गुरुवार, 8 मार्च 2018

महिलाओं की सतर्कता में ही उनकी सुरक्षा है.....

                 

                          डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया
                    (अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष)
    अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर दिल्ली गेंग रेप की शिकार 23 वर्षीय “निर्भया” को अमेरिका ने मरणोपरांत अंतर्राष्ट्रीय साहसिक महिला पुरस्कार से सम्मानित किया था. 16 दिसम्बर 2012 को भारत के आपराधिक इतिहास की जघन्य घटना की विक्टिम निर्भया के साथ न केवल गेंग रेप हुआ था बल्कि उसको क्रूरता ने अपने शिकंजे में कुछ इस तरह जकडा कि वह अपने जीवन को नहीं बचा सकी थी. लेकिन उसकी दिलेरी और अन्याय के खिलाफ उसकी जद्दोजहद ने समूचे विश्व की महिलाओं को वह रास्ता दिखाया जिसकी आज बेहद जरूरत है. यूँ विश्व के कई विकसित और विकासशील देशों में भी महिलायों के खिलाफ यौन अपराध और शोषण जैसी घटनाओं का ग्राफ कुछ कम नहीं है किन्तु भारत जैसे प्राचीन और उच्च सामाजिक – सांस्कृतिक मूल्यों वाले देश में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा और यौन शोषण जैसी घटनाएँ चिंतनीय हैं. प्रश्न इस बात का है कि आखिर हमारे मानवीय और
सामाजिक मूल्यों का अवमूल्यन इतनी तेजी से क्यों हो रहा है. क्या वाकई सामाजिक संरचना की विभिन्न इकाईयों के प्रकार्यों ने पतन की ओर गमन करना शुरू कर दिया है. लगता तो ऐसा ही है. सामजिक जीवन के स्थापित सामाजिक सांस्कृतिक मूल्य तिरोहित हो रहे हैं. भौतिक वादी सोच के प्रसार ने भारतीय समाज के धार्मिक और आध्यात्मिक सोच पर हाबी होना प्रारम्भ कर दिया है. अब महिला केवल भोग की वस्तु के रूप में देखी जा रही है. पुरुष वर्ग की मौज मस्ती और अनियंत्रित व्यवहारों के सामने महिलाओं की आधी आबादी स्वयं को असहाय महसूस कर रही है. क्या ऐसा होना समाज के लिए घातक नहीं है. वस्तुतः अगर यही सब होता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब महिलाएं घरों से बाहर न निकलने के लिए मजबूर हो जाएँगी. इतिहास उस काल को दोहराएगा जब महिलाएं परदे में रहने के लिए मजबूर थीं. यह समाज के लिए चिंतनीय स्थिति है.
    लेकिन सच्चाई यह है कि महिलाओं को अब समाज में छुपे ऐसे तत्वों से जो उनकी अस्मत और जान के दुश्मन हैं से लोहा लेने के लिए कमर कसना होगी. अब महिलाओं को अबला नहीं सबला बनना होगा ठीक निर्भया  की तरह. स्वयं की रक्षा के लिए हर संभव उपाय स्वमेव करने होंगे. स्वयं में वह सामर्थ्य पैदा करनी होगी जिसके रहते कोई अपराधी अपराध करने की हिम्मत ही न जुटा सके. लगातार हो रहे सामाजिक परिवर्तनों के फलस्वरूप नैतिक और चारित्रिक मूल्यों में परिवर्तन आ रहे हैं.नजरिया और सोच बदल रहा है. कन्या भ्रूण हत्या के कारण महिलाओं की संख्या में निरंतर गिरावट आ रही है. पुरुषवर्ग की अपनी कामेच्छाओं की पूर्ति पारम्परिक रीति रिवाजों यथा विवाह से पूर्ण किये जाने से वंचित होने को मजबूर हैं. कई ऐसे राज्य हैं जहां महिलाओं की कमी के कारण युवक विवाह हेतु दूसरे राज्यों से तथाकथित विवाह के लिए दुल्हनें खरीद रहे हैं. इन्ही और ऐसे राज्यों में यौन अपराधों की संख्या का ग्राफ भी ऊँचा है. ऐसे में महिलाओं की सुरक्षा तब तक संभव नहीं जब तक इन स्थितियों में बदलाव न हो.
