डॉ. हरिकृष्ण
बड़ोदिया
यह कैसा देश
है जहां एक समुदाय विशेष गणतंत्र दिवस मनाने पर नाराज होता है. यहां भारत माता की जय और वंदे मातरम के घोष इस समुदाय को जहर
भरे तीरों की तरह चुभते हैं. यह समुदाय विशेष बहुसंख्यकों से उनकी
अभिव्यक्ति की आजादी पर पिस्तौल तान कर खड़ा हो जाता है और यह कैसा बहुसंख्यक समाज
है जो दब्बू बनकर हर जुल्म सहने को तत्पर है. यह कैसा लोकतंत्र
है जहां सरकारें समुदाय विशेष के प्रति नरम रवैया बनाए रखती हैं. यह कैसा लोकतंत्र है जिसमें स्वेच्छाचारिता का नंगा नाच होता
है और सरकारें कानो में रुई लगा कर सब कुछ देखती रहती हैं. दुनिया में शायद ही ऐसा कोई देश होगा जिसमें अल्पसंख्यक
समुदाय बहुसंख्यकों पर इतना हावी होगा जितना हमारे देश में है. ऐसे लोकतंत्र से तो तानाशाही अच्छी जिसमें लोगों पर अपने स्वेच्छाचारी आचरण और स्वच्छंद विचारों पर कठोर नियंत्रण लगता है. जहां कानून के आगे सब नतमस्तक होते हैं. 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर स्वेच्छाचारिता का घिनौना नंगा नाच उत्तर प्रदेश के कासगंज में देखने को मिला जहां अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की तिरंगा यात्रा के दौरान मुस्लिम बहुल इलाके में ना केवल पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए गए बल्कि वंदे मातरम कहने वालों पर हमले किए गए. देखते देखते वहां सांप्रदायिक हिंसा इस कदर भड़की कि समुदाय विशेष ने बहुसंख्यक समाज के एक व्यक्ति चंदन गुप्ता की हत्या कर दी और कईयों को घायल कर दिया.
समुदाय बहुसंख्यकों पर इतना हावी होगा जितना हमारे देश में है. ऐसे लोकतंत्र से तो तानाशाही अच्छी जिसमें लोगों पर अपने स्वेच्छाचारी आचरण और स्वच्छंद विचारों पर कठोर नियंत्रण लगता है. जहां कानून के आगे सब नतमस्तक होते हैं. 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर स्वेच्छाचारिता का घिनौना नंगा नाच उत्तर प्रदेश के कासगंज में देखने को मिला जहां अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की तिरंगा यात्रा के दौरान मुस्लिम बहुल इलाके में ना केवल पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए गए बल्कि वंदे मातरम कहने वालों पर हमले किए गए. देखते देखते वहां सांप्रदायिक हिंसा इस कदर भड़की कि समुदाय विशेष ने बहुसंख्यक समाज के एक व्यक्ति चंदन गुप्ता की हत्या कर दी और कईयों को घायल कर दिया.
कितनी विडंबना है कि देश की आजादी के लिए देश की
हर एक कौम ने 1947 से पहले वंदे मातरम का जयघोष करते हुए अंग्रेजों की चूलें हिला
दी थीं. लेकिन आज उसी वंदे मातरम से देश का मुस्लिम इतना चिढ़ने लगा है कि उसके दिलो दिमाग में विद्वेष का ज्वार उमड़ रहा है. कासगंज ही नहीं बल्कि देश के हर कोने में
बैठा मुस्लिम वर्ग वंदे मातरम को अपनी कौम का दुश्मन मानता है. वंदे मातरम् पर
इतनी असहिष्णुता क्यों है, समझ से परे है. भारतीय संविधान ने देश को एक
धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाया तो इसका मतलब यह तो नहीं कि एक वर्ग दूसरे वर्ग के
प्रति असहिष्णु हो जाए. धर्मनिरपेक्षता के मापदंड स्वयं तय किए जाएं कि हम ऐसा कर
सकते हैं लेकिन तुम ऐसा नहीं कर सकते. देश भर में कई आंदोलन और धरने होते रहते हैं,
कई प्रदर्शन होते हैं, कई धार्मिक आयोजन होते हैं और इन सब में प्रत्येक नागरिक को
अपने अपने विचारों के अनुसार, अपने अपने धर्म के अनुसार संविधान के दायरे में रहते
हुए भाग लेने या मनाने की इजाजत है. तब यह क्यों होता है कि एक वर्ग अपने मनमाने व्यवहारों को करने के लिए स्वतंत्र हो और
वह दूसरे वर्ग की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाए. यह उचित नहीं है और स्वीकार्य भी नहीं
है.
कासगंज की घटना मुस्लिम वर्ग की असहिष्णुता को
उजागर करती है. समाचारों के अनुसार गणतंत्र दिवस पर एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने
तिरंगा रैली का आयोजन किया था. यह रैली जब मुस्लिम बहुल वाले बडू नगर मोहल्ले से
गुजर रही थी वहां कुछ विघ्न संतोषीयों ने इस पर हमला किया. हमला इस बात को लेकर
हुआ कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के लोग वंदे मातरम, भारत माता की जय और पाकिस्तान मुर्दाबाद के
नारे लगा रहे थे. बताया जाता है कि इस रैली में एक भगवा झंडा भी था. जिसको मुद्दा
बना कर हिंदू विरोधी मानसिकता वाले लोग सवाल खड़े कर रहे हैं. यदि ऐसा था भी तो
क्या हिंदुओं को इतनी आजादी नहीं कि वे भगवा झंडा अपने हाथों में लेकर चल सकें.
