्रमुख
हाफिज सईद को रिहा नहीं करता. हाफिज सईद इस साल के पहले महीने जनवरी में नजरबंद
किया गया था किंतु उसे यह कहकर कि उसके खिलाफ ऐसे कोई सबूत नहीं है कि उसे और अधिक
समय तक प्रतिबंधित रखा जाए छोड़ दिया गया. इस पूरे प्रकरण से यह बात साफ हो गई कि
पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के लिए प्रतिबद्ध नहीं है. पाकिस्तान की आतंकवाद
के खिलाफ लड़ाई के ढोंग का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि उसने 9/11 अमेरिका हमले के मास्टरमाइंड अलकायदा
कमांडर बिन लादेन को अपने देश में पनाह दी और दुनिया को तब तक झूठ बोलता रहा जब तक
कि अमेरिका ने उसे एबटाबाद में मार नहीं दिया, तो दूसरा उदाहरण मुंबई बम कांड के
आरोपी दाऊद इब्राहिम का है जिसे आज भी पाकिस्तान अपने यहां पनाह दिए हुए है. यह
जानते हुए भी कि हाफिज सईद भारत का मोस्ट वांटेड आतंकी है. उसको रिहा करने का मतलब
साफ है कि पाकिस्तान भारत को चिढ़ा रहा है जबकि आज भी कश्मीर में हाफिज की कारगुजारियां
बंद होने का नाम नहीं ले रहीं.
अब एक नया
समाचार आया है कि आतंक का आका हाफिज सईद अब पाकिस्तान की राजनीति में प्रवेश करने
की तैयारी कर रहा है. उसने घोषणा की है कि वह 2018 में पाकिस्तान में होने वाले चुनावों में
अपनी नवगठित राजनीतिक पार्टी ‘मिल्ली मुस्लिम लीग’ से चुनाव लड़ेगा. अब तक हाफिज
सईद पाकिस्तान की नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) का समर्थन किया करता
था. दूसरी तरफ पाकिस्तान के तानाशाह पूर्व राष्ट्रपति जनरल मुशर्रफ भी पाकिस्तान
में दोबारा सत्ता हथियाने की जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने 23 राजनीतिक दलों का एक
गठजोड़ बनाया है जो 2018 के चुनावों में जोर आजमाइश करेगा. मुशर्रफ ने हाफिज की राजनीतिक
महत्वाकांक्षाओं को देखते हुए उसकी तारीफ में कसीदे पढ़ना शुरू कर दिया है. यह तो
स्थापित तथ्य है की मुशर्रफ और आतंकवादियों के घनिष्ठ संबंध पहले से रहे हैं और
आतंकवादियों की पाकिस्तान में भूमिका वे अच्छी तरह जानते हैं. वे यह भी जानते हैं कि
पाकिस्तान की अवाम कट्टरपंथियों और आतंकियों की गिरफ्त में है, इसी को देखते हुए
उन्होंने अपनी सत्ता में वापसी की संभावना बढ़ाने के लिए हाफिज की प्रशंसा करना
शुरू कर दी है. न्यूज़ चैनल एआरवाई को इंटरव्यू देते हुए मुशर्रफ ने कहा कि ‘लश्कर-ए-तैयबा
और उसके संरक्षक हाफिज सईद के वे बहुत बड़े समर्थक हैं. कश्मीर में भारतीय सेना को
दबाने में हाफिज सईद और उनके संगठन लश्कर-ए-तैयबा की बड़ी भूमिका है. वह हाफिज सईद
और लश्कर को बहुत पसंद करते हैं.’ इंटरव्यू में मुशर्रफ ने यह भी स्वीकार किया कि
लश्कर, कश्मीर में आतंकी गतिविधियों में शामिल है. उन्होंने यह भी कहा कि ‘भारत ने
अमेरिका से मिलकर लश्कर को आतंकी समूह घोषित किया है.’
74 वर्षीय मुशर्रफ आज कल दुबई में आत्म
निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं. उनके ऊपर पाकिस्तान में कई मुकदमे दर्ज हैं
लेकिन उनकी पाकिस्तान पर शासन करने की महत्वाकांक्षा खुलकर कुंलाचे मार रही है.
मुशर्रफ ने कश्मीर पर अपने विचार रखते हुए यहां तक कहा कि वे ‘जम्मू कश्मीर में कार्रबाई
और सेना को दबाने के पक्ष में है.’ इससे स्पष्ट होता है कि मुशर्रफ के अंदर भारत
के विरुद्ध कितना जहर भरा हुआ है. जिस हाफिज से वे राजनीतिक गठजोड़ करने के लिए
उतावले हैं उसको और लश्कर-ए-तैयबा को उन्होंने ही अपने कार्यकाल में प्रतिबंधित
संगठन घोषित किया था. विडंबना यह है कि हाफिज सईद जिस पर अमेरिका ने एक करोड़ डालर का इनाम घोषित किया
है जिसकी रिहाई का विरोध करते हुए अमेरिकी डेमोक्रेटिक सांसद तुलसी गबार्ड ने इसे पाकिस्तान का मूर्खता पूर्ण फैसला बताया वही
हाफिज अब राजनीति की मुख्यधारा में शामिल होने जा रहा है, जब कि उसे भारत में जेल
की सलाखों के पीछे होना चाहिए था. हालांकि अभी यह कहना मुश्किल है कि पाकिस्तान चुनाव
आयोग हाफिज की पार्टी मिल्ली मुस्लिम लीग को मान्यता देगा, लेकिन समाचारों के
अनुसार यदि ‘मिल्ली’ को मान्यता नहीं मिली तो हाफिज सईद प्रॉक्सी उम्मीदवार या
किसी दूसरी पार्टी से चुनाव लड़ेगा. साफ जाहिर है कि पाकिस्तान में अब आतंकी लोग देश
की दिशा और दशा तय करने की तैयारी कर रहे हैं, और उनका समर्थन पूर्व सैनिक तानाशाह
जनरल मुशर्रफ कर रहे हैं. यदि यह गठजोड़, जिसके होने की पूरी संभावना है
पाकिस्तानी सत्ता का हिस्सा बनता है तो पाकिस्तान पर आतंकवादियों का राज होगा और
आतंकी गतिविधियों में जो इजाफा होगा उस का सबसे ज्यादा नुकसान भारत को झेलना
पड़ेगा जिसका असर दुनिया की आतंकवाद के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई पर पड़ना निश्चित है. ऐसे में आतंकवाद विरोधी राष्ट्रों का यह
दायित्व है की वह भारत की चिंताओं से वाकिफ होकर न केवल हाफिज को दोबारा गिरफ्तार
करवाए बल्कि इसे चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित करे.
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