डॉ. हरिकृष्ण
बड़ोदिया
मोदी की
जनकल्याणकारी छवि विपक्षियों को रास नहीं आ रही यही कारण है कि समूचा विपक्ष और
खास तौर से कांग्रेस मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोपों को मुखर होकर प्राथमिकता
दे रही है. कांग्रेस यह जानती है यूपीए के 10 साल में हुए भ्रष्टाचारों ने कांग्रेस को
रसातल में पहुंचाने का काम किया. यही कारण है कि कांग्रेस की प्राथमिकता में मोदी सरकार
पर भ्रष्टाचार के आरोप मढ़ना प्रमुख हैं. वर्तमान में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी
हर मंच से मोदी सरकार पर राफेल खरीद में भ्रष्टाचार और नीरव मोदी के पंजाब
नेशनल बेंक घोटाले को मोदी से जोड़कर उन पर हमला करने का कोई मौका हाथ से
नहीं जाने देना चाहते. क्योंकि वह जानते हैं कि देश की जनता सब कुछ सह लेती है
किंतु भ्रष्टाचार के मामलों में वह किसी को नहीं बख्शती, जिसका उदाहरण 2014 में उन्हें
करारी हार का सामना करना पड़ा.
बात अगर राफेल की करें तो कांग्रेस का मानना है
कि राफेल विमान खरीद में भ्रष्टाचार हुआ है जिसे छुपाया जा रहा है. लेकिन सच्चाई
कुछ और है. वस्तुतः राफेल खरीद मोदी सरकार की उस सजगता और सतर्कता का परिणाम है जिसकी
अनदेखी कांग्रेस सरकार ने देश की सुरक्षा की प्राथमिकता को ताक पर रखकर की थी.
वास्तविकता यह है कि यूपीए शासन ने देश की रक्षा व्यवस्थाओं को इस कदर रसातल में
पहुंचा दिया था कि ना तो सेना के पास गोला बारुद था और ना उच्च तकनीक के रक्षा
उपकरण और ना ही अत्याधुनिक फाइटर विमान जिनसे वक्त आने पर सेना दुश्मन के साथ लंबे
समय तक युद्ध कर सके. यूपीए शासन के कार्यकाल में वायु सेना ने 126 विमानों की आवश्यकता
बताई थी. वायु सेना उन विमानों को साजो सामान से हटाना चाहती थी जो पुराने पड़
चुके थे. यही कारण था की वायु सेना ने 2007 में यह प्रस्ताव सरकार के पास भेजा था
किंतु इस पर सरकार ने कोई खास तवज्जो नहीं दी थी. रिटायर्ड मेजर जनरल हर्ष कक्कड़
के अनुसार ‘तोपखाने में बोफोर्स के बाद कोई खरीदी नहीं हुई क्योंकि तत्कालीन रक्षा
मंत्री ए के एंटनी ने रक्षा सौदों को मंजूरी इसलिए नहीं दी क्योंकि यूपीए सरकार
लगातार घोटालों मैं आरोपी हो रही थी’ और सच्चाई यह थी कि एंटोनी नहीं चाहते थे कि
उनकी साफ-सुथरी छवि पर कोई आंच आए इसके लिए उन्होंने स्वयं को पाक साफ बनाए रखने
के लिए सेना को सुदृढ़ करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए. सेना का जितना बुरा हाल
यूपीए के शासन काल में हुआ उतना कभी नहीं हुआ. ‘बदइंतजामी, खराब उपकरणों और नौसेना
में कई दुर्घटनाओं के चलते एडमिरल डी के जोशी ने इस्तीफा दिया था, यही नहीं
तत्कालीन थल सेना अध्यक्ष जनरल वीके सिंह ने भी सैन्यबलों की कमी के संबंध में
सरकार को पत्र लिखा था लेकिन उस पर भी सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया था. राफेल
फाइटर सौदों के बारे में रिटायर्ड मेजर जनरल हर्ष कक्कड़ कहते हैं कि ‘विमान की
कीमत कभी बुनियादी नहीं होती जैसा कि कांग्रेस मोदी सरकार पर आरोप लगा रही है’.
