सोमवार, 3 जून 2019

अब आधारहीन आरोप और खोखले वादों से चुनाव नहीं जीते जा सकते


  अब आधारहीन आरोप और खोखले वादों से चुनाव नहीं जीते जा सकते
                                        डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया
पूरा विपक्ष आज सदमे में है. चिंतन मनन का दौर जारी है, आखिर क्यों विपक्ष की इतनी शर्मनाक हार हुई और क्यों मोदी और भाजपा को इतना प्रचंड बहुमत मिला. सच्चाई तो यह है कि अमित शाह और मोदी की जोड़ी ने विपक्ष के मस्तिष्क को मनोवैज्ञानिक तौर पर कुंद कर दिया. विपक्ष जिस पटरी पर चल रहा था भाजपा के लिए वह लाभदायक था. खासतौर से कांग्रेस जिस प्रचार को अपना तुरुप का इक्का मान रही थी वह पिट गया. आज जनता ना केवल समझदार है बल्कि वह बहकावे और झूठे प्रचार पर चुप रहकर अपनी प्रतिक्रिया वोटों के माध्यम से व्यक्त करती है. उसका विवेक इतना परिपक्व हो गया है कि वह अपने निर्णयों को वास्तविकता के धरातल पर कसने का माद्दा रखती है. जनता में इतना विवेक विकसित हो गया है कि वह यह जानती है कि किसके वायदे केवल वायदे रहेंगे और कौन अपने वादों पर खरा उतरेगा. कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी इन चुनावों में यह रही कि वह जनता में मोदी के कामों से खुशी की बहती धारा को समझ ही नहीं पाई. वह उन पुराने घिसे पिटे मुद्दों को प्रचारित करती रही जो मुद्दे थे ही नहीं. कांग्रेस के पास ऐसे चुनाव इतिहास थे जिन पर उसकी सरकारों का पतन हुआ या ऐसे मुद्दे थे जिन पर उसे हानि उठानी पड़ी थी. वह समझ रही थी कि जिस प्रकार 2014 में मोदी ने यूपीए-2 के घोटालों, महंगाई, गरीबी, काला धन जैसे मुद्दों पर प्रहार कर कांग्रेस को मात दी थी उसी प्रकार 2019 में वह राफेल में घोटाले को मुद्दा बनाकर चुनाव जीत लेगी. जिस प्रकार भाजपा ने वादे किए थे वैसे ही लोकलुभावन वायदे (72000) करके वह मोदी को पटखनी दे देंगे. लेकिन यह नहीं हो सका. कारण साफ है कि 2014 में कांग्रेस की 10 सालों की सरकार में जनकल्याण के ऐसे कोई उल्लेखनीय काम नहीं हुए थे जैसे एनडीए के 5 साल के शासनकाल में हुए. जनता बातों में विश्वास नहीं करती बल्कि ठोस कामों में विश्वास करती है. कांग्रेस को लगता था कि प्रधानमंत्री मोदी और एनडीए सरकार को राफेल में भ्रष्टाचार पर घेर कर वह जनता के वोट हासिल कर लेगी या पूरा विपक्ष अनर्गल आरोप लगाकर मोदी की जीत को सीमित कर देगा तो यह स्पष्ट हो गया कि उनकी यह गलत धारणा थी. कांग्रेस 3 राज्यों में सरकार बनाकर इतनी उत्साहित थी कि उसे लगता था कि वह लोकसभा में मोदी को हराकर सरकार बना सकती है. उसका ऐसा सोच कि मोदी को हर मोर्चे पर असफल और राफेल में भ्रष्टाचार पर प्रचार कर लोकसभा जीत जाएगी गलत साबित हुआ. कारण स्पष्ट है कि इस चुनाव में यह मुद्दा था ही नहीं. विपक्ष ने दीवार पर लिखी इबारत को पढ़ा ही नहीं जिसमें पूरे देश में मोदी के दलितों, पिछड़ों, गरीब और कमजोर वर्गों, अल्पसंख्यकों को बिना भेदभाव के कुछ ना कुछ जनकल्याण के कामों का लाभ मिला था. कांग्रेस का यह भरोसा कि 3 राज्यों में जीत हासिल कर सरकार बना लेने की वजह से जनमत मोदी के विरोध में हो गया है पूरी तरह से गलत एसेसमेंट था. जनता बहुत चुप होकर उन सब स्थितियों का जायजा ले रही थी कि कौन उसकी समस्याओं को ज्यादा त्वरित गति और गंभीरता से हल करेगा. जिन तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस ने 2018 में जीत हासिल की उन राज्यों में कांग्रेस का सफाया इस बात की ओर संकेत करता है कि इन राज्यों की जनता भाजपा के शासन और उसकी डिलीवरी से नाराज नहीं थी. बल्कि वह इस बात से नाराज थी कि अगड़ी जातियों के एट्रोसिटी एक्ट के माध्यम से अधिकार सीमित किए जा रहे हैं. एससी एसटी एक्ट के माध्यम से उन्हें तंग किया जा सकता है. तब कांग्रेस के प्रचार ने किसानों पर होने वाले तथाकथित जुल्मों को मुद्दा बनाकर ग्रामीण क्षेत्र में भाजपा के विरुद्ध माहौल बनाने में कामयाबी पाई थी. कांग्रेस ने कर्ज माफी के वादे कर जनता को अपने पाले में लाने में सफलता पाई थी. कांग्रेस सरकारें बनने का एक बड़ा कारण यह भी था कि वे मतदाता जो भाजपा के प्रतिबद्ध मतदाता रहे आए हैं उन्होंने भाजपा को सबक सिखाने के लिए तब नोटा में वोट किया था जिसका परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस ने भाजपा पर बढ़त बना ली थी. इन चुनावों में कांग्रेस यह नहीं समझ पाई कि 3 राज्यों में उसकी जीत उसकी नीतियों और वायदों की जीत नहीं थी बल्कि लोगों की भाजपा से अस्थाई नाराजी थी. जो वोटर भाजपा से छिटक गए थे वह लोकसभा में पुनः उसके साथ आ गए.