क्या उन्हें बोलने की आजादी नहीं कि वे वंदे मातरम और भारत माता की जय के नारे लगा
सकें. कौन नहीं जानता कि जब मुस्लिम त्योहारों पर मुस्लिम भाई हरे झंडे लेकर चलते
हैं तो हिंदू समुदाय को तो कोई ऐतराज नहीं होता.
वस्तुतः देश में जब से भाजपा शासन में आई है तब से
भाजपा विरोधी मुस्लिम तबका और तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादी ना केवल परेशान हैं
बल्कि बौखलाए हुए हैं. उन्हें हिंदुओं की हर बात पर एतराज होने लगा है. बात-बात पर
हिंदुओं को गालियां दी जा रही हैं. आखिर क्यों? क्या इसलिए ही कि अब इनके स्वार्थ
पूरे नहीं हो रहे हैं. क्या इसलिए कि देश में भ्रष्टाचार पर अंकुश लग रहा है. क्या
इसलिए कि देश की हिंदू कौम में अपने हिंदू होने का गौरव जाग रहा है. क्या इसलिए कि
देश को तोड़ने की नहीं जोड़ने की बात की जा रही है. क्या इसलिए की राष्ट्रवाद की
सोच को विकसित किया जा रहा है. आज तथाकथित सेकुलर लोगों की मानसिकता विध्वंसक होती
जा रही है. हिंदुओं को तोड़ने के लिए दलितों को उससे अलग बताया जा रहा है. जातियों
को विभाजित किया जा रहा है. समाज को जाति
और वर्ग में बांटने की साजिश हो रही है. कल तक जो दादरी के अखलाक की हत्या पर और वेमुला की मौत पर छाती पीट पीटकर असहिष्णुता का राग अलाप रहे थे चेतन गुप्ता की
हत्या पर खामोश हैं. अब कोई अवार्ड वापसी गैंग कहीं नहीं दिखाई दे रही. तथाकथित
धर्मनिरपेक्षतावादी तबका, जिहादी मानसिकता वाले लोगों का समर्थन कर रहा है. मोदी
विरोधी लोग यह सिद्ध करने में जुटे हैं कि मुस्लिम बहुल इलाकों में वंदे मातरम
भारत माता की जय और पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे क्यों लगाए गए. तिरंगा यात्रा की
परमिशन क्यों नहीं ली गई. यह कैसा देश है जहां राष्ट्रीय पर्व मनाने के लिए परमिशन
लेने की बात की जा रही है. वाह रे सेक्युलरो 20 करोड़ लोगों को यह अधिकार है कि वह वंदे
मातरम नहीं बोलेंगे लेकिन 100 करोड़ लोगों को यह अधिकार नहीं वे अपने राष्ट्र, अपने
प्रदेश, अपने शहर में उस मोहल्ले में जहां मुसलमान रहते हैं वंदे मातरम और भारत
माता की जय का उद्घोष कर सकें. देश की आजादी के बाद के 60 सालों तक कांग्रेस ने जो मुस्लिम तुष्टीकरण किया उसका प्रतिफल आज देश को भुगतना पड़ रहा
है. यह तुष्टीकरण का ही नतीजा है कि कश्मीर का जेहादी नासिर मुफ्ती भारत में एक और
पाकिस्तान की मांग कर रहा है. तुष्टिकरण का बीज कांग्रेस ने बोया है और खमियाजा देश
के आम नागरिक उठाने को मजबूर हैं. जेहादी मानसिकता वाले नासिर मुफ्ती ने कहा कि ‘भारत
में मुसलमानों की आबादी 17 करोड़ के पार हो गई है, यह समय है एक नया देश मांगने का. जब
मुसलमानों ने भारत को बंटवाकर पाकिस्तान बनवाया था तब भी मुसलमानों की आबादी 17 करोड़ थी.’ क्या यह
बयान राष्ट्रद्रोह नहीं है. क्या इस राष्ट्रद्रोही नासिर मुफ्ती को सलाखों के पीछे
नहीं होना चाहिए. सच्चाई तो यह है कि मोदी विरोधी और तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादी
दल मोदी को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं. मुफ्ती के इस भड़काऊ बयान से तो साफ़ है
कि मुसलमान अपने संख्याबल को देखते हुए स्वेच्छाचारी बनने को उतावले हैं. भारत को
तोड़ने के लिए जिहादी मानसिकता वाले नासिर मुफ्ती जैसे लोग आगे आ रहे हैं. देश का
तथाकथित धर्मनिरपेक्ष धड़ा मौन है. गुजरात में हिंदुओं के वोटों के लिए मंदिर
मंदिर माथा टेकने वाले, जनेऊ धारी हिंदू
बनने वाले लोगों के ओंठ सिल गए हैं. कारण 2019 में मुसलमानों के थोक बंद वोट चाहिए. ऐसी
तुष्टिकरण की राजनीति से देश का कितना भला होगा समझ से परे है. वक्त आ गया है
देशद्रोही मानसिकता का प्रतिकार करने का. देश विरोधी ताकतों को सबक सिखाने का. अब
भी नहीं समझे तो देश के टुकड़े करने वाले जीतेंगे और राष्ट्रवादी हाथ मलते रह
जाएंगे.
Dr. sahab se anurodh hai ki wo anusuchit jati or anisuchit jan jati ke khilaf ho rahi ghatnao per bhi vichar pragat kare, kyonki wo bhi sayad hindu hi hain.
जवाब देंहटाएंशायद नहीं सर वे मूल हिन्दू हैं उन्हें अपने आप को अलग समझना देश और हिन्दू समाज के साथ अन्याय होगा। आपने लेख पढ़ा हार्दिक धन्यवाद
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