डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया
‘हाँ मैं अराजकतावादी हूं’ कहने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी बात पर हमेशा अडिग रहते हैं. वह वाकई अराजकतावादी हैं. यदि अराजकतावादी ना होते तो दिल्ली की सूरत बदलते देर नहीं लगती. जिस दिल्ली की जनता ने उन्हें 70 में से 67 सीटें देकर छप्पर फाड़ समर्थन दिया उसी दिल्ली की जनता आज भौंचक होकर केजरीवाल के तमाशे देख रही है. दिल्ली की जनता ने परिवर्तन इसलिए किया था कि टीम केजरीवाल के नए युवा लोग, ईमानदार और विकास की बात करने वाले अधिकांश साधारण परिवारों से आने वाले विधायक उनकी आकांक्षाओं, अपेक्षाओं पर खरे उतरेंगे, दिल्ली की जनता के दुख दर्द को कम करेंगे लेकिन ऐसा कुछ ना हुआ बल्कि आज दिल्ली की जनता परेशानियों से जूझ रही है. बिजली पानी सड़कों और दूषित पर्यावरण में सुधार करने का वादा करने वाले लोग आज दिल्ली की जनता की छाती पर मूंग दलने का काम
कर रहे हैं. ना पानी की व्यवस्था में सुधार हुआ और ना बिजली और सड़कों में सुधार हुआ. हुआ तो विधायकों, मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की माली हालत में. भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के सारे वादे खोखले साबित हुए. भ्रष्टाचार की शिकायत करने के लिए जनता को फोन नंबर देने वाले कब भ्रष्टाचार में खुद शामिल हो गए पता ही नहीं चला. मंत्री सुरेंद्र जैन जैसे लोग बेनामी संपत्ति के मालिक बन गए और सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी. खोखले वादों के साथ बेशर्मी से शासन चलाने वाली आप अपनी नाकामी का ठीकरा केंद्र सरकार पर फोड़ती रही और विकास कार्यों की धज्जियां उड़ाई जाती रहीं. बड़बोले अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, सोमनाथ, सुरेंद्र जैन, आशीष खेतान और पूर्व पत्रकार आशुतोष जैसे लोग दिल्ली की जनता को अपना गुलाम समझकर बकवास करते रहे. रात दिन मोदी, भाजपा और एलजी को कोसते रहे लेकिन जनता के कल्याण के लिए उनके पास वक्त नहीं रहा. 2015 में सत्ता में आने के बाद से इन 3 सालों में दिल्ली की जनता के चेहरों की मुस्कान गायब हो गई. किंतु तब भी बेशर्मी की पराकाष्ठा से ‘आप’ बाज नहीं आई. वाकई अरविंद केजरीवाल अराजकतावादी हैं उनकी अराजकतावादी सोच का परिणाम ही है कि वह ना तो केंद्र सरकार से अच्छे संबंध बना पाए और ना दिल्ली के उपराज्यपाल से. अपनी नाकामी का ठीकरा आप के नेताओं ने हमेशा केंद्र सरकार, भाजपा, मोदी और उपराज्यपाल के सर पर फोड़ा. काम किया नहीं और करोड़ों रुपए देशभर में अपनी सरकार के गौरवगान में विज्ञापन देकर जनता के टैक्स की रकम बर्बाद कर दी.
‘हाँ मैं अराजकतावादी हूं’ कहने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी बात पर हमेशा अडिग रहते हैं. वह वाकई अराजकतावादी हैं. यदि अराजकतावादी ना होते तो दिल्ली की सूरत बदलते देर नहीं लगती. जिस दिल्ली की जनता ने उन्हें 70 में से 67 सीटें देकर छप्पर फाड़ समर्थन दिया उसी दिल्ली की जनता आज भौंचक होकर केजरीवाल के तमाशे देख रही है. दिल्ली की जनता ने परिवर्तन इसलिए किया था कि टीम केजरीवाल के नए युवा लोग, ईमानदार और विकास की बात करने वाले अधिकांश साधारण परिवारों से आने वाले विधायक उनकी आकांक्षाओं, अपेक्षाओं पर खरे उतरेंगे, दिल्ली की जनता के दुख दर्द को कम करेंगे लेकिन ऐसा कुछ ना हुआ बल्कि आज दिल्ली की जनता परेशानियों से जूझ रही है. बिजली पानी सड़कों और दूषित पर्यावरण में सुधार करने का वादा करने वाले लोग आज दिल्ली की जनता की छाती पर मूंग दलने का काम