 दूसरी ओर भाजपा ने इन लोकसभा चुनावों को मोदी विरुद्ध समूचे विपक्ष की ओर केंद्रित कर दिया उसका कारण भी विपक्ष का मोदी हटाओ का नारा था. लोगों को लगा कि विपक्ष और खासतौर से कांग्रेस के पास जनता को देने के लिए कुछ नहीं है वह केवल मोदी को हटाकर सत्ता प्राप्त करना चाहती है. वहीं चुनाव के आगाज के थोड़े पहले अब होगा न्याय के जुमले पर भी आम जनता विश्वास नहीं कर सकी. कहते हैं भूतकाल की काली छाया वर्तमान और भविष्य पर कभी खत्म नहीं होती. 10 सालों के कांग्रेस के लचर शासन की काली छाया कांग्रेस पर इतनी गहरी थी कि उसने जनता में कांग्रेस के प्रति अविश्वास बनाए रखा. फलत: अब होगा न्याय भी कारगर नहीं हो सका.
 चुनाव नतीजे इस बात की ओर स्पष्ट संकेत करते हैं कि मोदी 2014 के चुनावों से अधिक शक्तिशाली बन कर दोबारा सत्ता में आए हैं. जहां एक और प्रत्याशियों की जीत हार का अंतर लाखों में रहा वहीं पिछले चुनाव की तुलना में भाजपा ने 282 के मुकाबले इस बार 303  सीटें जीती. भाजपा को यह जनादेश मोदी में जनता के विश्वास को प्रकट करता है. जनता ने दिल खोलकर मोदी के 5 सालों के कामकाज पर न केवल मोहर लगाई बल्कि अगले 5 साल के लिए प्रचंड जनादेश देकर अपने भविष्य के सुरक्षित होने की प्रत्याशा प्रकट की.
 इस चुनाव का एक बड़ा मुद्दा राष्ट्रवाद भी रहा. वस्तुतः इन चुनावों से यह बात पूरी तरह से स्पष्ट हो गई कि आम नागरिक राष्ट्रवाद के मुद्दे पर एकमत है जो दल देश की अस्मिता के लिए कठोर निर्णय करने में सक्षम है वह दल जनता की आंखों का तारा है.
 उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में जहां बसपा और सपा जैसी क्षेत्रीय पार्टियों का वर्चस्व था इनका गठजोड़ भी काम नहीं आया. फूलपुर और गोरखपुर उपचुनाव में जीत ने इनमें नई ऊर्जा का संचार किया था लेकिन यह इन चुनावों में धराशाई हो गया. राजनीतिक पंडितों का यह गणित कि इनके गठजोड़ से भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा गलत साबित हुआ. दोनों दलों को 80 में से मात्र 15 सीटों पर जीत हासिल हुई जो यह स्पष्ट करता है कि उत्तर प्रदेश की जनता ने जाति और धर्म से ऊपर उठकर लोकतंत्र को मजबूत किया. भाजपा और एनडीए को 62 सीटें मिल ना हैरान करने वाला जरूर है किंतु यह प्रकट करता है कि लोगों का मोदी में गहरा विश्वास है, मोदी को गरीबों, किसानों और अल्पसंख्यकों का भरपूर समर्थन मिला. बिहार और उत्तर प्रदेश में मुस्लिम बहुल इलाकों में 20 से अधिक सीटों पर एनडीए की जीत ने यह स्पष्ट कर दिया कि अब मुस्लिम मतदाता विपक्ष की तुष्टीकरण की राजनीति को समझ गया है. अब वह अपने कल्याण के बारे में सोचने लगा है.
सबसे बड़ी बात उत्तर प्रदेश की यदि कोई है तो वह राहुल गांधी की पराजय है. इस पराजय से यह स्पष्ट हो गया कि यदि कोई प्रतिनिधि अपने क्षेत्र में कल्याण कार्यों की अनदेखी करता है तो उसकी परंपरागत सीट भी आगे आने वाले समय में सुरक्षित नहीं रहेगी. सच्चाई तो यह है कि कांग्रेस का प्रदर्शन एक विश्वसनीय पार्टी के अनुरूप नहीं रहा. पिछली लोकसभा के मुकाबले उसे इस बार 8 सीटें ज्यादा भले ही मिली हों लेकिन यह सीटें उसे गैर हिंदी राज्यों केरल, तमिलनाडु और पंजाब में ही मिली. यह सफलता भी राहुल गांधी की लोकप्रियता के कारण नहीं बल्कि दूसरों की लोकप्रियता के कारण प्राप्त हुई. केरल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी से जनता का मोहभंग, तमिलनाडु में डीएमके से गठजोड़ और पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की लोकप्रियता के कारण तीनों राज्यों में कांग्रेस को 31 सीटें मिलीं  जो इस बात को प्रकट करता है कि  कांग्रेस अब बहुत पिछड़ चुकी है. जबकि भाजपा और एनडीए को जो सफलता मिली वह उसकी आम आदमी की आकांक्षाओं की पूर्ति के कारण मिली. अब कांग्रेस को 2024 को दृष्टि में रखकर रणनीति तैयार करना पड़ेगी. उसे आम जनता की परेशानियों को समझना होगा. उसे सरकार के उचित कामों की सराहना करनी होगी और सरकार के कामों से अलग हटकर वह जनता की भलाई के लिए और क्या कुछ कर सकती है उसका रोड मैप तैयार करना होगा. अनावश्यक विरोध पर अंकुश लगाना होगा तभी वह   कुछ सम्मान पा सकती है. इन चुनाव परिणामों से कांग्रेस ही नहीं पूरे विपक्ष को यह समझ आ गया होगा कि आधारहीन आरोप और खोखले वादों से अब नहीं चुनाव नहीं जीते जा सकते.