      सवाल इस बात का है कि महिलाएं पुरुषों द्वारा किये जाने वाले उनके विरुद्ध अपराधों से निबटें कैसे. सबसे महत्वपूर्ण बात यही है कि महिलाओं को अपने मन में बैठे डर पर विजय पाने की कोशिश करना चाहिए. डर व्यक्ति को जुल्म सहने को मजबूर करता है. जिस दिन महिलाओं ने अपने मन के डर पर विजय पा ली समझ लीजिए अपराधी को दुम दबाकर भागने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. समाज में बुराइयां हैं किन्तु क्या अच्छाइयां नहीं हैं? समाज में बुरे लोग हैं तो अच्छे लोग भी हैं. महिलाओं को आवश्यक यह है कि वे अच्छे और बुरे व्यक्तियों की पहचान कर सकने की अपने में सामर्थ्य पैदा करें. आज कई महिलाएं तो इसलिए परेशान होती हैं कि वे यह पहचान कर पाने में असमर्थ होती हैं कि कौन व्यक्ति क्या है. इसके लिये उन्हें अपने अंदर के “पुलिस वाले” को जगाना होगा. आशय यह कि जिस तरह पुलिस अपराधियों को पकड़ने के लिए शक का सहारा लेती है, शक की बिना पर वह जघन्य अपराधियों तक पहुँचने में कामयाब होती है उसी तरह महिलायें भी शक के आधार पर अच्छे और बुरे  व्यक्तियों की पहचान कर सकती हैं. जिस दिन महिलाओं ने अपनी तर्क शक्ति के आधार पर शक करना सीख लिया उस दिन से वह अच्छे और बुरे व्यक्ति की पहचान करने में सक्षम हो जायेगी जो उसे कई मुसीबतों से बचाने में सहायक हो सकता है. दूसरी बात यह कि महिलाएं कई बार लोगों पर आँख बंद कर विश्वास करती हैं यह स्थिति संकटों को आमंत्रित करने के लिए पर्याप्त है अत: यह जरूरी है कि वे किसी पर भी आँख बंद कर भरोसा न करें ऐसा करना उन्हें कई समस्याओं से निजात दिला सकता है.
   अक्सर महिलाओं की वेशभूषा पर सवाल उठए जाते हैं जिनमें बहुत अंशों तक सच्चाई भी है. मेरा मानना है कि घर से बाहर निकलने के पहले इस बात पर जरूर विचार किया जाना चाहिए कि कौन से वस्त्र आपको अपराधियों की कामुक आँखों से बचा सकते हैं. जिस दिन आपने अपने घर और बाहर पहनने वाले वस्त्रों का चयन करना सीख लिया समझ लीजिए आपकी सुरक्षा समस्या आधी रह जायेगी. यह एक प्रचलित सोच है कि महिलाओं को बेबकूफ बनाना आसान होता है. वस्तुत: यही एक आधार है कि अपराधी महिलाओं को बहलाने फुसलाने में कामयाब हो जाते हैं. इस का निवारण तभी सम्भव है जब महिलाएं अपनी भावुकता और संवेदनाओं पर नियंत्रण करना सीखें. यदि ऐसा नियंत्रण करना वे सीख जायें तो निश्चित ही बेबकूफ बनाये जाने से बच सकती हैं. महिलाओं की निश्छलता भी उनकी सबसे बड़ी दुश्मन होती है इसके चलते वे अपने घर और मन की बातें बिना सोचे समझे दूसरों से शेयर करती हैं यह कतई उचित नहीं है इससे बचने की हर संभव कोशिश करना चाहिए. आप अपनी प्रसन्नता और व्यथाएं केवल अपने घर के लोगों से ही शेयर करें किसी ऐसे व्यक्ति से शेयर न करें जिससे आपके औपचारिक सम्बन्ध हैं. ईश्वर ने महिलाओं को दयालु बनाया है लेकिन आज के वक्त में दयालुता और सदाशयता भी कई बार कठिनाइयों में बदल सकती है इसलिए इन गुणों का इजहार करने के पहले सोचें कि क्या ऐसा करना अति आवश्यक है. बनते कोशिश इन गुणों पर नियंत्रण करना सीखें. नियमित रूप से समाचार पत्र पढ़ें. रोज घटने वाली घटनाओं की टेलीविजन न्यूज से अपने को जोड़े रखें. उन परिस्थितियों पर गौर करें जिनके चलते अपराधी अपराध करने में सफल हुए.यह इसलिए आवश्यक है अधिकांश अपराधों का तरीका पूर्व घटित अपराधों से मिलता जुलता ही होता है. क्योंकि अपराधी अपने पूर्व के अपराधियों से प्रेरणा पाकर ही अपराध करते देखे गए हैं.
   भारतीय महिलाओं की सबसे बड़ी कमजोरी आंसू बहाना होती है. उन्हें इस पर भी नियंत्रण करना आना चाहिए. विषम परिस्थितियों में आंसूं बहाने की जगह बचने के रास्ते ढूंढने के प्रयत्न करना चाहिए. कुल मिलाकर महिलाओं को यह आवश्यक है कि हर स्थिति को अपने पक्ष में बदलने , समस्या से लोहा लेने , सही वक्त पर सही निर्णय करने , अपराध और अपराधियों को सूंघ पाने की क्षमता विकसित करना चाहिए बेहतर यह भी होगा कि विषम परिस्थितियों में अपरिचितों से मदद लेने की जगह पुलिस की मदद लेने की हर संभव कोशिश की जाये. अगर आप सतर्क हैं तो सुरक्षा आपके बस में है. अगर एक वाक्य में कहा जाये तो सतर्कता में ही आपकी सुरक्षा है.    



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