डॉ. हरिकृष्ण
बड़ोदिया
राजनीति का
मुख्य लक्ष्य सत्ता प्राप्ति ही होता है इसमें कोई संदेह नहीं. लेकिन सत्ता देना या
ना देना जनता के हाथ में ही होता है. 2014 में जब से प्रधानमंत्री मोदी ने देश की
सत्ता संभाली है तब से विरोधी दलों की सत्ता प्राप्त करने की उत्कट अभिलाषा किसी
से छिपी नहीं है. यही कारण है कि विरोधी दल जब तब प्रधानमंत्री मोदी को गैर
मुनासिब मुद्दों पर घेरने की कोशिश करते रहे हैं, यह देश की जनता अच्छी तरह जानती
है. कांग्रेस और अन्य मोदी विरोधी दल वस्तुतः किसी ऐसे मुद्दे की तलाश में है जिस
पर वे मोदी को पटकनी देकर पुनः अपने वर्चस्व को प्राप्त कर सकें. लेकिन उन्हें आज
तक ऐसा ठोस मुद्दा
नहीं मिला सका. सत्ता के इन साढ़े तीन सालों में मोदी ने कुछ ऐसे दिलेरी भरे कदम उठाए कि जिन का असर निश्चित रूप से भारत की आम जनता को फायदेमंद होगा. लेकिन उन कदमों का छिद्रान्वेष्ण कर विरोधियों ने जनता को भ्रमित करने एवं अधिक से अधिक झूठ प्रचारित करने में अपनी सारी शक्ति झोंक दी है. नोटबंदी के निर्णय ने जहां एक ओर कालेधन वालों को जोर का झटका दिया है तो वहीं दूसरी ओर जीएसटी ने संपूर्ण देश को समान टैक्स के दायरे में लाकर ढेर सारे करों से मुक्ति दिलाई है. हालांकि इन दोनों मुद्दों पर जनता को थोड़ी मुश्किल जरूर पेश आई किंतु इन के सुखद परिणामों के प्रति आशान्वित जनता ने मोदी सरकार को सहयोग किया इसमें शक नहीं. लेकिन विरोधी कांग्रेस इसे पचा नहीं पा रही है.
नहीं मिला सका. सत्ता के इन साढ़े तीन सालों में मोदी ने कुछ ऐसे दिलेरी भरे कदम उठाए कि जिन का असर निश्चित रूप से भारत की आम जनता को फायदेमंद होगा. लेकिन उन कदमों का छिद्रान्वेष्ण कर विरोधियों ने जनता को भ्रमित करने एवं अधिक से अधिक झूठ प्रचारित करने में अपनी सारी शक्ति झोंक दी है. नोटबंदी के निर्णय ने जहां एक ओर कालेधन वालों को जोर का झटका दिया है तो वहीं दूसरी ओर जीएसटी ने संपूर्ण देश को समान टैक्स के दायरे में लाकर ढेर सारे करों से मुक्ति दिलाई है. हालांकि इन दोनों मुद्दों पर जनता को थोड़ी मुश्किल जरूर पेश आई किंतु इन के सुखद परिणामों के प्रति आशान्वित जनता ने मोदी सरकार को सहयोग किया इसमें शक नहीं. लेकिन विरोधी कांग्रेस इसे पचा नहीं पा रही है.
गुजरात विधानसभा चुनावों पर आज न केवल पूरे देश की
नजरें टिकी हैं बल्कि पूरी दुनिया की निगाहें भी टिकी हुई हैं. इसका मुख्य कारण
जहां एक ओर यह मोदी का गृह राज्य होना है तो दूसरी ओर कांग्रेस के अस्तित्व की
परीक्षा है. दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों ने अपनी संपूर्ण शक्ति इन चुनावों में
झोंक रखी है. लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी की प्रतिष्ठा इस चुनाव
पर दांव पर लगी हुई है. यही कारण है कि उन्होंने चुनाव प्रचार में रात दिन एक कर
दिया है तो दूसरी ओर कांग्रेस इन चुनावों में बढ़त लेकर सत्ता प्राप्ति के लिए जी
तोड़ मेहनत कर रही है. निर्विरोध निर्वाचित कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने आज के
पहले तक इतना पसीना किसी चुनाव में नहीं बहाया जितना गुजरात के चुनावों में वहा
रहे हैं. लेकिन कांग्रेस की यह विशेषता रही है कि वह अपने गोलपोस्ट में खुद ही गोल
करने से बच नहीं पाती.
पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली में
नवनिर्मित इंटरनेशनल बाबा साहब अंबेडकर सेंटर का उद्घाटन करते हुए कांग्रेस पर
अंबेडकर के विचारों के दमन का आरोप लगाया और साथ ही राहुल गांधी पर परोक्ष निशाना
साधते हुए यह भी कहा कि कांग्रेस ने एक परिवार को आगे बढ़ाने के लिए बाबा साहब के
विचारों और उनके योगदान को दबाने का काम किया. स्वाभाविक था कि इस पर कांग्रेस का
जबरदस्त पलटवार होना था. प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना का जवाब देने के लिए मणिशंकर
अय्यर आगे आए और उन्होंने सारी मर्यादाओं को तोड़ते हुए कहा कि ‘मुझको लगता है यह आदमी (मोदी) बहुत नीच किस्म
का आदमी है. इसमें कोई सभ्यता नहीं है. और ऐसे मौके पर इस किस्म की गंदी राजनीति
करने की क्या आवश्यकता है?’ भारत का एक-एक व्यक्ति यह जानता है कि कांग्रेस के
मणिशंकर अय्यर भाजपा के राजनीतिक प्रतिद्वंदी से अधिक राजनीतिक दुश्मनी तक की हद
तक विरोधी हैं. कौन नहीं जानता कि ये वही मणिशंकर अय्यर हैं जिन्होंने अपने पाकिस्तान प्रवास में पाक मीडिया
से कहा था कि ‘आप मोदी को हटाने के लिए कुछ कीजिए’ तब उन्हें जवाब मिला था कि यह
काम तो आप ही कर सकते हैं. तब मणिशंकर ने उत्तर दिया था कि हम तो हटाएंगे ही बस
आपको इंतजार करना पड़ेगा. मणिशंकर अय्यर का पिछले साढ़े तीन साल से यही प्रयास
रहा है कि किसी भी तरह से मोदी को अपदस्थ किया जाए और इसके लिए वे हमेशा पाकिस्तान
के सहारे की उम्मीद करते आए हैं. उनके ‘नीच’ वाले बयान के 1 दिन पहले 6 दिसंबर को दिल्ली
में उनके निवास पर मीटिंग में पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री और पाक राजदूत के
साथ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं पूर्व
राष्ट्रपति हामिद अंसारी आदि शामिल हुए थे. बताया जाता है कि पाकिस्तान चाहता है
कि यदि कांग्रेस गुजरात चुनाव जीतती है तो अहमद पटेल को मुख्यमंत्री बनाया जाए.
हालांकि अहमद पटेल ने इसे नकार दिया. कांग्रेस ने पहले तो ऐसी किसी मीटिंग के होने
को निराधार बताया किंतु जब यह बात प्रमाण सहित उजागर हुई तो कांग्रेस की ओर से
आनंद शर्मा ने कहा कि ‘अय्यर के घर पर डिनर मीटिंग थी इसमें भारतीय सेना के पूर्व
प्रमुख, पाकिस्तान में पूर्व उच्चायुक्त, पत्रकार, पूर्व पीएम
मनमोहनसिंह और पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी जैसे लोग शामिल हुए. क्या
अब इसके लिए भी सरकार से अनुमति लेना पड़ेगी. ऐसे आयोजन क्या अपराध हैं. लेकिन
कांग्रेस की इस दलील में इतना दम नहीं था जो उनकी इस मीटिंग को न्यायोचित ठहरा सकती.