सोमवार, 20 मई 2019

चौकीदार चोर और मोदी हटाओ ही विपक्ष पर भारी पड़ा दिख रहा है


     चौकीदार चोर और मोदी हटाओ ही विपक्ष पर भारी पड़ा दिख रहा है

                      डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया  
     आखिरकार वह दिन आने वाला है जब विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में कौन सरकार बनाएगा निश्चित होगा. क्या मोदी फिर एक बार सरकार बनाएंगे या विपक्ष मोदी पर भारी पड़ेगा. सारे एग्जिट पोल से तो यही प्रतीत होता है कि ‘फिर एक बार मोदी सरकार’ को इतना जन समर्थन प्राप्त हुआ है कि एनडीए आसानी से सरकार बना सकेगी किंतु इन अनुमानों को परिणाम मानना उचित नहीं है. जब तक परिणाम नहीं आते देश के सारे राजनीतिक दल अपने अपने अनुमानों बताते रहेंगे. यह इसलिए भी कि 2017 में जब लगभग सभी एग्जिट पोल उत्तर प्रदेश में गैर भाजपा की सरकार बनवा रहे थे तब भाजपा ने 300 से अधिक सीटें जीतकर अखिलेश, मायावती और कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया था. स्वाभाविक है इन एग्जिट पोल के परिणामों पर विपक्ष की सोच ऐसी ही होगी कि यह पोल जैसे रुझान बता रहे हैं वह शायद परिणामों में ना दिखें.
 अब बात करते हैं कि वर्तमान एग्जिट पोल के रुझानों के अनुरूप यदि परिणाम आते हैं तो उसके पीछे के कारण क्या हैं. क्या वाकई मोदी का जादू बरकरार है. क्या मोदी के विकास कार्यों को जनता ने पसंद किया. क्या मोदी के नोटबंदी और जीएसटी जैसे कठोर निर्णयों को जनता ने तमाम आलोचनाओं के बाद भी पसंद किया. क्या जनता ने मोदी के राष्ट्रीय सुरक्षा में उठाए गए कड़े कदमों को पसंद किया. स्वाभाविक है मोदी विरोधी इन प्रश्नों के हमेशा विपरीत मत के रहे हैं. वे मोदी के प्रत्येक काम की आलोचना करते रहे हैं. तो क्या इन आलोचनाओं को जनता ने नकार दिया. अगर वाकई मोदी दोबारा सत्ता में आते हैं तो एक बात साफ है कि विपक्ष ने मोदी को गालियां ज्यादा दीं जिसका परिणाम उन्हें भुगतना पड़ सकता है. जब सारे देश में मोदी एक विकास के सिंबल माने गए तब ‘चौकीदार चोर है’ का नारा विपक्ष को बूमरैंग होता दिखाई देता है. अगर सामान्य जन से बात की जाए तो वह इस मत का दिखेगा कि मोदी और कुछ भी हो सकते हैं किंतु चोर नहीं हो सकते. उनकी ईमानदारी पर उंगली नहीं उठाई जा सकती. हमारे देश की परंपराएं और मान्यताएं इस बात को स्थापित करती हैं कि जो व्यक्ति पारिवारिक माया मोह से परे है वह व्यक्ति सेवा के क्षेत्र में अनुपम होता है. जिस व्यक्ति का चिंतन समूचे देश को अपना परिवार मानने का हो वह व्यक्ति कभी बेईमान नहीं हो सकता. वह व्यक्ति चोरी क्यों और किसके लिए करेगा. यह तो पूरी तरह से स्पष्ट है कि मोदी की ना तो करोड़ों की संपत्ति है और ना ही ऐसी कोई परिजन आसक्ति ही है कि वह देश के साथ बेईमानी करें. तब विपक्ष का ‘चौकीदार चोर है’ का नारा जनता में मोदी के प्रति नकारात्मक प्रचार से भरा हुआ माना गया होगा. अगर राफेल को लेकर इतना बड़ा आरोप लगाया ही गया था तो विपक्ष की यह जिम्मेदारी बनती थी कि वह जनता के सामने ठोस प्रमाण रखती. सिर्फ हवाबाजी को जनता किस आधार पर तवज्जो देती. फिर राफेल मामले में संसद में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और वित्त मंत्री अरुण जेटली जैसे दिग्गजों ने सिलसिलेवार तरीके से विपक्ष के आरोपों पर कटाक्ष किए तब भी विपक्ष कोई ठोस प्रमाण देने में असमर्थ रहा तो फिर जनता में यही संदेश गया कि विपक्ष मुद्दा विहीन होकर मोदी की इमानदारी पर प्रश्नचिन्ह लगा कर चुनाव जीतना चाहता है जिसे एग्जिट पोल के नतीजों में देखा जा सकता है.
 दूसरी ओर विपक्ष का मोदी हटाओ एजेंडा भी उसी पर भारी पड़ गया. वस्तुतः आज के संदर्भों में दलों के सोचने का जनता पर उतना प्रभाव नहीं पड़ता जितना कि जनता क्या सोचती है का प्रभाव दलों पर पड़ता है. वस्तुतः जितने ज्यादा जोर से मोदी हटाओ को प्रचारित किया गया वह मोदी के लिए लाभदायक ही सिद्ध हुआ. जनता में यह संदेश गया कि विपक्ष सत्ता की लालची है, उसके पास जनकल्याण के मुद्दे नहीं है बल्कि विपक्ष का एकमात्र एजेंडा यही है कि वह किसी भी हालत में मोदी को आने नहीं देना चाहता. मोदी की एक विशेषता 2014 से देखने को मिलती रही कि वह विपक्ष के हमलों को बखूबी तरीके से अपने पक्ष में बदलने में सिद्धहस्त हैं. यही कारण है कि उन्होंने ‘चौकीदार चोर है’ को ‘मैं भी चौकीदार’ में कन्वर्ट कर दिया और उसका परिणाम यह हुआ कि ‘चौकीदार चोर है’ के नारे की हवा निकल गई.