कर रहे हैं. ना पानी की व्यवस्था में सुधार हुआ और ना बिजली और सड़कों में सुधार हुआ. हुआ तो विधायकों, मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की माली हालत में. भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के सारे वादे खोखले साबित हुए. भ्रष्टाचार की शिकायत करने के लिए जनता को फोन नंबर देने वाले कब भ्रष्टाचार में खुद शामिल हो गए पता ही नहीं चला. मंत्री सुरेंद्र जैन जैसे लोग बेनामी संपत्ति के मालिक बन गए और सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी. खोखले वादों के साथ बेशर्मी से शासन चलाने वाली आप अपनी नाकामी का ठीकरा केंद्र सरकार पर फोड़ती रही और विकास कार्यों की धज्जियां उड़ाई जाती रहीं. बड़बोले अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, सोमनाथ, सुरेंद्र जैन, आशीष खेतान और पूर्व पत्रकार आशुतोष जैसे लोग दिल्ली की जनता को अपना गुलाम समझकर बकवास करते रहे. रात दिन मोदी, भाजपा और एलजी को कोसते रहे लेकिन जनता के कल्याण के लिए उनके पास वक्त नहीं रहा. 2015 में सत्ता में आने के बाद से इन 3 सालों में दिल्ली की जनता के चेहरों की मुस्कान गायब हो गई. किंतु तब भी बेशर्मी की पराकाष्ठा से ‘आप’ बाज नहीं आई. वाकई अरविंद केजरीवाल अराजकतावादी हैं उनकी अराजकतावादी सोच का परिणाम ही है कि वह ना तो केंद्र सरकार से अच्छे संबंध बना पाए और ना दिल्ली के उपराज्यपाल से. अपनी नाकामी का ठीकरा आप के नेताओं ने हमेशा केंद्र सरकार, भाजपा, मोदी और उपराज्यपाल के सर पर फोड़ा. काम किया नहीं और करोड़ों रुपए देशभर में अपनी सरकार के गौरवगान में विज्ञापन देकर जनता के टैक्स की रकम बर्बाद कर दी.
सरकार के जनहित कार्यों का क्रियान्वयन अधिकारी
तंत्र के माध्यम से होता है. कोई सरकार और उसका नेतृत्व करने वाले लोग जब तक
अधिकारियों से सौहार्दपूर्ण ढंग से व्यवहार नहीं करेंगे तब तक अपने लक्ष्यों को
प्राप्त नहीं कर सकते. अधिकारी तंत्र से समन्वय सरकार के लक्ष्यों को पूरा करने
में केंद्रीय धुरी होते हैं. मान लिया जाए कि राजनीतिक दलों में वैचारिक समन्वय
नहीं हो सकता, हर एक राजनीतिक दल के अपने लक्ष्य और उद्देश्य होते हैं. हर एक के
काम करने के तरीके अलग होते हैं इसलिए उनके बीच तनातनी और राग द्वेष संभव है. लेकिन
अधिकारी तंत्र से यदि सत्ताधारी लोग दोयम दर्जे का व्यवहार करें तो सत्ता के जन
कल्याण के कार्य कभी पूरे नहीं हो सकते और दिल्ली सरकार इसी तरह के व्यवहार से
दिल्ली की जनता की आकांक्षाओं में पलीता लगा रही है. ना तो वह केंद्र सरकार से
समन्वय कर सकी और ना ही अधिकारी तंत्र से. हर स्तर पर विवाद खड़ा करने वाले ‘आप’
नेताओं ने दिल्ली की जनता का जो नुकसान किया है उसकी भरपाई कभी संभव नहीं होगी.
‘आप’ नेताओं
का मुख्य सचिव से विवाद का ताजा मामला इस बात को स्पष्ट करता है. दिल्ली के मुख्य
सचिव अंशु प्रकाश के साथ 19 फरवरी को घटित घटना इसी ओर इशारा करती है कि ‘आप’ के अराजक
मंत्री और विधायक लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में विश्वास नहीं करते. जब सरकार के
विधायक प्रमुख सचिव जैसे महत्वपूर्ण और उच्च पद के व्यक्ति के साथ मारपीट कर सकते
हैं तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितने बेलगाम हैं ये लोग. सत्ताधारी आप के
जिम्मेदार नेताओं ने मुख्य सचिव को रात 12 बजे मीटिंग पर बुलाकर हाथापाई और मारपीट की
जो किसी भी दिल्लीवासी तो क्या देश की आम जनता के बर्दाश्त से बाहर की बात है.
समाचारों के अनुसार एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने कहा की मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मुख्य सचिव को एक जारी ना
किए गए विज्ञापन के मुद्दे पर चर्चा के लिए बुलाया था. जबकि ‘आप’ का कहना है कि
मुख्य सचिव को मुख्यमंत्री ने राशन कार्ड के मुद्दे पर चर्चा के लिए बुलाया था.
कौन सच बोल रहा है भगवान जाने, लेकिन यह सवाल खड़ा होता है कि रात 12 बजे ही मीटिंग के
लिए क्यों बुलाया गया. क्या मंत्रीगण और विधायक सुबह का इंतजार नहीं कर सकते थे.