कांग्रेस कह रही है कि उसके शासनकाल में राफेल की कीमत 526.1 करोड़ थी. मेजर
कक्कड़ कहते हैं कि ‘कीमत वैमानिकी, अस्त्र-शस्त्र, रखरखाव और साजो-सामान पर
निर्भर करती है और इन्हें तय करने का एकमात्र अधिकार वायुसेना के पास
होता है और यह सारे पहलू गोपनीय होते हैं इन्हें सार्वजनिक इसलिए नहीं किया जाता
क्योंकि यह देश की सुरक्षा से जुड़े होते हैं.’ वस्तुतः कांग्रेस बार-बार मोदी
सरकार पर आरोप लगा रही है और कह रही है कि मोदी जी बताएं कि 2008 में यूपीए के
शासन में राफेल सौदे की बातचीत चली थी तब इसकी कीमत 526.1 करोड़ थी और
अब यह लगभग 3 गुना, 1570.8 करोड़ क्यों है. राहुल गांधी यही
कहकर मोदी सरकार पर राफेल खरीद में भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं. सच्चाई तो यह है कि बार-बार आरोपों के बाद भी मोदी सरकार ने
कीमत नहीं बताई है तो उसका कारण यही है सौदे के सारे पहलू अति गोपनीय और सुरक्षा
पहलुओं से जुड़े होते हैं जिनकी सार्वजनिक चर्चा नहीं की जा सकती. किंतु रक्षा मंत्रालय
के उच्च सूत्रों ने राफेल की बढ़ी कीमत की वजह बताई है. 36 राफेल विमानों की
कीमत 27216 करोड़ है.
विमानों के स्पेयर पार्ट की कीमत 14400 करोड़ है. जलवायु के
अनुरूप बदलाव करने में 13600 करोड और उसके भारत में रखरखाव के इंतजाम पर 2824 करोड़ खर्च
पड़
रहा है. सब जोड़ने पर 36 राफेल की कीमत 58040 करोड़ हुई और
इस तरह एक राफेल की कीमत 1612 करोड़ रुपए होती है.
फ़्रांस के साथ
राफेल विमानों का सौदा 23 सितंबर 2016 को हुआ न कि 2014 में जैसा
कांग्रेस कह रही है. मोदी सरकार ने राफेल बनाने वाली कंपनी द साल्ट से डील न कर डील
फ्रांस सरकार से की जिसकी वजह से भ्रष्टाचार की आशंका पूरी तरह निर्मूल हो जाती है.
सौदे की प्रमुख बात यह है कि इसमें विमानों के साथ सभी जरूरी रक्षा उपकरण, सेवाओं
और हथियारों से युक्त 36 विमान खरीदे जाएंगे. ये सभी विमान अप्रैल 2022 तक भारत को
मिल जाएंगे. सच्चाई तो यह है कि देरी और दलाली से यूपीए सरकार में अभिशप्त रहे
रक्षा सौदों में मोदी सरकार ने तेजी से काम किया जो सेना की रक्षा आवष्यकताओं की
पूर्ति और मनोबल बढ़ाने के लिए अत्यंत आवश्यक था, क्योंकि इन 36 विमानों की खरीद से
पहले 17 सालों तक केंद्र
सरकार आंख बंद कर सोती रही थी. इस सौदे का प्रमुख पहलू यह है कि इससे फ्रांस को जो
आय होगी उसकी आधी रकम उसे भारत में निवेश करना होगी. जो भारत के लिए लाभदायक होगा.
जैसे जैसे 2019 पास आता जाएगा वैसे वैसे सारे विपक्षी दल
मोदी को घेरने की कोशिश करते चले जाएंगे. राहुल गांधी के ट्वीट इस बात का प्रमाण हैं
कि वह इस मुद्दे को प्रमुख बनाए रखेंगे. उनके ट्वीट कि ‘प्रधानमंत्री मोदी राफेल
विमान सौदा और नीरव मोदी घोटाले पर बोलें’ इस बात के प्रमाण हैं. वस्तुतः कांग्रेस
के पास इस सौदे से जुड़े भ्रष्टाचार के कोई प्रमाण नहीं हैं और ना हो सकते हैं.
क्योंकि यह सौदा सरकारों के बीच हुआ है और इसमें कोई बिचोलिया नाम की चीज नहीं है.
यदि कांग्रेस के पास प्रमाण होते तो वह
उछल-उछल कर अब तक सब कुछ उजागर कर देती. सच्चाई तो यह है कि राफेल खरीद में
प्रधानमंत्री मोदी या केंद्र सरकार पर भ्रष्टाचार की आशंका पूर्णत: आधारहीन है.
स्वयं रक्षा मंत्री ने कहा है कि सौदों के संबंध में जानकारी सुरक्षा कारणों से
सार्वजनिक नहीं की जा सकती. लेकिन कांग्रेस के पास 2019 के चुनावों में जाने के लिए कुछ तो मुद्दा
चाहिए. इसलिए वह राफेल सौदों को इलास्टिक की तरह खींच रही है लेकिन उसे नहीं मालूम
कि यदि तन्यता से अधिक इलास्टिक खींचा गया तो टूटने पर घातक चोट उसे ही ले डूबेगी.
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