 अब यदि उन मुद्दों पर विचार करें जिन्हें मैंने प्रारंभ में उठाए हैं तो निष्कर्ष रूप में एग्जिट पोल के नतीजों से लगता है कि मोदी का जादू वाकई बरकरार है. यदि ऐसा नहीं होता तो 300  पार का अनुमान संभव नहीं था. दूसरी बात विपक्ष कितनी भी आलोचना करे लेकिन मोदी ने विकास कार्यों और गरीब तबकों को ज्यादा महत्व दिया है. इसी क्रम में सामान्य जातियों को 10% आरक्षण, स्वच्छता मिशन, जनधन अकाउंट, प्रधानमंत्री आवास, उज्जवला योजना, आयुष्मान भारत, स्टार्टअप इंडिया और मेक इन इंडिया जैसी योजनाएं विकास की इबारत लिखने में सफल रहीं. तो वहीं दूसरी ओर 18000 गांव को बिजली और सड़क जैसे कल्याणकारी कामों ने जनता में एक सकारात्मक भाव उत्पन्न किया. इंफ्रास्ट्रक्चर के रूप में 5 साल की अल्प अवधि में जो परिवर्तन हुए वे निसंदेह उल्लेखनीय हैं. इन सब के आधार पर एग्जिट पोल में एनडीए की बढ़त स्वाभाविक लगती है. यहां इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि विरोधी इन विकास कार्यों को झूठा साबित करने में नाकामयाब रहे. भले ही विपक्ष चिल्ला चिल्ला कर यह कहता रहा कि देश में विकास कार्य ठप्प रहे लेकिन अगर यही परिणाम रहते हैं तो कहा जा सकता है की जनता ने उनकी बात पर विश्वास नहीं किया. दूसरी तरफ नोटबंदी और जीएसटी जैसे निर्णायक फैसलों पर जनता भले ही नाराज (जैसा कि विपक्ष मूल्यांकन करता है) दिखाई दी परंतु मोदी पर उसका विश्वास बरकरार रहा प्रतीत होता है. एक बहुत बड़ा मुद्दा देश की सुरक्षा और राष्ट्रवाद का रहा. अगर ये रुझान परिणामों में तब्दील होते हैं तो कहा जा सकता है कि इन दोनों मुद्दों पर भाजपा विपक्ष पर हावी रही. सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक दोनों ही मोदी के पक्ष में रहे दिखते हैं तो वहीं इन कार्र्बाइयों पर विपक्ष का सबूत मांगना उसी के लिए गले की हड्डी बन गया. कुल मिलाकर जनता ने देश की सुरक्षा और राष्ट्रवाद पर मोदी को शत प्रतिशत सही माना. दूसरे शब्दों में देश ने माना कि राष्ट्र मोदी के हाथों में सुरक्षित है. वहीँ देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस ने विकास का ना तो कोई विजन प्रस्तुत किया और ना उसका कोई रोडमैप जनता के समक्ष आ पाया. और ‘अब होगा न्याय’ भी जनता को प्रभावित करने में असमर्थ रहा प्रतीत होता है. गरीबों को 72000 सालाना की बात पर गरीब वर्ग विश्वास नहीं कर सका उसका कारण मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कर्ज माफी के क्रियान्वयन में शत-प्रतिशत परिणामों का अभाव रहा. कांग्रेस की 72000 वाली योजना संदेह के घेरे में रही जिसका लाभ मोदी को मिला. जहां एक ओर मोदी ने जितने जनकल्याण के वादे किए उनमें शत प्रतिशत सफलता भले ही ना मिली हो किंतु क्रियान्वयन हुआ जो जनता को सुखद अनुभूति कराने में सफल रहा. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में इस बात का भी असर हुआ कि उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टी को सपा बसपा जैसी क्षेत्रीय पार्टियों ने भी नकार दिया और उससे गठबंधन नहीं किया. स्वाभाविक है कि कांग्रेस की प्रतिष्ठा को धक्का लगा जिसने उसके परिणामों को प्रभावित किया. दूसरी तरफ माहौल कुछ इस तरह का बना कि मोदी विरोधी दल मुस्लिम वोटों को अपने पाले में मानकर शत-प्रतिशत जीत सुनिश्चित करना चाहते हैं इस संदेश ने हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण में मदद की. यदि परिणाम भी एग्जिट पोल के रुझानों के अनुरूप आते हैं तो यह कहा जा सकता है कि फिलहाल जनता मोदी विरोधियों में मोदी के कद का कोई नेता नहीं देख पा रही है. और अंत में एग्जिट पोल परिणाम नहीं अनुमान होते हैं वे कितने सही या गलत हैं 23 मई को ही मालूम पड़ेगा. इतना जरूर है कि जहां एक और एनडीए और भाजपा में खुशी है तो वहीं विरोधियों में मायूसी है भले ही वे इसे प्रकट नहीं करें.
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सोमवार, 22 अप्रैल 2019