क्या सुबह तक एक डेढ़ लाख राशन कार्ड प्रमुख सचिव जादुई छड़ी से तैयार कर देते जो
उनको रात 12 बजे बुलाया गया. जहां तक राजनेताओं की बात है तो एक स्थापित
तथ्य है कि झूठ बोलने में उनका कोई सानी नहीं होता. रही बात मुख्य सचिव की तो भला
वह क्यों झूठ बोलेंगे. स्वाभाविक है कि राशन कार्ड के मुद्दे पर चर्चा की बात करना
इसलिए वाजिब नहीं लगती कि अरविंद केजरीवाल जनता के कल्याण के लिए इतने संवेदनशील
अब तक दिखाई नहीं दिए जो राशन कार्ड को इतनी अहमियत देते कि रात 12 बजे मीटिंग करना
पड़ी. वस्तुतः मुख्य सचिव से विवाद होने का कारण निश्चित ही जारी नहीं किए गए
विज्ञापन ही रहा होगा. विवाद किसी भी मुद्दे पर रहा हो लेकिन क्या सत्ताधीशों द्वारा
हाथापाई जायज़ थी. मुख्य सचिव ने जो एफआईआर दर्ज करवाई उसमें कहा गया कि उनसे 2 विधायकों ने मारपीट
की जिसमें उनका चश्मा टूटा और इन मारपीट करने वालों में विधायक अमानतुल्लाह खान और
प्रकाश जारवाल प्रमुख थे. जिन्हें दिल्ली पुलिस ने कल गिरफ्तार किया. एक प्रमुख
सचिव जैसे उच्च पद पर बैठे हुए व्यक्ति के साथ यह कृत्य पूरी तरह से ना केवल
आपत्तिजनक और अशोभनीय है बल्कि दंडनीय भी है. यही नहीं कितनी दुखद बात है कि
विधायकों ने मुख्य सचिव को यह धमकी दी थी कि उनके खिलाफ जातिसूचक टिप्पणी का आरोप
लगाया जाएगा. ऐसे हथकंडे अपनाने वाले विधायक क्या जनता की सेवा कर सकते हैं.
वस्तुतः कोई भी आईएएस अधिकारी मंत्रियों के सामने बैठकर उनसे अपशब्द या जातिसूचक
शब्दों का इस्तेमाल नहीं कर सकता, क्योंकि हर अधिकारी कानून से वाकिफ होता है.
क्योंकि मीटिंग, कोई व्यक्तिगत विवाद की नहीं थी तब कैसे प्रमुख सचिव दुर्व्यवहार
करते. वस्तुतः मुख्य सचिव को फसाने के लिए ऐसे प्रपंच ‘आप’ के जिम्मेदार लोगों ने
रचे. सच्चाई तो यही प्रतीत होती है कि आम आदमी पार्टी की सरकार चूँकि नाकामी के
दौर से गुजर रही है इसलिए झूठे सच्चे विज्ञापन देने को लेकर प्रशासनिक समस्या पर
विवाद में आप विधायकों ने मुख्य सचिव के साथ हाथापाई की. देखा जाए तो 3 सालों में अरविंद
केजरीवाल सरकार ने झूठे विज्ञापन देने, सत्ताधारियों की सुख सुविधाओं पर होटलों
में खर्चों और विदेश यात्राओं पर जनता का पैसा खर्च कर दिल्ली की जनता को धोखा
देने का काम किया जिसका जवाब उनके पास नहीं है. अपने घोषणापत्र में आम आदमी पार्टी
ने बड़े-बड़े वादे किए जिनकी पूर्ति ना अब तक हुई है और ना हो पाएगी. लाभ के पद
मामले में 20 विधायक दोषी पाए गए. ना दिल्ली को वाईफाई सुविधा मिली और ना
सीसीटीवी कैमरे लगाए गए, ना नए स्कूल खुले ना नए कॉलेज खुले. जो सरकार डेढ़ करोड़
रुपए के समोसे खा जाए उस सरकार से क्या उम्मीद की जा सकती है. जो केजरीवाल वैगनआर
से चलने की बात करते करते महंगी गाड़ी में सफर करने लगे उनसे क्या उम्मीद की जा
सकती है. दिल्ली की जनता कितनी ठगी गई है यह उनके दिलों से पूछा जाए तो मालूम
पड़ेगा कि अरविंद ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा. सच्चाई तो यह है कि अरविंद
केजरीवाल ही अराजकतावादी नहीं है बल्कि उनके विधायक भी अराजकतावादी हैं जो ना तो
कानून की परवाह करते हैं और ना लोकतांत्रिक मूल्यों की, यह बात प्रमुख सचिव अंशु
प्रकाश से हाथापाई और मारपीट से स्पष्ट हो गई.vv
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