दो देशों के वरिष्ठ लोग जो मोदी विरोधी हों और वे मोदी पर कोई बात ना करें यह संभव
नहीं है. लेकिन सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि इस मीटिंग में पूर्व प्रधानमंत्री
मनमोहन सिंह भी शामिल थे. लगता तो यह कि कांग्रेस ने पूर्व पीएम और पूर्व सेनाध्यक्ष
जैसे प्रतिष्ठितों को शामिलकर उन बातों पर पर्दा डालने का प्रयास किया जो
पाकिस्तान के षड्यंत्रों को उजागर कर सकती थी. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी एक तीक्ष्ण
बुद्धि वाले नेता हैं जिन्होंने इस मीटिंग के निहितार्थ को भांप कर कांग्रेस को
कटघरे में खड़ा कर दिया और कांग्रेस पर पाकिस्तान के अफसरों के साथ गुप्त बैठक का
आरोप लगाते हुए गुजरात चुनावों में पाकिस्तान और कांग्रेस की मंशा पर सवाल उठाए. वस्तुतः
मोदी को गुजरात चुनाव में पटकनी देने के लिए कांग्रेस जितनी मेहनत कर आगे बढ़ती है
उससे कहीं अधिक वह अपने नेताओं से की वजह से पीछे हटने को मजबूर हो जाती है.
पिछले दिनों
कांग्रेस के कश्मीरी युवा नेता सलमान निजामी ने अपने एक ट्वीट के जरिए नरेंद्र मोदी पर तंज कसते हुए कहा कि ‘राहुल गांधी
राजीव गांधी के बेटे हैं, जिन्होंने देश के लिए अपनी जान दी. राहुल गांधी इंदिरा
गांधी के पोते हैं जिन्होंने देश के लिए अपनी जान दी. राहुल गांधी जवाहरलाल नेहरु
के पड़पोते हैं जिन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी. कोई बताए कि नरेंद्र मोदी
किसके बेटे हैं, किसके पोते हैं और उन्होंने देश के लिए कौन सा त्याग किया. सोचने
वाली बात है इस तरह की टिप्पणी करने का क्या यह मंतव्य नहीं है कि गांधी परिवार के
अलावा कोई दूसरा व्यक्ति देश का नेतृत्व करने के लायक नहीं है. वंशवाद की परंपरा
का समर्थन कर निजामी क्या पीएम मोदी को नीचा दिखाने का प्रयास नहीं कर रहे थे. निजामी की इस तरह की
बात पर उन्हें कांग्रेस से वाहवाही तो मिल सकती है लेकिन देश की सवा सौ करोड़ जनता
और खास तौर से गुजरात की जनता का समर्थन कैसे मिल सकता है.
प्रधानमंत्री मोदी जो विरोधी पक्ष के हर हमले को
अपने लिए अवसर बनाने में माहिर हैं ने
निजामी के ट्वीट को आधार बनाकर कांग्रेस को बैकफुट पर लाने में देर नहीं की.
उन्होंने कहा कांग्रेस उनसे पूछ रही है कि उनके माता पिता कौन हैं. मैं आप से (जनता) से पूछता हूं कि क्या दुश्मन
के लिए भी ऐसी भाषा का इस्तेमाल करते हैं. कुल मिलाकर कांग्रेस अपने ही लोगों के
बयानों से बैकफुट पर आ गई है. गुजरात के चुनाव संपन्न होने में अब केवल 2 दिन हैं. परिणाम
बताएंगे कि कांग्रेस को अपने लोगों के अशोभनीय बयानों से क्या और कितनी हानि उठानी पड़ी और इन बयानों से भाजपा को कितना लाभ
हुआ. परिणाम बताएंगे कि कांग्रेस ने जनता को कितना अपने पक्ष में किया और कितना
विरोध में. वस्तुतः गुजरात के चुनाव कांग्रेस की किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं
हैं.
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