विपक्ष की राजनीति पर भारी राष्ट्रवाद


        विपक्ष की राजनीति पर भारी राष्ट्रवाद
            डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया
       वर्तमान चुनाव कई मामलों में 2014 के चुनावों से पूरी तरह अलग दिखाई दे रहे हैं. जहां एक ओर पिछले चुनावों में सत्ताधारी दल कांग्रेस के भ्रष्टाचार के घोटाले और मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति पर मोदी का ‘सबका साथ सबका विकास’ का मूल मंत्र भारी पड़ा था वहीँ इस चुनाव में विपक्षियों की मोदी को हटाने के लिए अघोषित एकजुटता पर मोदी के राष्ट्रवाद की खनक और दुश्मन देश पाकिस्तान पर सर्जिकल और एयर स्ट्राइक की बढ़त भारी पड़ रही है. यह चुनाव यह स्पष्ट करेगा कि भारत की जनता विकास के साथ-साथ क्या पाक प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ मोदी के कठोर प्रहारों के पक्ष में खड़ी होकर राष्ट्रवाद को महत्वपूर्ण मानती है.
  विपक्ष कुछ भी कहे किंतु यह बात स्पष्ट होती जा रही है कि भारत की जनता देश की सुरक्षा और देश के गौरव के साथ खड़ी होने में ज्यादा रुचि रखती है. इसमें कोई शक नहीं कि मोदी सरकार ने विगत 5 वर्षों में कुछ ऐसा तो किया है जो जनता को प्रभावित कर रहा है. मोदी सरकार ने कुछ ऐसे काम प्राथमिकता के आधार पर पूरे किए हैं जिनकी कल्पना ना तो विपक्षी दलों ने की थी और ना जनता ने ही की थी. देश भर में स्वच्छता मिशन, टॉयलेट निर्माण, प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्जवला योजना और 18000 गांव में बिजली पहुंचाने के कामों ने  प्रधानमंत्री मोदी को चर्चित किया है. ये ऐसी योजनाएं रहीं जिन्होंने जन जन की जुबान पर मोदी के नाम को चस्पा किया जबकि यूपीए के 10 साल के शासन में ऐसी कोई कल्याणकारी योजना आकार नहीं ले पाई जिससे आम जनता कांग्रेस को याद रख पाती. इस दौर में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जनता की जुबान पर चस्पा नहीं हो सके. नेतृत्व की अक्षमता और आतंकवाद के मुद्दे पर विपक्ष की ढुलमुल नीति ने आम जनता में यूपीए सरकार को लचर सिद्ध करने का काम किया. यूपीए के 10 सालों में देश भर में घटित आतंकी घटनाओं ने देश की जनता को यह सोचने को मजबूर कर दिया कि उसे एक सशक्त सरकार चाहिए या एक ऐसी सरकार जिसने देश की सुरक्षा के मुद्दों पर चुप्पी साध रखी थी.
 2014 में मोदी के भाषणों पर गौर करें तो स्पष्ट होता है कि उन्होंने हर वह मुद्दे जनता के सामने रखे थे जिन से जनता परेशान थी. आतंकवाद का मुद्दा हो या देश के विकास से जुड़े मुद्दे हों सब के सब जनता में मोदी के प्रति आकर्षण का केंद्र बने थे. निसंदेह वर्तमान लोकसभा चुनाव राष्ट्रवाद और उसके विरुद्ध विपक्षी दलों की मोदी हटाओ मुहिम के बीच लड़ा जा रहा है. जनता के मन में यह विश्वास गहरे तक बैठ गया है कि विपक्षी दल विकास, आतंकवाद, देश की सुरक्षा और गौरव के मुद्दों पर ज्यादा फोकस ना कर केवल मोदी को हटाने पर केंद्रित हो गए हैं. इन मुद्दों पर विपक्ष के पास कोई रोडमैप नहीं है और ना कोई विजन ही है. इससे जो संदेश गया वह यही कि विपक्षी दलों में अपने अस्तित्व की रक्षा ज्यादा महत्वपूर्ण है ना कि देश. यही मोदी के दोबारा सत्ता में वापसी का मार्ग प्रशस्त कर रहा है.
  विपक्ष खासतौर से कांग्रेस मोदी को राफेल मामले में दोषी साबित करने में जी जान से जुटी रही है लेकिन उसके ‘चौकीदार चोर है’ के नारे ने जनता के मन में यह विश्वास पैदा किया कि सत्ता की वापसी के लिए मोदी को भ्रष्टाचारी बताया जा रहा है जबकि मोदी सरकार के 5 सालों में कोई घोटाला अब तक नहीं हुआ. इस चुनाव में मोदी की बढ़त इसलिए भी महसूस की जा रही है कि जहां एक ओर यूपीए के 10 साल के शासन में देश भर में आतंकी घटनाओं ने जनता को हलकान किया वहीं मोदी सरकार के 5 सालों में जम्मू कश्मीर को छोड़कर देश के किसी भी कोने में एक भी आतंकी घटना नहीं घटी, जिसे मोदी की सबसे बड़ी सफलता के रूप में देखा जा सकता है. यही नहीं बालाकोट की एयर स्ट्राइक ने जनता के मन में यह विश्वास पैदा करने में सफलता अर्जित की कि मोदी के रहते कुटिल पाकिस्तान किसी तरह की हिमाकत नहीं कर सकता और यदि करेगा तो उसे उसकी कीमत चुकानी पड़ेगी. वहीं दूसरी ओर अगर गौर करें तो स्पष्ट होता है कि आज मोदी की आलोचना करने के लिए विपक्ष के पास कोई गंभीर मुद्दे हैं ही नहीं. सामान्यतः पिछले चुनाव में महंगाई, महिला सुरक्षा, बेरोजगारी, काला धन, भ्रष्टाचार और दलितों पर अत्याचार जैसे जनता को प्रभावित करने वाले मुद्दे थे लेकिन इस चुनाव में विपक्ष द्वारा इन मुद्दों पर ज्यादा कुछ कहने को बचा नहीं है. गाहे-बगाहे विपक्षी दल इन मुद्दों पर केंद्रित होने की कोशिश करते भी हैं तो उसके सामने राष्ट्रवाद आकर खड़ा हो जाता है. अगर गौर से देखा जाए तो महंगाई जैसा मुद्दा आज पूरी तरह से अप्रभावी है क्योंकि मोदी सरकार ने इस पर पूरी तरह से नियंत्रण कर के रखा  है. दूसरी तरफ मोदी ने अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत को सम्मान दिलाने में जो सफलता अर्जित की उसने भी जनता को प्रभावित किया है. आज विश्व का शायद ही कोई देश हो जो भारत की उपलब्धियों से परिचित ना हो. मोदी के विगत 5 सालों में केवल चीन और पाकिस्तान को छोड़ विश्व का हर देश भारत की नीतियों और विजन से प्रभावित हुआ है. भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ मोदी की मुहिम ने भारत को दुनिया में एक नया मुकाम दिलाया है. यही नहीं भारत की जनता इस बात से भी अत्यधिक प्रभावित दिखाई देती है कि मोदी ने बिना युद्ध लडे ही पाकिस्तान को भिखारी बना दिया तो वहीं दूसरी ओर जम्मू कश्मीर में आतंकी घटनाओं पर जीरो टॉलरेंस की नीति और अलगाववादी राष्ट्र द्रोहियों पर कठोर कार्यवाही ने भी मोदी को लोकप्रियता दिलाने में सफलता अर्जित की है. यद्धपि समूचा विपक्ष जी जान से मोदी को सत्ता से अलग करना चाहता है लेकिन एकजुट होने में नाकाम होना भी मोदी के लिए आसान हो गया. कांग्रेस की 10 सालों की नकारात्मक छवि ने दूसरे दलों को कांग्रेस से दूरी बनाए रखने में मदद की. उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में बसपा और सपा जैसी क्षेत्रीय पार्टियों ने भी कांग्रेस से गठबंधन करने से इंकार कर दिया जो कांग्रेस के लिए शर्मनाक स्थिति का कारण बना तो वहीँ जनता में संदेश गया कि कांग्रेस को विपक्षी पार्टियां भी पसंद नहीं करती. वहीं विगत 1 महीने में मोदी ने रक्षा के क्षेत्र में जो उपलब्धियां अर्जित की वह भी जनता में मोदी की अच्छी छवि बनाने में प्रभावी रहीं. यद्धपि चुनाव परिणाम 23 मई को आएंगे किंतु प्रतीत यही होता है कि बिखरा हुआ विपक्ष कोई बड़ी उपलब्धि या सफलता अर्जित करने में कामयाब नहीं हो सकेगा जो मोदी को दूसरी बार सत्ता वापसी में मददगार साबित होगा.

शुक्रवार, 8 मार्च 2019

राष्ट्रहित से बड़ी कोई विचारधारा नहीं होती


                        राष्ट्रहित से बड़ी कोई विचारधारा नहीं होती

             डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया
        बालाकोट आतंकी हमले के बाद देश में लगातार आम जनता में रोष है उस रोष का शमन कुछ हद तक 26 फरवरी को पाकिस्तान पर एयर स्ट्राइक से हुआ. लेकिन इतने भर से देश की जनता इसलिए संतुष्ट नहीं है कि पाकिस्तान को इससे बहुत बड़ी ना तो हानि हुई और ना कोई सबक मिला. पाकिस्तान एक ऐसा मुल्क है जहां आतंकियों का दबदबा वहां की सरकार आईएसआई और सेना पर भी लगता है. यदि ऐसा नहीं होता तो कम से कम यह तो कहा ही जा सकता है कि वहां अब तक आतंकवाद दम तोड़ चुका होता. वास्तव में आतंक का प्रश्रय दाता पाकिस्तान और आतंकी संगठन एक दूसरे के पूरक हैं. अन्यथा कोई कारण नहीं था कि लादेन, हाफिज सईद, सलाउद्दीन, मसूद अजहर और दाऊद जैसे लोग वहां पनाह पाते या फल फूल रहे होते. सच्चाई तो यह है कि पाकिस्तान को चलाने वालों में वहां की सेना, आईएसआई और आतंकियों का गठजोड़ है. जहां तक सरकार का प्रश्न है तो पाकिस्तान में हमेशा सेना का पपेट ही कुर्सी पर बैठता है. इस स्थिति में तब तक बदलाव नहीं हो सकता जब तक कि यह गठजोड़ न टूटे. इसे तोड़ना अमेरिका या विश्व के अन्य शक्तिशाली देशों के बस की बात भी नहीं लगती. इस गठजोड़ की इतिश्री केवल तब ही संभव है जबकि पाकिस्तान पूरी तरह से नेस्तनाबूद ना हो जाए. लेकिन आज के विश्व में किसी देश के अस्तित्व को पूरी तरह से नष्ट करना भी संभव नहीं है. भारत ने पाकिस्तान से तीन युद्ध लड़ कर बड़े-बड़े झटके दिए लेकिन क्या हुआ सब जानते हैं. पाकिस्तान सिकुड़ गया किंतु उसका पोषित आतंकवाद पसर गया. यह सब इसलिए सच है कि पाकिस्तान खुद नहीं चाहता कि आतंकवाद खत्म हो अन्यथा कोई कारण नहीं था कि संयुक्त राष्ट्र जब हाफिज सईद से पूछताछ करना चाह रहा था तब पाकिस्तान द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ की टीम का वीजा का अनुरोध ठुकराया जाता. यह टीम हाफिज सईद की उस दायर याचिका के सिलसिले में पूछताछ करना चाहती थी जिसमें हाफिज ने संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रतिबंध सूची से अपना नाम हटाने की गुजारिश की थी.
   मान लिया जाए कि आतंकवाद को समूल नष्ट करने के लिए युद्ध जरूरी नहीं है लेकिन यह भी सही है कि युद्ध के बिना आतंकवाद की विभीषिका की तीव्रता को कम भी नहीं किया जा सकता. आज पाकिस्तान के विरुद्ध भारत में जितना सकारात्मक माहौल है ऐसा पहले के दस  सालों में कभी नहीं देखा गया. बालाकोट हमले के बाद लगातार देश के चारो छोरों से आवाज  उठने लगी कि पाकिस्तान के विरुद्ध एक और कड़ा प्रहार किया जाए जो उसके अस्तित्व को खत्म भले ही ना कर पाए परंतु इतना तो कर ही दे कि वह आतंकवाद को नष्ट करने के लिए जरूरी कदम उठाए. यहां यह मानने में कोई संदेह नहीं कि पिछले डेढ़ दशक में पहली बार देश के प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग थलग कर बहुत बड़ी उपलब्धि अर्जित की है. आज विश्व का ऐसा कोई देश नहीं जिसने पाकिस्तान को गरियाया नहीं है. आज वह दाने-दाने को मजबूर है. वह विश्व के कई देशों के सामने मदद के लिए गिड़गिड़ा रहा है किंतु उसकी विश्वसनीयता पूरी तरह से खत्म हो गई है. किंतु इस सब के बावजूद भी पाकिस्तान अपनी हेकड़ी से बाज नहीं आ रहा तो उसका कारण यही है कि भारत में बैठे कुछ मोदी विरोधी तत्व उसको परोक्ष रूप से ऑक्सीजन देने का काम कर रहे हैं.
 एयर स्ट्राइक के बाद भारत में जहां सभी दलों का सरकार के साथ समन्वय और सहयोग होना था वहां आज पाकिस्तान को देश के मोदी विरोधियों का लाभ मिल रहा है. कांग्रेस सहित बड़ी संख्या में मोदी विरोधी दल (21 पार्टियों की मीटिंग) आज उस एयर स्ट्राइक के सबूत मांग रहे हैं जिस की तारीफ और समर्थन विश्व के कई देश कर रहे हैं.
 मान लिया जाए कि विपक्ष को हर बात जानने का हक है लेकिन राष्ट्र की विश्वसनीयता और अस्मिता को धता बताने का हक उसे किसने दिया. क्या विपक्ष इसलिए होता है कि वह दुश्मन देश के हित चिंतन में अपनी उर्जा खपाए, क्या विपक्ष का यह दायित्व नहीं है कि देश और देश की सेना ने दुश्मन देश के विरुद्ध जो कदम उठाए हैं उनका समर्थन करे. लेकिन विपक्ष देश की अस्मिता और गौरव को पलीता लगाने और अपने राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए प्रपंच रच कर देश की अवाम की नजरों में स्वयं गिरने का काम कर रहा है.
 एयर स्ट्राइक के बाद जब देश की जनता से सेना और सरकार को इस कदम का समर्थन और प्रशंसा मिलने लगी तो विपक्ष की सांसें फूलने लगी. उसे लगने लगा कि लोकसभा चुनावों के पहले उपजे इस राष्ट्रवाद का सीधा सीधा लाभ चुनावों में मोदी को मिलने से नहीं रोका जा सकता. ऑल पार्टी मीटिंग के बाद जैसा लग रहा था कि समूचा विपक्ष पाकिस्तान के विरुद्ध सरकार के साथ खड़ा है, एयर स्ट्राइक के एक सप्ताह बाद ही यह भ्रम टूट गया. कभी भाजपा के सिपहसालार रहे अब कांग्रेस में मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू एयर स्ट्राइक पर भारतीय सेना के पराक्रम पर यह कहकर सवाल उठाते हैं कि सेना ने बालाकोट में आतंकवादियों को नहीं पेड़ों को नष्ट किया. और यह भी कि आतंकवाद का कोई देश नहीं होता, तो दुख होता है. ऐसी हिमाकत करने वालों को क्या कहा जाए. वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने आश्चर्यजनक टिप्पणी की जिसमें उन्होंने पुलवामा हमले को ‘एक दुर्घटना’ निरूपित कर दिया.  कपिल सिब्बल, चिदम्बरम, मनीष तिवारी, मायावती, ममता, फारुक, उमर और महबूबा मुफ्ती जैसे कई नेताओं ने सबूत मांगे जिसका पाकिस्तान ने पुलवामा को अपने पक्ष में करने का भरपूर प्रयत्न किया. पाकिस्तानी चेनलों पर इन नेताओं के बयान फोटो सहित प्रसारित किए जा रहे हैं.
     भारत को छोड़कर विश्व का ऐसा कोई राष्ट्र नहीं जहां सरकार का विपक्ष स्वयं के देश का  मजाक उड़ाने में सक्रिय हो लेकिन भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विपक्ष के विरोध करने के अधिकार के नाम पर हास्यास्पद जग हंसाई की जा रही है. इसमें कोई शक नहीं कि सत्तारूढ़ दल भी एयर स्ट्राइक की कार्यवाही का लोकसभा चुनावों में लाभ उठाना चाह रहा है  किंतु यह भी उतना ही सच है कि यह स्थितियां पुलवामा हमले के  कारण पैदा हुईं. यदि यह हमला इस समय नहीं होता तो इसका कोई इंपैक्ट लोकसभा चुनाव पर नहीं होता. आज मोदी की लोकप्रियता की स्थिति को देखकर समूचा विपक्ष और पाकिस्तान पुलवामा हमले की टाइमिंग पर मन ही मन दुखी हो रहे होंगे. यह पीड़ा भी विपक्ष द्वारा छुपाए नहीं छुप रही. यही कारण है कि कांग्रेस के बड़े नेता बी के हरिप्रसाद ने तो पुलवामा हमले को मोदी और इमरान की मैच फिक्सिंग निरूपित कर दिया. ऐसी सोच और मानसिकता से कोई भी सहमत नहीं हो सकता. जिस देश पर इतना बड़ा आतंकी हमला हुआ हो जिसमें तेंतालीस जवानों  की शहादत हुई हो उसे  देश के मोदी विरोधी नेता मोदी की दुश्मन देश के प्रधानमंत्री इमरान से मैच फिक्सिंग निरूपित करें, दुर्भाग्यपूर्ण ही कहां जाएगा. सबसे बड़ा दुखद पहलू देश का यही है कि हमारे यहां दल हित  चिंतन देशहित चिंतन से बड़ा हो गया है. कोई भी यह समझने को तैयार नहीं कि राष्ट्र और राष्ट्रहित से बड़ी ना तो कोई विचारधारा होती है और ना कोई दल.
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शनिवार, 23 फ़रवरी 2019

  एक मजबूत प्रधानमंत्री और हताश विपक्ष


                एक मजबूत प्रधानमंत्री और हताश विपक्ष
                        डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया
     पुलवामा हमले के बाद देश में चारों तरफ जहां एक ओर प्रधानमंत्री मोदी से पाकिस्तान से बदला लेने की अपेक्षाएं बढ़ गई है वहीँ देश का विपक्ष निराश और हताश नजर आ रहा है. कहने को ऑल पार्टी मीटिंग के बाद ऐसा लगा कि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ देश के सभी राजनीतिक दल एक मत से सरकार के साथ हैं किंतु जैसे जैसे समय गुजरा वैसे वैसे सबके चेहरे उजागर होने लगे. प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस हो या देश के अति सीमित क्षेत्र में अपनी पहचान समेटे हुए कम्युनिस्ट हों या समाजवादी पार्टी हो या बहुजन समाजवादी पार्टी हो या महबूबा हों या उमर अब्दुल्ला या एक वाक्य में कहें तो सभी मोदी विरोधी धीरे धीरे सरकार द्वारा लिए जा रहे निर्णयों की आलोचना करने लगे हैं. कारण साफ है कि लोकसभा चुनाव सिर पर हैं और पुलवामा हमले के बाद सरकार के पाकिस्तानी आतंकवाद के खिलाफ कठोर प्रहार से देश में मोदी के ऊंचे होते हुए ग्राफ से विरोधी दल सकते में हैं. यही कारण है कि सभी विरोधी अगर- मगर, किंतु- परंतु के साथ अपने विचार व्यक्त करते हुए दिखाई दे रहे हैं. ये सब भारत के स्टैंड के विरुद्ध परोक्ष रूप से पाकिस्तान का बचाव करते नजर आ रहे हैं. इस क्रम में वह पाकिस्तान को कम और मोदी को ज्यादा कोस रहे हैं.
मोदी के कठोर रुख और निर्णयों से  पाकिस्तान अपनी आजादी के बाद पहली बार इतने दबाव में है कि वह सिवाय बचाव करने के कुछ नहीं कर पा रहा है. बात बात पर परमाणु हमले की धमकी देने वाला पाकिस्तान आज बातचीत की गुहार लगा रहा है. इमरान खान की बॉडी लैंग्वेज बताती है कि पाकिस्तान भारत के कठोर रुख से डरा हुआ है. पाकिस्तान के विरुद्ध उठाए गए कदमों ने उसे बुरी तरह झकझोर कर  रख दिया है. पुलवामा हमले के तुरंत बाद पाकिस्तान को दिए गए मोस्ट फेवर्ड नेशन के दर्जे को वापस लेने के निर्णय ने मोदी के रुख को स्पष्ट कर दिया कि भारत पाकिस्तानी प्रायोजित आतंकवाद को नहीं सहेगा. यही नहीं इस दर्जे को वापस लेने के साथ ही भारत ने कस्टम ड्यूटी भी दो सौ पर्सेंट तक बढ़ा दी. पाकिस्तान की इकोनामी की कमर तोड़ने के लिए ऐसे निर्णय की पाकिस्तान ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी. यही नहीं सरकार ने जम्मू कश्मीर के पाकिस्तान परस्त दोगले 18 अलगाववादियों और 155 नेताओं की सुरक्षा कवच और बड़ी संख्या में उन्हें उपलब्ध वाहनों को हटाकर भी यह संदेश देने में सफलता पाई कि जो भी पाकिस्तान का समर्थन करेगा उसे सरकार स्वीकार नहीं करेगी. यहां लोग पूछते हैं की धारा 370 और 35कब हटेगी तो यह कहने में कोई संकोच नहीं कि मोदी एक दृढ़ निश्चयी व्यक्ति हैं और अगर उन्हें मौका मिला और जब परिस्थितियों का साथ और राज्यसभा में पूर्व पूर्ण बहुमत मिला तो वह दिन दूर नहीं जब कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा और 370 और 35ए भी हट ही जाएगी. यही नहीं सरकार ने एक बड़ा निर्णय कर पाकिस्तान को घुटनों पर लाने में सफलता पाई है. मोदी सरकार ने घोषणा कर दी है कि इंडस वाटर ट्रीटी के आधार पर पाकिस्तान को मिल रहे अतिरिक्त पानी को भी रोका जाएगा. इसके तहत भारत के हिस्से का पानी अब पाकिस्तान को नहीं दिया जाएगा. अभी सतलुज, व्यास और रावी नदियों का पानी पाकिस्तान को मिलता रहा है. सरकार ने निर्णय किया है कि अब वह अपने हिस्से का अतिरिक्त पानी इन नदियों पर बांध बनाकर पंजाब, जम्मू कश्मीर और हरियाणा को उपलब्ध कराएगी. इस हेतु पाक जाने वाले पानी को रोकने के लिए डैम बनाने का काम जारी है.          स्वाभाविक है कि पाकिस्तान पानी की समस्या से जूझेगा. पानी रोकने का यह निर्णय एक ऐसा निर्णय है कि पाकिस्तान खून के आंसू रोएगा. तब उसे समझ आएगा कि जनता की जरूरत पूरी करें या पाकिस्तान की आई एस आई और सेना की मंशा पूरी करें.  
    सच्चाई तो यह है कि ऐसे कठोर निर्णयों की पाकिस्तान तो क्या मोदी विरोधियों ने भी उम्मीद नहीं की थी. यही कारण है कि देश का विपक्ष भी सकते में आ गया है. यही नहीं लोकसभा चुनावों के मद्देनजर मोदी को बढ़त मिलती देखकर देश का विपक्ष अब अपने पाकिस्तान के प्रति नरम रुख पर वापस फोकस करने लगा है नहीं तो कोई कारण नहीं था कि कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पुलवामा हमले पर सियासत करते. ऑल पार्टी मीटिंग के बाद आतंकवाद के खिलाफ सरकार के साथ खड़े होने की बात करने वाली कांग्रेस 7 दिन बाद ही मोदी को निशाने पर ले बैठी. उसने इस बात की परवाह नहीं की कि जो वह कह रही है उसका प्रभाव आज की स्थिति में जनता पर नकारात्मक ही होगा. छिछले आरोपों से कभी भी बड़े उद्देश्यों को नहीं पाया जा सकता और आतंकवाद को ढाल बनाकर तो कतई ही नहीं. यह कांग्रेस को सोचना होगा. यह जानते हुए भी की पुलवामा हमले में जैश के आतंकी थे और यह भी कि जैश -ए -मोहम्मद ने इसकी जिम्मेदारी ली थी, कांग्रेस ने इन आतंकियों को स्थानीय आतंकी निरूपित किया जो किसी भी व्यक्ति के गले नहीं उतर सकता. जब सारी दुनिया पुलवामा के हमले में भारत के साथ खड़ी है तब कांग्रेस का मोदी विरोध उसके दल हित  चिंतन पर प्रश्न खड़े करता है. अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में मोदी के, हमले के दिन पूर्व निर्धारित  कार्यक्रमों पर छिछली टिप्पणी कर उन्होंने देश पर हुए गंभीर आतंकी हमले के मुद्दे को हास्यास्पद बना दिया. जो कांग्रेस जैसी सबसे पुरानी पार्टी से अपेक्षा नहीं की जा सकती. उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी ने शहादत का अपमान किया जबकि वे भूल गए कि राहुल गांधी को एयरपोर्ट पर शहीदों को दी गई श्रद्धांजलि के दौरान मोबाइल ऑपरेट करते हुए पूरी दुनिया ने देखा. उनके नेता सुशील शिंदे कहते हैं ‘सर्जिकल स्ट्राइक के कारण हमला’ हुआ तो कपिल  सिब्बल कहते हैं ‘यह हमला हाइपर नेशनलिज्म का दुष्परिणाम है’ तो वहीं नवजोत सिंह सिद्धू के मत में यह हमला ‘पाकिस्तान ने नहीं किया, आतंक का कोई देश नहीं होता’. कांग्रेस की यह कैसी राजनीती है. सुरजेवाला यह कहते हुए मोदी को कोसते हैं कि ‘सीआरपीएफ पर हमला मोदी की नाकामी है’. ऐसे ही देश के सारे विपक्षी दल मोदी विरोध में राजनीतिक रोटियां सेंकते नजर आए. विपक्ष को आलोचना करने का अधिकार है इसमें कोई दो राय नहीं किंतु आलोचना का स्तर क्या हो, क्या उसे इस पर विचार नहीं करना चाहिए. क्या ऐसा कर विपक्ष पाकिस्तान और उसके द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का समर्थन नहीं कर रहां. देश की एकता- अखंडता और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे को इस तरह विवादित बनाना किसी भी दल को अभीष्ट की प्राप्ति नहीं करा सकता. पुलवामा हमले के बाद आतंकवाद के इस मुद्दे पर पाकिस्तान के विरुद्ध आज जब विश्व के अनेक देश जिनमें रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, न्यूजीलैंड, इजरायल, सऊदी अरब और ईरान जैसे कई देश भारत के साथ खड़े हैं तब विपक्ष मोदी का विरोध करे, यह ना केवल निंदनीय है बल्कि अक्षम्य है. आज की स्थिति में मोदी आतंकवाद से लड़ाई में विश्व में एक अहम और अग्रणी भूमिका का निर्वाह कर रहे हैं. यह मोदी ही हैं जिनके नेतृत्व के कारण ही आज पाकिस्तान दुनिया भर में अलग-थलग पड़ गया है. वास्तव में मोदी आज एक मजबूत प्रधानमंत्री बनकर उभरे हैं लेकिन देश का विपक्ष अपनी हताशा से नहीं उबर पा रहा.




बुधवार, 20 फ़रवरी 2019

बदला नहीं तो मोदी भी नहीं

                                   बदला नहीं तो मोदी भी नहीं
                   डॉ. हरिकृष्ण बड़ोदिया
      पुलवामा हमला मोदी के शासनकाल का भीषण और कभी ना भुलाया जाने वाला पाक प्रायोजित आतंकवाद का निकृष्टतम उदाहरण है जिसमें सीआरपीएफ के 40 जवानों के प्राणों की आहुति हुई. यह ऐसा हमला है जिस पर न केवल देश का एक एक नागरिक उद्वेलित हुआ बल्कि आक्रोश से भरा हुआ है. देश के चारो छोरों से बदला लेने की आवाजें सुनाई दे रही हैं. हमले पर प्रधानमंत्री की प्रतिक्रिया कि “पुलवामा हमले के दोषियों को ना केवल बख्शा नहीं जाएगा बल्कि इसका बदला लिया जाएगा, कब और कैसे यह सेना तय करेगी” ने भारतीय जनमानस में अतिरिक्त जोश भर दिया है. भारतीय जनमानस की आवाजें चीख चीख कर बदले की गुहार कर रही हैं. उसका धैर्य यदि कुछ बड़ी कार्यवाही नहीं होती तो टूटना तय है. यह सही है कि हमले के 100 घंटे के भीतर ही पुलवामा हमले के आतंकी जैश कमांडर गाजी और उसके दो साथियों को मौत के घाट उतार दिया गया लेकिन यह कार्रवाई ऑपरेशन ऑल आउट के क्रम में ही देखी जा रही है. भारत की जनता इससे कुछ अलग और कुछ बड़ा चाहती चाहती है जो यह साबित कर सके कि लिया गया बदला ना केवल विलक्षण था बल्कि उसने दुश्मनों की मंशाओं पर कुठाराघात करने का काम किया और यह भी कि यह ऐसा बदला हो जिसका कोई उदाहरण ना रहा हो और आगे दुश्मन देश पाकिस्तान ऐसी जुर्रत नहीं कर सके.
 पुलवामा हमले के बाद सेना के 5 जवान और शहीद हुए जिसका असर देश की जनता पर गंभीर रूप में देखा जा रहा है. साफ है कि हमलों का सिलसिला किसी भी हमले के बाद थमता नहीं. क्या कोई ऐसा बदला नहीं लिया जा सकता कि पुलवामा का हमला आखरी साबित हो. जनता पूछ रही है और कब तक हम अपने सैनिकों की जानें गवांते रहेंगे. जनता परिणाम चाहती है आश्वासन नहीं. भारत की जनता पाकिस्तान को रोते हुए देखना चाहती है यह कब होगा हरएक के मस्तिष्क में अनुत्तरित प्रश्न है. मोदी के बदला ऐलान ने पाकिस्तान को इतना डरा दिया कि उसकी घिग्घी बंध गई है. 4 दिनों तक पाकिस्तान का कोई बयान नहीं आया और जब इमरान का बयान आया तो उससे लगा कि पाकिस्तान को पुलवामा हमले का कोई अफसोस नहीं है. इमरान ने उसकी भर्त्सना भी नहीं की. बल्कि इमरान ने कहा बिना किसी सबूत के पुलवामा हमले के लिए पाकिस्तान को क्यों जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. इस मासूमियत पर ठहाका लगाने का मन करता है. यह जानते हुए कि हमले के दिन ही जैश-ए-मोहम्मद ने इसकी जिम्मेदारी ली थी तब यह कहना कि सबूत नहीं है बेवकूफी भरा बयान है और यह भी कि जब 26/11 हुआ या भारत के उरी में 19 जवानों की शहीदी हुई या पठानकोट हमला हुआ तब भारत ने हर एक हमले के ठोस सबूत दिए तब पाकिस्तान ने क्या किया. अब हालात बदल चुके हैं हमला पाकिस्तानी आतंकियों ने किए हैं यह भारत दृढ़ता से कह रहा है. भारत सबूत नहीं देगा क्योंकि हमलावर पाकिस्तान में हैं और यह भी कि अगर पाक को अपना बचाव करना है तो वह सबूत दे कि हमला उसके आतंकी संगठन जैश नहीं किया.
हाफिज सईद और मसूद अजहर जैसे आतंकियों को पालने पोषने वाले पाकिस्तान को अब सबूत नहीं ताबूत दिए जाएं. इमरान को होश में आ जाना चाहिए, उन्हें अपने देश की जनता के बारे में सोचना चाहिए ना कि भारत और कश्मीर के बारे में. कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा उसे इमरान की सात पुश्तें भी आ जाएं तो जुदा नहीं कर सकती. वस्तुतः पाकिस्तान कश्मीर समस्या के नाम पर ही देश में आतंक फैलाता है और इसमें उसका साथ कश्मीर के दोगले और गद्दार नेता, अलगाववादी, बुद्धिजीवी, पत्रकार और भारत के ख़िलाफ़ बरगलाए गए युवा देते हैं. यहां यह जरूर कहना पड़ेगा कि देश को जितना नुकसान पाकिस्तान से हो रहा है उससे कहीं अधिक इन कश्मीरी पाक परस्तों से हो रहा है. चाहे फारूक अब्दुल्लाह हो या उमर अब्दुल्ला या महबूबा हो या सैफुद्दीन सोज हो या सारे के सारे अलगाववादी हों, ये  पाक परस्त लोग अपना उल्लू सीधा करने के लिए ना केवल पाकिस्तान का गुणगान करते हैं बल्कि पाक  आतंकियों के लिए भारत में हमला करने के लिए सहायता करते हैं. पाकिस्तान से अरबों की सहायता पाकर ये ही भारतीय सेना पर 500 -500 रु. की दिहाड़ी पर सेना पर पत्थर फिकवाते हैं. इन्हें वंदे मातरम, भारत माता के नाम से चिढ़ है. इन्हें भारत के संविधान से चिढ़ है. इन्हें मोदी से चिढ़ है, क्योंकि मोदी तुष्टीकरण की राजनीति नहीं करते. तो सबसे पहली प्राथमिकता सरकार की यह होनी चाहिए कि इन देशद्रोहियों को कैसे कमजोर किया जाए. जब तक घाटी में यह फलते फूलते रहेंगे तब तक कश्मीर की समस्या बनी रहेगी. वहीँ कश्मीर को समस्या बनाए रखने में धारा 370 और 35 A बहुत बड़ी सहयोगी हैं. जरूरत इस बात की है कि हर हाल में इनको हटा दिया जाए. जिस दिन कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा, 370 और 35A से हटा ली गई उसी दिन तथाकथित कश्मीर समस्या अपने आप सुलझ जाएगी. पाक प्रधानमंत्री इमरान ने यह भी कहा कि वह बदले की कार्यवाही का मुंहतोड़ जवाब देंगे. तो देश की जनता चाहती है कि बदला लिया जाए जिससे देखा जा सके कि पाकिस्तान कैसा जवाब देता है. इमरान नवाज शरीफ की तरह ही सेना के एक पपेट प्रधानमंत्री हैं जो सेना अध्यक्ष जनरल बाजवा और आई एस आई की जुबान बोलते हैं. वह क्या जवाब देंगे पूरी दुनिया जानना चाहती है. बस जरूरत इस बात की है कि भारत गर्म लोहे पर चोट करे, जितनी देर होगी लोहा ठंडा हो चुकेगा और फिर कुछ नहीं होगा. अगर कुछ होगा तो वह यह कि लोकसभा चुनाव 2019 में मोदी अपने 2004 के परिणामों को दौरा नहीं सकेंगे. और यह भी कि बड़ा बदला भी तब ही माना जाएगा जब 40 के बदले पाकिस्तान के 400 हलाक़ हों.